उदयपुर. मेवाड़ के इतिहास के साथ राजस्थान की कक्षा दसवीं के पाठ्यक्रम में हुए छेड़छाड़ का विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है. वहीं, अब इस पूरे मामले पर पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेत्री गिरिजा व्यास ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. व्यास ने कहा है कि मेवाड़ के वीर इतिहास के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं होगी. जिन भी लोगों ने इसमें बदलाव किया है, उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए.
राजस्थान सरकार द्वारा कक्षा दसवीं के पाठ्यक्रम में मेवाड़ के इतिहास के साथ किए गए बदलाव का विरोध लगातार जारी है. भाजपा और अन्य राजनीतिक दलों के साथ अब कांग्रेस पार्टी के नेता भी इस पूरे मामले पर अपनी ही पार्टी के खिलाफ नजर आ रहे हैं. वहीं, उदयपुर में पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस पार्टी की कद्दावर नेता गिरिजा व्यास ने भी इस पूरे मामले पर अपनी बात रखी. उन्होंने मेवाड़ के इतिहास के साथ किए गए छेड़छाड़ पर अपना विरोध व्यक्त किया. इस दौरान व्यास ने कहा कि मैंने इस पूरे मामले पर राजस्थान के शिक्षा मंत्री से बात की है. उन्होंने कहा है कि यह एक मानवीय भूल थी, जिसे बदल लिया गया है. साथ ही इस भूल को करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी की गई है.
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इसके बावजूद गिरजा व्यास ने उन्हें एक बार फिर इस पूरे मामले की जांच करने की मांग की है. साथ ही कहा कि एक बार फिर से इस पूरे तथ्य को शुरू से लेकर अंत तक जांच आ जाए, जिससे किसी भी प्रकार से इतिहास के साथ छेड़छाड़ ना हो.
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आपको बता दें कि पिछले कुछ दिनों से लगातार महाराणा प्रताप और मेवाड़ राजघराने के साथ किए गए तथ्यों के हेरफेर को लेकर देशभर में विरोध हो रहा था. वहीं, अब कांग्रेस पार्टी के नेता भी इस पूरे मामले पर अपनी ही पार्टी के खिलाफ नजर आए. जिसके बाद पार्टी आलाकमान द्वारा इस पूरे मामले संज्ञान लेते हुए बदलाव किया गया है.
इस पर हुआ विवाद...
राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड इस बार दसवीं कक्षा में नई किताब में महाराणा उदय सिंह को बनवीर का हत्यारा बताया गया है. किताब के पहले अध्याय में राजस्थान के प्रमुख राजपूत वंश का परिचय दिया गया है, जिसमें पेज नंबर 11 पर लिखा है कि 1537 ई में उदय सिंह का राज्याभिषेक हुआ.
जिसके बाद 1540 ई में मावली के युद्ध में उदय सिंह ने मालदेव के सहयोग से बनवीर की हत्या कर मेवाड़ की पैतृक सत्ता प्राप्त की थी. 1559 में उदयपुर में नगर बसाकर राजधानी बनाया. वहीं, पेज नंबर 12 पर हल्दीघाटी के नामकरण को लेकर अजीबोगरीब तर्क लिखा गया है.
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डॉ. महेंद्र भानावत की किताब अजूबा भारत के हवाले से लिखा गया है कि हल्दीघाटी नाम हल्दी रंगी मिट्टी के कारण नहीं पड़ा, ऐसी मिट्टी यहां है भी कहां. यहां तो लाल, पीली और काली 3 रंगों वाली मिट्टी है. फिर हल्दीघाटी नाम क्यों दिया गया. इसका एकमात्र कारण ये है कि यहां हल्दी चढ़ी कई नवविवाहिताएं पुरुष वेश में लड़ मरी थीं.