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जानिए, क्या है एग्जिट पोल और क्यों माना जाता है इसे सटीक

बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर जारी एग्जिट पोल के नतीजों में एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर दिख रही है. हालांकि, महागठबंधन को अधिक सीटें मिलने की भविष्यवाणी की गई है. आज हम आपको बता रहें हैं कि कैसे किया जाता एग्जिट पोल है और क्यों यह ओपिनियन पोल से ज्यादा सटीक माना जाता है.

Exit Polls
एग्जिट पोल
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Published : Nov 7, 2020, 10:55 PM IST

Updated : Apr 29, 2021, 6:18 PM IST

हैदराबाद : एग्जिट पोल शोधकर्ताओं द्वारा किए जाते हैं. शोधकर्ता मतदान के दिन अपने मताधिकार का प्रयोग कर पोलिंग बूथ से बाहर निकलने वालों से जानकारी हासिल करते हैं कि उन्होंने किस पार्टी या उम्मीदवार के पक्ष में वोट किया. ऐसे पोल का उद्देश्य मतदाताओं से एकत्रित जानकारी के आधार पर चुनाव के परिणाम की भविष्यवाणी करना है. भारत में कई संगठनों द्वारा एग्जिट पोल किए जाते हैं.

एग्जिट पोल करने वाले निजी फर्म और मीडिया संगठन हैं- टुडेज चाणक्य, एबीपी-सी-वोटर, न्यूज18, इंडिया टुडे-एक्सिस, टाइम्स नाउ-सीएनएक्स, न्यूज एक्स-नेता, रिपब्लिक-जन की बात, रिपब्लिक-सी-वोटर, एबीपी-सीएसडीएस और चिंतामणि.

  1. सर्वेक्षण का विज्ञान (जिसमें एग्जिट पोल शामिल है) इस धारणा पर काम करता है कि एक संरचित प्रश्नावली का उपयोग करके बड़ी संख्या में मतदाताओं के साक्षात्कार के बाद डेटा एकत्र किया गया है.
  2. यह एक अलग बात है कि साक्षात्कार टेलीफोन के जरिए किया गया था, या कलम और पेंसिल या गैजेट (आईपैड या मोबाइल एप) का उपयोग करके आमने-सामने किया गया था.
  3. एग्जिट पोल कोई नया तरीका नहीं है. यह 1957 में दूसरे लोकसभा चुनाव के दौरान शुरू हुआ, जब इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन ने एक सर्वेक्षण किया था. लेकिन अच्छे अनुमान के लिए जरूरी कार्यप्रणाली का पालन होना जरूरी है.
  4. संरचित प्रश्नावली (Structured Questionnaire) के बिना न तो डेटा को सुसंगत रूप से एकत्र किया जा सकता है और न ही वोट शेयर अनुमान पर पहुंचने के लिए व्यवस्थित रूप से विश्लेषण किया जा सकता है.
  5. 1957 में एग्जिट पोल शुरू होने के बाद से इसके सैंपल साइज में काफी सुधार हुआ है. वो दिन अब बीत गए, जब 20,000-30,000 का राष्ट्रीय नमूना एक बहुत बड़े नमूने की तरह दिखता था.
  6. भारत में चुनाव विश्लेषण के अग्र-दूत माने जाने वाले लोगों, जैसे प्रणय रॉय और योगेंद्र यादव ने भी 1980 के दशक की शुरुआत से 1990 के दशक तक इसी तरह के नमूनों के साथ काम किया था.
  7. हालांकि, सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) आम तौर पर एग्जिट पोल नहीं करता है. लेकिन इसने कुछ एग्जिट पोल किए हैं. डीएसडीएस ने 1996 के लोकसभा चुनाव के दौरान नलिनी सिंह और दूरदर्शन के साथ 17,604 के सैंपल साइज का उपयोग करके पहला एग्जिट पोल किया था.

एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल में अंतर

ओपिनियन पोलएग्जिट पोल
यह चुनाव से पहले किए जाते हैं.यह चुनाव के बाद किया जाता है.
ओपिनियन पोल में जनमत के आकलन के आधार पर मतदान के परिणामों का पूर्वानुमान लगाया जाता है.एग्जिट पोल मतदान के दौरान डाले गए वोट के आधार पर अंतिम परिणाम की भविष्यवाणी करते हैं.
ओपिनियन पोल कम सटीक होते हैं.एग्जिट पोल अधिक सटीक माने जाते हैं.

एग्जिट पोल पर चुनाव आयोग की एडवाइजरी

  • अंतिम चरण का चुनाव समाप्त होने के आधे घंटे बाद ही एग्जिट पोल का प्रसारण किया जा सकता है. आम तौर पर शाम को ही इसका प्रसारण किया जाता है.
  • बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार, वेबसाइट्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को एडवाइजरी में शामिल किया गया.
  • आयोग के दिशानिर्देश के अनुसार, टीवी, रेडियो चैनल, केबल नेटवर्क, वेबसाइट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक चरण के चुनाव से पहले 48 घंटे की अवधि के दौरान उनके द्वारा टेलीकास्ट / ब्रॉडकास्ट / प्रदर्शित (डिस्प्ले) किए जाने वाले कार्यक्रमों की सामग्री में किसी विशेष पार्टी या उम्मीदवार को प्रमोट नहीं किया जाना चाहिए. या किसी के पक्ष में जनता से वोट देने की अपील नहीं की जा सकती है.
  • निर्वाचन आयोग चुनाव की घोषणा से लेकर परिणाम जारी होने तक मीडिया घरानों द्वारा किए जाने वाले प्रसारणों की निगरानी करता है.
  • चुनाव आयोग ने कहा है कि मीडिया घरानों द्वारा गाइडलाइंस का उल्लंघन करने की स्थिति में समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण (एनबीएसए) के नियमों के तहत निपटा जाएगा.
  • चुनाव आयोग की गाइडलाइंस मीडिया घरानों को किसी भी अंतिम, औपचारिक और निश्चित परिणाम को प्रसारित करने से रोकती है, जब तक कि भारत निर्वाचन आयोग द्वारा औपचारिक रूप से परिणाम घोषित नहीं किए जाते हैं.
  • चुनाव आयोग ने अखबारों और टीवी चैनलों को यह भी निर्देशित किया कि वे मतदाताओं के सैंपल साइज, उनकी कार्यप्रणाली का विवरण, त्रुटि का मार्जिन और सर्वेक्षण करने वाली मतदान एजेंसी की पृष्ठभूमि का खुलासा करें.

एग्जिट पोल को लेकर आलोचना

  • आलोचकों और राजनीतिक दलों का कहना है कि एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियां पसंद, शब्द, प्रश्नों के समय, उनके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली कार्यप्रणाली और उनके द्वारा बनाए गए नमूने के संदर्भ में पक्षपाती हो सकती हैं.
  • सैंपल ग्रुप के जनसांख्यिकीय व्यवहार, उसकी आर्थिक स्थिति और सर्वेक्षण को सारणीबद्ध करने में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न अन्य कारकों पर भी सवाल उठाए जाते हैं.
  • राजनीतिक दलों का यह भी आरोप है कि एग्जिट पोल उनके प्रतिद्वंद्वियों द्वारा वित्त पोषित हैं और लोगों की भावनाओं या विचारों को सटीक रूप से प्रतिबिंबित नहीं कर सकते हैं.

जब गलत साबित हुए एग्जिट पोल

2019 हरियाणा विधानसभा चुनाव : हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 में सभी एग्जिट पोल में भाजपा की जीत की भविष्यवाणी की गई थी, लेकिन वास्तविक नतीजे काफी अलग थे. इस चुनाव में भाजपा बहुमत से दूर रह गई थी. 90 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को 40 सीटें और कांग्रेस 31 सीटें मिली थीं.

2018 छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव : छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भी तमाम एग्जिट पोल कांग्रेस को मिले भारी जनादेश का अनुमान लगाने में नाकाम रहे थे.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017: सभी एग्जिट पोल में उत्तर प्रदेश में त्रिशंकु विधानसभा की भविष्यवाणी की गई थी और भाजपा को सबसे ज्यादा सीटें मिलने का अनुमान जताया गया था. हालांकि, सभी एग्जिट पोल गलत साबित हुए और भाजपा ने 300 से अधिक सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया था. भाजपा को 2012 की तुलना में 2017 में 265 सीटें अधिक मिलीं.

बिहार विधानसभा चुनाव 2015: अधिकांश एग्जिट पोल में किसी भी गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था और मिश्रित तस्वीर की भविष्यवाणी की गई थी. हालांकि, वास्तविक परिणाम में, आरजेडी-जेडीयू-कांग्रेस (महागठबंधन) को बहुमत मिला था और लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी.

यह भी पढ़ें- एग्जिट पोल : नीतीश को झटका, चिराग फेल तो तेजस्वी का दिखा तेज

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015: अधिकांश एग्जिट पोल ने भविष्यवाणी की थी कि आम आदमी पार्टी चुनाव जीतेगी और 70 सदस्यीय विधानसभा में सिर्फ आधे का आंकड़ा पार करेगी. लेकिन आम आदमी पार्टी ने 67 सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया था. एक बार फिर एग्जिट पोल सटीक भविष्यवाणी करने में नाकाम रहे थे.

अन्य देशों में एग्जिट पोल से संबंधित प्रतिबंध

  • यूरोपीय संघ में 16 देश ऐसे हैं, जहां एक महीने से लेकर मतदान के दिन से 24 घंटे पहले तक ओपिनियन पोल की रिपोर्टिंग पर प्रतिबंध है.
  • फ्रांस में, मतदान से 24 घंटे पहले ओपिनियन पोल पर प्रतिबंध लग जाता है. फ्रांस द्वारा 1977 में ओपिनियन पोल पर लगाए गए सात दिनों के प्रतिबंध को एक अदालत ने हटा दिया था. अदालत ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया था.
  • इटली, स्लोवाकिया और लक्जमबर्ग में ओपिनियन पोल पर सात दिनों से अधिक का प्रतिबंध है.
  • ब्रिटेन में ओपिनियन पोल के परिणामों को प्रकाशित करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन मतदान समाप्त होने तक एक्जिट पोल के परिणामों को साझा नहीं किया जा सकता है.
  • अमेरिका में, किसी भी समय ओपिनियन पोल (जनमत सर्वेक्षण) के प्रकाशन की इजाजत है. समाचार संगठन, जो चुनाव के लिए नियुक्त हैं, स्वेच्छा से खुद को रोकते हैं कि मतदान समाप्त होने से पहले वे एक्जिट पोल से संभावित परिणामों की रिपोर्ट नहीं करेंगे.
  • जर्मनी में मतदान संपन्न होने से पहले एग्जिट पोल के आंकड़े जारी करना अपराध है.
  • बुल्गारिया में, चुनाव के दिन एग्जिट पोल के नतीजे जारी करने पर प्रतिबंध है.
  • सिंगापुर में एग्जिट पोल पर पूरी तरह प्रतिबंध है.

हैदराबाद : एग्जिट पोल शोधकर्ताओं द्वारा किए जाते हैं. शोधकर्ता मतदान के दिन अपने मताधिकार का प्रयोग कर पोलिंग बूथ से बाहर निकलने वालों से जानकारी हासिल करते हैं कि उन्होंने किस पार्टी या उम्मीदवार के पक्ष में वोट किया. ऐसे पोल का उद्देश्य मतदाताओं से एकत्रित जानकारी के आधार पर चुनाव के परिणाम की भविष्यवाणी करना है. भारत में कई संगठनों द्वारा एग्जिट पोल किए जाते हैं.

एग्जिट पोल करने वाले निजी फर्म और मीडिया संगठन हैं- टुडेज चाणक्य, एबीपी-सी-वोटर, न्यूज18, इंडिया टुडे-एक्सिस, टाइम्स नाउ-सीएनएक्स, न्यूज एक्स-नेता, रिपब्लिक-जन की बात, रिपब्लिक-सी-वोटर, एबीपी-सीएसडीएस और चिंतामणि.

  1. सर्वेक्षण का विज्ञान (जिसमें एग्जिट पोल शामिल है) इस धारणा पर काम करता है कि एक संरचित प्रश्नावली का उपयोग करके बड़ी संख्या में मतदाताओं के साक्षात्कार के बाद डेटा एकत्र किया गया है.
  2. यह एक अलग बात है कि साक्षात्कार टेलीफोन के जरिए किया गया था, या कलम और पेंसिल या गैजेट (आईपैड या मोबाइल एप) का उपयोग करके आमने-सामने किया गया था.
  3. एग्जिट पोल कोई नया तरीका नहीं है. यह 1957 में दूसरे लोकसभा चुनाव के दौरान शुरू हुआ, जब इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन ने एक सर्वेक्षण किया था. लेकिन अच्छे अनुमान के लिए जरूरी कार्यप्रणाली का पालन होना जरूरी है.
  4. संरचित प्रश्नावली (Structured Questionnaire) के बिना न तो डेटा को सुसंगत रूप से एकत्र किया जा सकता है और न ही वोट शेयर अनुमान पर पहुंचने के लिए व्यवस्थित रूप से विश्लेषण किया जा सकता है.
  5. 1957 में एग्जिट पोल शुरू होने के बाद से इसके सैंपल साइज में काफी सुधार हुआ है. वो दिन अब बीत गए, जब 20,000-30,000 का राष्ट्रीय नमूना एक बहुत बड़े नमूने की तरह दिखता था.
  6. भारत में चुनाव विश्लेषण के अग्र-दूत माने जाने वाले लोगों, जैसे प्रणय रॉय और योगेंद्र यादव ने भी 1980 के दशक की शुरुआत से 1990 के दशक तक इसी तरह के नमूनों के साथ काम किया था.
  7. हालांकि, सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) आम तौर पर एग्जिट पोल नहीं करता है. लेकिन इसने कुछ एग्जिट पोल किए हैं. डीएसडीएस ने 1996 के लोकसभा चुनाव के दौरान नलिनी सिंह और दूरदर्शन के साथ 17,604 के सैंपल साइज का उपयोग करके पहला एग्जिट पोल किया था.

एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल में अंतर

ओपिनियन पोलएग्जिट पोल
यह चुनाव से पहले किए जाते हैं.यह चुनाव के बाद किया जाता है.
ओपिनियन पोल में जनमत के आकलन के आधार पर मतदान के परिणामों का पूर्वानुमान लगाया जाता है.एग्जिट पोल मतदान के दौरान डाले गए वोट के आधार पर अंतिम परिणाम की भविष्यवाणी करते हैं.
ओपिनियन पोल कम सटीक होते हैं.एग्जिट पोल अधिक सटीक माने जाते हैं.

एग्जिट पोल पर चुनाव आयोग की एडवाइजरी

  • अंतिम चरण का चुनाव समाप्त होने के आधे घंटे बाद ही एग्जिट पोल का प्रसारण किया जा सकता है. आम तौर पर शाम को ही इसका प्रसारण किया जाता है.
  • बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार, वेबसाइट्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को एडवाइजरी में शामिल किया गया.
  • आयोग के दिशानिर्देश के अनुसार, टीवी, रेडियो चैनल, केबल नेटवर्क, वेबसाइट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक चरण के चुनाव से पहले 48 घंटे की अवधि के दौरान उनके द्वारा टेलीकास्ट / ब्रॉडकास्ट / प्रदर्शित (डिस्प्ले) किए जाने वाले कार्यक्रमों की सामग्री में किसी विशेष पार्टी या उम्मीदवार को प्रमोट नहीं किया जाना चाहिए. या किसी के पक्ष में जनता से वोट देने की अपील नहीं की जा सकती है.
  • निर्वाचन आयोग चुनाव की घोषणा से लेकर परिणाम जारी होने तक मीडिया घरानों द्वारा किए जाने वाले प्रसारणों की निगरानी करता है.
  • चुनाव आयोग ने कहा है कि मीडिया घरानों द्वारा गाइडलाइंस का उल्लंघन करने की स्थिति में समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण (एनबीएसए) के नियमों के तहत निपटा जाएगा.
  • चुनाव आयोग की गाइडलाइंस मीडिया घरानों को किसी भी अंतिम, औपचारिक और निश्चित परिणाम को प्रसारित करने से रोकती है, जब तक कि भारत निर्वाचन आयोग द्वारा औपचारिक रूप से परिणाम घोषित नहीं किए जाते हैं.
  • चुनाव आयोग ने अखबारों और टीवी चैनलों को यह भी निर्देशित किया कि वे मतदाताओं के सैंपल साइज, उनकी कार्यप्रणाली का विवरण, त्रुटि का मार्जिन और सर्वेक्षण करने वाली मतदान एजेंसी की पृष्ठभूमि का खुलासा करें.

एग्जिट पोल को लेकर आलोचना

  • आलोचकों और राजनीतिक दलों का कहना है कि एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियां पसंद, शब्द, प्रश्नों के समय, उनके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली कार्यप्रणाली और उनके द्वारा बनाए गए नमूने के संदर्भ में पक्षपाती हो सकती हैं.
  • सैंपल ग्रुप के जनसांख्यिकीय व्यवहार, उसकी आर्थिक स्थिति और सर्वेक्षण को सारणीबद्ध करने में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न अन्य कारकों पर भी सवाल उठाए जाते हैं.
  • राजनीतिक दलों का यह भी आरोप है कि एग्जिट पोल उनके प्रतिद्वंद्वियों द्वारा वित्त पोषित हैं और लोगों की भावनाओं या विचारों को सटीक रूप से प्रतिबिंबित नहीं कर सकते हैं.

जब गलत साबित हुए एग्जिट पोल

2019 हरियाणा विधानसभा चुनाव : हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 में सभी एग्जिट पोल में भाजपा की जीत की भविष्यवाणी की गई थी, लेकिन वास्तविक नतीजे काफी अलग थे. इस चुनाव में भाजपा बहुमत से दूर रह गई थी. 90 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को 40 सीटें और कांग्रेस 31 सीटें मिली थीं.

2018 छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव : छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भी तमाम एग्जिट पोल कांग्रेस को मिले भारी जनादेश का अनुमान लगाने में नाकाम रहे थे.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017: सभी एग्जिट पोल में उत्तर प्रदेश में त्रिशंकु विधानसभा की भविष्यवाणी की गई थी और भाजपा को सबसे ज्यादा सीटें मिलने का अनुमान जताया गया था. हालांकि, सभी एग्जिट पोल गलत साबित हुए और भाजपा ने 300 से अधिक सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया था. भाजपा को 2012 की तुलना में 2017 में 265 सीटें अधिक मिलीं.

बिहार विधानसभा चुनाव 2015: अधिकांश एग्जिट पोल में किसी भी गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था और मिश्रित तस्वीर की भविष्यवाणी की गई थी. हालांकि, वास्तविक परिणाम में, आरजेडी-जेडीयू-कांग्रेस (महागठबंधन) को बहुमत मिला था और लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी.

यह भी पढ़ें- एग्जिट पोल : नीतीश को झटका, चिराग फेल तो तेजस्वी का दिखा तेज

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015: अधिकांश एग्जिट पोल ने भविष्यवाणी की थी कि आम आदमी पार्टी चुनाव जीतेगी और 70 सदस्यीय विधानसभा में सिर्फ आधे का आंकड़ा पार करेगी. लेकिन आम आदमी पार्टी ने 67 सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया था. एक बार फिर एग्जिट पोल सटीक भविष्यवाणी करने में नाकाम रहे थे.

अन्य देशों में एग्जिट पोल से संबंधित प्रतिबंध

  • यूरोपीय संघ में 16 देश ऐसे हैं, जहां एक महीने से लेकर मतदान के दिन से 24 घंटे पहले तक ओपिनियन पोल की रिपोर्टिंग पर प्रतिबंध है.
  • फ्रांस में, मतदान से 24 घंटे पहले ओपिनियन पोल पर प्रतिबंध लग जाता है. फ्रांस द्वारा 1977 में ओपिनियन पोल पर लगाए गए सात दिनों के प्रतिबंध को एक अदालत ने हटा दिया था. अदालत ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया था.
  • इटली, स्लोवाकिया और लक्जमबर्ग में ओपिनियन पोल पर सात दिनों से अधिक का प्रतिबंध है.
  • ब्रिटेन में ओपिनियन पोल के परिणामों को प्रकाशित करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन मतदान समाप्त होने तक एक्जिट पोल के परिणामों को साझा नहीं किया जा सकता है.
  • अमेरिका में, किसी भी समय ओपिनियन पोल (जनमत सर्वेक्षण) के प्रकाशन की इजाजत है. समाचार संगठन, जो चुनाव के लिए नियुक्त हैं, स्वेच्छा से खुद को रोकते हैं कि मतदान समाप्त होने से पहले वे एक्जिट पोल से संभावित परिणामों की रिपोर्ट नहीं करेंगे.
  • जर्मनी में मतदान संपन्न होने से पहले एग्जिट पोल के आंकड़े जारी करना अपराध है.
  • बुल्गारिया में, चुनाव के दिन एग्जिट पोल के नतीजे जारी करने पर प्रतिबंध है.
  • सिंगापुर में एग्जिट पोल पर पूरी तरह प्रतिबंध है.
Last Updated : Apr 29, 2021, 6:18 PM IST
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