सोनभद्र: अगर हौसला और कुछ कर गुजरने का हो तो बंदिशे भी नहीं रोक सकती. ये कहावत सीमा के एक बार फिर सही साबित किया है. आदिवासी परिवार में जन्मी सीमा बंदिशों को तोड़कर तीरंदाजी में अपना करिअर बना रही हैं. उन्होंने सारी बंदिशों को तोड़कर अब तक स्टेट लेवल में सब जूनियर में ब्रोंज मेडल और सीनियर मिक्स टीम में सिल्वर मेडल प्राप्त किया है.
सीमा बताती हैं कि वह उन्होंने अपनी तीरंदाजी की शुरुआत मजाक-मजाक में किया था. दरअसल वह गांव की एक अपनी दोस्त के साथ घूमने गई हुई थीं. वहां पर कुछ लोग तीरंदाजी कर रहे थे, जिससे उनके मन में आया कि मुझे भी तीरंदाजी करना चाहिए, इसमें मैं भी स्थान बना सकती हूं. उन्होंने आगे बताया कि वहां एक सीनियर विजय कुमार थे जो कि इंटरनेशनल खेल चुके थे उनसे हमें काफी प्रेरणा मिली.
उन्होंने आगे बताया कि उन्हें तीरंदाजी में आने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा. वह आदिवासी परिवार से हैं और काफी ग़रीबी उन्होंने देखी हुई है. उनके पिता मजदूरी करते हैं. वहीं पिछड़े होने के कारण इनके परिजन गांव के रीति-रिवाजों में काफी विश्वास करते हैं. इसलिए इनके माता-पिता नहीं चाहते थे कि, वह खेल में जाएं या तीरंदाजी करें, लेकिन उनके मना करने के बावजूद भी सीमा सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हुए खुद से आगे आईं और आज तीरंदाजी कर रही हैं.
सीमा कहती हैं कि मैं पूरे जुनून से खेली. वहीं उनके पिता का कहना है कि आगे जो कुछ भी होगा उसकी पूरी जिम्मेदार खुद सीमा होंगी. सीमा 2016 से तीरंदाजी खेल रही हैं. उन्होंने 2016 में प्रदेश लेवल पर टीम के साथ सब जूनियर में ब्रोंज मेडल जीता था, 2017 में प्रदेश लेवल पर जूनियर और सीनियर मिक्स टीम में सिल्वर मेडल प्राप्त किया. साथ ही प्रदेश लेवल पर 2018 में जूनियर और सीनियर में सिल्वर मेडल व्यक्तिगत रूप से प्राप्त किया है. फिलहाल वह चाहती है कि वह आगे अपना खेल जारी रखते हुए ओलंपिक खेलें और ओलंपिक में मेडल जीतकर देश का नाम रोशन करें.
सीमा का कहना है कि महिला किसी भी क्षेत्र में लड़कों से कम नहीं है. उनके माता-पिता को चाहिए कि लड़कियों को एक अवसर जरूर प्रदान करें. जिस तरह लड़कों को पढ़ाने के लिए माता-पिता आगे आते हैं, उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहते हैं. उसी तरह लड़कियों के लिए भी मां-बाप को आगे आना चाहिए और उनको मौका देना चाहिए.