झांसी : उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में विभाजित बुंदेलखंड इलाका पिछले कई वर्षों से प्राकृति आपदाओं का दंश झेल रहा है. भुखमरी और सूखे की त्रासदी से अब तक 62 लाख से अधिक किसान 'वीरों की धरती' से पलायन कर चुके हैं.
वर्ष 2005 से मार्च 2019 तक 6 हजार किसान कर्जखोरी में आत्महत्या कर चुके हैं. इसमें अधिकतर फांसी के केस हैं. कुछ एक ट्रेन से कटकर और आत्मदाह में मरे. यहां के किसानों को उम्मीद थी कि अबकी बार के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दल सूखा और पलायन को अपना मुद्दा बनाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और एक बार फिर यह मुद्दा जातीय बयार में दब सा गया है.
बुंदेलखंड में सिंचाई बना सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा. इन्हीं मुद्दों को लेकर ईटीवी भारत ने झांसी के बरुआसागर में लोगों से बात की. मतदाताओं ने बुंदेलखंड में सिंचाई सबसे बड़ा मुद्दा बताया और कहा कि इस पर पिछली सरकारों ने वादे तो तमाम किए लेकिन काम न के बराबर किया. साथ ही किसानों ने केंद्रीय मंत्री उमा भारती के ड्रीम प्रोजेक्ट केन-बेतवा नदी परियोजना पर सवालिया निशान उठाए.
बरुआसागर के किसानों का कहना है कि यदि सरकार सिंचाई के अच्छे संसाधन जुटाए तो यहां से पलायन अपने-आप रुक जाएगा. साथ ही कुछ किसानों ने बताया कि इस वर्ष अन्य सालों की अपेक्षा कम पलायन हुआ है, क्योंकि मानसून के दौरान अच्छी बारिश हुई थी जिससे खेतों में सिंचाई हो सकी और पलायन में कमी आ गई.
चुनावी मुद्दों पर ईटीवी भारत ने झांसी के बरुआसागर में लोगों से बात की. बता दें कि '
वीरों की धरती' कहा जाने वाला बुंदेलखंड देश में महाराष्ट्र के विदर्भ जैसी पहचान बना चुका है. बुंदेलखंड का भूभाग उत्तर प्रदेश के बांदा, चित्रकूट, महोबा, उरई-जालौन, झांसी और ललितपुर और मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दतिया, पन्ना और दमोह जिलों में विभाजित है.