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मेघालय-असम के बीच सीमा समझौते पर HC के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने मेघालय उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें राज्यों के बीच लंबे समय से चले आ रहे अंतरराज्यीय सीमा विवाद को हल करने के लिए मेघालय और असम के बीच समझौता ज्ञापन पर रोक लगा दी थी (sc stays meghalaya hc order). दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया है.

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Published : Jan 6, 2023, 4:25 PM IST

sc stays meghalaya hc order
सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

नई दिल्ली : सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने शुक्रवार को मेघालय उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें सीमा विवाद के संबंध में मेघालय और असम राज्यों द्वारा हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन पर अंतरिम रोक लगा दी थी (sc stays meghalaya hc order).

कोर्ट ने कहा कि 'प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि एकल न्यायाधीश ने कोई कारण नहीं बताया है.' मेघालय के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ आज सुबह मेघालय की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष याचिका का उल्लेख किया. अदालत आज ही दोपहर 2 बजे मामले की सुनवाई करने पर सहमत हो गई.

इस मामले की सुनवाई जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने की थी. एसजी मेहता ने कोर्ट को बताया कि जब मेघालय को असम से अलग किया गया था, तो कुछ सीमा मुद्दों को राजनीतिक रूप से तय किया गया था और ये सभी 'राजनीतिक झांसे' में लिए गए फैसले हैं.

MoU के खिलाफ HC में याचिका दायर करने वाले मूल याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता प्रज्ञान प्रदीप शर्मा ने तर्क दिया कि MoU संसद की सहमति में हुआ था. शर्मा ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 3 के लिए संसदीय मंजूरी की आवश्यकता होती है, अन्यथा एमओयू निष्पादित नहीं किया जा सकता है.

शर्मा ने कहा कि आदिवासी भूमि को गैर आदिवासी भूमि में परिवर्तित किया जा रहा है. पुलिस द्वारा क्षेत्रों में ग्रामीणों पर हमले होते हैं क्योंकि सीमांकन का पालन नहीं किया जाता है.

असम राज्य की ओर से पेश वकील ने कहा कि हाईकोर्ट ने राज्य को नोटिस जारी किए बिना उसकी अनुपस्थिति में आदेश पारित किया. वकील ने कहा, 'एमओयू में भूमि का पुनर्निर्धारण नहीं है, यह दो राज्यों के बीच आने वाली स्थिति को रिकॉर्ड करता है. राज्यों के बीच कोई सीमा निर्धारण भूमि नहीं थी.'

उन्होंने ताराबारी क्षेत्र का उदाहरण देते हुए कहा कि 'यह मेघालय के पास रहेगा और कुछ अन्य क्षेत्र असम के अधीन रहेंगे. उन्होंने उन सीमाओं की पहचान की है,जिन्हें पहले नहीं पहचाना गया. इन गांवों को विकास का लाभ नहीं मिल रहा था क्योंकि ये न तो असम और न ही मेघालय के हैं.'

अदालत ने आदेश दिया,' एमओयू पर संसद द्वारा और विचार किए जाने की आवश्यकता है या नहीं, यह एक अलग मुद्दा है. हालांकि, आंतरिक रोक का वारंट नहीं था. उत्तरदाताओं को नोटिस जारी किया जाएगा. दो सप्ताह बाद सुनवाई होगी. इस बीच एकल न्यायाधीश के आदेश पर रोक रहेगी.'

पढ़ें- मेघालय उच्च न्यायालय ने असम-मेघालय सीमा समझौते पर लगाई अंतरिम रोक

नई दिल्ली : सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने शुक्रवार को मेघालय उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें सीमा विवाद के संबंध में मेघालय और असम राज्यों द्वारा हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन पर अंतरिम रोक लगा दी थी (sc stays meghalaya hc order).

कोर्ट ने कहा कि 'प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि एकल न्यायाधीश ने कोई कारण नहीं बताया है.' मेघालय के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ आज सुबह मेघालय की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष याचिका का उल्लेख किया. अदालत आज ही दोपहर 2 बजे मामले की सुनवाई करने पर सहमत हो गई.

इस मामले की सुनवाई जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने की थी. एसजी मेहता ने कोर्ट को बताया कि जब मेघालय को असम से अलग किया गया था, तो कुछ सीमा मुद्दों को राजनीतिक रूप से तय किया गया था और ये सभी 'राजनीतिक झांसे' में लिए गए फैसले हैं.

MoU के खिलाफ HC में याचिका दायर करने वाले मूल याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता प्रज्ञान प्रदीप शर्मा ने तर्क दिया कि MoU संसद की सहमति में हुआ था. शर्मा ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 3 के लिए संसदीय मंजूरी की आवश्यकता होती है, अन्यथा एमओयू निष्पादित नहीं किया जा सकता है.

शर्मा ने कहा कि आदिवासी भूमि को गैर आदिवासी भूमि में परिवर्तित किया जा रहा है. पुलिस द्वारा क्षेत्रों में ग्रामीणों पर हमले होते हैं क्योंकि सीमांकन का पालन नहीं किया जाता है.

असम राज्य की ओर से पेश वकील ने कहा कि हाईकोर्ट ने राज्य को नोटिस जारी किए बिना उसकी अनुपस्थिति में आदेश पारित किया. वकील ने कहा, 'एमओयू में भूमि का पुनर्निर्धारण नहीं है, यह दो राज्यों के बीच आने वाली स्थिति को रिकॉर्ड करता है. राज्यों के बीच कोई सीमा निर्धारण भूमि नहीं थी.'

उन्होंने ताराबारी क्षेत्र का उदाहरण देते हुए कहा कि 'यह मेघालय के पास रहेगा और कुछ अन्य क्षेत्र असम के अधीन रहेंगे. उन्होंने उन सीमाओं की पहचान की है,जिन्हें पहले नहीं पहचाना गया. इन गांवों को विकास का लाभ नहीं मिल रहा था क्योंकि ये न तो असम और न ही मेघालय के हैं.'

अदालत ने आदेश दिया,' एमओयू पर संसद द्वारा और विचार किए जाने की आवश्यकता है या नहीं, यह एक अलग मुद्दा है. हालांकि, आंतरिक रोक का वारंट नहीं था. उत्तरदाताओं को नोटिस जारी किया जाएगा. दो सप्ताह बाद सुनवाई होगी. इस बीच एकल न्यायाधीश के आदेश पर रोक रहेगी.'

पढ़ें- मेघालय उच्च न्यायालय ने असम-मेघालय सीमा समझौते पर लगाई अंतरिम रोक

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