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Manipur violence: मणिपुर में अधिक बल भेजने से समस्या का समाधान नहीं होगा - इरोम शर्मिला - civil rights activist Irom Sharmila Chanu

मणिपुर में भड़की हिंसा के समाधान राज्य में अधिक संख्या में बल भेजने से नहीं होगा. मणिपुर में जटिल जनसांख्यिकीय और जातीय समस्याओं पर मणिपुर की आयरन लेडी और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला चानू (civil rights activist Irom Sharmila Chanu) ने ईटीवी भारत के प्रणब कुमार दास से बात की. बता दें कि मणिपुर हिंसा में 54 लोगों की जान जा चुकी है. पढ़िए पूरी रिपोर्ट...

civil rights activist Irom Sharmila Chanu
नागरिक अधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला चानू
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Published : May 6, 2023, 7:41 PM IST

Updated : May 6, 2023, 8:24 PM IST

सुनिए नागरिक अधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला चानू ने क्या कहा

इम्फाल : मणिपुर में भड़की हिंसा को लेकर नागरिक अधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला चानू (civil rights activist Irom Chanu Sharmila) ने कहा है कि राज्य में अधिक बल भेजने से समस्या का समाधान नहीं होगा. इस संबंध में ईटीवी भारत से बात करते हुए उन्होंने कहा कि मणिपुर राज्य एक जटिल जनसांख्यिकीय और जातीय समस्या से ग्रस्त है और यह 1947 से ही जारी है. शर्मिला ने कहा कि यह मुद्दा भूमि सुधार अधिनियम के साथ शुरू हुआ औऱ इसने लोगों के लिए हिंसा और पीड़ा को जन्म दिया.

मणिपुर की लौह महिला के रूप में मशहूर शर्मिला ने सत्ता पर बैठे लोगों पर आरोप लगाते हुए कहा कि जो लोग सत्ता में हैं, वे लोगों से परामर्श किए बिना और उनकी भावनाओं को ध्यान में रखे बिना निर्णय लेते हैं. इसी वजह से लोग पीड़ित हैं और राज्य जल रहा है. उन्होंने कहा कि केंद्र के नेताओं को मणिपुर आकर यहां की वास्तविक स्थिति देखनी चाहिए.

यह पूछे जाने पर कि क्या सुरक्षा बलों को तैनात करने से स्थिति को सामान्य करने में मदद मिलेगी, शर्मिला ने कहा, 'अधिक सैनिकों को भेजने से स्थिति को सामान्य बनाने में मदद नहीं मिलेगी. राज्य में सुरक्षा बलों की अत्यधिक भीड़ है और अधिक तैनाती से स्थिति और खराब ही होगी. नेताओं को पहाड़ी और घाटी के लोगों की भावनाओं को समझना चाहिए. उन्हें मूल मुद्दे को समझने की जरूरत है, जब तक लोगों की समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता, तब तक हिंसा पर काबू पाना असंभव है.'

राज्य में समग्र शांति की अपील करते हुए, शर्मिला ने कहा, 'यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मणिपुर में मुद्दा किसी एक समुदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सभी धार्मिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के लोगों को प्रभावित करता है. इसलिए, यह अनिवार्य है कि सभी व्यक्ति, उनके मतभेदों की परवाह किए बिना, एक साथ आएं और राज्य में शांति के लिए प्रार्थना करें.' उन्होंने कहा कि यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मणिपुर अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जातियों के साथ एक बहुसांस्कृतिक राज्य है, और इस तरह इस मुद्दे को सभी समुदायों की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए लोकतांत्रिक तरीके से हल करने की आवश्यकता है. किसी भी समुदाय को हेय दृष्टि से देखने या उनके साथ अलग व्यवहार करने से स्थिति और खराब होगी.

बता दें कि मणिपुर में नागा और कुकी आदिवासियों द्वारा आयोजित 'आदिवासी एकजुटता मार्च' 3 मई को हिंसक हो गया था क्योंकि उन्होंने मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के प्रस्ताव का विरोध किया, जो इस क्षेत्र में बहुसंख्यक हैं. अधिकारियों ने कहा कि ताजा रिपोर्ट के मुताबिक जातीय हिंसा में मरने वालों की संख्या बढ़कर 54 हो गई है. वहीं स्थिति से निपटने के लिए सेना और अर्धसैनिक बलों को मणिपुर में तैनात किया गया था और वे लगभग 13,000 लोगों को बचाने में कामयाब रहे.

ये भी पढ़ें - Manipur violence : भारत-म्यांमार सीमा पर हवाई निगरानी और यूएवी के साथ चौकसी बढ़ाई

सुनिए नागरिक अधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला चानू ने क्या कहा

इम्फाल : मणिपुर में भड़की हिंसा को लेकर नागरिक अधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला चानू (civil rights activist Irom Chanu Sharmila) ने कहा है कि राज्य में अधिक बल भेजने से समस्या का समाधान नहीं होगा. इस संबंध में ईटीवी भारत से बात करते हुए उन्होंने कहा कि मणिपुर राज्य एक जटिल जनसांख्यिकीय और जातीय समस्या से ग्रस्त है और यह 1947 से ही जारी है. शर्मिला ने कहा कि यह मुद्दा भूमि सुधार अधिनियम के साथ शुरू हुआ औऱ इसने लोगों के लिए हिंसा और पीड़ा को जन्म दिया.

मणिपुर की लौह महिला के रूप में मशहूर शर्मिला ने सत्ता पर बैठे लोगों पर आरोप लगाते हुए कहा कि जो लोग सत्ता में हैं, वे लोगों से परामर्श किए बिना और उनकी भावनाओं को ध्यान में रखे बिना निर्णय लेते हैं. इसी वजह से लोग पीड़ित हैं और राज्य जल रहा है. उन्होंने कहा कि केंद्र के नेताओं को मणिपुर आकर यहां की वास्तविक स्थिति देखनी चाहिए.

यह पूछे जाने पर कि क्या सुरक्षा बलों को तैनात करने से स्थिति को सामान्य करने में मदद मिलेगी, शर्मिला ने कहा, 'अधिक सैनिकों को भेजने से स्थिति को सामान्य बनाने में मदद नहीं मिलेगी. राज्य में सुरक्षा बलों की अत्यधिक भीड़ है और अधिक तैनाती से स्थिति और खराब ही होगी. नेताओं को पहाड़ी और घाटी के लोगों की भावनाओं को समझना चाहिए. उन्हें मूल मुद्दे को समझने की जरूरत है, जब तक लोगों की समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता, तब तक हिंसा पर काबू पाना असंभव है.'

राज्य में समग्र शांति की अपील करते हुए, शर्मिला ने कहा, 'यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मणिपुर में मुद्दा किसी एक समुदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सभी धार्मिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के लोगों को प्रभावित करता है. इसलिए, यह अनिवार्य है कि सभी व्यक्ति, उनके मतभेदों की परवाह किए बिना, एक साथ आएं और राज्य में शांति के लिए प्रार्थना करें.' उन्होंने कहा कि यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मणिपुर अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जातियों के साथ एक बहुसांस्कृतिक राज्य है, और इस तरह इस मुद्दे को सभी समुदायों की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए लोकतांत्रिक तरीके से हल करने की आवश्यकता है. किसी भी समुदाय को हेय दृष्टि से देखने या उनके साथ अलग व्यवहार करने से स्थिति और खराब होगी.

बता दें कि मणिपुर में नागा और कुकी आदिवासियों द्वारा आयोजित 'आदिवासी एकजुटता मार्च' 3 मई को हिंसक हो गया था क्योंकि उन्होंने मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के प्रस्ताव का विरोध किया, जो इस क्षेत्र में बहुसंख्यक हैं. अधिकारियों ने कहा कि ताजा रिपोर्ट के मुताबिक जातीय हिंसा में मरने वालों की संख्या बढ़कर 54 हो गई है. वहीं स्थिति से निपटने के लिए सेना और अर्धसैनिक बलों को मणिपुर में तैनात किया गया था और वे लगभग 13,000 लोगों को बचाने में कामयाब रहे.

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Last Updated : May 6, 2023, 8:24 PM IST
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