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Manipur Violence: SC ने मणिपुर हिंसा पर राज्य सरकार से मांगी विस्तृत स्टेटस रिपोर्ट

उच्चतम न्यायालय में सोमवार को मणिपुर हिंसा मामले में दायक एक याचिका की सुनवाई हुई, जिसमें अदालत ने राज्य सरकार से अद्यतन स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है. अदालत जानना चाहती है कि हिंसा प्रभावित राज्य में सरकार ने स्थिति में सुधार के लिए क्या कदम उठाए हैं.

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Published : Jul 3, 2023, 1:10 PM IST

नई दिल्ली : मणिपुर हिंसा मामले में उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को मणिपुर सरकार से जातीय हिंसा पर अद्यतन स्थिति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है. अदालत ने इस रिपोर्ट में जातीय हिंसा प्रभावित राज्य में पुनर्वास सुनिश्चित करने और कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार के लिए उठाए गए कदमों का विवरण मांगा है. शीर्ष अदालत ने कहा, "मैं जानना चाहता हूं कि इस मामले में सरकार की ओर से जमीनी स्तर पर क्या कदम उठाए गए हैं, हमें इसकी एक विस्तृत स्थिति रिपोर्ट दी जाए." इसके साथ ही मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मुद्दे पर याचिकाओं को 10 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया.

जानकारी के मुताबिक, पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से अद्यतन स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देते हुए कहा, "रिपोर्ट में पुनर्वास शिविरों, कानून व्यवस्था और हथियारों की बरामदगी जैसे विवरण होने चाहिए. एक संक्षिप्त सुनवाई में, शीर्ष कानून अधिकारी ने सुरक्षा बलों की तैनाती और कानून व्यवस्था की स्थिति की हालिया स्थिति का विवरण दिया और कहा कि कर्फ्यू लगाया गया है, लेकिन राज्य में अब यह 24 घंटे से घटाकर पांच घंटे कर दिया गया है."

मेहता के अनुसार, राज्य में नागरिक पुलिस, भारतीय रिजर्व बटालियन और सीएपीएफ की 114 कंपनियां भी तैनात हैं. उन्होंने कहा कि कुकी समूहों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्वेस को इस मामले को एक सांप्रदायिक कोण देना नहीं चाहिए है. गोंसाल्वेस ने तर्क दिया कि उन्होंने एक रिपोर्ट जमा करायी है, जिसमें प्रति गांव की सटीक स्थिति रिपोर्ट और हत्या की जानकारी है. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा आश्वासन दिया गया था कि हिंसा की घटनाएं कम कर दी जाएगी, लेकिन आज यह 20 से बढ़ 110 हो गई हैं. इसमें तेजी आ रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि कुकियों के खिलाफ हिंसा राज्य द्वारा प्रायोजित थी.

गोंसाल्वेस ने जोर देकर कहा कि पूरी तरह से सशस्त्र उग्रवादी संगठन हैं जो आदिवासियों को मार रहे हैं और वे एक न्यूज प्रोग्राम में आकर खुली चुनौती दे रहे हैं कि वे सब विनाश कर रख देंगे. गोंसाल्वेस ने कहा, " इस मामले में न कोई एफआईआर और न ही कोई कार्रवाई की गई. एक भी व्यक्ति गिरफ्तार नहीं किया गया और यहां तक कि न्यूज शो में आए व्यक्ति को भी गिरफ्तार नहीं किया गया."

पढ़ें : Manipur Violence : कुकी समूहों ने मणिपुर में एनएच-दो पर दो महीने से जारी नाकेबंदी हटाने का फैसला किया

गौरतलब है कि शीर्ष अदालत के पास मणिपुर की स्थिति पर कई याचिकाएं हैं, जिनमें मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली एक सत्तारूढ़ भाजपा विधायक की याचिका और हिंसा की एसआईटी जांच के लिए एक आदिवासी गैर सरकारी संगठन की जनहित याचिका भी शामिल है. गैर सरकारी संगठनों में से एक, मणिपुर ट्राइबल फोरम ने मणिपुर में अल्पसंख्यक कुकी आदिवासियों के लिए सेना सुरक्षा और उन पर हमला करने वाले सांप्रदायिक समूहों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है. विस्तृत दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत 10 जुलाई को मामले की सुनवाई करने पर सहमत हो गई.

नई दिल्ली : मणिपुर हिंसा मामले में उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को मणिपुर सरकार से जातीय हिंसा पर अद्यतन स्थिति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है. अदालत ने इस रिपोर्ट में जातीय हिंसा प्रभावित राज्य में पुनर्वास सुनिश्चित करने और कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार के लिए उठाए गए कदमों का विवरण मांगा है. शीर्ष अदालत ने कहा, "मैं जानना चाहता हूं कि इस मामले में सरकार की ओर से जमीनी स्तर पर क्या कदम उठाए गए हैं, हमें इसकी एक विस्तृत स्थिति रिपोर्ट दी जाए." इसके साथ ही मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मुद्दे पर याचिकाओं को 10 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया.

जानकारी के मुताबिक, पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से अद्यतन स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देते हुए कहा, "रिपोर्ट में पुनर्वास शिविरों, कानून व्यवस्था और हथियारों की बरामदगी जैसे विवरण होने चाहिए. एक संक्षिप्त सुनवाई में, शीर्ष कानून अधिकारी ने सुरक्षा बलों की तैनाती और कानून व्यवस्था की स्थिति की हालिया स्थिति का विवरण दिया और कहा कि कर्फ्यू लगाया गया है, लेकिन राज्य में अब यह 24 घंटे से घटाकर पांच घंटे कर दिया गया है."

मेहता के अनुसार, राज्य में नागरिक पुलिस, भारतीय रिजर्व बटालियन और सीएपीएफ की 114 कंपनियां भी तैनात हैं. उन्होंने कहा कि कुकी समूहों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्वेस को इस मामले को एक सांप्रदायिक कोण देना नहीं चाहिए है. गोंसाल्वेस ने तर्क दिया कि उन्होंने एक रिपोर्ट जमा करायी है, जिसमें प्रति गांव की सटीक स्थिति रिपोर्ट और हत्या की जानकारी है. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा आश्वासन दिया गया था कि हिंसा की घटनाएं कम कर दी जाएगी, लेकिन आज यह 20 से बढ़ 110 हो गई हैं. इसमें तेजी आ रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि कुकियों के खिलाफ हिंसा राज्य द्वारा प्रायोजित थी.

गोंसाल्वेस ने जोर देकर कहा कि पूरी तरह से सशस्त्र उग्रवादी संगठन हैं जो आदिवासियों को मार रहे हैं और वे एक न्यूज प्रोग्राम में आकर खुली चुनौती दे रहे हैं कि वे सब विनाश कर रख देंगे. गोंसाल्वेस ने कहा, " इस मामले में न कोई एफआईआर और न ही कोई कार्रवाई की गई. एक भी व्यक्ति गिरफ्तार नहीं किया गया और यहां तक कि न्यूज शो में आए व्यक्ति को भी गिरफ्तार नहीं किया गया."

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गौरतलब है कि शीर्ष अदालत के पास मणिपुर की स्थिति पर कई याचिकाएं हैं, जिनमें मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली एक सत्तारूढ़ भाजपा विधायक की याचिका और हिंसा की एसआईटी जांच के लिए एक आदिवासी गैर सरकारी संगठन की जनहित याचिका भी शामिल है. गैर सरकारी संगठनों में से एक, मणिपुर ट्राइबल फोरम ने मणिपुर में अल्पसंख्यक कुकी आदिवासियों के लिए सेना सुरक्षा और उन पर हमला करने वाले सांप्रदायिक समूहों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है. विस्तृत दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत 10 जुलाई को मामले की सुनवाई करने पर सहमत हो गई.

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