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किसान बीजोपचार से बाजरा की बढ़ा सकते हैं पैदावार, जानें

राजस्थान में वर्षा आधारित क्षेत्रों में बाजरा बोई जाती है. वहीं बाजरा में कीड़े और बीमारियां होने से किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है. ऐसे में कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि बीजोपचार कर किसान अच्छी फसल उपजा सकते हैं.

seed treatment,फतेहपुर न्यूज
किसानों को बीजोपचार से होगा लाभ
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Published : Jun 25, 2020, 5:19 PM IST

फतेहपुर (सीकर). राजस्थान में खरीफ फसल की बुवाई का समय चल रहा है. किसान मानसून का इंतजार कर रहे हैं. ऐसे में कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि बाजरा की बुवाई से पहले बीजोपचार कर अधिक उत्पादन लिया जा सकता है.

किसानों को बीजोपचार से होगा लाभ

क्या होता है बीजोपचार...

फसलों में रोग मुख्यत: बीज, मिट्टी और हवा के माध्यम से फैलते हैं. फसलों को बीज-जनित और मृदा-जनित रोगों से बचाने के लिए बीजों को बोने से पहले कुछ रासायनिक दवाओं और पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए कुछ जैव उर्वरकों से उपचारित किया जाता है. इसे बीजोपचार (seed treatment या seed dressing) कहते हैं.

भरतीय कृषि विज्ञान केंद्र फतेहपुर के वैज्ञानिक डॉ. लालाराम ने बताया कि बाजरा राजस्थान राज्य के पश्चिमी शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों की अधिकांश आबादी की एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है. कुछ क्षेत्रों में इसे सिंचित फसल के रूप में बोते हैं लेकिन यह फसल अधिकांश वर्षा आधारित क्षेत्रों में बोई जाती है. इसलिए वर्षा का इसके क्षेत्रफल, उत्पादन और उत्पादकता पर सीधा प्रभाव पड़ता है. खरीफ खाद्यान्न फसलों के 70 प्रतिशत क्षेत्र में बाजरे की खेती की जाती है. जिससे खरीफ खाद्यान्न उत्पादन का 50 प्रतिशत भाग प्राप्त होता है.

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बता दें कि बाजरे में दो किस्में होती हैं. देशी और शंकर, जहां देशी किस्मों से चारा अधिक होता है. वहीं, शंकर किस्मों में चारा और उत्पादन दोनों ही अधिक होते हैं. ऐसे में किसानों को बारानी इलाकों में शंकर किस्में ही बोनी चाहिए. शंकर किस्मों में बीज उपचारित किए हुए और उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं.

यह भी पढ़ें. Special : उदयपुर में शिक्षक का कमाल...कबाड़ से बना डाला वेंटिलेटर

इस फसल पर कीड़े और बीमारियों के प्रकोप के कारण इसकी पैदावार पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. बाजरे की फसल में गुंदिया या चेपा, अरगट व जोगिया (हरित बाली) इत्यादि रोग और दीमक व सफेद लट का प्रकोप एक आम बात है. बाजरे में कीट व बीमारियों की रोकथाम के लिए भूमि और बीज उपचार काफी लाभदायक पाया गया.

सफेद लट का प्रकोप हो तो ये करे...

वहीं जहां सफेद लट का विशेष प्रकोप हो, वहां इसकी रोकथाम के लिए एक किलो बीज में 3 किलो कार्बोफ्यूरॉन, 3 प्रतिशत या क्यूनालफॉस, 5 प्रतिशत कण मिलाकर बोए. बुवाई से पूर्व भूमि में फोरेट 10-जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से डाले.

दीमक की रोकथाम के उपाय...

दीमक की रोकथाम के लिए बीजों कों इमिडाक्लोप्रिड 3 एम एल प्रति किलो बीज दर से डालना चाहिए या मिथाईल पैराथियॉन डस्ट 2 प्रतिशत या क्यूनॉलफॅास डेढ़ प्रतिशत चूर्ण 25 किलों प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में बुवाई से पूर्व मिलाना चाहिए. साथ ही दीमक का प्रकोप कम करने के लिये खेत से सूखे डंठल आदि इक्ट्ठे कर हटाना चाहिए. वहीं कच्चा खाद प्रयोग नहीं करना चाहिए.

यह भी पढ़ें. डूंगरपुर में बढ़ा वन्यजीवों का कुनबा, काउंटिंग के दौरान नजर आए 36 पैंथर और 6 चिंकारा

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि खड़ी फसल में सफेद लट व दीमक का प्रकोप होने पर चार लीटर क्लोरपायरीफॉस और ढाई लीटर फिप्रोनिल प्रति हेक्टर की दर से सिंचाई के पानी के साथ दें. खेत में कीट और बीमारियों का प्रकोप कम से कम नहीं के बराबर हो, इसके लिए जरूरी है कि सदैव फसल चक्र अपनाए, भूमि उपचार करें, प्रमाणित बीज बोये और बोने से पूर्व उचित कवकनाशी व कीटनाशी दवा डाले. खड़ी फसल में रोग व कीड़ों के प्रकोप के लक्षण दिखाई देते ही उचित दवा का समय पर छिड़काव अवश्य करें.

फतेहपुर (सीकर). राजस्थान में खरीफ फसल की बुवाई का समय चल रहा है. किसान मानसून का इंतजार कर रहे हैं. ऐसे में कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि बाजरा की बुवाई से पहले बीजोपचार कर अधिक उत्पादन लिया जा सकता है.

किसानों को बीजोपचार से होगा लाभ

क्या होता है बीजोपचार...

फसलों में रोग मुख्यत: बीज, मिट्टी और हवा के माध्यम से फैलते हैं. फसलों को बीज-जनित और मृदा-जनित रोगों से बचाने के लिए बीजों को बोने से पहले कुछ रासायनिक दवाओं और पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए कुछ जैव उर्वरकों से उपचारित किया जाता है. इसे बीजोपचार (seed treatment या seed dressing) कहते हैं.

भरतीय कृषि विज्ञान केंद्र फतेहपुर के वैज्ञानिक डॉ. लालाराम ने बताया कि बाजरा राजस्थान राज्य के पश्चिमी शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों की अधिकांश आबादी की एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है. कुछ क्षेत्रों में इसे सिंचित फसल के रूप में बोते हैं लेकिन यह फसल अधिकांश वर्षा आधारित क्षेत्रों में बोई जाती है. इसलिए वर्षा का इसके क्षेत्रफल, उत्पादन और उत्पादकता पर सीधा प्रभाव पड़ता है. खरीफ खाद्यान्न फसलों के 70 प्रतिशत क्षेत्र में बाजरे की खेती की जाती है. जिससे खरीफ खाद्यान्न उत्पादन का 50 प्रतिशत भाग प्राप्त होता है.

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बता दें कि बाजरे में दो किस्में होती हैं. देशी और शंकर, जहां देशी किस्मों से चारा अधिक होता है. वहीं, शंकर किस्मों में चारा और उत्पादन दोनों ही अधिक होते हैं. ऐसे में किसानों को बारानी इलाकों में शंकर किस्में ही बोनी चाहिए. शंकर किस्मों में बीज उपचारित किए हुए और उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं.

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इस फसल पर कीड़े और बीमारियों के प्रकोप के कारण इसकी पैदावार पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. बाजरे की फसल में गुंदिया या चेपा, अरगट व जोगिया (हरित बाली) इत्यादि रोग और दीमक व सफेद लट का प्रकोप एक आम बात है. बाजरे में कीट व बीमारियों की रोकथाम के लिए भूमि और बीज उपचार काफी लाभदायक पाया गया.

सफेद लट का प्रकोप हो तो ये करे...

वहीं जहां सफेद लट का विशेष प्रकोप हो, वहां इसकी रोकथाम के लिए एक किलो बीज में 3 किलो कार्बोफ्यूरॉन, 3 प्रतिशत या क्यूनालफॉस, 5 प्रतिशत कण मिलाकर बोए. बुवाई से पूर्व भूमि में फोरेट 10-जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से डाले.

दीमक की रोकथाम के उपाय...

दीमक की रोकथाम के लिए बीजों कों इमिडाक्लोप्रिड 3 एम एल प्रति किलो बीज दर से डालना चाहिए या मिथाईल पैराथियॉन डस्ट 2 प्रतिशत या क्यूनॉलफॅास डेढ़ प्रतिशत चूर्ण 25 किलों प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में बुवाई से पूर्व मिलाना चाहिए. साथ ही दीमक का प्रकोप कम करने के लिये खेत से सूखे डंठल आदि इक्ट्ठे कर हटाना चाहिए. वहीं कच्चा खाद प्रयोग नहीं करना चाहिए.

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