मोहाली: बाईस गज के कैनवास पर 163 ग्राम की लाल गेंद से कलाई के जादू के रंग बिखेरने वाले बिरले क्रिकेटर थे शेन वॉर्न. लगभग दम तोड़ती लेग स्पिन गेंदबाजी में जान फूंकने वाले इस महान स्पिनर ने अपनी कला का ऐसा जलवा बिखेरा कि पूरी दुनिया ने उन्हें दाद दी. महज 52 साल की उम्र में दुनिया से विदा लेने वाले वॉर्न क्रिकेटर नहीं बल्कि एक कलाकार थे. एक ऐसे जादूगर, जिनके करिश्मे की एक पूरी पीढी कायल रही और आने वाली कई पीढियां भी रहेंगी.
जब वॉर्न के हाथ में गेंद होती थी तो माइक गैटिंग चकमा खा जाते थे. डेरिल कुलीनन को समझ में नहीं आता था कि उसे कैसे खेलें और हर्शल गिब्स भी किंकर्तव्यविमूढ़ नजर आते थे. चार मार्च को कलाई का यह जादूगर चला गया, लेकिन फनकारों के फन की तरह उनकी जिंदगी भी अप्रत्याशित होती है. कभी बेहद खूबसूरत तो अगले ही पल बेहद क्रूर.
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लेग स्पिन हर किसी के बस की बात नहीं और इससे प्यार करना तो और भी मुश्किल है. रिची बेनो ने साठ के दशक में इसका कमाल दिखाया तो अब्दुल कादिर ने उसके बाद इससे खूब मनोरंजन किया. वॉर्न हालांकि पाइड पाइपर आफ हैमलिन की तरह थे, जो आपको मंत्रमुग्ध कर देता है और आप अनजाने खुद को उसके सफर के हिस्से के रूप में देखते हैं. उनके किरदार में कई खामियां थीं, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि उनमें गजब का करिश्मा था. उनका परिपक्व नहीं होना ही उन्हें और आकर्षक बनाता था.
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जब रवि शास्त्री सिडनी क्रिकेट ग्राउंड पर साल 1992 में पहली बार उनका सामना करने उतरे तो क्या किसी ने सोचा था कि अपने पहले टेस्ट में 150 रन देकर एक विकेट लेने वाला आस्ट्रेलिया का यह गेंदबाज 707 विकेट और ले लेगा.
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उनकी लेग ब्रेक, गुगली, फ्लिपर और जूटर ने दुनिया के दिग्गज बल्लेबाजों को हैरान कर दिया. सचिन तेंदुलकर और उनके बीच साल 1998 की सीरीज के दौरान मैदानी प्रतिद्वंद्विता को कौन भूल सकता है. जब वॉर्न ने कहा था, मुझे सचिन तेंदुलकर के डरावने सपने आते हैं.
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यह वॉर्न की ही करिश्मा था कि 38 साल की उम्र में राजस्थान रॉयल्स को उन्होंने कप्तान और कोच के रूप में पहला आईपीएल खिताब दिलाया. अपने हुनर, अपने मिजाज और अपनी जिंदादिली के कारण हर क्रिकेट प्रेमी के दिल में अपने लिए खास जगह बनाने वाले शेन वॉर्न की कमी क्रिकेट को खूब खलेगी.