वाराणसी: नए संसद भवन के ऊपर बने अशोक स्तम्भ (new ashoka stambha) को लेकर विवाद शुरू हो गया है. लगातार विपक्ष इस बात को मुद्दा बना रहा है कि सारनाथ के म्यूजियम में रखे असली अशोक स्तम्भ से काफी अलग है. आरोप यह भी है कि पुराना अशोक स्तम्भ सौम्य, भारत की एकता और अखंडता को प्रदर्शित करता है. लेकिन, नए अशोक स्तम्भ में शेर को रौद्र रूप में दिखाया गया है, जो गलत है. हालांकि, इस विवाद के बीच ईटीवी भारत आपको उस असल अशोक स्तम्भ को दिखाने जा रहा है, जिसका जिक्र लगातार विपक्ष कर रहा है.
सारनाथ स्थित पुरातात्विक संग्रहालय (Sarnath Archaeological Museum) में मौजूद इस ओरिजिनल और हजारों साल पुराने अशोक स्तम्भ की कहानी भी काफी रोचक है. इस बारे में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इतिहासकार प्रो. राजीव श्रीवास्तव का कहना है कि संग्रहालय में जो अशोक स्तम्भ है, वह ओरिजिनल है और अशोक काल का है. भारत में कई जगहों पर अलग-अलग तरीके से अशोक स्तम्भ बनते हैं, जिन्हें कई रूपों में दर्शाया गया है. इसे लेकर विवाद नहीं होना चाहिए.
प्रो. राजीव ने बताया कि 483 ईसा पूर्व में भगवान बुद्ध के द्वारा धर्म के प्रचार के लिए दिए उपदेश को 'धम्म उपदेश' के नाम से जाना जाता है. इसे बौद्ध धर्म में महत्वपूर्ण मानते हुए बुद्ध की सिंह गर्जना के रूप में विख्यात किया गया. इसमें खुद भगवान बुद्ध ने अपने इस प्रथम उपदेश को हर किसी के लिए सिंह गर्जना यानी शेर की दहाड़ के संग निडर होकर जीवन जीने का मंत्र दिया. इसके बाद ही सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए लोगों को प्रेरित करने के उद्देश्य से इस स्तंभ का निर्माण करवाया, जिसे 1947 में आजादी मिलने के बाद 1950 में देश के राष्ट्रीय चिह्न के रूप में स्थापित किया गया.
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वर्तमान समय में अशोक का स्तम्भ सारनाथ म्यूजियम में मौजूद है. इसमें शेर का मुख सौम्य और जीभ बाहर की तरफ निकाली हुई दिखाई दे रही है. वहीं, नए संसद के ऊपर बने अशोक स्तम्भ पर शेर के मुंह खुले हुए हैं और उनके दांत दिख रहे हैं, जिसे लेकर विवाद हो रहा है.
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