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कोविड के कारण एचआईवी के इलाज में लापरवाही हुई तो बढ़ेंगी मौतें

कोविड महामारी के बीच एचआईवी संक्रमण का जोखिम ज्यादा है. वजह ये कि स्वास्थ्य विभाग का सारा ध्यान कोरोना से निपटने में लगा है. देश में संक्रमण के मामले रोज अभी भी 42 हजार से ऊपर आ रहे हैं. वैक्सीन का अभी इंतजार है, ऐसे में एचआईवी संक्रमितों के इलाज में लापरवाही हुई तो इस जोखिम से निपटना मुश्किल हो जाएगा.

विश्व एड्स दिवस
विश्व एड्स दिवस
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Published : Dec 1, 2020, 5:06 AM IST

Updated : Dec 1, 2020, 9:36 AM IST

हैदराबाद : दुनिया ने 1990 के दशक के बाद से महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन एचआईवी अभी भी प्रमुख वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है. COVID-19 महामारी के दौरान ये ज्यादा चुनौतीपूर्ण है. एचआईवी की रोकथाम, परीक्षण, उपचार और देखभाल सेवाएं सभी विशेष रूप से कम स्वास्थ्य सुविधा वाले देशों में बाधित हो रही हैं. ऐसे में कोविड-19 के कारण आवश्यक एचआईवी सेवाओं के टूटने का खतरा है, जिससे एचआईवी संक्रमण और एड्स से संबंधित मौतें बढ़ने का जोखिम है.

विश्व एड्स दिवस क्या है?

हर साल एक दिसंबर को विश्वभर के लोग इस बीमारी के साथ जी रहे लोगों का हौसला बढ़ाने और इसका शिकार होकर जान गंवाने वालों की याद में विश्व एड्स दिवस मनाते हैं, इसकी शुरुआत 1998 में की गई. तब से हर साल विश्वभर की स्वास्थ्य एजेंसियां, संयुक्त राष्ट्र, सरकारें और सिविल सोसाइटी मिलकर इस बीमारी से जागरूक करने के लिए कैंपेन चलाते हैं. प्रत्येक विश्व एड्स दिवस विशिष्ट विषय पर आधारित होता है. इस साल की थीम- 'वैश्विक एकजुटता, साझा जिम्मेदारी' है. यह थीम विश्व स्तर पर लोगों को एड्स के प्रति सतर्क करती है.

क्या कहता है डब्ल्यूएचओ

एचआईवी एक प्रमुख वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है, 2019 के अंत तक लगभग 3.8 करोड़ लोग एचआईवी के साथ जी रहे थे-डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन)

एचआईवी क्या है?
एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनोडिफीसिअन्सी वायरस) एक वायरस है जो शरीर को संक्रमण से लड़ने में मदद करने वाली कोशिकाओं पर हमला करता है. ये किसी व्यक्ति को अन्य संक्रमणों और बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है. यह एचआईवी के साथ एक व्यक्ति के कुछ शारीरिक तरल पदार्थ के संपर्क में आने से फैलता है, असुरक्षित यौन संबंध के दौरान ये सबसे अधिक होता है.

पढ़ें- भारत में एड्स : जागरुकता सबसे अहम बचाव, जानें राज्यों की स्थिति

एड्स क्या है?
एड्स एचआईवी संक्रमण की आखिरी अवस्था है जो तब होता है जब वायरस के कारण शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाती है. यदि उसका इलाज छोड़ दिया जाता है, तो एचआईवी रोग एड्स (अक्वायर्ड इम्यूनोडिफीसिअन्सी सिंड्रोम) को जन्म दे सकता है.

एचआईवी और एड्स में क्या अंतर है?

अक्वायर्ड इम्युनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम (एड्स) ऐसा शब्द है जो एचआईवी संक्रमण के सबसे उन्नत चरणों में लागू होता है. यह 20 से ज्यादा कैंसर की तरह है, क्योंकि यह कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली का लाभ उठाते हैं. एंटीरिट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) उपलब्ध होने से पहले एड्स एचआईवी महामारी की तरह ही था. अब, अधिक से अधिक लोग एआरटी का उपयोग करते हैं. ऐसे में एचआईवी पीड़ित अधिकतर लोग एड्स की स्टेज पर पहुंचने से बच जाते हैं. हालांकि, एचआईवी की उन लोगों में होने की संभावना अधिक होती है जिनका परीक्षण नहीं किया जाता है या ऐसे लोगों में जिन्हें संक्रमण देर से पता चलता है.

भारत में एचआईवी की स्थिति
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन, आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल स्टैटिस्टिक्स के साथ मिलकर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय एचआईवी रोगियों का आंकड़ा देता है.

एचआईवी अनुमान रिपोर्ट 2019 के अनुसार करीब 23.49 लाख लोग एचआईवी संक्रमित हैं.

राहत की बात है कि 2010 से 2019 के बीच एचआईवी संक्रमितों की संख्या में 37% की कमी हुई है.

15-49 वर्ष के पीड़ितों का प्रतिशत करीब 0.17- 0.29% के बीच है.

एचआईवी संक्रमितों के साथ रहने वाले 3.4% बच्चों में ये रोग मिला.

कुल संक्रमितों में करीब 44% पीड़ित महिलाएं हैं. इस आंकड़े में 15 साल से ऊपर की लड़कियों को भी शामिल किया गया है.

1997 में भारत में एचआईवी संक्रमितों की संख्या सबसे ज्यादा थी.

2019 में एड्स से संबंधित 58 हजार से अधिक मौतें हुईं, जो 2010 के बाद 66% कम हुई हैं.

पढ़ें- एड्स को मात देने वाले पहले व्यक्ति टिमोथी रे ब्राउन की कैंसर से मौत

एचआईवी के लक्षण
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक बहुत से लोगों को शुरुआत के कुछ महीने एचआईवी के लक्षण महसूस नहीं होते हैं. उन्हें कतई पता नहीं चलता कि वह संक्रमित हैं. कुछ को बुखार, सिरदर्द, दाने और गले में खराश सहित इन्फ्लूएंजा जैसे लक्षण अनुभव हो सकते हैं. हालांकि, ऐसा तभी होता है जब वायरस का सबसे अधिक संक्रमण हो. जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, लक्षण स्पष्ट नजर आने लगते हैं. इनमें सूजन लिम्फ नोड्स, वजन घटना, बुखार, दस्त और खांसी हो सकता है. एचआईवी अन्य संक्रमणों से लड़ने की शरीर की क्षमता को कमजोर करता है और उपचार के बिना लोग अन्य गंभीर बीमारियों जैसे कि तपेदिक (टीबी ), क्रिप्टोकोकल मेनिन्जाइटिस, जीवाणु संक्रमण और लिम्फोमास और कपोसी, सार्कोमा की चपेट में आ जाते हैं. कुछ को कैंसर जैसी घातक बीमारी भी घेर लेती है.

एचआईवी से बचाव
एचआईवी संक्रमण की पहचान शरीर में दिखने वाले लक्षणों से घर में ही की जा सकती है. हालांकि, बीमारी की पुष्टि के लिए प्रयोगशाला में जांच जरूरी है. सही समय पर अगर एचआईवी संक्रमण की पुष्टि हो जाती है, तो इलाज से इसके ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है. समय पर पुष्टि हो जाने से संक्रमण शारीरिक संबंध बनाने या ड्रग के इस्तेमाल से एक रोगी से दूसरे में न फैले इसे रोका जा सकता है.

एचआईवी का उपचार
एचआईवी पूरी तरह से रोका जा सकता है. प्रभावी एंटीरेट्रोवाइरल उपचार (एआरटी) गर्भावस्था, प्रसव और स्तनपान के दौरान मां से बच्चे तक एचआईवी फैलने से रोकता है.

ध्यान देने की बात ये है कि जिसका एंटीरेट्रोवाइरल उपचार चल रहा हो उसे अपने महिला या पुरुष साथी से शारीरिक यौन संबंध नहीं बनाने चाहिए.

शारीरिक संबंध बनाते समय कंडोम का उपयोग कर एचआईवी संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता है. प्रोफिलैक्सिस एचआईवी को रोकने के लिए एंटीरेट्रोवाइरल दवाओं का उपयोग करते हैं.

सिरिंज का उपयोग करते समय सावधानी बरतनी चाहिए. संक्रमित व्यक्ति का खून दूसरे को नहीं चढ़ाया जा सकता. ड्रग्स लेने वाले एक ही इंजेक्शन का उपयोग करते हैं, जो जानलेवा हो सकता है.

एचआईवी का इलाज एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी से किया जाता है, जिसमें एक या अधिक दवाएं होती हैं. एआरटी एचआईवी का इलाज नहीं करता है, लेकिन रक्त में इसकी प्रतिकृति को कम कर देता है, जिससे वायरल का असर कम हो जाता है.

संक्रमित व्यक्ति यदि अपना उपचार सही तरीके से कराना चाहता है, तो उसे हर दिन एआरटी लेना चाहिए, एआरटी का असर खत्म होने पर या स्वास्थ्य देखभाल करने वालों से संपर्क खो जाने पर दवा का नियमित क्रम टूट जाने पर भी संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.

हैदराबाद : दुनिया ने 1990 के दशक के बाद से महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन एचआईवी अभी भी प्रमुख वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है. COVID-19 महामारी के दौरान ये ज्यादा चुनौतीपूर्ण है. एचआईवी की रोकथाम, परीक्षण, उपचार और देखभाल सेवाएं सभी विशेष रूप से कम स्वास्थ्य सुविधा वाले देशों में बाधित हो रही हैं. ऐसे में कोविड-19 के कारण आवश्यक एचआईवी सेवाओं के टूटने का खतरा है, जिससे एचआईवी संक्रमण और एड्स से संबंधित मौतें बढ़ने का जोखिम है.

विश्व एड्स दिवस क्या है?

हर साल एक दिसंबर को विश्वभर के लोग इस बीमारी के साथ जी रहे लोगों का हौसला बढ़ाने और इसका शिकार होकर जान गंवाने वालों की याद में विश्व एड्स दिवस मनाते हैं, इसकी शुरुआत 1998 में की गई. तब से हर साल विश्वभर की स्वास्थ्य एजेंसियां, संयुक्त राष्ट्र, सरकारें और सिविल सोसाइटी मिलकर इस बीमारी से जागरूक करने के लिए कैंपेन चलाते हैं. प्रत्येक विश्व एड्स दिवस विशिष्ट विषय पर आधारित होता है. इस साल की थीम- 'वैश्विक एकजुटता, साझा जिम्मेदारी' है. यह थीम विश्व स्तर पर लोगों को एड्स के प्रति सतर्क करती है.

क्या कहता है डब्ल्यूएचओ

एचआईवी एक प्रमुख वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है, 2019 के अंत तक लगभग 3.8 करोड़ लोग एचआईवी के साथ जी रहे थे-डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन)

एचआईवी क्या है?
एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनोडिफीसिअन्सी वायरस) एक वायरस है जो शरीर को संक्रमण से लड़ने में मदद करने वाली कोशिकाओं पर हमला करता है. ये किसी व्यक्ति को अन्य संक्रमणों और बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है. यह एचआईवी के साथ एक व्यक्ति के कुछ शारीरिक तरल पदार्थ के संपर्क में आने से फैलता है, असुरक्षित यौन संबंध के दौरान ये सबसे अधिक होता है.

पढ़ें- भारत में एड्स : जागरुकता सबसे अहम बचाव, जानें राज्यों की स्थिति

एड्स क्या है?
एड्स एचआईवी संक्रमण की आखिरी अवस्था है जो तब होता है जब वायरस के कारण शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाती है. यदि उसका इलाज छोड़ दिया जाता है, तो एचआईवी रोग एड्स (अक्वायर्ड इम्यूनोडिफीसिअन्सी सिंड्रोम) को जन्म दे सकता है.

एचआईवी और एड्स में क्या अंतर है?

अक्वायर्ड इम्युनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम (एड्स) ऐसा शब्द है जो एचआईवी संक्रमण के सबसे उन्नत चरणों में लागू होता है. यह 20 से ज्यादा कैंसर की तरह है, क्योंकि यह कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली का लाभ उठाते हैं. एंटीरिट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) उपलब्ध होने से पहले एड्स एचआईवी महामारी की तरह ही था. अब, अधिक से अधिक लोग एआरटी का उपयोग करते हैं. ऐसे में एचआईवी पीड़ित अधिकतर लोग एड्स की स्टेज पर पहुंचने से बच जाते हैं. हालांकि, एचआईवी की उन लोगों में होने की संभावना अधिक होती है जिनका परीक्षण नहीं किया जाता है या ऐसे लोगों में जिन्हें संक्रमण देर से पता चलता है.

भारत में एचआईवी की स्थिति
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन, आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल स्टैटिस्टिक्स के साथ मिलकर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय एचआईवी रोगियों का आंकड़ा देता है.

एचआईवी अनुमान रिपोर्ट 2019 के अनुसार करीब 23.49 लाख लोग एचआईवी संक्रमित हैं.

राहत की बात है कि 2010 से 2019 के बीच एचआईवी संक्रमितों की संख्या में 37% की कमी हुई है.

15-49 वर्ष के पीड़ितों का प्रतिशत करीब 0.17- 0.29% के बीच है.

एचआईवी संक्रमितों के साथ रहने वाले 3.4% बच्चों में ये रोग मिला.

कुल संक्रमितों में करीब 44% पीड़ित महिलाएं हैं. इस आंकड़े में 15 साल से ऊपर की लड़कियों को भी शामिल किया गया है.

1997 में भारत में एचआईवी संक्रमितों की संख्या सबसे ज्यादा थी.

2019 में एड्स से संबंधित 58 हजार से अधिक मौतें हुईं, जो 2010 के बाद 66% कम हुई हैं.

पढ़ें- एड्स को मात देने वाले पहले व्यक्ति टिमोथी रे ब्राउन की कैंसर से मौत

एचआईवी के लक्षण
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक बहुत से लोगों को शुरुआत के कुछ महीने एचआईवी के लक्षण महसूस नहीं होते हैं. उन्हें कतई पता नहीं चलता कि वह संक्रमित हैं. कुछ को बुखार, सिरदर्द, दाने और गले में खराश सहित इन्फ्लूएंजा जैसे लक्षण अनुभव हो सकते हैं. हालांकि, ऐसा तभी होता है जब वायरस का सबसे अधिक संक्रमण हो. जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, लक्षण स्पष्ट नजर आने लगते हैं. इनमें सूजन लिम्फ नोड्स, वजन घटना, बुखार, दस्त और खांसी हो सकता है. एचआईवी अन्य संक्रमणों से लड़ने की शरीर की क्षमता को कमजोर करता है और उपचार के बिना लोग अन्य गंभीर बीमारियों जैसे कि तपेदिक (टीबी ), क्रिप्टोकोकल मेनिन्जाइटिस, जीवाणु संक्रमण और लिम्फोमास और कपोसी, सार्कोमा की चपेट में आ जाते हैं. कुछ को कैंसर जैसी घातक बीमारी भी घेर लेती है.

एचआईवी से बचाव
एचआईवी संक्रमण की पहचान शरीर में दिखने वाले लक्षणों से घर में ही की जा सकती है. हालांकि, बीमारी की पुष्टि के लिए प्रयोगशाला में जांच जरूरी है. सही समय पर अगर एचआईवी संक्रमण की पुष्टि हो जाती है, तो इलाज से इसके ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है. समय पर पुष्टि हो जाने से संक्रमण शारीरिक संबंध बनाने या ड्रग के इस्तेमाल से एक रोगी से दूसरे में न फैले इसे रोका जा सकता है.

एचआईवी का उपचार
एचआईवी पूरी तरह से रोका जा सकता है. प्रभावी एंटीरेट्रोवाइरल उपचार (एआरटी) गर्भावस्था, प्रसव और स्तनपान के दौरान मां से बच्चे तक एचआईवी फैलने से रोकता है.

ध्यान देने की बात ये है कि जिसका एंटीरेट्रोवाइरल उपचार चल रहा हो उसे अपने महिला या पुरुष साथी से शारीरिक यौन संबंध नहीं बनाने चाहिए.

शारीरिक संबंध बनाते समय कंडोम का उपयोग कर एचआईवी संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता है. प्रोफिलैक्सिस एचआईवी को रोकने के लिए एंटीरेट्रोवाइरल दवाओं का उपयोग करते हैं.

सिरिंज का उपयोग करते समय सावधानी बरतनी चाहिए. संक्रमित व्यक्ति का खून दूसरे को नहीं चढ़ाया जा सकता. ड्रग्स लेने वाले एक ही इंजेक्शन का उपयोग करते हैं, जो जानलेवा हो सकता है.

एचआईवी का इलाज एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी से किया जाता है, जिसमें एक या अधिक दवाएं होती हैं. एआरटी एचआईवी का इलाज नहीं करता है, लेकिन रक्त में इसकी प्रतिकृति को कम कर देता है, जिससे वायरल का असर कम हो जाता है.

संक्रमित व्यक्ति यदि अपना उपचार सही तरीके से कराना चाहता है, तो उसे हर दिन एआरटी लेना चाहिए, एआरटी का असर खत्म होने पर या स्वास्थ्य देखभाल करने वालों से संपर्क खो जाने पर दवा का नियमित क्रम टूट जाने पर भी संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.

Last Updated : Dec 1, 2020, 9:36 AM IST
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