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छह अप्रैल को मनाई जाएगी हनुमान जयंती, जानिए साल में दो बार क्यों आता है यह पर्व - हनुमान जयंती 2023

चैत्र माह में मनाई जाने वाली हनुमान जयंती का पर्व इस बार छह अप्रैल को मनाया जाएगा. आखिर इस पर्व की महत्ता क्या है, इससे जुड़ी कथाएं कौन सी हैं, चलिए जानते हैं इस बारे में.

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Published : Apr 3, 2023, 7:20 PM IST

वाराणसी: अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता. जी हां, संकट हरण और महादेव के 11वें रुद्र अवतार हनुमान जी की जयंती का पर्व 6 अप्रैल को मनाया जाएगा. इस बार हनुमान जयंती का पर्व अद्भुत संयोग के साथ मनाया जाएगा. आप सोच रहे होंगे कि आखिर हनुमान जयंती साल में दो बार क्यों मनाई जाती है. हले चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को और दूसरी कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को. क्या है इसके पीछे धार्मिक पक्ष और हनुमान जयंती का अलग-अलग महत्व. चलिए जानते हैं.

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साल में दो बार मनाया जाता है हनुमान जयंती का पर्व.

इस बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री ने बताया कि किसी भी देवता की जन्मतिथि अक्सर एक ही मानी जाती है इसे लेकर एक कल्प भेद है. जिसमें एक कथा है इस कथा में दो पहलू हैं किसी में हनुमान जी का जन्म दिवस कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी को कहा जाता है और किसी में चैत्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को लेकिन रामायण और बाल्मीकि रामायण का अध्ययन करने पर भगवान हनुमान का जन्मदिवस कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मंगलवार के दिन बताया जाता है, लेकिन हनुमंत उपसना कलपत्र नामक एक ग्रंथ है जिसमें उनका जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है.

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चैत्र माह की हनुमान जयंती छह अप्रैल को मनाई जाएगी.



पंडित दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री का कहना है कि हनुमान जयंती साल में दो बार क्यों मनाते हैं? यह सवाल बहुत लोगों के मन में उठता है इसके पीछे पौराणिक कथा है. इस कथा के अनुसार, एक तिथि विजय अभिनन्दन महोत्सव तो दूसरी तिथि उनके जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है. पहली कथा अनुसार, जब बाल हनुमान सूर्य को आम समझ कर उसे खाने के लिए आकाश में उड़ने लगे थे, तब राहु भी सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहते थे, लेकिन, सूर्यदेव ने हनुमानजी को देखकर उन्हें दूसरा राहु समझ लिया था. यह घटना चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि पर हुई थी तभी से इस दिन हनुमान जयंती मनाने की परंपरा शुरू हुई. अन्य कथा के अनुसार हनुमान जी की भक्ति और समर्पण को देखकर सीता माता ने उन्हें अमरता का वरदान दिया था. इस दिन नरक चतुर्दशी थी. इस तरह साल में दूसरी हनुमान जयंती दिवाली से एक दिन पहले भी मनाई जाती है. हनुमान जयन्ती एक हिन्दू पर्व है. यह चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला पर्व इस वर्ष 6 अप्रैल को मनाया जाएगा. इस दिन हनुमान जी का जन्म हुआ था यह भी माना जाता है. हनुमान जी को कलयुग में सबसे प्रभावशाली देवताओं में से एक माना जाता है.

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हनुमान जयंती को लेकर मंदिरों में तैयारियां पूरीं.

वहीं, ज्योतिषाचार्य विमल जैन का कहना है कि वानरराज केसरी और माता अंजनीदेवी के पुत्र भगवान् श्री हनुमान जी का जन्म महोत्सव वर्ष में दो बार मनाने को पौराणिक मान्यता है. प्रथम चैत्र शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि तथा द्वितीय कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन मनाया जाता है. हनुमद जन्मोत्सव के पर्व पर हनुमान जी को भक्तिभाव, श्रद्धा व आस्था के साथ पूजा-अर्चना करने का विधान है. इस बार चैत्र शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि बुधवार, 5 अप्रैल को प्रातः 9 बजकर 20 मिनट पर लगेगी, जो कि गुरुवार, 6 अप्रैल को प्रातः 10 बजकर 05 मिनट तक रहेगी. पूर्णिमा तिथि के दिन हस्त नक्षत्र का सुयोग बनेगा. हस्त नक्षत्र बुधवार, 5 अप्रैल का दिन में 11 बजकर 23 मिनट से गुरुवार, 6 अप्रैल को दिन में 12 बजकर 42 मिनट तक रहेगा. व्रत की पूर्णिमा का अनुष्ठान बुधवार 5 अप्रैल को होगा. वहीं, स्नान-दान की पूर्णिमा गुरुवार 6 अप्रैल को होगा.

इस बार गुरुवार 6 अप्रैल को चित्रा नक्षत्र दिन में 12 बजकर 42 मिनट से शुक्रवार, 7 अप्रैल को दिन में 1 बजकर 33 मिनट तक रहेगा. चित्रा नक्षत्रयुक्त चैत्र पूर्णिमा की विशेष महिमा है. हनुमान जन्मोत्सव का पावन पर्व गुरुवार, 6 अप्रैल को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा. इस दिन पूर्ण श्रद्धा, आस्था व विश्वास के साथ व्रत उपवास रखकर श्रीहनुमान जी की पूजा-अर्चना करने से जीवन में वैभव, सुख, समृद्धि, खुशहाली का सुयोग बनता है.

पूजा का विधान
ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में अपने दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए. इसके बाद अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए तथा हनुमान जी के विग्रह को चमेली के तेल या शुद्ध देशी घी एवं सिन्दूर से श्रृंगारित करके विभिन्न पुष्पों व तुलसी दल की माला से सुशोभित करना चाहिए. इस प्रकार हनुमानजी को चोला चढ़ाकर उनको नैवेद्य में बेसन व बूंदी का लड्डू पेड़ा एवं अन्य मिशन व भींगा हुआ चना, गुण तथा नारियल एवं ऋतुफल आदि अर्पित कर तत्पश्चात् धूप-दीप के साथ उनको विधि-विधानपूर्वक पूजा अर्चना करके श्रीहनुमानजी की आरती करनी चाहिए.

भगवान हनुमान जी की विशेष अनुकम्पा की प्राप्ति के लिए 'ॐ श्री हनुमते नमः' मन्त्र का जप तथा रात्रि जागरण करना, उनकी महिमा में विभिन्न स्तुतियां, श्री हनुमान चालीसा श्री सुंदरकांड, श्री हनुमत् सहस्रनाम श्रीहनुमत् वडवानल स्तोत्र तथा चाहिए. श्रारामचरित मानस का पाठ करना शुभ फलकारी माना गया है. साथ ही श्रीहनुमानजी से संबंधित मंत्रों का जप आदि करना लाभकारी रहता है. इस दिन व्रत रखकर भगवान श्री हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त की जा सकती है. पौराणिक मान्यता- ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि हनुमान जी के विराट स्वरूप में इन्द्रदेव, सूर्यदेव, यमदेव, ब्रह्मदेव, विश्वकर्मा जी एवं ब्रह्मा जी की शक्ति समाहित है. शिवमहापुराण के अनुसार पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, सूर्य, चंद्रमा, अग्नि व यजमान ये आठ रूप शिवजी के प्रत्यक्ष रूप बतलाए गए हैं. हनुमान जी ब्रह्म स्वरूप भगवान शिव के ग्यारहवें अंश के रूद्रावतार भी माने गये हैं. श्रीहनुमान जी को अमरत्व का वरदान प्राप्त है.

ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि एकाक्षर कोश के मतानुसार हनुमान शब्द का अर्थ है- 'ह' शिव, आनन्द, आकाश एवं जल 'नु' पूजन और प्रशंसा 'मा' श्रीलक्ष्मी और श्रीविष्णु, 'न' बल और वीरता, भक्त शिरोमणि हनुमान जी अखण्ड जितेन्द्रियता, अतुलित बलधामता, ज्ञानियों में अग्रणी आदि अलौकिक गुणों से सम्पन्न होने के कारण देवकोटि में माने जाते हैं. हनुमान जी को अपना रूप बड़े से बड़ा तथा छोटे से छोटा करने की महासिद्धि प्राप्त है. ऐसा माना जाता है कि हनुमान जो आकाश यान से भी तेज गति से उड़ने की क्षमता रखते है.

जिन्हें जन्मकुण्डली के अनुसार शनिग्रह की दशा, महादशा अथवा अन्तर्दशा का प्रभाव हो तथा शनिग्रह की अदैया या साढ़ेसाती का प्रभाव हो, उन्हें हनुमान जी की विशेष पूजा-अर्चना करनी चाहिए. साथ ही व्रत भी रखना चाहिए. इस दिन व्रत रखने से भगवान हनुमान जी की विशेष कृपा तो मिलती ही है साथ ही सर्वसंकटों का निवारण होता है, जैसा कि हनुमान चालीसा में वर्णित है. संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलवीरा. ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी अपने भक्तों को शुभ मंगलकल्याण का आशीर्वाद प्रदान करते हैं, जिससे उनके जीवन में सुख-समृद्धि का सुयोग बना रहता है.

ये भी पढ़ेंः Bal Bharat : ईटीवी नेटवर्क के बाल भारत चैनल के खजाने में है काफी कुछ, तो देखना न भूलें

वाराणसी: अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता. जी हां, संकट हरण और महादेव के 11वें रुद्र अवतार हनुमान जी की जयंती का पर्व 6 अप्रैल को मनाया जाएगा. इस बार हनुमान जयंती का पर्व अद्भुत संयोग के साथ मनाया जाएगा. आप सोच रहे होंगे कि आखिर हनुमान जयंती साल में दो बार क्यों मनाई जाती है. हले चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को और दूसरी कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को. क्या है इसके पीछे धार्मिक पक्ष और हनुमान जयंती का अलग-अलग महत्व. चलिए जानते हैं.

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साल में दो बार मनाया जाता है हनुमान जयंती का पर्व.

इस बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री ने बताया कि किसी भी देवता की जन्मतिथि अक्सर एक ही मानी जाती है इसे लेकर एक कल्प भेद है. जिसमें एक कथा है इस कथा में दो पहलू हैं किसी में हनुमान जी का जन्म दिवस कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी को कहा जाता है और किसी में चैत्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को लेकिन रामायण और बाल्मीकि रामायण का अध्ययन करने पर भगवान हनुमान का जन्मदिवस कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मंगलवार के दिन बताया जाता है, लेकिन हनुमंत उपसना कलपत्र नामक एक ग्रंथ है जिसमें उनका जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है.

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चैत्र माह की हनुमान जयंती छह अप्रैल को मनाई जाएगी.



पंडित दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री का कहना है कि हनुमान जयंती साल में दो बार क्यों मनाते हैं? यह सवाल बहुत लोगों के मन में उठता है इसके पीछे पौराणिक कथा है. इस कथा के अनुसार, एक तिथि विजय अभिनन्दन महोत्सव तो दूसरी तिथि उनके जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है. पहली कथा अनुसार, जब बाल हनुमान सूर्य को आम समझ कर उसे खाने के लिए आकाश में उड़ने लगे थे, तब राहु भी सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहते थे, लेकिन, सूर्यदेव ने हनुमानजी को देखकर उन्हें दूसरा राहु समझ लिया था. यह घटना चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि पर हुई थी तभी से इस दिन हनुमान जयंती मनाने की परंपरा शुरू हुई. अन्य कथा के अनुसार हनुमान जी की भक्ति और समर्पण को देखकर सीता माता ने उन्हें अमरता का वरदान दिया था. इस दिन नरक चतुर्दशी थी. इस तरह साल में दूसरी हनुमान जयंती दिवाली से एक दिन पहले भी मनाई जाती है. हनुमान जयन्ती एक हिन्दू पर्व है. यह चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला पर्व इस वर्ष 6 अप्रैल को मनाया जाएगा. इस दिन हनुमान जी का जन्म हुआ था यह भी माना जाता है. हनुमान जी को कलयुग में सबसे प्रभावशाली देवताओं में से एक माना जाता है.

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हनुमान जयंती को लेकर मंदिरों में तैयारियां पूरीं.

वहीं, ज्योतिषाचार्य विमल जैन का कहना है कि वानरराज केसरी और माता अंजनीदेवी के पुत्र भगवान् श्री हनुमान जी का जन्म महोत्सव वर्ष में दो बार मनाने को पौराणिक मान्यता है. प्रथम चैत्र शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि तथा द्वितीय कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन मनाया जाता है. हनुमद जन्मोत्सव के पर्व पर हनुमान जी को भक्तिभाव, श्रद्धा व आस्था के साथ पूजा-अर्चना करने का विधान है. इस बार चैत्र शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि बुधवार, 5 अप्रैल को प्रातः 9 बजकर 20 मिनट पर लगेगी, जो कि गुरुवार, 6 अप्रैल को प्रातः 10 बजकर 05 मिनट तक रहेगी. पूर्णिमा तिथि के दिन हस्त नक्षत्र का सुयोग बनेगा. हस्त नक्षत्र बुधवार, 5 अप्रैल का दिन में 11 बजकर 23 मिनट से गुरुवार, 6 अप्रैल को दिन में 12 बजकर 42 मिनट तक रहेगा. व्रत की पूर्णिमा का अनुष्ठान बुधवार 5 अप्रैल को होगा. वहीं, स्नान-दान की पूर्णिमा गुरुवार 6 अप्रैल को होगा.

इस बार गुरुवार 6 अप्रैल को चित्रा नक्षत्र दिन में 12 बजकर 42 मिनट से शुक्रवार, 7 अप्रैल को दिन में 1 बजकर 33 मिनट तक रहेगा. चित्रा नक्षत्रयुक्त चैत्र पूर्णिमा की विशेष महिमा है. हनुमान जन्मोत्सव का पावन पर्व गुरुवार, 6 अप्रैल को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा. इस दिन पूर्ण श्रद्धा, आस्था व विश्वास के साथ व्रत उपवास रखकर श्रीहनुमान जी की पूजा-अर्चना करने से जीवन में वैभव, सुख, समृद्धि, खुशहाली का सुयोग बनता है.

पूजा का विधान
ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में अपने दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए. इसके बाद अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए तथा हनुमान जी के विग्रह को चमेली के तेल या शुद्ध देशी घी एवं सिन्दूर से श्रृंगारित करके विभिन्न पुष्पों व तुलसी दल की माला से सुशोभित करना चाहिए. इस प्रकार हनुमानजी को चोला चढ़ाकर उनको नैवेद्य में बेसन व बूंदी का लड्डू पेड़ा एवं अन्य मिशन व भींगा हुआ चना, गुण तथा नारियल एवं ऋतुफल आदि अर्पित कर तत्पश्चात् धूप-दीप के साथ उनको विधि-विधानपूर्वक पूजा अर्चना करके श्रीहनुमानजी की आरती करनी चाहिए.

भगवान हनुमान जी की विशेष अनुकम्पा की प्राप्ति के लिए 'ॐ श्री हनुमते नमः' मन्त्र का जप तथा रात्रि जागरण करना, उनकी महिमा में विभिन्न स्तुतियां, श्री हनुमान चालीसा श्री सुंदरकांड, श्री हनुमत् सहस्रनाम श्रीहनुमत् वडवानल स्तोत्र तथा चाहिए. श्रारामचरित मानस का पाठ करना शुभ फलकारी माना गया है. साथ ही श्रीहनुमानजी से संबंधित मंत्रों का जप आदि करना लाभकारी रहता है. इस दिन व्रत रखकर भगवान श्री हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त की जा सकती है. पौराणिक मान्यता- ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि हनुमान जी के विराट स्वरूप में इन्द्रदेव, सूर्यदेव, यमदेव, ब्रह्मदेव, विश्वकर्मा जी एवं ब्रह्मा जी की शक्ति समाहित है. शिवमहापुराण के अनुसार पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, सूर्य, चंद्रमा, अग्नि व यजमान ये आठ रूप शिवजी के प्रत्यक्ष रूप बतलाए गए हैं. हनुमान जी ब्रह्म स्वरूप भगवान शिव के ग्यारहवें अंश के रूद्रावतार भी माने गये हैं. श्रीहनुमान जी को अमरत्व का वरदान प्राप्त है.

ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि एकाक्षर कोश के मतानुसार हनुमान शब्द का अर्थ है- 'ह' शिव, आनन्द, आकाश एवं जल 'नु' पूजन और प्रशंसा 'मा' श्रीलक्ष्मी और श्रीविष्णु, 'न' बल और वीरता, भक्त शिरोमणि हनुमान जी अखण्ड जितेन्द्रियता, अतुलित बलधामता, ज्ञानियों में अग्रणी आदि अलौकिक गुणों से सम्पन्न होने के कारण देवकोटि में माने जाते हैं. हनुमान जी को अपना रूप बड़े से बड़ा तथा छोटे से छोटा करने की महासिद्धि प्राप्त है. ऐसा माना जाता है कि हनुमान जो आकाश यान से भी तेज गति से उड़ने की क्षमता रखते है.

जिन्हें जन्मकुण्डली के अनुसार शनिग्रह की दशा, महादशा अथवा अन्तर्दशा का प्रभाव हो तथा शनिग्रह की अदैया या साढ़ेसाती का प्रभाव हो, उन्हें हनुमान जी की विशेष पूजा-अर्चना करनी चाहिए. साथ ही व्रत भी रखना चाहिए. इस दिन व्रत रखने से भगवान हनुमान जी की विशेष कृपा तो मिलती ही है साथ ही सर्वसंकटों का निवारण होता है, जैसा कि हनुमान चालीसा में वर्णित है. संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलवीरा. ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी अपने भक्तों को शुभ मंगलकल्याण का आशीर्वाद प्रदान करते हैं, जिससे उनके जीवन में सुख-समृद्धि का सुयोग बना रहता है.

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