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कहानी बमबाज गुड्डू मुस्लिम की...धोखेबाजी में माहिर, किसी भी सरपरस्त का सगा नहीं रहा - दिलशाद मिर्जा बेग

अतीक अहमद का खास गुर्गा बमबाज गुड्डू मुस्लिम उमेश पाल हत्याकांड के बाद से अभी तक पुलिस की गिरफ्त से दूर है. वहीं, हत्या होने से पहले अशरफ ने गुड्डू मुस्लिम का नाम लिया था. आइए जानते हैं कि गुड्डू मुस्लिम कैसे जरायम की दुनिया में एंट्री की और इतना खतरनाक अपराधी बना?

know about Guddu muslim
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Published : Apr 21, 2023, 6:28 PM IST

लखनऊ: मेन बात है कि गुड्डू मुस्लिम.. इतना कहते ही गोलियों की तड़तड़ाहट और अशरफ व अतीक अहमद ढेर हो गए. इसके बाद सवाल उठने लगे कि आखिरी वक्त अशरफ गुड्डू को लेकर क्या खुलासा करने जा रहा था? क्या गुड्डू ने अतीक को धोखा दिया था और क्या वो अब उसका वफादार नहीं रहा था. ये इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि उमेश पाल हत्याकांड में 50 दिनों से फरार गुड्डू मुस्लिम अपने अतीत में कभी भी किसी का सगा नहीं रहा है. उसने महज उस वक्त तक अपने सरपरस्त का साथ दिया, जब तक उसे जरूरत थी. जरूरत खत्म हुई तो उसने नया ठिकाना ढूंढ लिया.

दिलशाद मिर्जा बेग का गुड्डू ने बनाया अपना पहला आकाः मिली जानकारी के अनुसार प्रयागराज में जन्मा गुड्डू मुस्लिम बचपन से अपराधियों की संगत में रहकर बम बनाने की विधा सीख ली थी. महज कुछ ही देर में आम चीजों का इस्तेमाल कर बम बनाने वाला गुड्डू अब प्रयागराज से निकलना चाहता था. लिहाजा उसने पहले लखनऊ और फिर गोरखपुर पहुंचा. अब उसे एक ऐसे सख्स की जरूरत थी जो उसे पनाह दे. 80 और 90 के दशक के आसपास गोरखपुर में रहकर पूर्वांचल के जिलों से गाड़ियां चुराकर नेपाल में बेचने वाले दिलशाद मिर्जा बेग से गुड्डू मुस्लिम की मुलाकात हुई. काम का आदमी समझ बेग ने उसे अपने एक रिश्तेदार के घर पर रुकवा दिया. गुड्डू मुस्लिम बेग के एक इशारे में हर काम करने को तैयार था. उत्तर प्रदेश की सुरक्षा एजेंसियों की नजर में बेग चढ़ा हुआ था, लिहाजा बेग गोरखपुर से भागकर नेपाल पहुंच गया. जबकि गुड्डू मुस्लिम को यूपी में ही रह कर बड़ा बदमाश बनना था. इसलिए वो वहां नही गया और वह नया बॉस ढूंढने के लिए निकल पड़ा.

संकट का बादल छाते ही छोड़ दिया था श्रीप्रकाश का साथः सूत्रों के मुताबिक मिर्जा बेग के साथ काम करते करते गुड्डू मुस्लिम कई राजनेताओं और अपराधियों की नजर में आ चुका था. ऐसे में 90 के दशक में ही गोरखपुर के एक राजनेता ने उस वक्त के सबसे कुख्यात अपराधी श्री प्रकाश शुक्ला से गुड्डू को अपने साथ रखने के लिए कहा. श्री प्रकाश ने गुड्डू को अपने साथ रख लिया और धीरे-धीरे गुड्डू उसका खास शूटर बन गया. इसी दौरान यूपी एसटीएफ ने श्री प्रकाश शुक्ला को ढूंढ निकालने के लिए जमीन आसमान एक करना शुरू किया तो गुड्डू मुस्लिम ने खुद को उससे किनारे कर लिया. इसी बीच श्री प्रकाश शुक्ला एनकाउंटर ढेर कर दिया गया. अब गुड्डू को एक बार फिर नए आका की तलाश थी. गुड्डू पूर्व में अपने दोनों आका के पास तब ही तक रहा जब तक वो काम के थे और जैसे ही उसने भांप लिया कि अब उसके आका के दिन पूरे हो रहे उसने खुद ही किनारा ही करना सही समझा.

परवेज के नेपाल भागते ही गुड्डू ने बदल लिया था अपना आकाः श्री प्रकाश शुक्ला के एनकाउंटर के बाद गुड्डू मुस्लिम गोरखपुर के ही परवेज टाडा से मिला. परवेज को गुड्डू मुस्लिम की जरूरत थी तो गुड्डू को नया आका चाहिए था. गोरखपुर में 90 के दशक में विजय चौक स्थित मेनका टॉकिज में कुख्यात बदमाश परवेज टाडा ने बम ब्लास्ट कराया था. इस ब्लास्ट में जो बम इस्तेमाल किया गया था, उसे गुड्डू मुस्लिम ने ही बनाया था. यही नहीं गुड्डू मुस्लिम ने परवेज के इशारे पर गोरखपुर और आसपास के इलाकों में कई घटनाओं को अंजाम दिया था. हालांकि अब तक परवेज दाऊद के संपर्क में आ चुका था, इसलिए उसने नेपाल में जाने का फैसला कर लिया. कहा जाता है कि गुड्डू मुस्लिम को परवेज ने भी नेपाल चलने के लिए कहा लेकिन उसने एक बार फिर मना कर दिया. परवेज के नेपाल जाने के बाद गुड्डू फिर निकल गया और अपना नया आका ढूंढने.

तीन आका बदलने के लिए बिहार में ढूंढने लगा संभावनाः पहले दिलशाद, फिर श्री प्रकाश शुक्ला और अब परवेज टाडा का साथ छोड़ने के बाद गुड्डू मुस्लिम एक ऐसा साथ चाहता था जिसका राजनीति और अपराध की दुनिया, दोनों में ही तगड़ी पकड़ हो. गोरखपुर का राजनेता जो जरायम की दुनिया में भी अपना नाम कमा चुका था, वो बिहार की बेउर जेल में बंद था. गुड्डू मुस्लिम को उस राजनेता की जानकारी मिली तो वह बेउर जेल जाकर अक्सर उस नेता से मुलाकात करने लगा. इसी दौरान गोरखपुर के SOG प्रभारी को बेउर जेल से सूचना मिली कि उनकी जेल में बंद कैदी से गोरखपुर का कोई गुड्डू मिलने आता है. SOG को लगा कि वह गुड्डू गोरखपुर के बांसगांव का एक अपराधी गुड्डू सिंह है. ऐसे में तत्कालीन ASP और सीओ कैंट अमिताभ यश ने बेउर जेल के बाहर की रेकी करवानी शुरू की. जैसे ही गुड्डू मुस्लिम और उसका एक साथी बेउर जेल पहुंचे उन्हें दबोच लिया.


STF के अधिकारी ने गुड्डू को पहचान लियाः तत्कालीन सीओ कैंट अमिताभ यश और SOG प्रभारी ओपी तिवारी गुड्डू मुस्लिम को गोरखपुर ले कर आ गए. जिसकी सूचना तत्कालीन एसटीएफ एएसपी यशवंत सिंह को दी गई. यशवंत सिंह ने गुड्डू मुस्लिम को पहचान लिया, लेकिन उस वक्त उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं थे और उसके पास महज अवैध नशे की पुड़िया मिली थी. ऐसे में उसे एनडीपीएस के मामले में जेल भेज दिया गया. इस दौरान बेऊर जेल में बंद गोरखपुर के नेता पर भी शिकंजा कसने लगा था. ऐसे में अब जेल में बैठ कर गुड्डू मुस्लिम अपने नए आका की तलास में जुट गया था.

जेल से निकलने के लिए अतीक का लिया सहाराः गुड्डू मुस्लिम प्रयागराज से था और गोरखपुर जेल में बंद था. इसी दौरान प्रयागराज और आजपास जिलों में अतीक अहमद अपने पांव पसार रहा था. गुड्डू मुस्लिम को इसकी जानकारी मिली थी. इसके बाद गुड्डू ने भी अपने कुछ साथियों को मदद से अतीक तक उसकी सूचना पहुंचा दी थी. ऐसे में अतीक अहमद ने गुड्डू मुस्लिम की जमानत करवा दी और उसे अपना खास सागिर्द बना लिया. तभी से वो अतीक अहमद के लिए काम कर रहा था. लेकिन अतीक के जेल जाने के बाद से ही वो अपना नया ठिकाना ढूंढने लगा था. हालांकि उमेश पाल हत्याकांड को अंजाम देने के लिए अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन को गुड्डू की जरूरत थी ऐसे में उसने साथ दिया. लेकिन उसके बाद से ही वो अतीक और उसके कुनबे का साथ छोड़ कर फरार हो गया.

इसे भी पढ़ें-उमेश पाल हत्याकांड में बमबाजी करने वाले गुड्डू मुस्लिम के ड्राईवर को यूपी एसटीएफ ने ओडिशा से उठाया


लखनऊ: मेन बात है कि गुड्डू मुस्लिम.. इतना कहते ही गोलियों की तड़तड़ाहट और अशरफ व अतीक अहमद ढेर हो गए. इसके बाद सवाल उठने लगे कि आखिरी वक्त अशरफ गुड्डू को लेकर क्या खुलासा करने जा रहा था? क्या गुड्डू ने अतीक को धोखा दिया था और क्या वो अब उसका वफादार नहीं रहा था. ये इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि उमेश पाल हत्याकांड में 50 दिनों से फरार गुड्डू मुस्लिम अपने अतीत में कभी भी किसी का सगा नहीं रहा है. उसने महज उस वक्त तक अपने सरपरस्त का साथ दिया, जब तक उसे जरूरत थी. जरूरत खत्म हुई तो उसने नया ठिकाना ढूंढ लिया.

दिलशाद मिर्जा बेग का गुड्डू ने बनाया अपना पहला आकाः मिली जानकारी के अनुसार प्रयागराज में जन्मा गुड्डू मुस्लिम बचपन से अपराधियों की संगत में रहकर बम बनाने की विधा सीख ली थी. महज कुछ ही देर में आम चीजों का इस्तेमाल कर बम बनाने वाला गुड्डू अब प्रयागराज से निकलना चाहता था. लिहाजा उसने पहले लखनऊ और फिर गोरखपुर पहुंचा. अब उसे एक ऐसे सख्स की जरूरत थी जो उसे पनाह दे. 80 और 90 के दशक के आसपास गोरखपुर में रहकर पूर्वांचल के जिलों से गाड़ियां चुराकर नेपाल में बेचने वाले दिलशाद मिर्जा बेग से गुड्डू मुस्लिम की मुलाकात हुई. काम का आदमी समझ बेग ने उसे अपने एक रिश्तेदार के घर पर रुकवा दिया. गुड्डू मुस्लिम बेग के एक इशारे में हर काम करने को तैयार था. उत्तर प्रदेश की सुरक्षा एजेंसियों की नजर में बेग चढ़ा हुआ था, लिहाजा बेग गोरखपुर से भागकर नेपाल पहुंच गया. जबकि गुड्डू मुस्लिम को यूपी में ही रह कर बड़ा बदमाश बनना था. इसलिए वो वहां नही गया और वह नया बॉस ढूंढने के लिए निकल पड़ा.

संकट का बादल छाते ही छोड़ दिया था श्रीप्रकाश का साथः सूत्रों के मुताबिक मिर्जा बेग के साथ काम करते करते गुड्डू मुस्लिम कई राजनेताओं और अपराधियों की नजर में आ चुका था. ऐसे में 90 के दशक में ही गोरखपुर के एक राजनेता ने उस वक्त के सबसे कुख्यात अपराधी श्री प्रकाश शुक्ला से गुड्डू को अपने साथ रखने के लिए कहा. श्री प्रकाश ने गुड्डू को अपने साथ रख लिया और धीरे-धीरे गुड्डू उसका खास शूटर बन गया. इसी दौरान यूपी एसटीएफ ने श्री प्रकाश शुक्ला को ढूंढ निकालने के लिए जमीन आसमान एक करना शुरू किया तो गुड्डू मुस्लिम ने खुद को उससे किनारे कर लिया. इसी बीच श्री प्रकाश शुक्ला एनकाउंटर ढेर कर दिया गया. अब गुड्डू को एक बार फिर नए आका की तलाश थी. गुड्डू पूर्व में अपने दोनों आका के पास तब ही तक रहा जब तक वो काम के थे और जैसे ही उसने भांप लिया कि अब उसके आका के दिन पूरे हो रहे उसने खुद ही किनारा ही करना सही समझा.

परवेज के नेपाल भागते ही गुड्डू ने बदल लिया था अपना आकाः श्री प्रकाश शुक्ला के एनकाउंटर के बाद गुड्डू मुस्लिम गोरखपुर के ही परवेज टाडा से मिला. परवेज को गुड्डू मुस्लिम की जरूरत थी तो गुड्डू को नया आका चाहिए था. गोरखपुर में 90 के दशक में विजय चौक स्थित मेनका टॉकिज में कुख्यात बदमाश परवेज टाडा ने बम ब्लास्ट कराया था. इस ब्लास्ट में जो बम इस्तेमाल किया गया था, उसे गुड्डू मुस्लिम ने ही बनाया था. यही नहीं गुड्डू मुस्लिम ने परवेज के इशारे पर गोरखपुर और आसपास के इलाकों में कई घटनाओं को अंजाम दिया था. हालांकि अब तक परवेज दाऊद के संपर्क में आ चुका था, इसलिए उसने नेपाल में जाने का फैसला कर लिया. कहा जाता है कि गुड्डू मुस्लिम को परवेज ने भी नेपाल चलने के लिए कहा लेकिन उसने एक बार फिर मना कर दिया. परवेज के नेपाल जाने के बाद गुड्डू फिर निकल गया और अपना नया आका ढूंढने.

तीन आका बदलने के लिए बिहार में ढूंढने लगा संभावनाः पहले दिलशाद, फिर श्री प्रकाश शुक्ला और अब परवेज टाडा का साथ छोड़ने के बाद गुड्डू मुस्लिम एक ऐसा साथ चाहता था जिसका राजनीति और अपराध की दुनिया, दोनों में ही तगड़ी पकड़ हो. गोरखपुर का राजनेता जो जरायम की दुनिया में भी अपना नाम कमा चुका था, वो बिहार की बेउर जेल में बंद था. गुड्डू मुस्लिम को उस राजनेता की जानकारी मिली तो वह बेउर जेल जाकर अक्सर उस नेता से मुलाकात करने लगा. इसी दौरान गोरखपुर के SOG प्रभारी को बेउर जेल से सूचना मिली कि उनकी जेल में बंद कैदी से गोरखपुर का कोई गुड्डू मिलने आता है. SOG को लगा कि वह गुड्डू गोरखपुर के बांसगांव का एक अपराधी गुड्डू सिंह है. ऐसे में तत्कालीन ASP और सीओ कैंट अमिताभ यश ने बेउर जेल के बाहर की रेकी करवानी शुरू की. जैसे ही गुड्डू मुस्लिम और उसका एक साथी बेउर जेल पहुंचे उन्हें दबोच लिया.


STF के अधिकारी ने गुड्डू को पहचान लियाः तत्कालीन सीओ कैंट अमिताभ यश और SOG प्रभारी ओपी तिवारी गुड्डू मुस्लिम को गोरखपुर ले कर आ गए. जिसकी सूचना तत्कालीन एसटीएफ एएसपी यशवंत सिंह को दी गई. यशवंत सिंह ने गुड्डू मुस्लिम को पहचान लिया, लेकिन उस वक्त उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं थे और उसके पास महज अवैध नशे की पुड़िया मिली थी. ऐसे में उसे एनडीपीएस के मामले में जेल भेज दिया गया. इस दौरान बेऊर जेल में बंद गोरखपुर के नेता पर भी शिकंजा कसने लगा था. ऐसे में अब जेल में बैठ कर गुड्डू मुस्लिम अपने नए आका की तलास में जुट गया था.

जेल से निकलने के लिए अतीक का लिया सहाराः गुड्डू मुस्लिम प्रयागराज से था और गोरखपुर जेल में बंद था. इसी दौरान प्रयागराज और आजपास जिलों में अतीक अहमद अपने पांव पसार रहा था. गुड्डू मुस्लिम को इसकी जानकारी मिली थी. इसके बाद गुड्डू ने भी अपने कुछ साथियों को मदद से अतीक तक उसकी सूचना पहुंचा दी थी. ऐसे में अतीक अहमद ने गुड्डू मुस्लिम की जमानत करवा दी और उसे अपना खास सागिर्द बना लिया. तभी से वो अतीक अहमद के लिए काम कर रहा था. लेकिन अतीक के जेल जाने के बाद से ही वो अपना नया ठिकाना ढूंढने लगा था. हालांकि उमेश पाल हत्याकांड को अंजाम देने के लिए अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन को गुड्डू की जरूरत थी ऐसे में उसने साथ दिया. लेकिन उसके बाद से ही वो अतीक और उसके कुनबे का साथ छोड़ कर फरार हो गया.

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