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नेत्रहीनता ने छीना जीवन का 'आधार', योजनाओं से वंचित पूरा परिवार

आधार कार्ड को फायदेमंद बताकर सरकार ने सभी योजनाओं के लिए इसे अनिवार्य कर दिया. बिना आधार के किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल सकता. आधार के चलते तमाम परिवारों की जिंदगी में स्याह अंधेरा पसर गया है. इसकी एक बानगी चित्रकूट जनपद के सुखरामपुर गांव में देखने को मिलती है.

दिव्यांगों को नहीं मिल रही सरकारी मदद.
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Published : Jun 25, 2019, 6:09 PM IST

Updated : Jun 25, 2019, 7:08 PM IST

चित्रकूट: जनपद के चुरेह मजरा स्थित सुखरामपुर में एक नेत्रहीन परिवार आधार न होने के चलते गरीबी और मुफलिसी में दिन गुजारने को मजबूर है. एक छोटे से टूटे कच्चे घर में रहने वाले इस परिवार में एक छोटी बच्ची समेत चार सदस्य हैं, जिनमें से किसी का आधार कार्ड नहीं है. आधार बनाने के लिए स्कैनिंग की जरूरत होती है. ऐसे में इस परिवार की उम्मीद दम तोड़ चुकी है. बिना आधार कार्ड के इन्हें किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

आधार ने फैलाया नेत्रहीन परिवार की जिंदगी में अंधेरा
रामशरण का पूरा परिवार नेत्रहीन है. वह अपनी बूढ़ी मां और पत्नी गीता के साथ एक झोंपड़ी में जीवन काट रहे हैं. थोड़ी सी जमीन है जिसे बंटाई पर देकर गुजर-बसर हो जाती है. टूटे-कच्चे मकान में कुछ पुराने बर्तन और एक खाट पर पड़े पुराने गंदे बिस्तर के अलावा कुछ नही है. रामशरण की नेत्रहीन मां चूल्हा जलाने के लिए जंगल से लकड़ी चुनकर लाती हैं. रामशरण घर में रहकर पत्नी के साथ काम में हाथ बंटाता है.

नेत्रहीन परिवार के लिए आधार कार्ड बना नासूर.

नेत्रहीनता बनी आधार में रुकावट:

  • परिवार को अभी तक किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला है.
  • दिव्यांग पेंशन, शौचालय और आवास जैसी योजनाएं भी परिवार की पहुंच से दूर हैं.
  • यहां तक कि परिवार के पास राशन कार्ड भी नहीं है.
  • यह गरीब परिवार कई बार अधिकारियों से मदद की गुहार लगा चुके हैं.
  • जब परिवार ने आधार बनवाने की कोशिश की तो उन्हें वहां से भी निराशा हाथ लगी.
  • परिवार को आधार बनवाने से यह कहकर इनकार कर दिया गया कि जब आपकी आंखें हीं नहीं तो आधारकार्ड में स्कैनिंग कैसे होगी.

कई बार कोशिश कर चुके हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. हर बार आधार का बहाना बनाकर हमें लौटा दिया जाता है. हम सरकार से मांग कर रहे हैं कि हमें कम से कम घर बनाकर तो दे दे, ताकि टूटे छप्पर में जिंदगी न गुजारनी पड़े. साथ ही हमारी बच्ची की जिंदगी में रोशनी आ सके.
- रामशरण, पीड़ित

शेर बहादुर, खंड विकास अधिकारी का कहना है कि मुझे इस मामले की जानकारी नहीं थी. अभी दो महीने पहले ही मैंने कार्यभार संभाला है. मैं जल्द से जल्द मामले का संज्ञान लेकर परिवार को मदद पहुंचाने का प्रयास करूंगा. पात्र परिवार को सभी योजनाओं का लाभ जरूर दिलाया जाएगा.

चित्रकूट: जनपद के चुरेह मजरा स्थित सुखरामपुर में एक नेत्रहीन परिवार आधार न होने के चलते गरीबी और मुफलिसी में दिन गुजारने को मजबूर है. एक छोटे से टूटे कच्चे घर में रहने वाले इस परिवार में एक छोटी बच्ची समेत चार सदस्य हैं, जिनमें से किसी का आधार कार्ड नहीं है. आधार बनाने के लिए स्कैनिंग की जरूरत होती है. ऐसे में इस परिवार की उम्मीद दम तोड़ चुकी है. बिना आधार कार्ड के इन्हें किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

आधार ने फैलाया नेत्रहीन परिवार की जिंदगी में अंधेरा
रामशरण का पूरा परिवार नेत्रहीन है. वह अपनी बूढ़ी मां और पत्नी गीता के साथ एक झोंपड़ी में जीवन काट रहे हैं. थोड़ी सी जमीन है जिसे बंटाई पर देकर गुजर-बसर हो जाती है. टूटे-कच्चे मकान में कुछ पुराने बर्तन और एक खाट पर पड़े पुराने गंदे बिस्तर के अलावा कुछ नही है. रामशरण की नेत्रहीन मां चूल्हा जलाने के लिए जंगल से लकड़ी चुनकर लाती हैं. रामशरण घर में रहकर पत्नी के साथ काम में हाथ बंटाता है.

नेत्रहीन परिवार के लिए आधार कार्ड बना नासूर.

नेत्रहीनता बनी आधार में रुकावट:

  • परिवार को अभी तक किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला है.
  • दिव्यांग पेंशन, शौचालय और आवास जैसी योजनाएं भी परिवार की पहुंच से दूर हैं.
  • यहां तक कि परिवार के पास राशन कार्ड भी नहीं है.
  • यह गरीब परिवार कई बार अधिकारियों से मदद की गुहार लगा चुके हैं.
  • जब परिवार ने आधार बनवाने की कोशिश की तो उन्हें वहां से भी निराशा हाथ लगी.
  • परिवार को आधार बनवाने से यह कहकर इनकार कर दिया गया कि जब आपकी आंखें हीं नहीं तो आधारकार्ड में स्कैनिंग कैसे होगी.

कई बार कोशिश कर चुके हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. हर बार आधार का बहाना बनाकर हमें लौटा दिया जाता है. हम सरकार से मांग कर रहे हैं कि हमें कम से कम घर बनाकर तो दे दे, ताकि टूटे छप्पर में जिंदगी न गुजारनी पड़े. साथ ही हमारी बच्ची की जिंदगी में रोशनी आ सके.
- रामशरण, पीड़ित

शेर बहादुर, खंड विकास अधिकारी का कहना है कि मुझे इस मामले की जानकारी नहीं थी. अभी दो महीने पहले ही मैंने कार्यभार संभाला है. मैं जल्द से जल्द मामले का संज्ञान लेकर परिवार को मदद पहुंचाने का प्रयास करूंगा. पात्र परिवार को सभी योजनाओं का लाभ जरूर दिलाया जाएगा.

Intro:एंकर- जिला चित्रकूट का गांव चुरेह का मजरा सुखरामपुर के एक छोटे से टूट कच्चे घर में रहता है एक ऐसा परिवार जो पूरी तरह से दिव्यांग है इस परिवार में-अपनी आँखों से दिव्यांग पत्नी गीता और बूढ़ी मां वो भी आँखों से दिव्यांग है ।आँखों से ही दिव्यांग पिता की मृत हुए लगभग 2 वर्ष ट्रेन की चपेट में होने से हो गई थी।
रामशरण का कहना है कि मुझे अभी तक कोई भी सरकारी सुविधाये नही मिली है चाहे सरकार द्वारा पेंशन की योजना हो या शौचालय और आवास योजना का लाभ ।रामशरण के अनुसार कई बार उसका परिवार उच्च अधिकारियों से अपनी गुहार लगा चुके है अधिकारियों ने हमेशा खाली हाथ ही लौटाया है।अधिकारियों ने हमेशा आधार कार्ड का रोना रोया है जोकि पूरे जनपद में कही भी आधार कार्ड नही बनता और जब बन भी रहे थे तो आधारकार्ड बनाने वाले कर्मचारियों ने भी पुलिस से धक्का दे कर भगा दिया कर्मचारियों ने कहा कि आप की आँख ही नही है तो आधारकार्ड में आँखों की स्केनिंग कैसे संभव है। जिसके कारण अब मैं सरकार की सभी योजना चाहे राशन कार्ड हो या उज्वला योजना सौचालय और आवास सभी योजना से वंचित है


Body:वीओ- सरकारे चाहे जितनी भी आम आदमी को सरकारी योजनाओं का जन जन तक पहुचाने की डिगे मारे पर जमीनी हकीकत में आम आदमी और लाचारों को सरकारी योजनाओं का लाभ नही मिल पा रहा है।इसकी बानगी चित्रकूट के चुरेह के गांव के मजरे सुखरामपुर में देखने को मिल जाएगी ।रामशरण का पूरा परिवार आँखों से दिव्यांग है।और वो अपनी बूढ़ी मां और आंखों से दिव्यांग पत्नी गीता के साथ रह कर जीवन काट रहे है।थोड़ी सी खेती बटिया में देकर अपना जीवनयापन कर रहे हैं इन्हें आज तक कोई सरकारी सुविधाए नही मिली है।टूटे कच्चे मकान में घर की गृहस्थी के नाम पर कुछ पुराने बर्तन और एक खाट में पड़े गंन्दे पुराने बिस्तर के अलावा कुछ नही है।रामशरण और उसकी पत्नी का कहना है पहले हम अकेले थे पर अब हमारे जीवन मे एक आशा की किरण मेरी ढाई साल की बेटी है।हम जैसे जीवन काट रहे है ऐसा मेरी बेटी को काटना न पड़े इस लिए हम लोग दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं।और अधिकारियों से मिल रहे हैं।मेरी सास ने भी कई बार अधिकारियों दफ्तरों की चक्कर काटे पर नतीजा सिफर रहा है।रामशरण की आँखों से दिव्यांग मां परिवार का हाथ बताने के लिए जंगल से लकड़ी चुन कर लाती है क्यू की गैस का कनेकशन नही है।वही रामशरण आँखों से दिव्यांग होने के बाद भी अपनी पत्नी का घरो के कामो में हाथ बटाता है दृश्य और भी मार्मिक हो गया जब प्यास से बच्ची रोने लगी और रामशरण दौड़ कर गिरता पड़ता पानी भरकर अपनी रोती बच्ची के मुँह में पानी का गिलास लगता है और फिर पास बैठी पत्नी की ओर गिलास देकर पानी पीने को कहता है ।
क्या इन बेसहारा लोगो की पुकार नींद में सोए प्रशासन तक पहुच पाएगी।क्या रामशरण द्वारा मांगी योजनाओं का लाभ इस दिव्यांग परिवार को मिल सके गया
क्योकि जुम्मेदार अधिकारियों और उनके अधीनस्थों को यह पता ही नही की जिस काम के लिए उन्हें यहाँ नियुक्त किया गया है और इनके लिए नियुक्त किया गया है उन्हें यह अधिकारी जानते ही नही



Conclusion:सरकारों ने आधार कार्ड लोगो की सुविधाओं के लिए बनवाई थी ताकि लोगो का पूरा डेटा आधार कार्ड में मिल कई और कई दकुम3नट साथ ले कर न चलने पड़े पर अब यही आधारकार्ड लोगो के परेशानियों का सबब बन रहा ।
बाइट-रामशरण (दिव्यांग पति)
बाइट-गीता(दिव्यांग पत्नी
बाइट-शेर बहादुर(खण्ड विकाश अधिकारी चित्रकूट)
Last Updated : Jun 25, 2019, 7:08 PM IST
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