आगरा: शहर के शाहगंज में शिया इमामबाड़े अजाखाना में 85 साल पुरानी सोना, चांदी तांबा समेत आठ धातुओं के मिश्रण से बनी 'जरी' आकर्षण और श्रद्धा का केंद्र बनी हुई है. मुहर्रम के पाक दिन चल रहे हैं और इमामबाड़ों में मजलिसें पढ़ी जा रही हैं. वहीं घर-घर ताजिए और 'जरी' रखी जा रही हैं. लोग हजरत इमाम हुसैन को याद कर उनकी शहादत को याद कर रहे हैं.
इराक भेजे गए थे बदायूं के कारीगर
- शाहगंज के अजाखाना के हाशिम रजा रिजवी बताते हैं कि यह 'जरी' मेरे दादा सैय्यद अबुल कासिम रिजवी ने सन् 1935 में बनवाई थी.
- हाशिम रजा रिजवी ने बताया कि इस 'जरी' को बदायूं के कारीगरों ने बनाया था.
- दादा जी ने पहले बदायूं के कारीगरों को इराक के करबला भेजा था.
- वहां जाकर के उन्होंने करबला में हजरत इमाम हुसैन साहब के 'रोजा-ए-मुबारक' को देखा.
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- उसके तीन मॉडल तैयार किए थे और उनमें से एक मॉडल फाइनल हुआ.
- इस मॉडल के आधार पर ही अष्टधातु की इस 'जरी' को बनाया गया.
- यह जरी इराक के करबला में मौजूद हजरत इमाम हुसैन के 'रोजा-ए- मुबारक' की प्रतिकृति है.
जाने क्या हैं इसकी महत्ता
- इस 'जरी' की महत्ता और मान्यता इसलिए ज्यादा है क्योंकि यह इराक के करबला में मौजूद हजरत इमाम हुसैन के 'रोजा-ए-मुबारक' की छवि है.
- यही वजह है कि शाहगंज के इस इमामबाड़े का नाम भी अजाखाना रखा गया है, जिसका अर्थ 'इबादत का घर' है.
- नौवें मुहर्रम की रात सर्व समाज के लोग करते हैं दर्शन
- इस जरी को नौवें मुहर्रम की रात सभी के दर्शनार्थ खोलते हैं.
- यहां मुस्लिम समाज ही नहीं बल्कि सर्व समाज के लोग भी आते हैं.