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...जब मायावती सरकार में राजा पर लगा था पोटा, तब भानवी बनी थीं ढाल

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Published : Apr 11, 2023, 12:07 PM IST

मायावती के शासन काल के बाद कुंडा प्रतापगढ़ का नाम एक बार फिर चर्चा में है. इस बार चर्चा राजनीतिक न होकर व्यक्तिगत है. बाहुबली राजनेता रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया और पत्नी के जीवन की खटास अब अदालत की चौखट पर पहुंच गई है. मामला तलाक तक पहुंच गया है. अगली सुनवाई 23 मई को दिल्ली की साकेत कोर्ट में होगी.

जब मायावती सरकार में राजा पर लगा था पोटा
जब मायावती सरकार में राजा पर लगा था पोटा

लखनऊ : कभी राजमहल में मगरमच्छ पालने से लेकर खुद की अदालत लगाने तो कभी पोटा झेलने से लेकर सीओ जियाउल हक की हत्या की साजिश रचने के मामले में आरोपी बाहुबली राजनेता रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया इस बार खुद की पत्नी को लेकर चर्चा में हैं. सपा और बसपा को "तलाक" दे चुके राजा भैया अब अपनी पत्नी को तलाक दे रहे हैं और इसके लिए आगामी 23 मई को दिल्ली की साकेत कोर्ट में सुनवाई होनी है. अवध के भदरी स्टेट के राजा रघुराज प्रताप सिंह के बारे में अगिनत किस्से हैं. जानते हैं कैसे बने बाहुबली और कब पत्नी भानवी बनी थीं उनकी ढाल.

कहा जाता था कि जहां से कुंडा की सीमाएं शुरू होती हैं. वहां से राज्य सरकार की सीमाएं खत्म हो जाती हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि यहां रघुराज प्रताप सिंह की सरकार चलती थी. कुंडा में न ही कोई राजनेता और न ही कोई उनका विरोधी राजा भैया के खिलाफ बोलने की हिम्मत जुटा पाता था. ये धमक महज एक दिन में ही राजा भैया ने नहीं बनाई थी, बल्कि उनके बाबा से लेकर उनके पिता और फिर खुद रघुराज प्रताप सिंह ने अपनी लोकप्रियता और बाहुबल से बनाई थी.

राजनीति में एंट्री लेने वाले भदरी स्टेट के पहले सदस्य थे राजा भैया : रघुराज प्रताप सिंह अपने परिवार के पहले सदस्य थे. जिन्होंने राजनीति में कदम रखा. रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भइया का जन्म 31 अक्टूबर 1967 को प्रतापगढ़ के भदjr रियासत में हुआ था. पिता का उदय प्रताप सिंह और माता मंजुल राजे हैं. दादा राजा बजरंग बहादुर सिंह, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति और हिमांचल प्रदेश के राज्यपाल भी रहे. राघुराज के पिता राजा उदय प्रताप सिंह विश्व हिंदू परिषद व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मानद पादाधिकारी रह चुके हैं. माता मंजुल राजे भी एक शाही परिवार की हैं. राजा भैया का विवाह बस्ती के राजघराने की राजकुमारी भानवी सिंह से वर्ष 1995 में हुआ और उनके दो बेटियां और दो बेटे हैं.

विधायक से मंत्री और फिर बाहुबली बने राजा भैया : भदjr स्टेट से कभी भी कोई सक्रिय राजनीति में नहीं रहा. रघुराज प्रताप सिंह ने फैसला किया कि उन्हें सक्रिय राजनीति में आना है और वर्ष 1993 में कुंडा विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय पर्चा भर दिया. उस वक्त उनकी उम्र 26 वर्ष थी. उन्होंने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद वर्ष 1996 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी समर्थित तो 2002 और 2007, 2012 के चुनाव में समाजवादी पार्टी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधायक चुने गए. यही नहीं राजा भैया ने कुंडा और उसके आसपास की विधानसभा सीटों पर इतना दबदबा कायम किया. वर्ष 1999 के आम चुनाव में उन्होंने राजकुमारी रत्ना सिंह के खिलाफ अपने मुंह बोले भाई अक्षय प्रताप सिंह उर्फ गोपाल भैया को उतार दिया. राजा भैया कद्दावर राजनेता छवि के प्रभाव से उनके भाई भी उस चुनाव में जीत गए थे.

जब निर्दलीय विधायक से खुद की पार्टी के बने MLA : रघुराज प्रताप सिंह अब तक बसपा छोड़ हर दल के चहेते बन चुके थे. राजा भैया, बीजेपी की कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सरकार और सपा की मुलायम सिंह व अखिलेश सरकार में मंत्री भी बने. वर्तमान में वे उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट में खाद्य एवं रसद मंत्री हैं. 30 नवंबर 2018 को जनसत्ता दल लोकतांत्रिक नाम से सियासी दल का गठन लिया. जिसके बाद उनकी चुनौतियां बढ़ गईं हैं. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव उन्होंने अपने दल से लड़ा और जीत हासिल की. हालांकि ये जीत उतनी बड़ी नहीं थी, जितनी अब तक दर्ज होती आई थी. कारण इस बार उनके विरोध में बीजेपी और समाजवादी पार्टी दोनों थीं.


मायावती सरकार में सबसे अधिक दर्ज हुए मुकदमे : एक निजी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में राजा भैया ने खुद के नाम के आगे बाहुबली लगने पर कहा था कि "स्वाभाविक सी बात है कि मुकदमे रहे हैं. अभी भी है एक मुकदमा, हलफनामे में भी बस इसी एक का जिक्र करूंगा. मायावती जी के समय बहुत सारे मुकदमे लगे. ट्रायल फेस करके बहुत से मुकदमों में बरी हुआ मैं. उस समय जितने भी मुकदमे लिखे गए कुंडा में, हर मुकदमे में हमारा नाम था. वो मुकदमा चाहे चोरी का हो या डकैती का. दरअसल, मायावती सरकार में ही राजा भैया पर आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा) लगाया गया था. हुआ ये था कि वर्ष 2002 में बसपा से गठबंधन करके मायावती के नेतृत्व में सरकार बनाने पर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने सहमति दे दी, लेकिन पहले दिन से ही बीजेपी और मायावती के बीच तनातनी भी शुरू हो गई. मायावती ने भाजपा की इच्छा होते हुए भी राजा भैया को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया. जिससे नाराज होकर राजा भैया 20 विधायकों को लेकर अविश्वास पत्र लेकर राजभवन पहुंच गए और शुरू हुई मायावती व राजा भैया के बीच अदावत.


जब मायावती से सीधी लड़ाई के मूड में आए थे राजा भैया : मायावती, अब राजा भैया से चिढ़ चुकी थीं. ऐसे में उन्होंने राज्यपाल से बर्खास्तगी की मांग करने वाले विधायकों में शामिल भाजपा विधायक पूरण सिंह बुंदेला को अपने पाले में कर लिया. बुंदेला ने लखनऊ के हजरतगंज कोतवाली में राजा भैया पर अपहरण और जान से मारने की धमकी देकर मायावती के खिलाफ राजभवन में पत्र देने का दबाव डालने का आरोप लगाते हुए शिकायत की. पुलिस ने 2 नवंबर 2002 की रात में राजा भैया को गिरफ्तार कर लिया. यही नहीं राजा भैया के कुंडा के भदरी स्टेट स्थित आवास पर छापा पड़ा. वहां से कई हथियार बरामद किए गए. आरोप लगा कि राजा भैया मायावती को हत्या करना चाहते थे, उनके पिता उदय प्रताप और चचेरे भाई अक्षय प्रताप पर पोटा लगा दिया गया.

जब "राजा" पर चला पोटा का सोटा तब भानवी बनी थीं ढाल : राजा भैया के पिता उदय प्रताप सिंह के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व विश्व हिंदू परिषद से काफी अच्छे रिश्ते थे. इसी वजह से विनय कटियार ने पोटा हटाने और राजा उदय प्रताप को रिहा करने की मांग की थी. मायावती के इनकार करने पर रिश्ते बिगड़ते चले गए. कहा जाता है कि जिस वक्त राजा भैया पर पोटा लगा कर जेल भेजा गया था, उस दौरान उनकी पत्नी भानवी गर्भवती थीं. उस दौरान वे राजा भैया के लिए ढाल बनकर खड़ी हुई थीं. क्योंकि उनके पति, ससुर और देवर जेल में बंद थे और कोर्ट में पैरवी के लिए महज भानवी ही इकलौती पैरोकार थीं. लिहाजा उन्होंने कोर्ट से लेकर राजनेताओं से पैरवी अकेले की थी.


यह भी पढ़ें : यूपी में नगर निकाय चुनाव के लिए नामांकन आज से, CCTV कैमरों से होगी निगरानी

लखनऊ : कभी राजमहल में मगरमच्छ पालने से लेकर खुद की अदालत लगाने तो कभी पोटा झेलने से लेकर सीओ जियाउल हक की हत्या की साजिश रचने के मामले में आरोपी बाहुबली राजनेता रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया इस बार खुद की पत्नी को लेकर चर्चा में हैं. सपा और बसपा को "तलाक" दे चुके राजा भैया अब अपनी पत्नी को तलाक दे रहे हैं और इसके लिए आगामी 23 मई को दिल्ली की साकेत कोर्ट में सुनवाई होनी है. अवध के भदरी स्टेट के राजा रघुराज प्रताप सिंह के बारे में अगिनत किस्से हैं. जानते हैं कैसे बने बाहुबली और कब पत्नी भानवी बनी थीं उनकी ढाल.

कहा जाता था कि जहां से कुंडा की सीमाएं शुरू होती हैं. वहां से राज्य सरकार की सीमाएं खत्म हो जाती हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि यहां रघुराज प्रताप सिंह की सरकार चलती थी. कुंडा में न ही कोई राजनेता और न ही कोई उनका विरोधी राजा भैया के खिलाफ बोलने की हिम्मत जुटा पाता था. ये धमक महज एक दिन में ही राजा भैया ने नहीं बनाई थी, बल्कि उनके बाबा से लेकर उनके पिता और फिर खुद रघुराज प्रताप सिंह ने अपनी लोकप्रियता और बाहुबल से बनाई थी.

राजनीति में एंट्री लेने वाले भदरी स्टेट के पहले सदस्य थे राजा भैया : रघुराज प्रताप सिंह अपने परिवार के पहले सदस्य थे. जिन्होंने राजनीति में कदम रखा. रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भइया का जन्म 31 अक्टूबर 1967 को प्रतापगढ़ के भदjr रियासत में हुआ था. पिता का उदय प्रताप सिंह और माता मंजुल राजे हैं. दादा राजा बजरंग बहादुर सिंह, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति और हिमांचल प्रदेश के राज्यपाल भी रहे. राघुराज के पिता राजा उदय प्रताप सिंह विश्व हिंदू परिषद व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मानद पादाधिकारी रह चुके हैं. माता मंजुल राजे भी एक शाही परिवार की हैं. राजा भैया का विवाह बस्ती के राजघराने की राजकुमारी भानवी सिंह से वर्ष 1995 में हुआ और उनके दो बेटियां और दो बेटे हैं.

विधायक से मंत्री और फिर बाहुबली बने राजा भैया : भदjr स्टेट से कभी भी कोई सक्रिय राजनीति में नहीं रहा. रघुराज प्रताप सिंह ने फैसला किया कि उन्हें सक्रिय राजनीति में आना है और वर्ष 1993 में कुंडा विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय पर्चा भर दिया. उस वक्त उनकी उम्र 26 वर्ष थी. उन्होंने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद वर्ष 1996 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी समर्थित तो 2002 और 2007, 2012 के चुनाव में समाजवादी पार्टी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधायक चुने गए. यही नहीं राजा भैया ने कुंडा और उसके आसपास की विधानसभा सीटों पर इतना दबदबा कायम किया. वर्ष 1999 के आम चुनाव में उन्होंने राजकुमारी रत्ना सिंह के खिलाफ अपने मुंह बोले भाई अक्षय प्रताप सिंह उर्फ गोपाल भैया को उतार दिया. राजा भैया कद्दावर राजनेता छवि के प्रभाव से उनके भाई भी उस चुनाव में जीत गए थे.

जब निर्दलीय विधायक से खुद की पार्टी के बने MLA : रघुराज प्रताप सिंह अब तक बसपा छोड़ हर दल के चहेते बन चुके थे. राजा भैया, बीजेपी की कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सरकार और सपा की मुलायम सिंह व अखिलेश सरकार में मंत्री भी बने. वर्तमान में वे उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट में खाद्य एवं रसद मंत्री हैं. 30 नवंबर 2018 को जनसत्ता दल लोकतांत्रिक नाम से सियासी दल का गठन लिया. जिसके बाद उनकी चुनौतियां बढ़ गईं हैं. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव उन्होंने अपने दल से लड़ा और जीत हासिल की. हालांकि ये जीत उतनी बड़ी नहीं थी, जितनी अब तक दर्ज होती आई थी. कारण इस बार उनके विरोध में बीजेपी और समाजवादी पार्टी दोनों थीं.


मायावती सरकार में सबसे अधिक दर्ज हुए मुकदमे : एक निजी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में राजा भैया ने खुद के नाम के आगे बाहुबली लगने पर कहा था कि "स्वाभाविक सी बात है कि मुकदमे रहे हैं. अभी भी है एक मुकदमा, हलफनामे में भी बस इसी एक का जिक्र करूंगा. मायावती जी के समय बहुत सारे मुकदमे लगे. ट्रायल फेस करके बहुत से मुकदमों में बरी हुआ मैं. उस समय जितने भी मुकदमे लिखे गए कुंडा में, हर मुकदमे में हमारा नाम था. वो मुकदमा चाहे चोरी का हो या डकैती का. दरअसल, मायावती सरकार में ही राजा भैया पर आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा) लगाया गया था. हुआ ये था कि वर्ष 2002 में बसपा से गठबंधन करके मायावती के नेतृत्व में सरकार बनाने पर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने सहमति दे दी, लेकिन पहले दिन से ही बीजेपी और मायावती के बीच तनातनी भी शुरू हो गई. मायावती ने भाजपा की इच्छा होते हुए भी राजा भैया को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया. जिससे नाराज होकर राजा भैया 20 विधायकों को लेकर अविश्वास पत्र लेकर राजभवन पहुंच गए और शुरू हुई मायावती व राजा भैया के बीच अदावत.


जब मायावती से सीधी लड़ाई के मूड में आए थे राजा भैया : मायावती, अब राजा भैया से चिढ़ चुकी थीं. ऐसे में उन्होंने राज्यपाल से बर्खास्तगी की मांग करने वाले विधायकों में शामिल भाजपा विधायक पूरण सिंह बुंदेला को अपने पाले में कर लिया. बुंदेला ने लखनऊ के हजरतगंज कोतवाली में राजा भैया पर अपहरण और जान से मारने की धमकी देकर मायावती के खिलाफ राजभवन में पत्र देने का दबाव डालने का आरोप लगाते हुए शिकायत की. पुलिस ने 2 नवंबर 2002 की रात में राजा भैया को गिरफ्तार कर लिया. यही नहीं राजा भैया के कुंडा के भदरी स्टेट स्थित आवास पर छापा पड़ा. वहां से कई हथियार बरामद किए गए. आरोप लगा कि राजा भैया मायावती को हत्या करना चाहते थे, उनके पिता उदय प्रताप और चचेरे भाई अक्षय प्रताप पर पोटा लगा दिया गया.

जब "राजा" पर चला पोटा का सोटा तब भानवी बनी थीं ढाल : राजा भैया के पिता उदय प्रताप सिंह के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व विश्व हिंदू परिषद से काफी अच्छे रिश्ते थे. इसी वजह से विनय कटियार ने पोटा हटाने और राजा उदय प्रताप को रिहा करने की मांग की थी. मायावती के इनकार करने पर रिश्ते बिगड़ते चले गए. कहा जाता है कि जिस वक्त राजा भैया पर पोटा लगा कर जेल भेजा गया था, उस दौरान उनकी पत्नी भानवी गर्भवती थीं. उस दौरान वे राजा भैया के लिए ढाल बनकर खड़ी हुई थीं. क्योंकि उनके पति, ससुर और देवर जेल में बंद थे और कोर्ट में पैरवी के लिए महज भानवी ही इकलौती पैरोकार थीं. लिहाजा उन्होंने कोर्ट से लेकर राजनेताओं से पैरवी अकेले की थी.


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