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सीकर में धडल्ले से जारी पॉलीथीन का प्रयोग, मौत के मुंह में जा रहे मवेशी

सीकर जिले में पॉलीथीन का धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है. पशु इसे निगल रहे हैं. जिसके चलते जिले के दांतारामगढ़ में अब तक कई पशुओं की मौत हो चुकी है. सरकार ने इन थैलियों के प्रयोग पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन किसी भी स्तर पर इन आदेशों की पालना नहीं हो पा रही है.

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Published : Jul 6, 2019, 6:06 PM IST

सीकर में पॉलीथीन का धड़ल्ले से प्रयोग

दातारामगढ़ (सीकर). सुप्रीम कोर्ट एवं सरकार द्वारा प्रतिबंध के बावजूद पॉलीथीन का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है. यह समस्या अब किसानों के लिए नासूर बन चुकी है. सीकर में अब तक इससे कई पशुओं की मौत हो चुकी है.

सीकर में मौत के मुंह में जा रहे मवेशी

दांतारामगढ़ इलाके में स्थित रानोली ग्राम में इन दिनों पॉलीथिन का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है. कचरे में पॉलीथिन की मात्रा बढ़ती जा रही है. पशु इसे निगल रहे हैं. जिसके चलते दांतारामगढ़ में अब तक कई पशुओं की मौत हो चुकी है. प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिबंध के आदेशों के बावजूद गांवों में इन दिनों दुकानदार धड़ल्ले से प्लास्टिक कैरी बेग का उपयोग कर रहे हैं. सरकार ने इन थैलियों के प्रयोग पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन किसी भी स्तर पर इन आदेशों की पालना नहीं हो पा रही है.

शहर और गांव की गलियों से लेकर खेतों तक मे प्लास्टिक मुसीबत बन चुका प्लास्टिक का कचरा दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है, जिससे पर्यावरण प्रदूषण के साथ साथ पशुओं की भी मौत हो रही है. रानोली, शिश्यू, पलसाना, कोछोर, रैवासा ,सांगरवा सहित आसपास के दुकानदार, सब्जी विक्रेता उपभोक्ताओं को प्लास्टिक की थैलियों में खाद्य सामग्री सहित अन्य वस्तुएं डाल कर दे रहे हैं. प्लास्टिक कैरी बैग से पर्यावरण में मृदा प्रदूषण हो रहा है. इसके बावजूद भी इस पर कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहा है. प्लास्टिक की थैलियों का सेवन करने से पशुओं की मौत भी हो रही है. जिस पर किसी का ध्यान नहीं है.

पॉलीथीन कैरी बैग के प्रयोग पर रोक का असर नहीं

बता दें कि 1 अगस्त, 2010 से प्रदेश में प्लास्टिक कैरी बैग पर पूर्ण रूप से रोक है. अगर कोई भी व्यक्ति इसका उल्लघंन करता है तो उसे 5 साल की सजा एवं 1 लाख रुपए का जुर्माना या दोनों सजा का प्रावधान है. सजा के बावजूद भी व्यक्ति यह अपराध करता है तो उस पर 5 हजार रुपए प्रतिदिन का अर्थ दंड भी लगाया जा सकता है. इस आदेश के बाद राजस्थान में जिला प्रशासन और नगर पालिका परिषद भी हरकत में आई थी. मगर बाद में कागजों में अभियान चला कर शासन के निर्देशों की इतिश्री कर ली गई. राजस्थान के लगभग हर कस्बे में दुकानदार व्यापारी और सब्जी ठेले वालों द्वारा ग्राहकों को सामान देने के लिए इन प्लास्टिक थैलियों का ही प्रयोग करते हैं.

प्लास्टिक कैरीबैग के प्रयोग से जहां पर्यावरण दूषित हो रहा है, वहीं यह थैलिया कस्बावासियों के लिए परेशानी का सबब भी बन गई है. दुकानों पर रोक के बावजूद प्लास्टिक थैलियों का कारोबार निरंतर चल रहा है. यदि विभाग द्वारा छापामारी की भी जाती है तो दुकानदार इन थैलियों को गायब कर देते हैं. जिस कारण विभाग भी इन दुकानदारों पर लगाम लगाने में असफल साबित हो रहा है.

कूड़े में करीब 60 प्रतिशत मात्रा पॉलिथीन की
कस्बे से निकलने वाले कूड़े में गंदगी के अलावा भारी तादाद में कागज कपड़ा तथा प्लास्टिक आदि होता है. खासतौर से सामान की पैकिंग में उपयोग आने वाली प्लास्टिक कूड़े में मुख्य रूप से पाई जाती है. करीब 10 वर्ष पहले गांव में जो कूड़ा निकलता था, उसमें पॉलिथीन बैग की मात्रा आधा प्रतिशत से भी कम होती थी. वहीं पिछले कुछ वर्षों से कूड़ा करकट में अप्रत्याशित रूप से पॉलिथीन की मात्रा बढ़ी है और कूड़े कचरे में प्लास्टिक की मात्रा करीब 60 प्रतिशत होती है. राणोली व्यापार मंडल के महामंत्री शंकर लाल यादव का कहना है कि ग्राहक को भी दुकानदार से पॉलिथीन की मांग नहीं करनी चाहिए. सरकार को भी दुकानदारों पर प्रतिबंध न लगाकर कारखानों पर ही प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए.

राजस्थान में पॉलीथीन कैरी बैग का प्रयोग प्रतिबंधित करने के लिए कड़े प्रावधान तो किए गए लेकिन उन्हें जमीनी स्तर पर सही मायने में क्रियान्वित नहीं किया गया. प्रदेश में तमाम जागरूकता अभियानों को बावजूद लोगों ने पॉलीथीन का प्रयोग बंद नहीं किया. जिसका खामियाजा वर्तमान में पशु भुगत रहे हैं. फिलाहाल इस समस्या पर राजस्थान सरकार कब गंभीर होगी, यह तो आने वाला समय ही बताएगा.

दातारामगढ़ (सीकर). सुप्रीम कोर्ट एवं सरकार द्वारा प्रतिबंध के बावजूद पॉलीथीन का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है. यह समस्या अब किसानों के लिए नासूर बन चुकी है. सीकर में अब तक इससे कई पशुओं की मौत हो चुकी है.

सीकर में मौत के मुंह में जा रहे मवेशी

दांतारामगढ़ इलाके में स्थित रानोली ग्राम में इन दिनों पॉलीथिन का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है. कचरे में पॉलीथिन की मात्रा बढ़ती जा रही है. पशु इसे निगल रहे हैं. जिसके चलते दांतारामगढ़ में अब तक कई पशुओं की मौत हो चुकी है. प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिबंध के आदेशों के बावजूद गांवों में इन दिनों दुकानदार धड़ल्ले से प्लास्टिक कैरी बेग का उपयोग कर रहे हैं. सरकार ने इन थैलियों के प्रयोग पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन किसी भी स्तर पर इन आदेशों की पालना नहीं हो पा रही है.

शहर और गांव की गलियों से लेकर खेतों तक मे प्लास्टिक मुसीबत बन चुका प्लास्टिक का कचरा दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है, जिससे पर्यावरण प्रदूषण के साथ साथ पशुओं की भी मौत हो रही है. रानोली, शिश्यू, पलसाना, कोछोर, रैवासा ,सांगरवा सहित आसपास के दुकानदार, सब्जी विक्रेता उपभोक्ताओं को प्लास्टिक की थैलियों में खाद्य सामग्री सहित अन्य वस्तुएं डाल कर दे रहे हैं. प्लास्टिक कैरी बैग से पर्यावरण में मृदा प्रदूषण हो रहा है. इसके बावजूद भी इस पर कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहा है. प्लास्टिक की थैलियों का सेवन करने से पशुओं की मौत भी हो रही है. जिस पर किसी का ध्यान नहीं है.

पॉलीथीन कैरी बैग के प्रयोग पर रोक का असर नहीं

बता दें कि 1 अगस्त, 2010 से प्रदेश में प्लास्टिक कैरी बैग पर पूर्ण रूप से रोक है. अगर कोई भी व्यक्ति इसका उल्लघंन करता है तो उसे 5 साल की सजा एवं 1 लाख रुपए का जुर्माना या दोनों सजा का प्रावधान है. सजा के बावजूद भी व्यक्ति यह अपराध करता है तो उस पर 5 हजार रुपए प्रतिदिन का अर्थ दंड भी लगाया जा सकता है. इस आदेश के बाद राजस्थान में जिला प्रशासन और नगर पालिका परिषद भी हरकत में आई थी. मगर बाद में कागजों में अभियान चला कर शासन के निर्देशों की इतिश्री कर ली गई. राजस्थान के लगभग हर कस्बे में दुकानदार व्यापारी और सब्जी ठेले वालों द्वारा ग्राहकों को सामान देने के लिए इन प्लास्टिक थैलियों का ही प्रयोग करते हैं.

प्लास्टिक कैरीबैग के प्रयोग से जहां पर्यावरण दूषित हो रहा है, वहीं यह थैलिया कस्बावासियों के लिए परेशानी का सबब भी बन गई है. दुकानों पर रोक के बावजूद प्लास्टिक थैलियों का कारोबार निरंतर चल रहा है. यदि विभाग द्वारा छापामारी की भी जाती है तो दुकानदार इन थैलियों को गायब कर देते हैं. जिस कारण विभाग भी इन दुकानदारों पर लगाम लगाने में असफल साबित हो रहा है.

कूड़े में करीब 60 प्रतिशत मात्रा पॉलिथीन की
कस्बे से निकलने वाले कूड़े में गंदगी के अलावा भारी तादाद में कागज कपड़ा तथा प्लास्टिक आदि होता है. खासतौर से सामान की पैकिंग में उपयोग आने वाली प्लास्टिक कूड़े में मुख्य रूप से पाई जाती है. करीब 10 वर्ष पहले गांव में जो कूड़ा निकलता था, उसमें पॉलिथीन बैग की मात्रा आधा प्रतिशत से भी कम होती थी. वहीं पिछले कुछ वर्षों से कूड़ा करकट में अप्रत्याशित रूप से पॉलिथीन की मात्रा बढ़ी है और कूड़े कचरे में प्लास्टिक की मात्रा करीब 60 प्रतिशत होती है. राणोली व्यापार मंडल के महामंत्री शंकर लाल यादव का कहना है कि ग्राहक को भी दुकानदार से पॉलिथीन की मांग नहीं करनी चाहिए. सरकार को भी दुकानदारों पर प्रतिबंध न लगाकर कारखानों पर ही प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए.

राजस्थान में पॉलीथीन कैरी बैग का प्रयोग प्रतिबंधित करने के लिए कड़े प्रावधान तो किए गए लेकिन उन्हें जमीनी स्तर पर सही मायने में क्रियान्वित नहीं किया गया. प्रदेश में तमाम जागरूकता अभियानों को बावजूद लोगों ने पॉलीथीन का प्रयोग बंद नहीं किया. जिसका खामियाजा वर्तमान में पशु भुगत रहे हैं. फिलाहाल इस समस्या पर राजस्थान सरकार कब गंभीर होगी, यह तो आने वाला समय ही बताएगा.

Intro:दांतारामगढ़ (सीकर) सुप्रीम कोर्ट एवं सरकार द्वारा प्रतिबंध के बावजूद पॉलीथिन का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है पॉलिथीन किसानों के लिए नासूर बन चुकी हैBody:सीकर जिले के दांतारामगढ़ तहसील के रानोली ग्राम में इन दिनों पॉलीथिन का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है जिससे कचरे में पॉलीथिन की मात्रा बढ़ कर आवारा पशुओं की मौत का कारण बन रही है। सुप्रीम कोर्ट व सरकार के द्वारा प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिबंध के आदेशों के बावजूद गांवों में इन दिनों दुकानदार धड़ल्ले से प्लास्टिक कैरी बेग का उपयोग कर रहे हैं। सरकार ने इन थैलियों के प्रयोग पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया था। मगर किसी भी स्तर पर इन आदेशों की पालना नहीं हो पा रही है। शहर और गांव की गलियों से लेकर खेतों तक मे प्लास्टिक मुसीबत बन चुका प्लास्टिक का कचरा दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। जिससे पर्यावरण प्रदूषण के साथ साथ पशुओं की भी मौत हो रही है। रानोली, शिश्यू, पलसाना, कोछोर, रैवासा ,सांगरवा सहित आसपास के दुकानदार, सब्जी विक्रेता उपभोक्ताओं को प्लास्टिक की थैलियों में खाद्य सामग्री सहित अन्य वस्तुएं डाल कर दे रहे हैं। प्लास्टिक कैरी बैग से पर्यावरण में मृदा प्रदूषण हो रहा है। इसके बावजूद भी इस पर कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहा है।प्लास्टिक की थैलियों का सेवन करने से पशुओं की मौत भी हो रही है। जिस पर किसी का ध्यान नहीं है।


रोक का असर नहीं

प्रदेश में 1 अगस्त 2010 से प्लास्टिक कैरी बैग पर पूर्णतया रोक लगाई गई थी।इसके बावजूद भी शहर व आसपास के गांवों में प्लास्टिक कैरी बैग का धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा है। यदि कोई व्यक्ति इसका उल्लंघन करता है तो संबंधित व्यक्ति को 5 साल की सजा एवं 1लाख रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकता है।यदि कोई व्यक्ति इसके बाद भी अपराध करता है तो पांच हजार रूपए प्रतिदिन का अर्थदंड लगाया जा सकता है।
कस्बे में हर दुकानदार व्यापारी व सब्जी ठेले वालों द्वारा ग्राहकों को सामान देने के लिए इन प्लास्टिक थैलियों का ही प्रयोग करते हैं जिससे मजबूरी में लोगों को भी इन थैलियों में सामान लेना पड़ रहा है प्लास्टिक थैलियों के अत्यधिक प्रयोग के कारण जहां पर्यावरण दूषित हो रहा है वहीं यह थैलिया कस्बावासियों के लिए परेशानी का सबब भी बन गई है। दुकानों पर रोक के बावजूद प्लास्टिक थैलियों का कारोबार निरंतर चल रहा है यदि विभाग द्वारा छापामारी की भी जाती है तो दुकानदार इन थैलियों को गायब कर देते हैं। जिस कारण विभाग भी इन दुकानदारों पर लगाम लगाने में असफल साबित हो रहा है।


कूड़े में करीब 60 प्रतिशत मात्रा पॉलिथीन की

कस्बे से निकलने वाले कूड़े में गंदगी के अलावा भारी तादाद में कागज कपड़ा तथा प्लास्टिक आदि होता है।खासतौर से सामान की पैकिंग में उपयोग आने वाली प्लास्टिक कूड़े में मुख्य रूप से पाई जाती है। करीब 10 वर्ष पहले गांव में जो कूड़ा निकलता था उसमें पॉलिथीन बैग की मात्रा आधा प्रतिशत से भी कम होती थी।लेकिन पिछले कुछ वर्षों से कूड़ा करकट में अप्रत्याशित रूप से पॉलिथीन की मात्रा बढ़ी है और कूड़े कचरे में प्लास्टिक की मात्रा करीब 60 प्रतिशत होती है।

राणोली व्यापार मंडल के महामंत्री शंकर लाल यादव का कहना है कि ग्राहक को भी दुकानदार से पॉलिथीन की मांग नहीं करनी चाहिए और सरकार को भी दुकानदारों पर प्रतिबंध न लगाकर कारखानों पर ही प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।Conclusion:पॉलीथिन पर प्रतिबंध के बावजूद पॉलीथिन का प्रयोग करने से कूड़े में अधिकांशत मात्रा पॉलीथिन की ही होती है जिसको खा कर गायों की मौत हो रही है।
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