लखनऊ : किसानों की आय (farmers income) बढ़ाने और उत्पादन लागत घटाने को लेकर केंद्र और राज्य सरकारें लगातार दावे और कोशिशें करती रही हैं. प्रदेश सरकार (state government) एक ओर ऊसर भूमि को सुधार करने का अभियान तेज कर रही है, जिससे कृषि योग्य भूमि का रकबा बढ़ सके तो वहीं खेती में आधुनिक तकनीक को बढ़ावा देकर श्रम और लागत कम करने पर गंभीरता से काम कर रही है. सरकार चाहती है कि दवाओं और खाद के छिड़काव में ज्यादा से ज्यादा ड्रोन का उपयोग किया जाए. इससे श्रम तो बचेगा ही खाद और कीटनाशक भी कम मात्रा में सटीक तरीके से उपयोग हो सकेगा.
गौरतलब है कि किसान ड्रोन के जरिए एक एकड़ खेत में कीटनाशकों, वाटर सॉल्युबल (पानी में घुलनशील) उर्वरकों एवं पोषक तत्वों का सिर्फ सात मिनट में छिड़काव कर सकते हैं. इससे समय एवं संसाधन तो बचेगा ही, मैनुअल छिड़काव से होने वाले संबंधित व्यक्ति को जहरीले रसायनों के खतरे से मिलने वाली सुरक्षा बोनस के रूप में होगी. विशेषज्ञों के अनुसार, पर्णीय छिड़काव (घोलकर किए जाने वाले छिड़काव) के और भी लाभ हैं. यदि यह ऊपर से हो तब तो और भी लाभ है. मसलन हाथों से छिड़काव की तुलना में ऊपर से किए जाने वाले छिड़काव से खेत समान रूप से संतृप्त होता है. जिस चीज का भी छिड़काव किया जाता है, वह पौधों में पत्तियों के जरिये ऊपर से नीचे तक जाता है.
इसका असर भी बेहतर होता है. अब तो हर तरीके के पानी में घुलनशील खाद एवं पोषक तत्व भी अलग अनुपात में एक-एक किलो के पैकेट में उपलब्ध हैं. नैनो यूरिया भी उपलब्ध है. परंपरागत रूप से खेतों में जिस खाद का किसान छिड़काव करते हैं, उसका 15 से 40 फीसद ही फसल को प्राप्त होता है, जबकि पानी के साथ छिड़के जाने वाले उर्वरक का करीब 90 फीसद तक फसल को प्राप्त होता है. इससे फसल की बढ़वार बेहतर होती है. नतीजतन उपज भी अच्छी होती है. श्रम, समय और लागत में कमी के बावजूद अच्छी उपज से किसानों की आय बढ़ जाती है. यह परंपरागत खाद के छिड़काव में लगने वाली लागत की तुलना में अपेक्षाकृत सस्ता भी है. सीमित संख्या में ही सही, उत्तर प्रदेश के किसान भी शीघ्र ही अपनी खेतीबाड़ी में ड्रोन का प्रयोग कर सकेंगे.
केंद्र सरकार की ओर से उत्तर प्रदेश सरकार को कुल 32 ड्रोन उपलब्ध कराए जा रहे हैं. इनमें से चार कृषि विश्वविद्यालयों को, 10 कृषि विज्ञान केंद्रों और बाकी 18 आईसीएआरआई (इंडियन कौंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट) के संस्थानों को मिलेंगे. इनको खरीदने के लिए केंद्र सरकार की ओर से पांच करोड़ 60 लाख रुपये की धनराशि अवमुक्त कर दी गई है. इनके जरिए प्रदेशभर में कुल आठ हजार हेक्टेयर भूमि पर डेमोंसट्रेशन कराया जाना है. खेतीबाड़ी के उपयोग के लिए यह ड्रोन प्रदेश के कृषि स्नातकों को 50 प्रतिशत अनुदान पर, कृषि उत्पादन संगठनों (एफपीओ) एवं कोऑपरेटिव सोसाइटीज को 40 फीसद अनुदान पर मिलेंगे. इस तरह किसी कृषि स्नातक को लगभग 10 लाख रुपये मूल्य के इस ड्रोन के लिए केवल पांच लाख रुपये चुकाने होंगे.
नैनो यूरिया का छिड़काव बोआई के 30-40 दिन बाद जब खेत फसल से पूरी तरह आच्छादित होता है, तब करते हैं. ड्रोन से जो छिड़काव होता है, उसके ड्रापलेट्स (बूंदें) बहुत महीन तकरीबन मिस्ट (ओस की बूंद) जैसी होती है. लिहाजा पानी में घुलनशील फर्टिलाइजर की तुलना में पानी भी प्रति एकड़ एक चौथाई (25 लीटर) ही लगता है. खड़ी फसल पर छिड़काव होने के नाते इसका असर जमीन तक नहीं पहुंचता लिहाजा यूरिया की लीचिंग (रिसाव) से जल, जमीन को होने वाली क्षति भी नहीं होती. नैनो यूरिया के साथ पानी में घुलनशील जितने तरह के उर्वरक हैं, उनको भी फसल की जरूरत के अनुसार मिलाया जा सकता है.
यह भी पढ़ें : बिजनौर के दौरे पर तीन मंत्री, अस्पताल समेत कई जगह किया निरीक्षण
दूसरी ओर पंडित दीनदयाल उपाध्याय किसान समृद्धि योजना (Kisan Samridhi Yojana) के जरिए प्रदेश सरकार अब तक दो लाख हेक्टेयर से अधिक गैर कृषि योग्य भूमि को कृषि योग्य (उर्वरा) बना चुकी है. इस मद में सरकार अब तक 291 करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर चुकी है. गैर खेती योग्य भूमि को खेती योग्य बनाना समय की मांग है. दरअसल बढ़ती आबादी, औद्योगीकरण और अन्य विकास कार्यों की वजह से उपलब्ध भूमि का रकबा साल दर साल घट रहा है.
यह भी पढ़ें : एक साल में प्रदेश के हर गांव में पूरा हो जाएगा घरौनी का काम