आगराः ताजनगरी में दक्षिणी बाईपास और इनररिंग रोड बनने से लोगों को यातायात में आसानी तो हुई लेकिन इसके कुछ साइड इफेक्ट भी हुए. इससे यमुना एक्सप्रेस-वे और आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे बाईपास और इनररिंग रोड के साथ ही अन्य सड़कों पर यातायात बढ़ा है. इस कारण हादसे का ग्राफ भी ऊपर चढ़ा है. ज्यादा दुख की बात ये है कि इनररिंग रोड, बाईपास और एक्सप्रेस-वे के नजदीक ट्रॉमा सेंटर या बड़ा अस्पताल नहीं है. ऐसे में हादसे में गंभीर रूप से घायल होने वालों को तुरंत समुचित इलाज नहीं मिल पाता. कई बार ऐसे लोगों की जान चली जाती है, जिन्हें जल्द पर्याप्त इलाज मिल गया होता तो शायद जान बच जाती.
यहां होते हैं ज्यादा हादसे
आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे और आगरा दिल्ली यमुना एक्सप्रेस-वे के साथ ही आगरा-दिल्ली हाईवे का ट्रैफिक आगरा इनर रिंग रोड पर जाता है. ऐसे ही ग्वालियर-आगरा हाईवे और आगरा-दिल्ली हाईवे का ट्रैफिक दक्षिणी बाईपास से होकर गुजरता है. यातायात का दबाव, ओवर स्पीड और कोहरे की वजह से आए दिन आगरा इनररिंग रोड व दक्षिणी बाईपास पर हादसे होते हैं. यही हाल आगरा- लखनऊ एक्सप्रेस-वे और यमुना एक्सप्रेस-वे पर रहता है.
20 से 35 किलोमीटर दूर एसएन इमरजेंसी
यमुना एक्सप्रेस-वे, आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे, इनररिंग रोड और दक्षिणी बाईपास पर एक्सीडेंट होने पर घायलों को अधिकतर एसएन इमरजेंसी एवं ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया जाता है. जिसकी दूरी 20 से करीब 30 किलोमीटर पड़ती है. कई बार ऐसा भी हुआ है, जब समय पर एंबुलेंस ही नहीं पहुंची. पुलिस किसी अन्य वाहन से घायलों को लेकर एसएन इमरजेंसी या निजी अस्पताल लेकर पहुंची. इससे घायलों के उपचार में देरी हुई. जिसमें गंभीर घायलों की मौत हो गई.
बेसिक लाइफ सपोर्ट से बचाई जा सकती हैं घायलों की जान
इंडियन सोसायटी ऑफ क्रिटिकल केयर के वाइस प्रेसिडेंट डॉ. रनवीर सिंह त्यागी का कहना है कि, हादसे के बाद यदि किसी गंभीर घायल को 30 मिनट में ट्रीटमेंट मिल जाता है, तो उसके बचने की संभावना बढ़ जाती है. हादसे के बाद का एक घंटे का समय बेहद अहम होता है. जिसे गोल्डन पीरियड भी कहते हैं. जब घायल को अस्पताल लाया जा रहा है, उस समय भी बेहद सावधानी बरतना जरूरी है. हादसे के बाद एम्बुलेंस का समय पर पहुंचना, घायलों को बेसिक लाइफ सपोर्ट देना. फिर सेकेंडरी और टर्शरी लेवल पर घायल को शिफ्ट करना. यह सब कोआर्डिनेशन अच्छी तरह से हो तो हादसे के बाद बहुत से लोगों की जान बचाई जा सकती हैं.
ट्रोमा सेंटर पास में होना बेहद जरूरी
इनररिंग रोड टोल प्लाजा के सहायक मैनेजर अशोक कुमार का कहना है कि, जब भी हमें एक्सीडेंट की सूचना मिलती है. हम एंबुलेंस या अन्य वाहन से तुरंत मौके पर पहुंचते हैं. फिर घायलों को उपचार के लिए भेजते हैं. इसके बाद फिर सड़क पर फंसे वाहन को हटाया जाता है. जिससे यातायात को सुचारू किया जा सके. मगर, बड़ी बात यह है कि, इस इनर रिंग रोड पर जहां एक ओर जहां आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे तो दूसरी ओर से आगरा-दिल्ली एक्सप्रेस-वे से वाहन आते हैं. इसलिए यहां यातायात का बहुत दबाव रहता है. बीते दिनों की बात की जाए तो आसपास में एक्सीडेंट की संख्या भी बढ़ी है. पास में कोई ट्रोमा सेंटर नहीं होने से घायलों को देरी से उपचार मिला. जिससे हादसों में घायलों की मौत की संख्या बढ़ी है. इसलिए दोनों एक्सप्रेस वे और रिंग रोड के पास कोई अस्पताल या ट्रोमा सेंटर होना चाहिए.
यह गंभीर विषय, जरूर करेंगे काम
आगरा कमिश्नर अमित कुमार गुप्ता का कहना है कि, यह बहुत गंभीर विषय है. इस बारे में संबंधित विभागों के अधिकारियों के साथ चर्चा करेंगे. इसके समाधान के लिए जरूर आवश्यक कार्रवाई करेंगे. जिससे यह काम किया जा सके.
यह है हादसों की वजह
- वाहनों की ओवर स्पीड
- वाहनों की ओवर टेकिंग
- कोहरे में दृश्यता कम होना
- अवैध कट बंद कराए जाएं
यह सुविधाएं बढ़ें तो बचें जान
- क्रिटिकल केयर एम्बुलेंस तैनात हों
- ट्रोमा सेंटर या अस्पताल बनाए जाएं
- कोहरे में वाहनों की गति धीमी रहे
- वाहनों की ओवर स्पीड पर लगाम लगे
- वाहनों की ओवर टेकिंग लेन सिस्टम से हो
- पुलिस का मूवमेंट भी बढ़ाया जाए
- ट्रैफिक पुलिस भी एक्टिव हो
-ओवर स्पीड वाले वाहनों का चालान हो
- हादसों की ऑडिट कराई जाए
- ब्लैक स्पाट चिह्नित किए जाएं
यहां होते हैं आए दिन हादसे
- आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे
- यमुना एक्सप्रेस-वे
- इनररिंग रोड
- दक्षिणी बाईपास
- आगरा-दिल्ली हाईवे
- फतेहाबाद रोड
आंकड़ों पर नजर
सन | सड़क हादसे | मौत | घायल |
2017 | 1039 | 542 | 894 |
2018 | 1281 | 616 | 933 |
2019 | 1098 | 624 | 923 |
2020 | 825 | 460 | 550 |
( नोट- 2020 के आंकड़े नवंबर माह तक के हैं)
बेशक सड़कें विकास की प्रतीक हैं. यही हैं, जो गावों को शहरों से और शहरों को राज्यों से जोड़ती हैं. मगर, सड़कें जब खूनी हो जाती हैं तो इसका दंश सैकड़ों परिवार झेलते हैं. हादसों के शिकार बचे लोग जिंदगी भर अपाहिज होने का दर्द सहते हैं. इसलिए सरकार को हाईवे, एक्सप्रेस-वे, इनररिंग रोड और बायपास पर ट्रोमा सेंटर या बड़े अस्पताल बनवाने चाहिए. जिससे घायलों को समय पर उपचार मिले. लोगों की जान बचाई जा सके.