नई दिल्ली: मणिपुर में जातीय हिंसा को लेकर राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप (आरआरएजी) ने सोमवार को कहा कि राज्य में गृहयुद्ध जैसे हालात हैं. इससे पूर्वोत्तर में लोगों के बीच अशांति और असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो गई. मेइती लोगों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने के मुद्दे पर मणिपुर के ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन की ओर से 3 मई 23 से विरोध प्रदर्शन शुरू किया गया था.
आरआरएजी की ओर से कहा गया कि राज्य में अब तक कम से कम 120 लोग मारे गए हैं, जबकि लगभग 70,000 लोग विस्थापित हुए हैं. इनमें 50,698 लोग मणिपुर के राहत शिविरों में रह रहे हैं जबकि 12,000 से अधिक लोग मिजोरम भाग गए. इसी तरह 3,000 लोग असम चले गए और 1,000 से अधिक लोग मेघालय भाग गए. हजारों विस्थापितों ने राहत शिविरों में शरण नहीं ली है.
आरआरएजी के निदेशक सुहास चकमा ने कहा, 'जो कुकी दूसरे राज्यों में भाग गए हैं उन्हें मेघालय जैसे स्थानीय समूहों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि मणिपुर में स्थिति में मामूली सुधार हुआ है जैसा कि 2 जुलाई को 10 लोगों की हत्या से पता चलता है. ऐसे में अधिकांश विस्थापित लोगों के अपने मूल घरों में लौटने की संभावना बहुत कम है.
चकमा ने आगे कहा कि मणिपुर में दंगों द्वारा उत्तर पूर्व की क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा को अस्थिर करने की घटना उत्तर पूर्व के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुई. जैसा कि पिछले दिनों 4,000 से अधिक हथियारों और पांच लाख (5,00,000) गोला-बारूद की कथित लूट हुई. हथियारों की लूट और नागरिकों को हथियार देने, अगस्त 2008 से 23 भूमिगत संगठनों के साथ ऑपरेशन निलंबन समझौतों को लागू करने में विफल होने को लेकर किसी की जिम्मेदारी तय नहीं की गई. साथ ही 6 मई को अनुच्छेद 355 को लागू कर दिया गया बावजूद इसके स्थिति को नियंत्रण में नहीं लाया जा सका.
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आरआरएजी ने कहा कि राज्य सरकार के द्वारा स्थिति को नियंत्रण में लाने में विफल होने की स्थिति में अनुच्छेद 356 को लागू करने की आवश्यकता है. आरआरएजी ने चेतावनी देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री बीरेन सिंह और गृह मंत्रालय द्वारा उठाए गए कदम केवल विभाजन को बढ़ावा देता है. दंगों में मेइतेई और कुकी के विद्रोही समूहों की भागीदारी से उत्तर पूर्वी क्षेत्र में उग्रवाद फैलने और क्षेत्र को अस्थिर करने की क्षमता है.