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केंद्र और राज्य सरकारें मिल कर इच्छाशक्ति दिखाएं तो संभव है एमएसपी गारंटी : रामपाल जाट - कृषि कानून वापस

किसान नेताओं का मानना है कि प्रधानमंत्री को एमएसपी पर कमेटी बनाकर चर्चा करने की बजाय इस पर कानून बनाने की सीधे घोषणा करनी चाहिए थी. यदि ऐसा होता तो किसान अब तक घर लौटने का निर्णय ले चुके होते. 'ईटीवी भारत' संवाददाता अभिजीत ठाकुर ने एमएसपी के मुद्दे पर किसान नेता रामपाल जाट से विशेष बातचीत की है. जानिए उन्होंने क्या कहा.

Farmer leader Rampal Jat-Etv Bharat
किसान नेता रामपाल जाट- ईटीवी भारत
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Published : Nov 25, 2021, 8:16 PM IST

नई दिल्ली : किसानों के आंदोलन को एक वर्ष पूरे हो रहे हैं. किसान संगठनों में तीन कृषि कानूनों की वापसी पर खुशी है लेकिन एमएसपी गारंटी (MSP Guarantee) कानून अब तक न बन पाने से निराशा भी है. एमएसपी (MSP) को लेकर किताब लिख चुके और कई आंदोलन में शामिल रहे किसान नेता रामपाल जाट (
Farmer leader Rampal Jat) का कहना है कि दो वर्ष पहले इसी विषय में नीति आयोग ने एक बैठक बुलाई थी जिसमें वह मौजूद थे.

किसान नेता रामपाल जाट से खास बातचीत

उनके मुताबिक नीति आयोग का कहना था कि क्या वह इसमें प्राइवेट सेक्टर को शामिल कर सकते हैं. जिस पर उन्होंने कहा था कि उन्हें जरूर शामिल किया जाना चाहिए. वह किसानों का पक्ष जानना चाहते थे और उन्हें सकारात्मक जवाब दिया गया.

रामपाल का कहना है कि वर्ष 2017 में कृषि उपज मंडी एवं पशुपालन अधिनियम 2017 का प्रारूप तैयार किया गया था. इसके प्रावधान में सभी राज्यों से कहा गया था कि वह एमएसपी से कम दामों में क्रय विक्रय को रोकने के लिए अपने अपने राज्यों में प्रावधान करें. ऐसे में सरकारी खरीद की इतनी आवश्यकता नहीं रहेगी. यदि नीलामी बोली ही मंडियों में एमएसपी से शुरू होगी तो खरीद का झंझट कम हो जाएगा.

रामपाल जाट का कहना है कि ये काम केंद्र खुद करे या राज्यों से साथ मिल कर करे, लेकिन यह आवश्यकता है कि किसानों को उनकी उपज का उचित दाम मिलना ही चाहिए. देश में किसानों की आत्महत्या का दौर रोकने के लिए ये बेहद जरूरी है.

'चुनाव के समय ही किसानों के साथ खड़े होते हैं नेता'
किसान नेता रामपाल जाट का कहना है कि सरकार की इच्छाशक्ति और प्राथमिकता पर किसान नहीं हैं. राजनेता कृषि क्षेत्र से तभी तक काम लेते हैं जब तक वह सत्ता में नहीं आ जाते. चुनाव से पहले किसान के साथ खड़े रहना और जैसे ही सत्ता में आए तो अपनी बात से पलट जाना उनकी आदत में शुमार है. इस कारण से किसान वरीयता में नीचे चले जाते हैं और इस तरह के कानून नहीं बन पाते हैं. नहीं तो 2017 में जो बिल केंद्र सरकार ने तैयार किया आज उसके चार वर्ष पूरे होने वाले हैं लेकिन अब तक वह धरातल पर नहीं आ सका, इससे बुरी स्थिति और क्या हो सकती है?
रामपाल जाट मानते हैं कि सरकार को कृषि कानून वापस लेने से पहले एमएसपी पर कानून बनाने की बात करनी चाहिए थी. उनका कहना है कि जब केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सितंबर 2020 में उन्हें वार्ता के लिए बुलाया था तब उन्होंने सुझाव दिया था कि इन कानूनों के साथ एक एमएसपी का प्रावधान भी जोड़ देना चाहिए. ऐसा करने से किसानों को कोई समस्या नहीं रहेगी. यदि वह बात मान लेते तो आज सरकार को इतना भुगतना नहीं पड़ता. आंदोलन के नाम पर इतने किसानों की मौत नहीं होती.

पढ़ें- CM रहते MSP पर कानून के पक्षधर थे नरेंद्र मोदी, अब संसद से बनाएं कानून : किसान नेता वीएम सिंह

गौरतलब है कि रामपाल जाट उस राष्ट्रीय किसान मोर्चा के हिस्सा भी हैं जिसने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर यह मांग की थी कि यदि वह एमएसपी गारंटी कानून लाने की बात करें तो तीन कृषि कानूनों में कुछ संशोधन के साथ 100 से ज्यादा किसान संगठन इसका स्वागत करेंगे. हालांकि तब सरकार की तरफ से न तो उन्हें वार्ता के लिए ही बुलाया गया न उनके ज्ञापन का ही जवाब दिया गया था.

कृषि कानूनों को वापस लेने से जुड़ी खबरें-

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Farmer leader Rampal Jat) का कहना है कि दो वर्ष पहले इसी विषय में नीति आयोग ने एक बैठक बुलाई थी जिसमें वह मौजूद थे.

किसान नेता रामपाल जाट से खास बातचीत

उनके मुताबिक नीति आयोग का कहना था कि क्या वह इसमें प्राइवेट सेक्टर को शामिल कर सकते हैं. जिस पर उन्होंने कहा था कि उन्हें जरूर शामिल किया जाना चाहिए. वह किसानों का पक्ष जानना चाहते थे और उन्हें सकारात्मक जवाब दिया गया.

रामपाल का कहना है कि वर्ष 2017 में कृषि उपज मंडी एवं पशुपालन अधिनियम 2017 का प्रारूप तैयार किया गया था. इसके प्रावधान में सभी राज्यों से कहा गया था कि वह एमएसपी से कम दामों में क्रय विक्रय को रोकने के लिए अपने अपने राज्यों में प्रावधान करें. ऐसे में सरकारी खरीद की इतनी आवश्यकता नहीं रहेगी. यदि नीलामी बोली ही मंडियों में एमएसपी से शुरू होगी तो खरीद का झंझट कम हो जाएगा.

रामपाल जाट का कहना है कि ये काम केंद्र खुद करे या राज्यों से साथ मिल कर करे, लेकिन यह आवश्यकता है कि किसानों को उनकी उपज का उचित दाम मिलना ही चाहिए. देश में किसानों की आत्महत्या का दौर रोकने के लिए ये बेहद जरूरी है.

'चुनाव के समय ही किसानों के साथ खड़े होते हैं नेता'
किसान नेता रामपाल जाट का कहना है कि सरकार की इच्छाशक्ति और प्राथमिकता पर किसान नहीं हैं. राजनेता कृषि क्षेत्र से तभी तक काम लेते हैं जब तक वह सत्ता में नहीं आ जाते. चुनाव से पहले किसान के साथ खड़े रहना और जैसे ही सत्ता में आए तो अपनी बात से पलट जाना उनकी आदत में शुमार है. इस कारण से किसान वरीयता में नीचे चले जाते हैं और इस तरह के कानून नहीं बन पाते हैं. नहीं तो 2017 में जो बिल केंद्र सरकार ने तैयार किया आज उसके चार वर्ष पूरे होने वाले हैं लेकिन अब तक वह धरातल पर नहीं आ सका, इससे बुरी स्थिति और क्या हो सकती है?
रामपाल जाट मानते हैं कि सरकार को कृषि कानून वापस लेने से पहले एमएसपी पर कानून बनाने की बात करनी चाहिए थी. उनका कहना है कि जब केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सितंबर 2020 में उन्हें वार्ता के लिए बुलाया था तब उन्होंने सुझाव दिया था कि इन कानूनों के साथ एक एमएसपी का प्रावधान भी जोड़ देना चाहिए. ऐसा करने से किसानों को कोई समस्या नहीं रहेगी. यदि वह बात मान लेते तो आज सरकार को इतना भुगतना नहीं पड़ता. आंदोलन के नाम पर इतने किसानों की मौत नहीं होती.

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गौरतलब है कि रामपाल जाट उस राष्ट्रीय किसान मोर्चा के हिस्सा भी हैं जिसने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर यह मांग की थी कि यदि वह एमएसपी गारंटी कानून लाने की बात करें तो तीन कृषि कानूनों में कुछ संशोधन के साथ 100 से ज्यादा किसान संगठन इसका स्वागत करेंगे. हालांकि तब सरकार की तरफ से न तो उन्हें वार्ता के लिए ही बुलाया गया न उनके ज्ञापन का ही जवाब दिया गया था.

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