बेंगलुरु : कर्नाटक उच्च न्यायालय ने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर (Karnataka Hijab row) प्रतिबंध को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है. कोर्ट का कहना है कि हिजाब पहनना इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है (HC says wearing Hijab is not an essential religious practice of Islam). छात्र स्कूल यूनिफॉर्म पहनने से मना नहीं कर सकते हैं. उडुपी के एक प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज की छात्राओं के एक समूह की कक्षाओं में उन्हें हिजाब पहनने देने की मांग से तब एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया था जब कुछ हिंदू विद्यार्थी भगवा शॉल पहनकर पहुंच गये. यह मुद्दा राज्य के अन्य हिस्सों में फैल गया जबकि सरकार वर्दी संबंधी नियम पर अड़ी रही.उडुपी जिले से याचिकाकर्ता लड़कियों की ओर से पेश होने वाले वकीलों के अनुसार हिजाब मामले से जुड़े मामले को मंगलवार के लिए सूचीबद्ध किया गया था. हिजाब मामले पर हाईकोर्ट के फैसले को देखते हुए बेंगलुरु मे एक सप्ताह के लिए धारा 144 लागू कर दी गई है.
तीन जजों की बेंच ने सुनाया बड़ा फैसला
बता दें कि, छात्राओं ने स्कूल कॉलेजों में हिजाब पहनने पर बैन लगाने के सरकार के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का रुख किया था. इस पर 9 फरवरी को चीफ जस्टिस रितु राज अवस्थी, जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की बेंच का गठन किया गया था. छात्राओं ने अपनी याचिका में कहा था कि उन्हें क्लास के अंदर भी हिजाब पहनने की अनुमति दी जानी चाहिए, क्योंकि यह उनकी आस्था का हिस्सा है.
आज तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि स्कूल की वर्दी का नियम एक उचित पाबंदी है और संवैधानिक रूप से स्वीकृत है जिस पर छात्राएं आपत्ति नहीं उठा सकती हैं. मुख्य न्यायाधीश ऋतु राज अवस्थी, न्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित और न्यायमूर्ति जे एम खाजी की पीठ ने आदेश का एक अंश पढ़ते हुए कहा, हमारी राय है कि मुस्लिम महिलाओं का हिजाब पहनना इस्लाम धर्म में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है. पीठ ने यह भी कहा कि सरकार के पास पांच फरवरी 2022 के सरकारी आदेश को जारी करने का अधिकार है और इसे अवैध ठहराने का कोई मामला नहीं बनता है. इस आदेश में राज्य सरकार ने उन वस्त्रों को पहनने पर रोक लगा दी थी जिससे स्कूल और कॉलेज में समानता, अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था बाधित होती है.अदालत ने कॉलेज, उसके प्रधानाचार्य और एक शिक्षक के खिलाफ अनुशासनात्मक जांच शुरू करने का अनुरोध करने वाली याचिका भी खारिज कर दी गयी.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा, छात्रों को कोर्ट के फैसले का पालन करना चाहिए
दूसरी तरफ कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने स्कूल-कॉलेज में हिजाब प्रतिबंध और यूनिफॉर्म को बरकरार रखने वाले उच्च न्यायालय के फैसले की प्रशंसा की है. उन्होंने कहा कि बच्चों के लिए शिक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ नहीं है. छात्रों को कोर्ट के फैसले का पालन करना चाहिए. राज्य में शांति और व्यवस्था का होना जरूरी है. सभी जातियों और धर्मों को अदालत के आदेश का पालन करना चाहिए. इस शासनादेश के क्रियान्वयन में सभी बच्चों, अभिभावकों एवं शिक्षकों को सहयोग करना चाहिए. उन्होंने बच्चों को शिक्षा दिलाने में मदद की गुहार लगाई. उन्होंने सभी छात्रों को कक्षा और परीक्षा में भाग लेने की सलाह दी. वहीं, राज्य के गृह मंत्री अरग ज्ञानेंद्र ने भी कोर्ट के फैसले को उचित ठहराया है.
AIMIM सांसद इम्तियाज जलील ने कहा- कोर्ट का फैसला निराशाजनक
हिजाब पर कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के बाद हर तरफ प्रतिक्रियाएं सुनने को मिल रही हैं. एमआईएम सांसद इम्तियाज जलील ने कहा है कि हिजाब प्रतिबंध मुस्लिम लड़कियों को शिक्षा से वंचित करेगा. कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने वाले शख्स का AIMIM समर्थन करेगी. हिजाब को लेकर हाई कोर्ट का फैसला निराशाजनक है. जरूरी नहीं कि कोर्ट का फैसला सही हो. इसलिए अगर कोई सुप्रीम कोर्ट का रूख करेगा तो हम उसका समर्थन करेंगे.
याचिकाकर्ता के वकील फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे
वहीं हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता के वकील सिराजुद्दीन पाशा ने कहा कि वह फैसले को चुनौती देने के लिए दो दिनों के भीतर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. उन्होंने कहा कि हम हिजाब पर हाईकोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं. फैसला यह नहीं कहता कि हिजाब पहनना मौलिक अधिकार नहीं है. सिर्फ इतना कहा गया है कि स्कूलों और कॉलेजों की कक्षाओं के अंदर हिजाब नहीं पहनना चाहिए. स्कूल और कॉलेज परिसरों के अंदर पहना जा सकता है. उन्होंने कहा कि हम दो दिनों में सर्वोच्च न्यायालय में रिट फाइल करेंगे.
सुरक्षा के इंतजाम कड़े
कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले से पहले राज्यभर में सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए. गडग, कोप्पल, दावणगेरे कलबुर्गी, हासन , शिवामोगा, बेलगांव, चिक्कबल्लापुर, बेंगलुरु और धारवाड़ में धारा 144 लागू कर दी गई है. शिवामोगा में स्कूल कॉलेज बंद कर दिए गए हैं. उधर, हाईकोर्ट के जज के आवास की भी सुरक्षा बढ़ा दी गई है. बेंगलुरु के पुलिस आयुक्त कमल पंत ने सोमवार को निषेधाज्ञा जारी करते हुए 21 मार्च तक किसी भी सार्वजनिक स्थान पर किसी भी तरह के समारोहों, प्रदर्शनों और सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है. यह प्रतिबंध शहर में 15 मार्च से 21 मार्च के बीच 7 दिनों के लिए लगाया गया है. चूंकि इस मुद्दे में स्कूलों और कॉलेजों में वर्दी और उनके लागू किए जाने के संबंध में नियम शामिल हैं, इसलिए निर्णय सुनाए जाने के बाद विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है. पुलिस आयुक्त ने अपने आदेश में कहा कि शहर में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए निषेधाज्ञा जारी करना उचित है.
बता दें कि, उडुपी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज की छह छात्राओं को हिजाब पहनकर कक्षाओं में प्रवेश करने से रोक दिया गया था. छात्राओं ने इसका विरोध शुरू कर दिया और विरोध अन्य जिलों में भी फैल गया. यह एक बड़ा विवाद बन गया और यहां तक कि तनाव भी पैदा हो गया, क्योंकि कुछ हिंदू छात्राएं भगवा शॉल ओढ़कर कॉलेज आने लगीं. छात्राओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और मांग की कि उन्हें हिजाब पहनकर कक्षा में प्रवेश करने की अनुमति दी जाए. जब हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी किया कि स्कूलों और कॉलेजों में हिजाब या भगवा शॉल ओढ़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती, तब याचिकाकर्ताओं ने इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी. हालांकि, शीर्ष अदालत ने इस मामले पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ताओं से हाईकोर्ट से ही राहत मांगने को कहा था.