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Special-हरियाली अमावस्या के दूसरे दिन महिलाओं के लिए लगता है मेला, जहां पुरुषों का प्रवेश निषेध

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Published : Jul 19, 2023, 7:55 AM IST

उदयपुर में हरियाली अमावस्या के दूसरे दिन महिलाओं का मेला लगता है जिसमें पुरुषों का प्रवेश निषेध रहता है. यह ऐतिहासिक मेला की शुरुआत करीब 125 साल पहले महाराणा फतह सिंह के राज में आम महिलाओं को पुरूषों के समान हक देने के लिए की गई थी.

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उदयपुर. झीलों की नगरी उदयपुर में हरियाली अमावस्या के दूसरे दिन महिलाओं का मेला जिसमें पुरुषों का प्रवेश निषेध रहता है. यह ऐतिहासिक मेला अपने आप में अनूठा है. विश्व भर में उदयपुर एकमात्र ऐसी जगह है जहां सिर्फ महिलाओं के लिए मेला आयोजित किया जाता है. पिछले 125 सालों से चले आ रही मेले की परंपरा अनवरत जारी है. महिलाएं सज-धज कर विशेष प्रकार की वेशभूषा पहनकर सहेलियों के साथ मेले में पहुंचती हैं. जहां उन्होंने जमकर आनंद लिया वहीं दूसरी ओर मानसून की रिमझिम बारिश की बूंदों के साथ अलग-अलग व्यंजनों का भी आनंद लिया. इस दौरान महिलाओं ने जमकर खरीदारी के साथ चकरी झूले का आनंद लिया.

महिलाओं का मेला में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का लुफ्त उठाती महिलाएं
महिलाओं का मेला में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का लुफ्त उठाती महिलाएं

मेले में महिलाओं ने लिया जमकर आनंद : दरअसल उदयपुर शहर के दो प्रमुख पर्यटन स्थलों पर मंगलवार यानी 18 जुलाई को महिलाओें का राज रहा. मौका था हरियाली अमावस्या पर आयोजित होने वाले पारम्परिक मेले का. मेले के दूसरे दिन पुरूषों के प्रवेश पर पूरी तरह से रोक रहती है. यहा आने वाली महिलाएं मेले का जमकर लुफ्त उठाती हैं. रियासत काल से चली आ रही यह मेले की परंपरा आज भी अनवरत जारी है. रंग बिरंगे परिधान पहनकर, सज धजकर महिलाएं हरियाली अमवस्या के मेले का मजा लेने के लिए आती हैं. खास तौर से महिलाओं के लिए लगे इस मेले में सेंकडों दुकानों पर महिलाओं ने जमकर खरीददारी की. साथ ही मेले में खाने पीने की दुकानों पर बन रही चाट-पकौड़ी, मालपुए और सुहावने मौसम में कुल्फी के भी मजे लिए.

महिलाओं का मेला में  महिलाओं की भीड़
महिलाओं का मेला में महिलाओं की भीड़

महिला पुलिस कर्मियों ने संभाला सुरक्षा का मोर्चा : इन महिलाओं को सुरक्षा का कोई भय नहीं है, क्योंकि ये मेला सिर्फ और सिर्फ महिलाओं के लिए लगाया जाता है, जहाँ पुरुषों की प्रवेश निषेध रहता है. हरियाली अमावस्या के मौके पर 2 दिन तक उदयपुर की विश्वप्रसिद्ध फतहसागर झील से लेकर सहेलियों की बाड़ी तक 5 किलोमीटर की परिधि में इस मेले का आयोजन किया जाता है. यहाँ आने वाले मेलार्थियो के आनंद को दुगुना करने के लिए मेले के बीच ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन कर मन मोहक प्रस्तुतियां दी जाती है. खास बात यह है कि महिलाओं के लिए आयोजित इस मेले में सुरक्षा का दायित्व भी उदयपुर पुलिस ने महिला पुलिस कर्मियों को सौंपा है. जिससे चप्पे-चप्पे पर महिला पुलिसकर्मी सुरक्षा देख रही थी.

पढ़ें Good News : झीलों की नगरी का फिर बजा दुनिया में डंका, उदयपुर दुनिया का दूसरा सबसे फेवरेट शहर

झूले का भी महिलाओं ने लिया आनंद : मेले में महिलाओं के लिए साज-श्रंगार के लिए कई स्टाल्स लगती हैं. तो वहीं बच्चों के लिए कई दुकानों पर रखे खिलौने भी बालमन को काफी आकर्षित करते हैं. मेले में आने वाले लोगों को सबसे ज्यादा आकर्षित करती है यहां लगी डॉलर और चक्करियां, जो हर मेले की जान होती है. ऊंची ऊंची डॉलर में बैठकर डर के साथ ही मनोरंजन का लुफ्त लेने के लिए महिलाएं कतार लगाकर खड़ी रहती हैं. यहां आने वाली महिलाओं का कहना है कि मेले में पुरूषों के नहीं होने से वे सहज और आजाद महसुस करती हैं.

दरसअल उदयपुर में मेले की यह परंपरा करीब 125 साल पहले महाराणा फतह सिंह के राज में आम महिलाओं को पुरूषों के समान हक देने के लिए की शुरु की गई थी. इसका उद्देश्य था कि यहां आने वाली महिलाएं बिना किसी घुंघट के खुलकर मेले का लुफ्त उठा सके, खरीददारी कर सके और पूरा आनंद ले सके. तभी से आज तक हर साल इस मेला का आयोजन किया जाता है ताकि महिलाएं भी खुलकर आजादी महसूस करते हुए इसका आनंद ले सके. इस मेले को लेकर नगर निगम के साथ पुलिस और प्रशासन की ओर से सुरक्षा के लिए खासी व्यवस्थाएं की जाती है, ताकि किसी को कोई दिक्कत न हो. पुलिस की ओर ड्रोन और दूरबीन के जरिये नजर रखी जाती है. मेले में पुरूषों को अंदर घुसने ही नहीं दिया जाता है. सादे ड्रेस में महिला कांस्टेबल को यहां तैनात किया गया है.

उदयपुर. झीलों की नगरी उदयपुर में हरियाली अमावस्या के दूसरे दिन महिलाओं का मेला जिसमें पुरुषों का प्रवेश निषेध रहता है. यह ऐतिहासिक मेला अपने आप में अनूठा है. विश्व भर में उदयपुर एकमात्र ऐसी जगह है जहां सिर्फ महिलाओं के लिए मेला आयोजित किया जाता है. पिछले 125 सालों से चले आ रही मेले की परंपरा अनवरत जारी है. महिलाएं सज-धज कर विशेष प्रकार की वेशभूषा पहनकर सहेलियों के साथ मेले में पहुंचती हैं. जहां उन्होंने जमकर आनंद लिया वहीं दूसरी ओर मानसून की रिमझिम बारिश की बूंदों के साथ अलग-अलग व्यंजनों का भी आनंद लिया. इस दौरान महिलाओं ने जमकर खरीदारी के साथ चकरी झूले का आनंद लिया.

महिलाओं का मेला में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का लुफ्त उठाती महिलाएं
महिलाओं का मेला में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का लुफ्त उठाती महिलाएं

मेले में महिलाओं ने लिया जमकर आनंद : दरअसल उदयपुर शहर के दो प्रमुख पर्यटन स्थलों पर मंगलवार यानी 18 जुलाई को महिलाओें का राज रहा. मौका था हरियाली अमावस्या पर आयोजित होने वाले पारम्परिक मेले का. मेले के दूसरे दिन पुरूषों के प्रवेश पर पूरी तरह से रोक रहती है. यहा आने वाली महिलाएं मेले का जमकर लुफ्त उठाती हैं. रियासत काल से चली आ रही यह मेले की परंपरा आज भी अनवरत जारी है. रंग बिरंगे परिधान पहनकर, सज धजकर महिलाएं हरियाली अमवस्या के मेले का मजा लेने के लिए आती हैं. खास तौर से महिलाओं के लिए लगे इस मेले में सेंकडों दुकानों पर महिलाओं ने जमकर खरीददारी की. साथ ही मेले में खाने पीने की दुकानों पर बन रही चाट-पकौड़ी, मालपुए और सुहावने मौसम में कुल्फी के भी मजे लिए.

महिलाओं का मेला में  महिलाओं की भीड़
महिलाओं का मेला में महिलाओं की भीड़

महिला पुलिस कर्मियों ने संभाला सुरक्षा का मोर्चा : इन महिलाओं को सुरक्षा का कोई भय नहीं है, क्योंकि ये मेला सिर्फ और सिर्फ महिलाओं के लिए लगाया जाता है, जहाँ पुरुषों की प्रवेश निषेध रहता है. हरियाली अमावस्या के मौके पर 2 दिन तक उदयपुर की विश्वप्रसिद्ध फतहसागर झील से लेकर सहेलियों की बाड़ी तक 5 किलोमीटर की परिधि में इस मेले का आयोजन किया जाता है. यहाँ आने वाले मेलार्थियो के आनंद को दुगुना करने के लिए मेले के बीच ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन कर मन मोहक प्रस्तुतियां दी जाती है. खास बात यह है कि महिलाओं के लिए आयोजित इस मेले में सुरक्षा का दायित्व भी उदयपुर पुलिस ने महिला पुलिस कर्मियों को सौंपा है. जिससे चप्पे-चप्पे पर महिला पुलिसकर्मी सुरक्षा देख रही थी.

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झूले का भी महिलाओं ने लिया आनंद : मेले में महिलाओं के लिए साज-श्रंगार के लिए कई स्टाल्स लगती हैं. तो वहीं बच्चों के लिए कई दुकानों पर रखे खिलौने भी बालमन को काफी आकर्षित करते हैं. मेले में आने वाले लोगों को सबसे ज्यादा आकर्षित करती है यहां लगी डॉलर और चक्करियां, जो हर मेले की जान होती है. ऊंची ऊंची डॉलर में बैठकर डर के साथ ही मनोरंजन का लुफ्त लेने के लिए महिलाएं कतार लगाकर खड़ी रहती हैं. यहां आने वाली महिलाओं का कहना है कि मेले में पुरूषों के नहीं होने से वे सहज और आजाद महसुस करती हैं.

दरसअल उदयपुर में मेले की यह परंपरा करीब 125 साल पहले महाराणा फतह सिंह के राज में आम महिलाओं को पुरूषों के समान हक देने के लिए की शुरु की गई थी. इसका उद्देश्य था कि यहां आने वाली महिलाएं बिना किसी घुंघट के खुलकर मेले का लुफ्त उठा सके, खरीददारी कर सके और पूरा आनंद ले सके. तभी से आज तक हर साल इस मेला का आयोजन किया जाता है ताकि महिलाएं भी खुलकर आजादी महसूस करते हुए इसका आनंद ले सके. इस मेले को लेकर नगर निगम के साथ पुलिस और प्रशासन की ओर से सुरक्षा के लिए खासी व्यवस्थाएं की जाती है, ताकि किसी को कोई दिक्कत न हो. पुलिस की ओर ड्रोन और दूरबीन के जरिये नजर रखी जाती है. मेले में पुरूषों को अंदर घुसने ही नहीं दिया जाता है. सादे ड्रेस में महिला कांस्टेबल को यहां तैनात किया गया है.

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