नई दिल्ली : संसद के आगामी मानसून सत्र में मुख्य मांग अडाणी मुद्दे पर जांच संयुक्त समिति गठित यानी जेपीसी से करने की होगी. इसको लेकर कांग्रेस के साथ एकजुट विपक्ष और मोदी सरकार के बीच एक नए टकराव का मंच तैयार हो गया है. बता दें कि कांग्रेस ने संसद के पिछले बजट सत्र के दौरान समान विचारधारा वाले 19 दलों का नेतृत्व किया था और इसी मुद्दे पर सरकार को घेरने में सफल रही थी.
हालांकि राहुल गांधी ने बाद में इस मुद्दे को लेकर पीएम मोदी पर हमला बोला था लेकिन उनके भाषण को लोकसभा के रिकॉर्ड से हटा दिया गया था. वहीं कांग्रेस ने बाद में आरोप लगाया था कि राहुल गांधी द्वारा पीएम को लेकर कठिन सवाल पूछने की वजह से सूरत की एक अदालत ने 2019 के पीएम के उपनाम मोदी से संबंधित आपराधिक मामले में उन्हें दोषी ठहराते हुए दो साल की जेल की सजा सुनाई थी. कांग्रेस ने यह भी आरोप लगाया था कि जिस तेजी से 23 मार्च को फैसला आया और राहुल को 24 मार्च को लोकसभा से अयोग्य घोषित किया गया, वह भाजपा की बदले की राजनीति को दर्शाता है.
इस संबंध में कांग्रेस के जनसंचार प्रभारी जयराम रमेश ( Congress communications in charge Jairam Ramesh) ने कहा कि अडाणी मामले में जेपीसी जांच की मांग को लेकर हम सभी एकजुट हैं. सभी विपक्षी दल मिलकर इस मांग को उठाएंगे. उन्होंने कहा कि वास्तव में यह अडाणी समूह के बारे में नहीं रह गया है, यह मोदानी मुद्दा बन गया है. पीएम ने अपने मित्र गौतम अडाणी का पक्ष लिया है और केवल एक जेपीसी ही पीएम मोदी और अडाणी समूह के बीच संबंधों की जांच कर सकती है. उन्होंने कहा कि आने वाला सत्र नए संसद भवन में होगा लेकिन मुख्य मुद्दा पुराना होगा.
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मोदानी महाघोटाला आपके घरेलू बजट को कैसे प्रभावित करता है? आपकी बचत को कैसे जोख़िम में डाला जा रहा है?
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इन सवालों के जवाब के लिए @dubeyamitabh द्वारा हम अडानी के हैं कौन सीरीज़ का हमारा पहला एपिसोड देखें।
अडानी महाघोटाले पर प्रधानमंत्री से पूछे गए सभी 100 सवाल यहां देखें:… https://t.co/OFDtzApOlL
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— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) June 1, 2023
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बता दें कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे 2024 के राष्ट्रीय चुनावों के लिए समान विचारधारा वाले दलों को फिर से संगठित करने की कोशिश कर रहे हैं, इसी क्रम में 12 जून को पटना में एक भव्य बैठक होने वाली है. वहीं जयराम रमेश के अनुसार पार्टी मोदी सरकार द्वारा अडाणी समूह को दिए गए कथित एहसानों का विरोध कर रही है और 'हम अडाणी के हैं कौन' श्रृंखला के तहत पार्टी ने 100 प्रश्न पूछे थे. इसी क्रम में गुरुवार को पार्टी ने एक पुस्तिका जारी की जिसमें उन विभिन्न उदाहरणों को सूचीबद्ध किया गया है जहां केंद्र ने कथित रूप से निजी व्यवसायी के पक्ष में नियमों को तोड़ा. रमेश ने कहा कि हमने फरवरी से इस मुद्दे पर 100 सवाल उठाए लेकिन पीएम द्वारा एक का भी जवाब नहीं दिया गया. हम पीएम से इस मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ने का आग्रह करते हैं. वे जेपीसी नियुक्त करने से क्यों डरते हैं, जिसमें भाजपा के सबसे अधिक सदस्य होंगे.
वहीं एआईसीसी के शोधकर्ता अमिताभ दुबे के अनुसार बुकलेट में अडाणी समूह के विदेशी शेल कंपनियों के साथ संबंध, अपने ईपीओ के लिए छोटे निवेशकों पर दबाव, चीन के चांग चुन लिंग के साथ संबंध जैसे विभिन्न वर्गों के तहत प्रश्नों को वर्गीकृत किया गया है. उन्होंने कहा कि समूह को हवाई अड्डों पर एकाधिकार प्राप्त हो रहा है और नियमों में बदलाव के जरिए बिजली उत्पादन, कृषि उपज और शहरी विकास परियोजनाओं में भी लाभ हो रहा है. दुबे ने कहा कि पुस्तिका में आगे उल्लेख किया गया है कि किस तरह समूह ने बांग्लादेश, श्रीलंका और इजराइल में निवेश किया. इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को नुकसान हुआ, छोटे निवेशकों को नुकसान होने के साथ ही किस तरह सरकार ने नियामक एजेंसियों पर नियमों को बदलने और समूह को लाभ पहुंचाने के लिए दबाव डाला.
रमेश ने हाल ही में अडाणी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ पैनल की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसने वित्तीय क्षेत्र के नियामक सेबी को क्लीन चिट दे दी थी. लेकिन अब यह सामने आया है कि सेबी विदेशी स्रोतों के माध्यम से फंडिंग से संबंधित एक नियम को बदलना चाहता है जो अडाणी समूह के पक्ष में था. उन्होंने कहा कि सेबी ने 2018 में नियम को हल्का कर दिया था और 2019 में इसे हटा दिया था. लेकिन अब एससी पैनल द्वारा एक संदर्भ दिए जाने के बाद इसे वापस लाना चाहता है.
उन्होंने कहा कि वही नियम पिछले 10 वर्षों से लागू था. अब सवाल यह है कि उक्त नियम को कमजोर करने और हटाने के पीछे कौन था. नियम हटाने का केवल एक ही लाभार्थी था, अडाणी समूह. कांग्रेस नेता ने कहा कि अब अगर सेबी नियम को वापस लाना चाहता है तो मुख्य चिंता यह है कि क्या यह पूर्वव्यापी प्रभाव से किया जाएगा और 2018 से विदेशी निवेश को कवर करेगा या यह केवल भविष्य के निवेश पर लागू होगा. मुझे लगता है कि इसे पूर्वव्यापी प्रभाव से किया जाना चाहिए. रमेश के अनुसार, 2018 में बदले गए सेबी के नियम ने नियामक को वास्तविक निवेशकों का पता लगाने की अनुमति दी, जो स्टॉक एक्सचेंज में निष्पक्ष खेल सुनिश्चित करने के लिए भारतीय कंपनियों में भारी पैसा लगा रहे थे.