लखनऊ : समाजवादी पार्टी ने संगठन के पुर्नगठन से पहले प्रदेश स्तर पर सदस्यता अभियान की शुरुआत की है. चौंकाने वाली बात है कि समाजवादी पार्टी उन्हीं सदस्यों को दोबारा सदस्य बना रही है जो पहले से सदस्य बने हुए हैं. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि क्या समाजवादी पार्टी का सदस्यता अभियान सफल होगा और अपने लक्ष्य तक पहुंच पाएगा. सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कुछ दिनों पहले सदस्यता अभियान का शंखनाद किया था.
उदाहरण के तौर पर सपा की लखनऊ की मध्य सीट से विधायक रविदास मेहरोत्रा, सरोजनी नगर क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लड़े और न जीतने वाले अभिषेक मिश्रा, लखनऊ पश्चिम सीट से विधायक अरमान खान, मोहनलालगंज से चुनाव लड़ने वाली सुशीला सरोज, राष्ट्रीय प्रवक्ता अनुराग भदौरिया समेत तमाम नेताओं कार्यकर्ताओं को सदस्य बनाया गया है. इसको लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं के स्तर पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं.
यही नहीं समाजवादी पार्टी ने सदस्यता अभियान को गांव-गांव तक ले जाने के लिए समिति भी बनाई है. इस कमेटी में मुख्य रूप से प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल, पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, पूर्व एमएलसी संजय लाठर, सपा विधायक इंद्रजीत सरोज, विधायक राम अचल राजभर, पूर्व मंत्री अरविंद सिंह गोप, अरविंद कुमार सिंह, मिठाई लाल भारती सहित कई नेताओं को शामिल किया गया है. सूत्रों का कहना है कि सपा ने सदस्यता अभियान का कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया है. जिससे उसे पूरा कर पाने में समस्या हो. सपा नेतृत्व को सभी नेताओं को सदस्य बनाने का टारगेट फिक्स करना चाहिए. जिससे अभियान सफल होगा.
क्या कहते हैं सपा प्रवक्ता अनुराग भदौरिया : ''समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनुराग भदौरिया ने ईटीवी भारत को फोन पर बताया कि हमारा सदस्यता अभियान तेजी के साथ चल रहा है. गांव-गांव में लोग सपा के सदस्य बन रहे हैं. अभियान में कहीं कोई समस्या नहीं है. बने हुए सदस्यों को सदस्य बनाए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है. सबको फिर से सदस्य बनाकर अभियान को गति दी जा रही है. जो सदस्य पहले थे उनकी सदस्यता रिन्यूअल कराने का काम किया जा रहा है. ''
राजनीतिक विश्लेषक दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि परिवार आधारित पार्टियों का संचलन शीर्ष नेतृत्व की सक्रियता पर निर्भर करता है. इसमें सक्रियता की दशा दिशा का भी महत्त्व होता है. इस समय विपक्षी पार्टियों में लगभग एक जैसी स्थिति है. इसके शीर्ष नेता ट्विटर पर ज्यादा सक्रिय रहते हैं. यहां तक कि अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से उनका संवाद नहीं रहता है. चंद सलाहकारों के अलावा उनके इर्द-गिर्द कोई नहीं रहता. यह सलाहकार भी जमीन से जुड़े नहीं होते हैं.
बसपा-कांग्रेस का उत्तर प्रदेश में प्रभाव सामने है. सपा को एक मात्र विपक्ष होने का लाभ मिला, लेकिन उसके नेतृत्व पर भी ट्विटर में ही सक्रियता के आरोप लगते रहे हैं. उसके सहयोगी भी इस संबंध में नसीहत दे चुके हैं, लेकिन इसका कोई प्रभाव नहीं हुआ. इसका असर पार्टी के सदस्यता अभियान पर दिखाई दे रहा है. इसमें पुराने सदस्यों को पुनः सदस्य बनाकर खानापूर्ति के किस्से सामने आ रहे हैं. मतलब साफ है, अब कार्यकर्ता भी कागजी सक्रियता पर अमल कर रहे हैं.
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