वाराणसी : देश में इन दिनों ज्ञानवापी मस्जिद काफी चर्चा में है. इसको लेकर के वाराणसी सिविल जज ने जहां एक ओर पुनः सर्वे का आदेश दे दिया है तो वहीं सर्वे टीम ने मस्जिद के अंदर सर्वे की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है. इसे लेकर पूरे जनपद में काफी गहमागहमी का माहौल है.
सभी को सर्वे रिपोर्ट आने का इंतजार कर रहे हैं. वह जानना चाहते हैं कि आखिर ज्ञानवापी में क्या राज छुपा है. ऐसे में ईटीवी भारत आज आपको ज्ञानवापी की कुछ खास तस्वीरें दिखाने जा रहा है जो 1991 के दौरान खींची गईं हैं. इन तस्वीरों को काशी के वरिष्ठ पत्रकार ने सांझा कीं हैं. देखें रिपोर्ट..
वरिष्ठ पत्रकार ने सांझा कीं मस्जिद की खास तस्वीरें : गौरतलब है कि ये तस्वीरें वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद और मां शृंगार गौरी के मंदिर की तस्वीरें हैं जो इन दिनों पूरे देश के मीडिया की सुर्खियां बनी हुईं हैं. खास बात यह है कि इन तस्वीरों में आप देख सकते हैं कि ज्ञानवापी मस्जिद के ठीक बगल में मां शृंगार गौरी का मंदिर है.
इसको लेकर लगातार ये दावा किया जा रहा है कि मंदिर पर मस्जिद का निर्माण किया गया है. इन तस्वीरों को सांझा करने वाले वरिष्ठ पत्रकार आरपी सिंह ने बताया कि उन्होंने बाबरी विध्वंस के पहले 1991 से लेकर 1993 के बीच में इन तस्वीरों को खींचा था. एक पत्रिका के लिए लेख तैयार किया था.
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उन्होंने बताया कि उस दौरान यहां पर किसी तरीके का कोई विवाद नहीं था. मंदिर-मस्जिद दोनों में सभी लोग आम तरीके से आ जा सकते थे लेकिन बाबरी मस्जिद विवाद के बाद यहां बैरिकेडिंग कर दी गई. उसके पहले यहां साफ देखा जा सकता था कि यहां मंदिर पर मस्जिद बना हुआ है.
मस्जिद की दीवारों पर बने हैं हिन्दू धार्मिक चिन्ह : उन्होंने बताया कि बाबरी विध्वंस के बाद मस्जिद के चारों तरफ लकड़ी की बैरिकेडिंग कर दी गई थी. सुरक्षा बढ़ा दी गई. इसके साथ ही बाद में यहां लकड़ी से हटाकर लोहे की बैरिकेटिंग लगा दी गई लेकिन इन तस्वीरों को देखकर स्पष्ट हो जाता है कि वह मंदिर पर ही मस्जिद का निर्माण है.
मंदिर के पश्चिमी दीवार पर जिस तरीके से अष्ट कमल घंटियां और अन्य हिंदू धर्म के धर्म चिह्न बनाए गए हैं, वह किसी मस्जिद पर कभी नहीं बनाए जाते. उसके साथ ही इस मस्जिद का नाम भी ज्ञानवापी है. यानी ज्ञान का कुआं जो कि एक संस्कृत शब्द है तो ऐसे में एक मस्जिद का नाम किसी संस्कृत शब्द पर कैसे रखा जा सकता है. उन्होंने बताया कि एक पत्रिका के लेख के लिए उन्होंने मस्जिद की एक-एक तस्वीर जुटाई थी.
1585 में तैयार हुआ था मंदिर का लेआउट : इसके साथ ही उन्होंने विश्वनाथ मंदिर के लेआउट को दिखाते हुए बताया कि 1585 में पुराने मंदिर पर ही राजा टोडरमल के सहायता से नारायण भट्ट ने इस लेआउट को तैयार किया था.
उस समय अकबर का कार्यकाल था. इस दौरान इसमें उत्तर के तरफ की सड़क ऊंची होने से सड़क के समान अनुरूप बनाने के लिए यहां 7 फीट का नीचे का तहखाना बनाया गया. इसके बाद मन्दिर परिसर को 125 फीट लंबा 125 फीट चौड़ा बनाया गया है. 128 फीट ऊंचा मंदिर तैयार हुआ है.
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