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मनोनीत सदस्यों की नियुक्त वाली फाइल गायब, शिवसेना का तंज- फाइल भूतों ने चुरा ली! - सामना

सामना के संपादकीय में शिवसेना ने लिखा कि क्या महाराष्ट्र का राजभवन गतिशील प्रशासन की व्याख्या में नहीं आता है? ऐसा सवाल खड़ा हो गया है. वर्तमान समय में पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के राज्यपाल कुछ ज्यादा ही चर्चा में रहते हैं.

Saamana editorial on bhagat singh koshyari
सामना के संपादकीय में शिवसेना ने बोला हमला
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Published : May 24, 2021, 11:33 AM IST

मुंबई : शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में केंद्र की मोदी सरकार और राज्यपाल पर हमला बोला है. सामना के संपादकीय में शिवसेना ने राजभवन से महाराष्ट्र विधान परिषद में 12 मनोनीत सदस्यों की नियुक्त की सिफारिश करने वाली फाइल के गायब होने का जिक्र किया गया है. इसको लेकर शिवसेना ने भारतीय जनता पार्टी और राज्यपाल कोश्यारी पर निशाना साधा है. तंज कसते हुए शिवसेना ने लिखा कि राजभवन में भूतों ने फाइल चुरा ली है क्या, ऐसा हुआ है तो राजभवन में शांतियज्ञ कराना होगा.

राज्यपाल को बनाया निशाना
राज्यपाल को बनाया निशाना

सामना के संपादकीय में शिवसेना ने लिखा कि क्या महाराष्ट्र का राजभवन गतिशील प्रशासन की व्याख्या में नहीं आता है? ऐसा सवाल खड़ा हो गया है. वर्तमान समय में पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के राज्यपाल कुछ ज्यादा ही चर्चा में रहते हैं. प. बंगाल के राज्यपाल जगदीश धनकड़ कुछ ज्यादा ही तेज तो महाराष्ट्र के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी की गति कुछ मामलों में धीमी पड़ गई है. यह आलोचना न होकर वास्तविकता है.

भारतीय जनता पार्टी के महामंडलेश्वरों को इस वास्तविकता को समझ लेना चाहिए. महाराष्ट्र मंत्रिमंडल ने विधान परिषद में 12 सदस्यों को मनोनीत करने की सिफारिश की. इस सिफारिश को 6 महीने बीत गए, लेकिन राज्यपाल निर्णय लेने को तैयार नहीं हैं. इस पर मुंबई हाई कोर्ट ने राज्यपाल से सवाल पूछा है. विधान परिषद में 12 मनोनीत सदस्यों की समस्या अब उच्च न्यायालय पहुंच गई है. महाराष्ट्र का मंत्रिमंडल बहुमत से निर्णय लेकर एक फाइल राज्यपाल के पास भेजता है और राज्यपाल 6 महीने से उस पर निर्णय नहीं ले रहे.

इसे मंद गति कहा जाए या कुछ और? 'सामना' फिल्म के 'मारुति कांबले का क्या हुआ?' इस गंभीर सवाल की तरह 12 सदस्यों की नियुक्ति की फाइल का क्या हुआ? ये सवाल महाराष्ट्र पूछ रहा है. फाइल की उम्र 6 महीने की है इसलिए मुंबई तट से टकराए चक्रवाती तूफान तौकते की मार उस फाइल पर पड़ी. तूफानी लहरें राजभवन में घुसीं और फाइल बह गई, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता है. अब तो फाइल प्रकरण का रहस्य और भी गहराता जा रहा है क्योंकि 12 लोगों के प्रस्तावित नामों की 'सूची' वाली यह फाइल राज्यपाल सचिवालय से अदृश्य होने की जानकारी सामने आई है.

आरटीआई एक्टिविस्ट अनिल गलगली ने इस संदर्भ में जानकारी मांगी थी. इस पर ऐसी कोई सूची अथवा फाइल उपलब्ध नहीं होने से कौन-सी जानकारी देंगे? ऐसा राज्यपाल कार्यालय ने बताया. यह तो हैरान करने वाला मामला न होकर सीधे-सीधे भूतों वाली हरकत है. वास्तव में इसे एक रहस्यमय गुप्त विस्फोट कहा जा सकता है. महाराष्ट्र में अंधश्रद्धा निर्मूलन कानून है. उसमें भूत-प्रेत, जादू-टोना के लिए स्थान नहीं है. फिर भी मुख्यमंत्री द्वारा भेजी गई एक महत्वपूर्ण फाइल 6 महीने नहीं मिलती है. अब वह लापता हो गई. इसे वैâसा संकेत माना जाए?

अब तो मुंबई उच्च न्यायालय ने राज्यपाल से पूछा है कि साहेब, उस फाइल का क्या हुआ? इसलिए फाइल किसी भूत ने चुरा लिया, ऐसा खुलासा राज्यपाल को ही करना होगा. 12 मनोनीत सदस्यों की सूची राज्यपाल ने समय पर मंजूर कर ली होती तो इस कोरोना संकट काल में वो सदस्य अधिक समर्पित भाव से काम कर सकते थे, परंतु इन 12 जगहों को 6 महीने खाली रखकर राज्यपाल ने गैरकानूनी काम किया है. विधायकों की नियुक्ति के मामले में विशिष्ट कालावधि में ही निर्णय लिया जाए, ऐसा कानून में दर्ज नहीं है इसलिए राज्यपाल इस पर निर्णय नहीं ले रहे हैं, ऐसा अर्थ लगाना गलत है, ऐसा वकीली प्वाइंट भाजपाई नेता आशीष शेलार ने ढूंढा है, परंतु उस 'प्वाइंट ऑफ ऑर्डर' का कोई भी अर्थ नहीं है, बल्कि इस लीपापोती से राज्यपाल की नीयत की ही कलई खुल जाती है.

निर्णय किस व कितनी कालावधि में लिया जाए, ऐसा कानून में नहीं कहा गया है. यह बकवास व भागने जैसा है क्योंकि इसका अर्थ ऐसा भी नहीं होता है कि 6 महीने, साल भर नियुक्ति ही न करो. नियुक्ति न करना यह राज्य के विधानमंडल का अपमान है. राज्यपाल द्वारा 12 सदस्यों की फाइल मंजूर न करना, इसके पीछे राजनीति है व फाइल दबाकर रखो, ऐसा ऊपरी आदेश है. महाराष्ट्र की वर्तमान सरकार को हम गिरा देंगे, इस झूठे विश्वास पर विपक्ष जी रहा है, परंतु यह विश्वास अर्थात 'ऑक्सीजन' न होकर कार्बन डाई ऑक्साइड है. जहरीली हवा है. इस उठा-पटक में दम घुटने से तड़पोगे, इस खतरे की चेतावनी हम दे रहे हैं.

तोड़-फोड़ तांबा-पीतल मार्ग अपनाकर जुगाड़ करना संभव हुआ तो उस जुगाड़ योजना में शामिल होनेवालों पर इस खुराफात के लिए इन 12 विधायकी के टुकड़े फेंक सकेंगे, ऐसा यह 'स्वच्छ भारत अभियान' है और इस योजना के अंतर्गत 12 विधायकों की नियुक्तियां रोक कर रखी गई हैं, परंतु इस जुगाड़ योजना के अमल में आने का स्वप्न साकार होने की संभावना नहीं है. 12 विधायकों की समय पर नियुक्ति न करना, यह सीधे-सीधे संविधान की अवहेलना ही है.

उच्च न्यायालय ने अब सीधे फटकार लगाई है. राज्यपाल महोदय फाइल कपाट में बंद रखने के लिए है या निर्णय लेने के लिए? न्यायालय की फटकार को राज्यपाल गंभीरता से लेंगे तो ही अच्छा होगा. महाराष्ट्र के संयम का बांध टूटे, ऐसा बर्ताव कोई न करे. महाराष्ट्र प्रगतिशील, संयमी है मतलब वह कायर है ऐसा न समझें. वरिष्ठों का व मेहमानों का सम्मान करना महाराष्ट्र की परंपरा है. अच्छों के लिए हम सब कुछ समर्पित कर सकते हैं, लेकिन नालायकों के सिर पर डंडा भी मारते हैं. ये भी हमारे संत सज्जन हमसे कहकर गए हैं.

पढ़ें: धनखड़ को राज्यपाल के पद से हटाया जाए: शिवसेना

राज्यपाल को करने के लिए कई काम हैं. फाइलों पर बैठे रहने की बजाय यह काम करने से उनका नामरोशन होगा. महाराष्ट्र में टीकों का अभाव है. इस बारे में राज्यपाल को केंद्र से संपर्क करना चाहिए. 'तौकते' चक्रवाती तूफान से नुकसान हुआ. प्रधानमंत्री ने गुजरात के तूफान प्रभावितों को हजार करोड़ रुपए दिए. फिर महाराष्ट्र पर अन्याय क्यों करते हो? मेरे राज्य को भी 1,500 करोड़ दो, ऐसी मांग करके राज्यपाल को 'महाराष्ट्र' की जनता का मन जीतना चाहिए. ये सब करने की बजाय राज्यपाल 6 महीने से एक फाइल की राजनीति कर रहे हैं. अब तो वह फाइल भी भूतों ने चुरा ली है. राजभवन में हाल के दिनों में किन भूतों का आना-जाना बढ़ा है? एक बार शांति यज्ञ करना होगा!

मुंबई : शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में केंद्र की मोदी सरकार और राज्यपाल पर हमला बोला है. सामना के संपादकीय में शिवसेना ने राजभवन से महाराष्ट्र विधान परिषद में 12 मनोनीत सदस्यों की नियुक्त की सिफारिश करने वाली फाइल के गायब होने का जिक्र किया गया है. इसको लेकर शिवसेना ने भारतीय जनता पार्टी और राज्यपाल कोश्यारी पर निशाना साधा है. तंज कसते हुए शिवसेना ने लिखा कि राजभवन में भूतों ने फाइल चुरा ली है क्या, ऐसा हुआ है तो राजभवन में शांतियज्ञ कराना होगा.

राज्यपाल को बनाया निशाना
राज्यपाल को बनाया निशाना

सामना के संपादकीय में शिवसेना ने लिखा कि क्या महाराष्ट्र का राजभवन गतिशील प्रशासन की व्याख्या में नहीं आता है? ऐसा सवाल खड़ा हो गया है. वर्तमान समय में पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के राज्यपाल कुछ ज्यादा ही चर्चा में रहते हैं. प. बंगाल के राज्यपाल जगदीश धनकड़ कुछ ज्यादा ही तेज तो महाराष्ट्र के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी की गति कुछ मामलों में धीमी पड़ गई है. यह आलोचना न होकर वास्तविकता है.

भारतीय जनता पार्टी के महामंडलेश्वरों को इस वास्तविकता को समझ लेना चाहिए. महाराष्ट्र मंत्रिमंडल ने विधान परिषद में 12 सदस्यों को मनोनीत करने की सिफारिश की. इस सिफारिश को 6 महीने बीत गए, लेकिन राज्यपाल निर्णय लेने को तैयार नहीं हैं. इस पर मुंबई हाई कोर्ट ने राज्यपाल से सवाल पूछा है. विधान परिषद में 12 मनोनीत सदस्यों की समस्या अब उच्च न्यायालय पहुंच गई है. महाराष्ट्र का मंत्रिमंडल बहुमत से निर्णय लेकर एक फाइल राज्यपाल के पास भेजता है और राज्यपाल 6 महीने से उस पर निर्णय नहीं ले रहे.

इसे मंद गति कहा जाए या कुछ और? 'सामना' फिल्म के 'मारुति कांबले का क्या हुआ?' इस गंभीर सवाल की तरह 12 सदस्यों की नियुक्ति की फाइल का क्या हुआ? ये सवाल महाराष्ट्र पूछ रहा है. फाइल की उम्र 6 महीने की है इसलिए मुंबई तट से टकराए चक्रवाती तूफान तौकते की मार उस फाइल पर पड़ी. तूफानी लहरें राजभवन में घुसीं और फाइल बह गई, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता है. अब तो फाइल प्रकरण का रहस्य और भी गहराता जा रहा है क्योंकि 12 लोगों के प्रस्तावित नामों की 'सूची' वाली यह फाइल राज्यपाल सचिवालय से अदृश्य होने की जानकारी सामने आई है.

आरटीआई एक्टिविस्ट अनिल गलगली ने इस संदर्भ में जानकारी मांगी थी. इस पर ऐसी कोई सूची अथवा फाइल उपलब्ध नहीं होने से कौन-सी जानकारी देंगे? ऐसा राज्यपाल कार्यालय ने बताया. यह तो हैरान करने वाला मामला न होकर सीधे-सीधे भूतों वाली हरकत है. वास्तव में इसे एक रहस्यमय गुप्त विस्फोट कहा जा सकता है. महाराष्ट्र में अंधश्रद्धा निर्मूलन कानून है. उसमें भूत-प्रेत, जादू-टोना के लिए स्थान नहीं है. फिर भी मुख्यमंत्री द्वारा भेजी गई एक महत्वपूर्ण फाइल 6 महीने नहीं मिलती है. अब वह लापता हो गई. इसे वैâसा संकेत माना जाए?

अब तो मुंबई उच्च न्यायालय ने राज्यपाल से पूछा है कि साहेब, उस फाइल का क्या हुआ? इसलिए फाइल किसी भूत ने चुरा लिया, ऐसा खुलासा राज्यपाल को ही करना होगा. 12 मनोनीत सदस्यों की सूची राज्यपाल ने समय पर मंजूर कर ली होती तो इस कोरोना संकट काल में वो सदस्य अधिक समर्पित भाव से काम कर सकते थे, परंतु इन 12 जगहों को 6 महीने खाली रखकर राज्यपाल ने गैरकानूनी काम किया है. विधायकों की नियुक्ति के मामले में विशिष्ट कालावधि में ही निर्णय लिया जाए, ऐसा कानून में दर्ज नहीं है इसलिए राज्यपाल इस पर निर्णय नहीं ले रहे हैं, ऐसा अर्थ लगाना गलत है, ऐसा वकीली प्वाइंट भाजपाई नेता आशीष शेलार ने ढूंढा है, परंतु उस 'प्वाइंट ऑफ ऑर्डर' का कोई भी अर्थ नहीं है, बल्कि इस लीपापोती से राज्यपाल की नीयत की ही कलई खुल जाती है.

निर्णय किस व कितनी कालावधि में लिया जाए, ऐसा कानून में नहीं कहा गया है. यह बकवास व भागने जैसा है क्योंकि इसका अर्थ ऐसा भी नहीं होता है कि 6 महीने, साल भर नियुक्ति ही न करो. नियुक्ति न करना यह राज्य के विधानमंडल का अपमान है. राज्यपाल द्वारा 12 सदस्यों की फाइल मंजूर न करना, इसके पीछे राजनीति है व फाइल दबाकर रखो, ऐसा ऊपरी आदेश है. महाराष्ट्र की वर्तमान सरकार को हम गिरा देंगे, इस झूठे विश्वास पर विपक्ष जी रहा है, परंतु यह विश्वास अर्थात 'ऑक्सीजन' न होकर कार्बन डाई ऑक्साइड है. जहरीली हवा है. इस उठा-पटक में दम घुटने से तड़पोगे, इस खतरे की चेतावनी हम दे रहे हैं.

तोड़-फोड़ तांबा-पीतल मार्ग अपनाकर जुगाड़ करना संभव हुआ तो उस जुगाड़ योजना में शामिल होनेवालों पर इस खुराफात के लिए इन 12 विधायकी के टुकड़े फेंक सकेंगे, ऐसा यह 'स्वच्छ भारत अभियान' है और इस योजना के अंतर्गत 12 विधायकों की नियुक्तियां रोक कर रखी गई हैं, परंतु इस जुगाड़ योजना के अमल में आने का स्वप्न साकार होने की संभावना नहीं है. 12 विधायकों की समय पर नियुक्ति न करना, यह सीधे-सीधे संविधान की अवहेलना ही है.

उच्च न्यायालय ने अब सीधे फटकार लगाई है. राज्यपाल महोदय फाइल कपाट में बंद रखने के लिए है या निर्णय लेने के लिए? न्यायालय की फटकार को राज्यपाल गंभीरता से लेंगे तो ही अच्छा होगा. महाराष्ट्र के संयम का बांध टूटे, ऐसा बर्ताव कोई न करे. महाराष्ट्र प्रगतिशील, संयमी है मतलब वह कायर है ऐसा न समझें. वरिष्ठों का व मेहमानों का सम्मान करना महाराष्ट्र की परंपरा है. अच्छों के लिए हम सब कुछ समर्पित कर सकते हैं, लेकिन नालायकों के सिर पर डंडा भी मारते हैं. ये भी हमारे संत सज्जन हमसे कहकर गए हैं.

पढ़ें: धनखड़ को राज्यपाल के पद से हटाया जाए: शिवसेना

राज्यपाल को करने के लिए कई काम हैं. फाइलों पर बैठे रहने की बजाय यह काम करने से उनका नामरोशन होगा. महाराष्ट्र में टीकों का अभाव है. इस बारे में राज्यपाल को केंद्र से संपर्क करना चाहिए. 'तौकते' चक्रवाती तूफान से नुकसान हुआ. प्रधानमंत्री ने गुजरात के तूफान प्रभावितों को हजार करोड़ रुपए दिए. फिर महाराष्ट्र पर अन्याय क्यों करते हो? मेरे राज्य को भी 1,500 करोड़ दो, ऐसी मांग करके राज्यपाल को 'महाराष्ट्र' की जनता का मन जीतना चाहिए. ये सब करने की बजाय राज्यपाल 6 महीने से एक फाइल की राजनीति कर रहे हैं. अब तो वह फाइल भी भूतों ने चुरा ली है. राजभवन में हाल के दिनों में किन भूतों का आना-जाना बढ़ा है? एक बार शांति यज्ञ करना होगा!

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