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लखनऊ के कलाकारों, शिल्पकारों को सलाम करता ‘‘सनतकदा लखनऊ फेस्टिवल’ - श्रुति साडोलिकर

कला और शिल्प का मशहूर जमघट ‘‘सनतकदा लखनऊ फेस्टिवल’ एक फरवरी से शुरू होने जा रहा है. हर साल की तरह यह आयोजन पांच फरवरी तक शहर के ऐतिहासिक सफेद बारादरी में चलेगा.

सनतकदा लखनऊ फेस्टिवल
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Published : Feb 4, 2019, 9:02 AM IST

लखनऊ :फ्रांस और अवध का रिश्ता बेहद पुराना है और अवध की जड़ों में फ्रांसीसी प्रभाव भी दिखता है, ये बात तो ज्यादातर लोग जानते हैं .ला मार्टीनियर कॉलेज का आर्किटेक्चर अवध और फ्रांस की साझी रवायत का जीता-जागता सबूत है लेकिन इन रवायतों को और करीब से जानने का मौका सनतकदा लखनऊ फेस्टिवल का 10वां संस्करण देने जा रहा है.ज़रदोज़ी, चांदी का वर्क और कामदानी से लेकर उर्दू सुलेख और चिकनकारी तक, अवध की परंपरा पूरी तरह से बहुप्रतीक्षित है, जिसमे कारीगर लोगों को इस जटिल कला के बारे में अपना पहला अनुभव देते हैं.

लखनऊ के कलाकारों, शिल्पकारों को सलाम करता ‘‘सनतकदा लखनऊ फेस्टिवल’
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कला और शिल्प का मशहूर जमघट ‘‘सनतकदा लखनऊ फेस्टिवल’ एक फरवरी से शुरू होने जा रहा है. हर साल की तरह यह आयोजन पांच फरवरी तक शहर के ऐतिहासिक सफेद बारादरी में चलेगा. माधवी कुकरेजा ने बताया कि सनतकदा फेस्टिवल का यह दसवां साल है। - हुस्न-ए-कारीगरी-ए-अवध.इस साल के महोत्सव का विषय है

इसके जरिए फेस्टिवल पर उन लखनवी कलाकारों, शिल्पकारों की कला का जश्न मनाएगा, जिन्होंने यहां की कला और शिल्प को जिंदा रखने का काम किया है. इस मौके पर अवध की लुप्त हो रहे कलारूपों की दस्तावेजी प्रदर्शनी भी लगायी जायेगी.

माधवी कुकरेजा ने बताया कि हमने अपने सफर की शुरुआत क्राफ्ट बाजार के रूप में की थी. लेकिन अब यह एक नई शक्ल अख्तियार कर चुका है, इसलिए हमने तय किया कि अपना दसवां बेमिसाल साल अवध के कारीगरों की कारीगरी के हुस्न के नाम किया जाए.

वीव्स एंड क्राफ्ट बाजार (बुनाई-सिलाई-कताई और शिल्प बाजार) फेस्टिवल का सबसे लोकप्रिय हिस्सा रहा है.

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  • दो फरवरी- को साढ़े नौ बजे लेबुआ (सराका इस्टेट, माल एवेन्घ्यू) में विजय कुमार का नाटक ‘‘हम बिहार में चुनाव लड़ रहे हैं’.
  • तीन फरवरी- को हुसैनाबाद के कला कोठी में ‘‘वीमेन ऑफ रिदम’, सुकन्घ्या रामगोपाल और सुमना चंद्रशेखर की घटम वादन.
  • चार -फरवरी को चौक के तुलसीदास मार्ग पर आजम अली की कोठी में प्रिया और मंजरी कौल की नाट्य प्रस्तुति ‘‘प्लान डी’ होगी.

इसके अलावा सलेमपुर हाउस और बारादरी में अलग-अलग रोज कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे. इनमें प्रमुख रूप से क्रिया की प्रस्तुति रेशमा वलिअप्पन का माइम शो, रेहमान शाह का जादू, समन हबीब और संजय मट्टू का लखनऊ इन लेटर्स, मोहम्मद अहमद खान वारसी और पार्टी की कव्वाली, तलत महमूद की याद में जश्न-ए-तलत, संगीतमय दास्तान लाइव शामिल है. सुबह ए अवध की आमद का स्वागत सहर के तहत तीन फरवरी को पौने छह बजे बारादरी में जयपुर अतरौली घराने की मशहूर नाम श्रुति साडोलिकर के गायन से होगा. इसके अलावा करामत हुसैन मुस्लिम गर्ल्स कालेज और इस्लामिया कालेज के बीच बैतबाजी का दिलचस्प मुकाबला देखने और सुनने को मिलेगा.

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इस अवसर पर प्रदर्शनी, फिल्म, लेक्चर, विचार विमर्श के जरिए कलाकारों और उनकी कला को याद करेंगे अवध की उन कलाओं के बारे में बातचीत करेंगे, जिनके बारे में आमतौर पर बहुत कम बात होती है. हम उन शिल्पकारों के किस्से सुनेंगे, जिन्होंने अवध के कला को बचा कर रखने का काम किया है.

उन्होंने बताया कि हमारे इस फेस्टिवल का विधिवत उद्घाटन एक फरवरी को शाम पांच बजे बारादरी के मुख्य चबूतरा पर आयोजित वैलेंटाइन त्रिवेदी के ‘‘दस साल बेमिसाल किस्सा’ और रोहिणी किल के यादों का एल्बम से होगा. इस साल की खास पेशकश ‘‘कारखाना’ होगी. कारखाना में पतंग और वाटर कलर की पेंटिंग बनाने की कार्यशालाएं होंगी.

सफेद बारादरी के तहखाने में शिल्प और कला की अलग-अलग विधा से जुड़ी एक शानदार प्रदर्शनी आयोजित हो रही है. पहली बार इस प्रदर्शनी के मार्फत सफेद बारादरी के तहखाने में आमजन को जाने का मौका मिलेगा. इस दौरान आमजन शिल्पकार को अपने सामने कला रूपों को गढ़ते हुए भी देख पायेंगे. शिल्पी ही यहां लगी प्रदर्शनी से रूबरू भी कराएंगे.

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इस उत्सव की थीम लखनऊ की लोक कलाओं पर आधारित है, जिसके लिए सफेद बारादरी में वीव्स एंड क्राफ्ट बाजार का आयोजन किया जा रहा है. गुलाबी-नीली रंग की पतंग की सजावट , सफेद बारादरी की सफेद सतह पर कारीगरों की जुगलबंदी इस प्रतिष्ठित 18वी शताब्दी की इमारत को यह शिल्प उत्सव चार चांद लगाता है.

यह लोक शिल्प कलाए वर्तमान में खत्म होती जा रही है, और आधुनिक फैशन के समय मे लोग इन्हें भुलाते जा रहे है. इन कलाओ को जीवित रहने की संभावना तभी है जब हम इन्हें देखने का तरीका बदले और अपनी शिल्प संस्कृति से जुड़े रहे. सनतकदा लखनऊ उत्सव के दौरान पहली बार लोगो के लिए तहखाना भी खोला गया. इस उत्सव के दौरान लखनऊ की घरेलू शिल्प पर एक लघु फ़िल्म भी दर्शकों को दिखाई गई. बच्चो के लिए ' स्वतंत्र तालीम ' गैर लाभकारी संस्था के द्वारा एक कहानी सत्र भी आयोजित किया गया. इस उत्सव के दौरान इन कलाओ के इतिहास पर शैक्षिक सत्र का भी आयोजन किया जा रहा है.

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लखनऊ :फ्रांस और अवध का रिश्ता बेहद पुराना है और अवध की जड़ों में फ्रांसीसी प्रभाव भी दिखता है, ये बात तो ज्यादातर लोग जानते हैं .ला मार्टीनियर कॉलेज का आर्किटेक्चर अवध और फ्रांस की साझी रवायत का जीता-जागता सबूत है लेकिन इन रवायतों को और करीब से जानने का मौका सनतकदा लखनऊ फेस्टिवल का 10वां संस्करण देने जा रहा है.ज़रदोज़ी, चांदी का वर्क और कामदानी से लेकर उर्दू सुलेख और चिकनकारी तक, अवध की परंपरा पूरी तरह से बहुप्रतीक्षित है, जिसमे कारीगर लोगों को इस जटिल कला के बारे में अपना पहला अनुभव देते हैं.

लखनऊ के कलाकारों, शिल्पकारों को सलाम करता ‘‘सनतकदा लखनऊ फेस्टिवल’
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कला और शिल्प का मशहूर जमघट ‘‘सनतकदा लखनऊ फेस्टिवल’ एक फरवरी से शुरू होने जा रहा है. हर साल की तरह यह आयोजन पांच फरवरी तक शहर के ऐतिहासिक सफेद बारादरी में चलेगा. माधवी कुकरेजा ने बताया कि सनतकदा फेस्टिवल का यह दसवां साल है। - हुस्न-ए-कारीगरी-ए-अवध.इस साल के महोत्सव का विषय है

इसके जरिए फेस्टिवल पर उन लखनवी कलाकारों, शिल्पकारों की कला का जश्न मनाएगा, जिन्होंने यहां की कला और शिल्प को जिंदा रखने का काम किया है. इस मौके पर अवध की लुप्त हो रहे कलारूपों की दस्तावेजी प्रदर्शनी भी लगायी जायेगी.

माधवी कुकरेजा ने बताया कि हमने अपने सफर की शुरुआत क्राफ्ट बाजार के रूप में की थी. लेकिन अब यह एक नई शक्ल अख्तियार कर चुका है, इसलिए हमने तय किया कि अपना दसवां बेमिसाल साल अवध के कारीगरों की कारीगरी के हुस्न के नाम किया जाए.

वीव्स एंड क्राफ्ट बाजार (बुनाई-सिलाई-कताई और शिल्प बाजार) फेस्टिवल का सबसे लोकप्रिय हिस्सा रहा है.

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  • दो फरवरी- को साढ़े नौ बजे लेबुआ (सराका इस्टेट, माल एवेन्घ्यू) में विजय कुमार का नाटक ‘‘हम बिहार में चुनाव लड़ रहे हैं’.
  • तीन फरवरी- को हुसैनाबाद के कला कोठी में ‘‘वीमेन ऑफ रिदम’, सुकन्घ्या रामगोपाल और सुमना चंद्रशेखर की घटम वादन.
  • चार -फरवरी को चौक के तुलसीदास मार्ग पर आजम अली की कोठी में प्रिया और मंजरी कौल की नाट्य प्रस्तुति ‘‘प्लान डी’ होगी.

इसके अलावा सलेमपुर हाउस और बारादरी में अलग-अलग रोज कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे. इनमें प्रमुख रूप से क्रिया की प्रस्तुति रेशमा वलिअप्पन का माइम शो, रेहमान शाह का जादू, समन हबीब और संजय मट्टू का लखनऊ इन लेटर्स, मोहम्मद अहमद खान वारसी और पार्टी की कव्वाली, तलत महमूद की याद में जश्न-ए-तलत, संगीतमय दास्तान लाइव शामिल है. सुबह ए अवध की आमद का स्वागत सहर के तहत तीन फरवरी को पौने छह बजे बारादरी में जयपुर अतरौली घराने की मशहूर नाम श्रुति साडोलिकर के गायन से होगा. इसके अलावा करामत हुसैन मुस्लिम गर्ल्स कालेज और इस्लामिया कालेज के बीच बैतबाजी का दिलचस्प मुकाबला देखने और सुनने को मिलेगा.

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इस अवसर पर प्रदर्शनी, फिल्म, लेक्चर, विचार विमर्श के जरिए कलाकारों और उनकी कला को याद करेंगे अवध की उन कलाओं के बारे में बातचीत करेंगे, जिनके बारे में आमतौर पर बहुत कम बात होती है. हम उन शिल्पकारों के किस्से सुनेंगे, जिन्होंने अवध के कला को बचा कर रखने का काम किया है.

उन्होंने बताया कि हमारे इस फेस्टिवल का विधिवत उद्घाटन एक फरवरी को शाम पांच बजे बारादरी के मुख्य चबूतरा पर आयोजित वैलेंटाइन त्रिवेदी के ‘‘दस साल बेमिसाल किस्सा’ और रोहिणी किल के यादों का एल्बम से होगा. इस साल की खास पेशकश ‘‘कारखाना’ होगी. कारखाना में पतंग और वाटर कलर की पेंटिंग बनाने की कार्यशालाएं होंगी.

सफेद बारादरी के तहखाने में शिल्प और कला की अलग-अलग विधा से जुड़ी एक शानदार प्रदर्शनी आयोजित हो रही है. पहली बार इस प्रदर्शनी के मार्फत सफेद बारादरी के तहखाने में आमजन को जाने का मौका मिलेगा. इस दौरान आमजन शिल्पकार को अपने सामने कला रूपों को गढ़ते हुए भी देख पायेंगे. शिल्पी ही यहां लगी प्रदर्शनी से रूबरू भी कराएंगे.

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इस उत्सव की थीम लखनऊ की लोक कलाओं पर आधारित है, जिसके लिए सफेद बारादरी में वीव्स एंड क्राफ्ट बाजार का आयोजन किया जा रहा है. गुलाबी-नीली रंग की पतंग की सजावट , सफेद बारादरी की सफेद सतह पर कारीगरों की जुगलबंदी इस प्रतिष्ठित 18वी शताब्दी की इमारत को यह शिल्प उत्सव चार चांद लगाता है.

यह लोक शिल्प कलाए वर्तमान में खत्म होती जा रही है, और आधुनिक फैशन के समय मे लोग इन्हें भुलाते जा रहे है. इन कलाओ को जीवित रहने की संभावना तभी है जब हम इन्हें देखने का तरीका बदले और अपनी शिल्प संस्कृति से जुड़े रहे. सनतकदा लखनऊ उत्सव के दौरान पहली बार लोगो के लिए तहखाना भी खोला गया. इस उत्सव के दौरान लखनऊ की घरेलू शिल्प पर एक लघु फ़िल्म भी दर्शकों को दिखाई गई. बच्चो के लिए ' स्वतंत्र तालीम ' गैर लाभकारी संस्था के द्वारा एक कहानी सत्र भी आयोजित किया गया. इस उत्सव के दौरान इन कलाओ के इतिहास पर शैक्षिक सत्र का भी आयोजन किया जा रहा है.

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Intro:लखनऊ के कालकार, कारीगरों और असंख्य शाम को को सलाम करते हुए अवध के उत्कृष्ट सिल्की खोजकर तो हुए सनातकड़ा उत्सव में शहर की खत्म होती कलाओ को प्रदर्शित कर रहा है.
ज़रदोज़ी, चांदी का वर्क और कामदानी से लेकर उर्दू सुलेख और चिकनकारी तक, अवध की परंपरा पूरी तरह से बहुप्रतीक्षित है, जिसमे कारीगर लोगों को इस जटिल कला के बारे में पहला अनुभव देते हैं. यह सनातकड़ा उत्सव का 10वा संस्करण है.


Body:इस उत्सव की थीम लखनऊ की लोक कलाओं पर आधारित है, जिसके लिए सफेद बारादरी में वीव्स एंड क्राफ्ट बाजार का आयोजन किया जा रहा है. गुलाबी-नीली रंग की पतंग की सजावट , सफेद बारादरी की सफेद सतह पर कारीगरों की जुगलबंदी इस प्रतिष्ठित 18वी शताब्दी की इमारत को यह शिल्प उत्सव चार चांद लगाता है.

यह लोक शिल्प कलाए वर्तमान में खत्म होती जा रही है, और आधुनिक फैशन के समय मे लोग इन्हें भुलाते जा रहे है. इन कलाओ को जीवित रहने की संभावना तभी है जब हम इन्हें देखने का तरीका बदले और अपनी शिल्प संस्कृति से जुड़े रहे. सनातकड़ा उत्सव के दौरान पहली बार लोगो के लिए तहखाना भी खोला गया. इस उत्सव के दौरान लखनऊ की घरेलू शिल्प पर एक लघु फ़िल्म भी दर्शकों को दिखाई गई. बच्चो के लिए ' स्वतंत्र तालीम ' गैर लाभकारी संस्था के द्वारा एक कहानी सत्र भी आयोजित किया गया. इस उत्सव के दौरान इन कलाओ के इतिहास पर शैक्षिक सत्र का भी आयोजन किया जा रहा है.


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