ETV Bharat / state

आगरा: अजाखाना की अष्टधातु से बनी 85 साल पुरानी 'जरी', कहा जाता है 'इबादत का घर' - 85 साल पुरानी जरी

उत्तर प्रदेश के आगरा में 85 साल पुरानी सोना, चांदी तांबा समेत आठ धातुओं के मिश्रण से बनी 'जरी' आकर्षण और श्रद्धा का केंद्र बनी हुई है. इस जरी का मॉडल इराक से तैयार किया गया था जिसे 'इबादत का घर' कहा जाता है.

अष्टधातु से बनी 85 साल पुरानी 'जरी'
author img

By

Published : Sep 4, 2019, 11:00 AM IST

आगरा: शहर के शाहगंज में शिया इमामबाड़े अजाखाना में 85 साल पुरानी सोना, चांदी तांबा समेत आठ धातुओं के मिश्रण से बनी 'जरी' आकर्षण और श्रद्धा का केंद्र बनी हुई है. मुहर्रम के पाक दिन चल रहे हैं और इमामबाड़ों में मजलिसें पढ़ी जा रही हैं. वहीं घर-घर ताजिए और 'जरी' रखी जा रही हैं. लोग हजरत इमाम हुसैन को याद कर उनकी शहादत को याद कर रहे हैं.

अष्टधातु से बनी 85 साल पुरानी 'जरी'..


इराक भेजे गए थे बदायूं के कारीगर

  • शाहगंज के अजाखाना के हाशिम रजा रिजवी बताते हैं कि यह 'जरी' मेरे दादा सैय्यद अबुल कासिम रिजवी ने सन् 1935 में बनवाई थी.
  • हाशिम रजा रिजवी ने बताया कि इस 'जरी' को बदायूं के कारीगरों ने बनाया था.
  • दादा जी ने पहले बदायूं के कारीगरों को इराक के करबला भेजा था.
  • वहां जाकर के उन्होंने करबला में हजरत इमाम हुसैन साहब के 'रोजा-ए-मुबारक' को देखा.

इसे भी पढ़ें:- आगरा: न कोई भूखा रहे और न कोई भूखा सोए का चलाया गया अभियान

  • उसके तीन मॉडल तैयार किए थे और उनमें से एक मॉडल फाइनल हुआ.
  • इस मॉडल के आधार पर ही अष्टधातु की इस 'जरी' को बनाया गया.
  • यह जरी इराक के करबला में मौजूद हजरत इमाम हुसैन के 'रोजा-ए- मुबारक' की प्रतिकृति है.

जाने क्या हैं इसकी महत्ता

  • इस 'जरी' की महत्ता और मान्यता इसलिए ज्यादा है क्योंकि यह इराक के करबला में मौजूद हजरत इमाम हुसैन के 'रोजा-ए-मुबारक' की छवि है.
  • यही वजह है कि शाहगंज के इस इमामबाड़े का नाम भी अजाखाना रखा गया है, जिसका अर्थ 'इबादत का घर' है.
  • नौवें मुहर्रम की रात सर्व समाज के लोग करते हैं दर्शन
  • इस जरी को नौवें मुहर्रम की रात सभी के दर्शनार्थ खोलते हैं.
  • यहां मुस्लिम समाज ही नहीं बल्कि सर्व समाज के लोग भी आते हैं.

आगरा: शहर के शाहगंज में शिया इमामबाड़े अजाखाना में 85 साल पुरानी सोना, चांदी तांबा समेत आठ धातुओं के मिश्रण से बनी 'जरी' आकर्षण और श्रद्धा का केंद्र बनी हुई है. मुहर्रम के पाक दिन चल रहे हैं और इमामबाड़ों में मजलिसें पढ़ी जा रही हैं. वहीं घर-घर ताजिए और 'जरी' रखी जा रही हैं. लोग हजरत इमाम हुसैन को याद कर उनकी शहादत को याद कर रहे हैं.

अष्टधातु से बनी 85 साल पुरानी 'जरी'..


इराक भेजे गए थे बदायूं के कारीगर

  • शाहगंज के अजाखाना के हाशिम रजा रिजवी बताते हैं कि यह 'जरी' मेरे दादा सैय्यद अबुल कासिम रिजवी ने सन् 1935 में बनवाई थी.
  • हाशिम रजा रिजवी ने बताया कि इस 'जरी' को बदायूं के कारीगरों ने बनाया था.
  • दादा जी ने पहले बदायूं के कारीगरों को इराक के करबला भेजा था.
  • वहां जाकर के उन्होंने करबला में हजरत इमाम हुसैन साहब के 'रोजा-ए-मुबारक' को देखा.

इसे भी पढ़ें:- आगरा: न कोई भूखा रहे और न कोई भूखा सोए का चलाया गया अभियान

  • उसके तीन मॉडल तैयार किए थे और उनमें से एक मॉडल फाइनल हुआ.
  • इस मॉडल के आधार पर ही अष्टधातु की इस 'जरी' को बनाया गया.
  • यह जरी इराक के करबला में मौजूद हजरत इमाम हुसैन के 'रोजा-ए- मुबारक' की प्रतिकृति है.

जाने क्या हैं इसकी महत्ता

  • इस 'जरी' की महत्ता और मान्यता इसलिए ज्यादा है क्योंकि यह इराक के करबला में मौजूद हजरत इमाम हुसैन के 'रोजा-ए-मुबारक' की छवि है.
  • यही वजह है कि शाहगंज के इस इमामबाड़े का नाम भी अजाखाना रखा गया है, जिसका अर्थ 'इबादत का घर' है.
  • नौवें मुहर्रम की रात सर्व समाज के लोग करते हैं दर्शन
  • इस जरी को नौवें मुहर्रम की रात सभी के दर्शनार्थ खोलते हैं.
  • यहां मुस्लिम समाज ही नहीं बल्कि सर्व समाज के लोग भी आते हैं.
Intro:आगरा.
मुहर्रम के पाक दिन चल रहे हैं. इमामबाड़ों में मजलिसें पढ़ी जा रही हैं. घर-घर ताजिए रखे जा रहे हैं. 'जरी' रखी जा रही हैं. लोग हजरत इमाम हुसैन को याद कर रहे हैं. उनकी शहादत को याद कर रहे हैं. शहर के शाहगंज में शिया इमामबाड़े अजाखाना में 85 साल पुरानी सोना, चांदी तांबा समेत आठ धातुओं के मिश्रण से बनी 'जरी' आकर्षण और श्रद्धा का केंद्र बनी हुई है. क्या खासियत है, इस 'जरी' की उसे हम आपको बताने जा रहे हैं.


Body:शाहगंज के अज़ाखाना के हाशिम रजा रिजवी बताते हैं कि यह 'जरी' मेरे दादा सैय्यद अबुल कासिम रिजवी ने सन् 1935 में बनवाई थी. पहले मेरे दादा ने इसकी देखभाल की. फिर मेरे वालिद ने और अब मैं इसकी देखभाल कर रहा हूं.

इराक भेजे गए थे बदायूं के कारीगर
हाशिम रजा रिजवी ने बताया कि इस 'जरी' को बदायूं के कारीगरों ने बनाया था. मेरे दादा जी ने पहले बदायूं के कारीगरों को इराक के करबला भेजा था. वहां जाकर के उन्होंने करबला में हजरत इमाम हुसैन साहब के 'रोजा-ए-मुबारक' को देखा. फिर उसके तीन मॉडल तैयार किए. उनमें से एक मॉडल फाइनल हुआ. इस मॉडल के आधार पर ही अष्टधातु की इस 'जरी' को बनाया गया. यह जरी इराक के करबला में मौजूद हजरत इमाम हुसैन के 'रोजा-ए- मुबारक' की प्रतिकृति है.

यूं है मान्यता
इस 'जरी' की महत्ता और मान्यता इसलिए ज्यादा है, क्योंकि यह इराक के करबला में मौजूद हजरत इमाम हुसैन के 'रोजा-ए-मुबारक' की छवि है. यही वजह है कि शाहगंज के इस इमामबाड़े का नाम भी अजाखाना रखा गया है. अजाखाना का अर्थ 'इबादत का घर' है.
नौवें मुहर्रम की रात सर्व समाज के लोग करते हैं दर्शन
हाशिम रजा रिजवी ने बताया कि, हम इस जरी को नौवें मुहर्रम की रात सभी के दर्शनार्थ खोलते हैं. यहां मुस्लिम समाज ही नहीं, बल्कि सर्व समाज के लोग आते हैं. इस पवित्र जरी के दर्शन करते हैं और अपनी अपनी मुराद मांगते हैं.


Conclusion:यह जरी इराक के करबला में हजरत इमाम हुसैन के रोजा-ए- मुबारक की छवि है. इसलिए इसे अजाखाना कहा जाता है यानी इबादत का स्थान.
.......
बाइट हाशिम रजा रिजवी, जरी की देखरेख करने वाले ।

..........
श्यामवीर सिंह
आगरा
8387893357
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.