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Indian Military Academy: 90 साल का सफर, 63 हजार 768 युवा सैन्य अफसर, जानिए पूरा इतिहास - फील्ड मार्शल सैम मानेक शॉ और म्यांमार के सेनाध्यक्ष रहे स्मिथ डन

देहरादून का अपना इतिहास रहा है, लेकिन उसमें आईएमए ने भी अपनी वीर गाथा अलग से लिखी है. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी दुनिया के सबसे पराक्रमी सैन्य अधिकारियों को तैयार करने वाला संस्थान है. भारतीय सैन्य अकादमी का 90 साल का इतिहास आपको गर्व से भर देगा.

Indian Military Academy
भारतीय सैन्य अकादमी
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Published : Jun 4, 2022, 11:28 AM IST

देहरादून: दुनिया के सबसे बेहतरीन सैन्य अफसर तैयार करना कोई आसान काम नहीं है. भारतीय सेना के लिए इसका बीड़ा उठाया है भारतीय सैन्य अकादमी ने. जंग लड़ने और फतह हासिल करने के लिए जिस बात की सबसे ज्यादा जरूरत है उस साहस, हिम्मत और शौर्य को जगाती है इंडियन मिलिट्री एकेडमी. देहरादून में करीब 1,400 एकड़ में फैली ये विशाल धरोहर न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि ये पराक्रमी सैन्य अफसरों का प्रशिक्षण केंद्र भी है. इतिहास गवाह है कि यहां तैयार होने वाले वीरों ने पराक्रम की हर परकाष्ठा को पार किया है. दुश्मन कोई भी हो भारतीय शेरों की दहाड़ के सामने हर हथियार और तकनीक धरी की धरी रह गयी.

इस बार आईएमए में 11 जून को होने वाली पासिंग आउट परेड के बाद भारतीय सेना को 288 युवा अफसर मिलेंगे. इसके अलावा 8 मित्र देशों की सेना को भी 89 सैन्य अधिकारी मिलेंगे. अब तक आईएमए के नाम देश​-विदेश की सेना को 63 हजार 768 युवा सैन्य अफसर देने का गौरव जुड़ा है. इनमें 34 मित्र देशों को मिले 2,724 सैन्य अधिकारी भी शामिल हैं.

आईएमए में 11 जून को पासिंग आउट परेड.

IMA की स्थापना: एक अक्तूबर 1932 में स्थापित भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) का 90 वर्ष का गौरवशाली इतिहास है. अकादमी 40 कैडेट्स के साथ शुरू हुई थी. अब तक अकादमी देश-विदेश की सेनाओं को 63 हजार 768 युवा अफसर दे चुकी है. इनमें 34 मित्र देशों के 2,724 कैडेट्स भी शामिल हैं. 1932 में ब्रिगेडियर एलपी कोलिंस प्रथम कमांडेंट बने थे. इसी में फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और म्यांमार के सेनाध्यक्ष रहे स्मिथ डन के साथ पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष मोहम्मद मूसा भी पास आउट हुए थे. आईएमए ने ही पाकिस्तान को उनका पहला आर्मी चीफ भी दिया है.

10 दिसंबर 1932 में भारतीय सैन्‍य अकादमी का औपचारिक उद्घाटन फील्ड मार्शल सर फिलिप डब्लू चैटवुड ने किया था. उन्हीं के नाम पर आईएमए की प्रमुख बिल्डिंग को चैटवुड बिल्डिंग के नाम से जाना जाने लगा. आजादी के बाद पहली बार किसी भारतीय ने सैन्य अकादमी की कमान संभाली. 1947 में ब्रिगेडियर ठाकुर महादेव सिंह इसके पहले कमांडेंट बने. 1949 में इसे सुरक्षा बल अकादमी का नाम दिया गया और इसका एक विंग क्लेमेनटाउन में खोला गया. बाद में इसका नाम नेशनल डिफेंस अकादमी रखा गया.

पढ़ें: पाकिस्तान की जश्न-ए-आजादी में कड़वाहट भरता ये सबूत, जानें पूरा इतिहास

पहले क्लेमेनटाउन में सेना के तीनों विंगों को ट्रेनिंग दी जाती थी. बाद में 1954 में एनडीए के पुणे स्थानांतरित हो जाने के बाद इसका नाम मिलिट्री कॉलेज हो गया. फिर 1960 में संस्थान को भारतीय सैन्य अकादमी का नाम दिया गया. 10 दिसंबर 1962 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एस राधाकृष्णन ने स्वतंत्रता के बाद पहली बार अकादमी को ध्वज प्रदान किया. साल में दो बार (जून और दिसंबर माह के दूसरे शनिवार को) आईएमए में पासिंग आउट परेड का आयोजन किया जाता है.

90 साल पुराने गौरवमई इतिहास की यादें: भारतीय सैन्य अकादमी के 90 साल पुराने गौरवमई इतिहास की यादें यहां मौजूद म्यूजियम में सजाई गई हैं. भारत में स्थित ब्रिटिश सरकार के कमांडर इन चीफ फील्ड मार्शल सर फिलिप चैटवुड से लेकर पाकिस्तान को खंड-खंड करने वाले 1971 युद्ध के नायक फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की पुरानी तस्वीरें यहां मौजूद हैं. ब्रिटिश कालीन हथियारों से लेकर देश के सर्वोच्च मेडल और पाकिस्तान का वह झंडा (जिसे 1971 में जीत के बाद सरेंडर किये गए पाकिस्तानी सैनिकों से लिया गया) को यहां पर रखा गया है.

परंपराओं से भरी ऐतिहासिक सैन्य अकादमी: जांबाज वीरों के कदमताल का गवाह सर फिलिप चैटवुड के नाम से चैटवुड भवन के सामने का ये मैदान हर साल अंतिम पग की बाधा को खत्म कर जीसी को सैन्य अफसर बनता देखता है. यूं तो परंपराओं से भरी इस ऐतिहासिक सैन्य अकादमी ने 1932 के बाद विश्व युद्ध से लेकर तमाम मुश्किल क्षणों को देखा, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ जब यह अकादमी अपने कर्तव्य से पीछे हटी हो.

भारतीय सैन्य अकादमी: भारतीय सैन्य अकादमी देश को अब तक 16 जनरल यानी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ दे चुकी है. नेतृत्व क्षमता और त्वरित निर्णय लेने के साथ ही एक जेंटलमैन कैडेट को फौलाद बनाने वाला ये संस्थान दुनिया में इन्हीं वजहों से जाना जाता है.

देहरादून: दुनिया के सबसे बेहतरीन सैन्य अफसर तैयार करना कोई आसान काम नहीं है. भारतीय सेना के लिए इसका बीड़ा उठाया है भारतीय सैन्य अकादमी ने. जंग लड़ने और फतह हासिल करने के लिए जिस बात की सबसे ज्यादा जरूरत है उस साहस, हिम्मत और शौर्य को जगाती है इंडियन मिलिट्री एकेडमी. देहरादून में करीब 1,400 एकड़ में फैली ये विशाल धरोहर न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि ये पराक्रमी सैन्य अफसरों का प्रशिक्षण केंद्र भी है. इतिहास गवाह है कि यहां तैयार होने वाले वीरों ने पराक्रम की हर परकाष्ठा को पार किया है. दुश्मन कोई भी हो भारतीय शेरों की दहाड़ के सामने हर हथियार और तकनीक धरी की धरी रह गयी.

इस बार आईएमए में 11 जून को होने वाली पासिंग आउट परेड के बाद भारतीय सेना को 288 युवा अफसर मिलेंगे. इसके अलावा 8 मित्र देशों की सेना को भी 89 सैन्य अधिकारी मिलेंगे. अब तक आईएमए के नाम देश​-विदेश की सेना को 63 हजार 768 युवा सैन्य अफसर देने का गौरव जुड़ा है. इनमें 34 मित्र देशों को मिले 2,724 सैन्य अधिकारी भी शामिल हैं.

आईएमए में 11 जून को पासिंग आउट परेड.

IMA की स्थापना: एक अक्तूबर 1932 में स्थापित भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) का 90 वर्ष का गौरवशाली इतिहास है. अकादमी 40 कैडेट्स के साथ शुरू हुई थी. अब तक अकादमी देश-विदेश की सेनाओं को 63 हजार 768 युवा अफसर दे चुकी है. इनमें 34 मित्र देशों के 2,724 कैडेट्स भी शामिल हैं. 1932 में ब्रिगेडियर एलपी कोलिंस प्रथम कमांडेंट बने थे. इसी में फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और म्यांमार के सेनाध्यक्ष रहे स्मिथ डन के साथ पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष मोहम्मद मूसा भी पास आउट हुए थे. आईएमए ने ही पाकिस्तान को उनका पहला आर्मी चीफ भी दिया है.

10 दिसंबर 1932 में भारतीय सैन्‍य अकादमी का औपचारिक उद्घाटन फील्ड मार्शल सर फिलिप डब्लू चैटवुड ने किया था. उन्हीं के नाम पर आईएमए की प्रमुख बिल्डिंग को चैटवुड बिल्डिंग के नाम से जाना जाने लगा. आजादी के बाद पहली बार किसी भारतीय ने सैन्य अकादमी की कमान संभाली. 1947 में ब्रिगेडियर ठाकुर महादेव सिंह इसके पहले कमांडेंट बने. 1949 में इसे सुरक्षा बल अकादमी का नाम दिया गया और इसका एक विंग क्लेमेनटाउन में खोला गया. बाद में इसका नाम नेशनल डिफेंस अकादमी रखा गया.

पढ़ें: पाकिस्तान की जश्न-ए-आजादी में कड़वाहट भरता ये सबूत, जानें पूरा इतिहास

पहले क्लेमेनटाउन में सेना के तीनों विंगों को ट्रेनिंग दी जाती थी. बाद में 1954 में एनडीए के पुणे स्थानांतरित हो जाने के बाद इसका नाम मिलिट्री कॉलेज हो गया. फिर 1960 में संस्थान को भारतीय सैन्य अकादमी का नाम दिया गया. 10 दिसंबर 1962 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एस राधाकृष्णन ने स्वतंत्रता के बाद पहली बार अकादमी को ध्वज प्रदान किया. साल में दो बार (जून और दिसंबर माह के दूसरे शनिवार को) आईएमए में पासिंग आउट परेड का आयोजन किया जाता है.

90 साल पुराने गौरवमई इतिहास की यादें: भारतीय सैन्य अकादमी के 90 साल पुराने गौरवमई इतिहास की यादें यहां मौजूद म्यूजियम में सजाई गई हैं. भारत में स्थित ब्रिटिश सरकार के कमांडर इन चीफ फील्ड मार्शल सर फिलिप चैटवुड से लेकर पाकिस्तान को खंड-खंड करने वाले 1971 युद्ध के नायक फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की पुरानी तस्वीरें यहां मौजूद हैं. ब्रिटिश कालीन हथियारों से लेकर देश के सर्वोच्च मेडल और पाकिस्तान का वह झंडा (जिसे 1971 में जीत के बाद सरेंडर किये गए पाकिस्तानी सैनिकों से लिया गया) को यहां पर रखा गया है.

परंपराओं से भरी ऐतिहासिक सैन्य अकादमी: जांबाज वीरों के कदमताल का गवाह सर फिलिप चैटवुड के नाम से चैटवुड भवन के सामने का ये मैदान हर साल अंतिम पग की बाधा को खत्म कर जीसी को सैन्य अफसर बनता देखता है. यूं तो परंपराओं से भरी इस ऐतिहासिक सैन्य अकादमी ने 1932 के बाद विश्व युद्ध से लेकर तमाम मुश्किल क्षणों को देखा, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ जब यह अकादमी अपने कर्तव्य से पीछे हटी हो.

भारतीय सैन्य अकादमी: भारतीय सैन्य अकादमी देश को अब तक 16 जनरल यानी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ दे चुकी है. नेतृत्व क्षमता और त्वरित निर्णय लेने के साथ ही एक जेंटलमैन कैडेट को फौलाद बनाने वाला ये संस्थान दुनिया में इन्हीं वजहों से जाना जाता है.

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