वाराणसी : बनारसी साड़ी हर महिला की पहली पसंद होती है. ये साड़ियां पार्टियों और शादी-विवाह में चार चांद लगा देती हैं, लेकिन इनके दुष्प्रभाव भी हैं. इनसे बड़ा नुकसान भी हो रहा है. बनारसी साड़ियों को बनाने वाली लगभग 35 फैक्ट्रियां पवित्र गंगा नदी में जहर घोल रहीं हैं. सरकार गंगा के निर्मलीकरण के लिए तमाम कोशिशें कर रही है, वहीं ये फैक्ट्रियां इसमें बाधक बन रहीं हैं. पॉल्यूशन बोर्ड की एक नोटिस ने चौंकाने वाला खुलासा किया है.
गंगा में पहुंच रहा दूषित पानी : सोचिए, किसी दिन आपका बच्चा बीमार हो जाए, उसे अस्पताल लेकर जाना पड़े. डॉक्टर की जांच में पता चले कि बच्चे के ऑर्गन्स खराब हो रहे हैं. इसके पीछे की वजह फैक्ट्रियों से निकलने वाला गंदा पानी बने तो आप हैरान हो जाएंगे. हालात अब कुछ ऐसे ही बनने लगे हैं. हमारे बीच चल रहीं फैक्ट्रियां वातावरण और पानी में जहर घोलने का काम कर रहीं हैं. लगभग 35 फैक्ट्रियां गंगा में जहर घोलने का काम कर रही हैं. भदोही, रामनगर, गाजीपुर और चांदपुर में चल रहीं फैक्ट्रियों से दूषित पानी निकल रहा है. यह सीधे सीवर के जरिए या फिर अप्रत्यक्ष तरीके से गंगा में बहाया जा रहा है.
कई फैक्ट्रियां को नोटिस जारी : पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की नोटिस के बाद चौंकाने वाली जानकारी सामने आई. इन फैक्ट्रियों पर आरोप है कि इनमें साड़ियों और कालीन को रंगने का काम हो रहा है. इसका केमिकल युक्त पानी सीवर के जरिए गंगा में बहाया जा रहा है. विभाग के मुताबिक भदोही की 15, रामनगर की 5, गाजीपुर की 10 और चांदपुर की 5 फैक्ट्रियां इसमें शामिल हैं. इनके खिलाफ नोटिस जारी किया गया है.
टेस्टिंग में गंगा के पानी में मिले जहरीले तत्व : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के गंगा वैज्ञानिक प्रो. बीडी त्रिपाठी कहते हैं कि 'गंगा में जांच के दौरान जो हैवी मेटल्स क्रोमियम, लेड क्रोमियम, निकिल पाए गए हैं. ये शहर के सीवरेज में नहीं होते हैं. इसका मतलब है कि सीवरेज में शहर में कारखानों से निकला हुआ गंदा पदार्थ मिला हुआ है. क्रोमियम, लेड क्रोमियम, निकिल ये पदार्थ टेस्टिंग में मिले हैं. ये सारे पदार्थ गंगा में आखिर आए कहां से? ये कारखाने ही इसके स्रोत हैं. जो छोटे-छोटे कारखाने हैं, जैसे साड़ियों की डाइंग, कालीन की फैक्ट्रियां हैं, इन सभी के पास ट्रीटमेंट प्लांट नहीं हैं. ये लोग घर में ही डाइंग का काम कर रहे हैं.'
पॉल्यूशन बोर्ड ने दिए ईटीपी लगाने के आदेश : पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक भदोही, गाजीपुर के अलावा वाराणसी के आसपास कई ऐसी फैक्ट्रियां हैं जो बिना ईटीपी के चल रहीं हैं. बोर्ड के नियमों के मुताबिक वाटर पॉल्यूटिंग फैक्ट्रियों में इक्वीपमेंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) लगाना जरूरी है. भदोही में कई फैक्ट्रियों में कालीन बनाने और साड़ियों को रंगने का काम होता है. इन फैक्ट्रियों के पास वाटर ट्रीटमेंट प्लांट नहीं हैं. ऐसे में फैक्ट्रियों और कारखानों से निकलने वाला पानी सीधे गंगा में बहा दिया जाता है. ऐसे में पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने भदोही, गाजीपुर, रामनगर और चांदपुर की लगभग 35 ऐसी फैक्ट्रियों को नोटिस देकर ईटीपी लगाने के आदेश दिया है. ईटीपी न लगाने पर फैक्ट्री सीज कर दी जाएगी.
अवैध फैक्ट्रियां खत्म कर देंगी गंगा की गुणवत्ता : कारखाना चला रहे घरों और फैक्ट्रियों से निकल रहा गंदा पानी सीवर के माध्यम से छोड़ा जा रहा है. ये पानी गंगा में जा रहा है. इसके लिए पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को भी कहा गया था कि इसकी जांच कराकर गंगा में पानी छोड़ने से रोका जाए. कुछ साल पहले ही गंगा के पानी की जांच की गई थी. इसी दौरान गंगा के पानी में जहरीले तत्व मिले थे. ये जहरीले तत्व गंगा की गुणवत्ता को ही खत्म कर देंगे. ऐसे में पानी में जाने वाले जीव-जन्तुओं को भी इससे नुकसान पहुंच रहा है. गंगा वैज्ञानिक प्रो. बीडी त्रिपाठी ने कहा कि गंगा का पानी ऐसे ही दूषित होता रहा तो आने वाले समय में काफी नुकसान झेलना पड़ सकता है.
ईटीपी लगाने के लिए फैक्ट्रियों को 15 दिन का समय : पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की तरफ से जिन फैक्ट्रियों को नोटिस दिया जाता है उन्हें 15 दिन का समय दिया जाता है. अगर ये फैक्ट्रियां इक्वीपमेंट ट्रीटमेंट प्लांट नहीं लगवाती हैं तो बोर्ड इन फैक्ट्रियों को सीज करने की कार्रवाई कर सकता है. अब तक की कार्रवाई में विभाग ने कई फैक्ट्रियों को सीज भी कर दिया है. प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी एसके पांडेय का कहना है कि अवैध फैक्ट्रियों में इस तरह के काम अधिक होते हैं. ऐसी फैक्ट्रियों को नोटिस जारी किया जाता है. इसके बाद भी अगर वे इस काम को बंद नहीं करते हैं तो फैक्ट्रियों को सीज करने की कार्रवाई की जाती है
गौर करने वाली बातें : नदी का दूषित पानी जमीन के जरिए पीने के पानी में घुल सकता है. ऐसे में पानी पीने वालों की सेहत खराब हो सकती है. वाराणसी में अवैध फैक्ट्रियां गंगा नदी की गुणवत्ता को खत्म करने का काम कर रहीं हैं. साड़ियों और कालीन की रंगाई करने वाले कारखाने गंगा में केमिकल युक्त पानी छोड़ रहे हैं. गंगा में जांच के दौरान क्रोमियम, लेड क्रोमियम, निकिल जैसे हैवी मेटल्स पाए गए हैं.
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