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यूपी विधानसभा चुनाव 2022: आयोग के फरमान से कारोबारियों को 100 करोड़ की चपत

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर चुनाव आयोग ने 15 जनवरी तक रैलियों पर रोक लगायी है. पूर्वांचल में रैलियों से जुड़े टेंट, फूल और कैटरिंग के कारोबारियों को करीब 100 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.

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यूपी विधानसभा चुनाव 2022
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Published : Jan 13, 2022, 9:10 PM IST

वाराणसी: यूपी विधानसभा चुनाव 2022 की घोषणा के साथ ही राजनैतिक दलों में उथल-पुथल शुरू हो चुकी है. हर राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए अपने तरीके से तैयारियों में जुटा है. चुनाव आयोग ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए 15 जनवरी तक रैली और जनसभाओं पर रोक लगा रखी है. वर्चुअल प्रचार-प्रसार के साथ ही 5 लोगों के साथ डोर-टू-डोर कैंपेन का ही जरिया राजनीतिक दलों के लिए बचा हुआ है, लेकिन इन सबके बीच चुनावी रैलियों पर रोक होने का नुकसान राजनीतिक दलों को उठाना पड़ रहा है.

वाराणसी में रैलियों और रोड शो पर रोक के कारण हुआ नुकसान

रैलियों से राजनीतिक दलों को तो फायदा होता था, साथी ही रैलियों से टेंट, कैटरर्स और बिजली कारोबारियों को कमाई करने मौका मिलता था. विधानसभा चुनाव में 3 महीने तक टेंट कारोबारियों की चांदी होती है. वाराणसी में भी कई ऐसे कारोबारी हैं, जिनका काम पूरे पूर्वांचल में नहीं, बल्कि यूपी के कई और शहरों में भी होता है. चाहे सरकारी काम हो या फिर राजनैतिक दलों की होने वाली रैलियां, जर्मन हैंगर का पंडाल हो या फिर परंपरागत पंडाल, बनारस के कई बड़े टेंट और कैटरिंग कारोबारी यहां से ही काम पूरा करते हैं.

पिछले चुनावों में भी पूर्वांचल समेत उत्तर प्रदेश में अलग-अलग पार्टियों की 100 से ज्यादा रैलियों की जिम्मेदारी बनारस के इन कारोबारियों को मिली थी और इस बार भी पूर्वांचल में बीजेपी समेत समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और अलग-अलग कई दलों की 20 रैलियों का आर्डर मिल चुका था. इसमें बनारस, जौनपुर, बलिया, चंदौली समेत अन्य कुछ जिलों में होने वाली रैलीयां शामिल थीं, लेकिन चुनाव आयोग के निर्देशों के बाद इन सभी रैलियों को कैंसिल कर दिया गया.



ये भी पढ़ें- UP Election 2022: सपा-रालोद गठबंधन ने जारी की उम्मीदवारों की पहली सूची


कारोबारियों का कहना है कि हमारे सामने तो पहले से ही संकट था. कोरोना के कारण शादी ब्याह बहुत छोटे स्तर पर हो रहे थे. इसके अलावा दुर्गा पूजा और अन्य मूर्ति पूजा पर भी रोक लगायी गयी थी. अब चुनाव से उम्मीदें थी, लेकिन चुनावी रैलियों पर रोक ने सब की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. बड़ी बात यह है कि एक कारोबारी से 100 से ज्यादा परिवार जुड़े होते हैं. बंगाल से बड़ी संख्या में मजदूर बुलाए जाते हैं, जो पंडाल बनाने का काम करते हैं.

बिजली कारोबारी, कैटरिंग कारोबारी, फूल कारोबारी, कपड़ा कारोबारी, ट्रांसपोर्टर और अन्य कई छोटे-मोटे कारोबारी भी पूरी शिद्दत के साथ इस महापर्व का इंतजार कर रहे थे. चुनावी रैलियों पर रोक ने सब कुछ बर्बाद कर दिया. यूं कहा जाए तो पूर्वांचल में अकेले 100 करोड़ से ज्यादा का कारोबार प्रभावित हुआ है. फिलहाल उम्मीद यही है कि चुनाव आयोग 15 जनवरी के बाद कुछ रियायत देगा.

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वाराणसी: यूपी विधानसभा चुनाव 2022 की घोषणा के साथ ही राजनैतिक दलों में उथल-पुथल शुरू हो चुकी है. हर राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए अपने तरीके से तैयारियों में जुटा है. चुनाव आयोग ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए 15 जनवरी तक रैली और जनसभाओं पर रोक लगा रखी है. वर्चुअल प्रचार-प्रसार के साथ ही 5 लोगों के साथ डोर-टू-डोर कैंपेन का ही जरिया राजनीतिक दलों के लिए बचा हुआ है, लेकिन इन सबके बीच चुनावी रैलियों पर रोक होने का नुकसान राजनीतिक दलों को उठाना पड़ रहा है.

वाराणसी में रैलियों और रोड शो पर रोक के कारण हुआ नुकसान

रैलियों से राजनीतिक दलों को तो फायदा होता था, साथी ही रैलियों से टेंट, कैटरर्स और बिजली कारोबारियों को कमाई करने मौका मिलता था. विधानसभा चुनाव में 3 महीने तक टेंट कारोबारियों की चांदी होती है. वाराणसी में भी कई ऐसे कारोबारी हैं, जिनका काम पूरे पूर्वांचल में नहीं, बल्कि यूपी के कई और शहरों में भी होता है. चाहे सरकारी काम हो या फिर राजनैतिक दलों की होने वाली रैलियां, जर्मन हैंगर का पंडाल हो या फिर परंपरागत पंडाल, बनारस के कई बड़े टेंट और कैटरिंग कारोबारी यहां से ही काम पूरा करते हैं.

पिछले चुनावों में भी पूर्वांचल समेत उत्तर प्रदेश में अलग-अलग पार्टियों की 100 से ज्यादा रैलियों की जिम्मेदारी बनारस के इन कारोबारियों को मिली थी और इस बार भी पूर्वांचल में बीजेपी समेत समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और अलग-अलग कई दलों की 20 रैलियों का आर्डर मिल चुका था. इसमें बनारस, जौनपुर, बलिया, चंदौली समेत अन्य कुछ जिलों में होने वाली रैलीयां शामिल थीं, लेकिन चुनाव आयोग के निर्देशों के बाद इन सभी रैलियों को कैंसिल कर दिया गया.



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कारोबारियों का कहना है कि हमारे सामने तो पहले से ही संकट था. कोरोना के कारण शादी ब्याह बहुत छोटे स्तर पर हो रहे थे. इसके अलावा दुर्गा पूजा और अन्य मूर्ति पूजा पर भी रोक लगायी गयी थी. अब चुनाव से उम्मीदें थी, लेकिन चुनावी रैलियों पर रोक ने सब की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. बड़ी बात यह है कि एक कारोबारी से 100 से ज्यादा परिवार जुड़े होते हैं. बंगाल से बड़ी संख्या में मजदूर बुलाए जाते हैं, जो पंडाल बनाने का काम करते हैं.

बिजली कारोबारी, कैटरिंग कारोबारी, फूल कारोबारी, कपड़ा कारोबारी, ट्रांसपोर्टर और अन्य कई छोटे-मोटे कारोबारी भी पूरी शिद्दत के साथ इस महापर्व का इंतजार कर रहे थे. चुनावी रैलियों पर रोक ने सब कुछ बर्बाद कर दिया. यूं कहा जाए तो पूर्वांचल में अकेले 100 करोड़ से ज्यादा का कारोबार प्रभावित हुआ है. फिलहाल उम्मीद यही है कि चुनाव आयोग 15 जनवरी के बाद कुछ रियायत देगा.

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