नाथद्वारा (राजसमंद): श्रीजी हवेली में वर्षो पुरानी पुष्टिमार्गीय परम्परानुसार दीपावली के दिन मंदिर में नाथूवास गौशाला से गौमाता पधारीं और कान जगाई की रस्म पूरी की गई. इससे पहले रूप चतुर्दशी को गायों को मेहंदी, रंग ओर मोरपंख आदि से सजाया गया था.
दीपावली पर श्रीनाथजी को भी विशेष स्वर्ण के वस्त्रों ओर आभूषणों से सजाया गया. श्रीनाथजी, नवनीत प्रियाजी के साथ कांच की हटड़ी में विराजे और विशेष भोग लगाया गया.
इस दौरान देश के विभिन्न कोनों से प्रभु के दर्शनों को भक्त पहुंचे. अनुमान अनुसार करीब पन्द्रह से बीस हजार श्रद्धालुओं ने श्रीजी के दर्शनों का लाभ लिया. नगर और आसपास के सभी होटल और धर्मशालाएं हाउस फुल है. वहीं पुलिस और प्रशासन की ओर से भी चाकचौबंद सुरक्षा व्यवस्था का दावा किया जा रहा है.
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मनाया जाएगा अन्नकूट उत्सव
आज गोशाला से पधारी गायों को ग्वाल बाल रिझाने का प्रयास करेंगे. फिर शाम छः बजे गाये गोवर्धन पूजा के लिए मंदिर के अंदर लाइन जाएगी. वहां मंदिर के गोस्वामी तिलकायत इंद्रदमन जी महाराज उनका पूजन करेंगे. फिर कान में अगले साल जल्दी आने की विनती भी करेंगे.
फिर लगेगा श्रीनाथजी को चावल और अन्य सामग्रियों का भोग
350 वर्षों से ये परंपरा रही है कि श्रीनाथजी के दर्शनों के समय श्रीजी के सामने ही भील आदिवासी समाज के लोग चावल और सारी भोग सामग्री लूट कर ले जाते हैं. इस परंपरा का आनन्द लेने बड़ी संख्या में श्रद्धालु बाहर कतार लगाए खड़े रहते हैं. उम्मीद इस बार भी पूरी है कि यह क्रम बरकरार रहेगा. कार्यक्रम करीब रात्रि एक बजे तक चलेगा फिर दर्शन बंद हो जाएंगे.
गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक त्रेतायुग में श्रीकृष्ण ने बृजवासियों से कहा कि वे इन्द्र देव की जगह गोवर्धन की पूजा करें, क्योंकि गोवर्धन से उनके गायों को चारा मिलता है और गायों पर ही उनका जीवन निर्भर है. ऐसे में गोवर्धन ही उनके पालक हैं. श्रीकृष्ण की बात मानकर सभी बृजवासियों ने ऐसा ही किया. लेकिन इससे इन्द्र देव बड़े ही क्रोधित हो गए और ऐसी मूसलाधार बारिश की कि पूरा क्षेत्र डूबने लगा तब श्रीकृष्ण ने सभी लोगों को संरक्षण देने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी ऊंगली पर उठा लिया और बृजवासियों को उसके नीचे सुरक्षित रखा. इस तरह गोवर्धन पूजा की परंपरा शुरू हो गई. वहीं इस दिन श्रीकृष्ण ने लोगों को प्रकृति से मिलने वाली अनमोल चीजों का महत्व बताया था, इसलिए इसी दिन अन्नकूट पूजा होती है, जिसमें प्रकृति से मिलने वाले तरह-तरह के अनाज, फल और सब्जियों का भोग भगवान को लगाया जाता है.
क्या है अन्नकूट
भिन्न प्रकार यानी अलग-अलग तरह की सब्जियों और अन्न के समूह को अन्नकूट कहा जाता है. अपने सामर्थ्य के मुताबिक इस दिन लोग अलग-अलग प्रकार की सब्जियों को मिलाकर एक विशेष प्रकार की मिक्स सब्जी तैयार करते हैं और इसे भगवान श्रीकृष्ण को चढ़ाते हैं. इसके अलावा तरह-तरह के अन्न के पकवान बनाए और श्रीकृष्ण को चढ़ाए जाते हैं.
गोवर्धन पूजा का प्रभु श्रीनाथजी के मंदिर में विशेष महत्व
दीपावली में गोवर्धन पूजा का प्रभु श्रीनाथजी के मंदिर में विशेष महत्व है. नाथद्वारा में दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट महोत्सव और गोवर्धन पूजा का उत्सव मनाया जाता है. इस दौरान गौ क्रीड़ा के दौरान ग्वाल बाल गायों को रिझाते हैं. गौमाता भी ग्वाल बाल को अपने पुत्र समान समझकर उनके साथ खेलती हैं. सैकड़ों लोगों की भीड़ के बीच होने वाले इस खेल में किसी दर्शक को आज तक चोट नहीं लगी है. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि गौ माता सभी लोगों को पुत्र समान समझकर वात्सल्य स्वरूप उनके साथ खेलती हैं लेकिन उन्हें चोट नहीं पहुंचाती है.
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गौ क्रीड़ा देखने हजारों की संख्या में आते हैं लोग
नाथद्वारा में दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट महोत्सव व गोवर्धन पूजा का उत्सव मनाया जाता है. दीपावली के दिन प्रभु श्रीनाथजी की गौशाला से गायों को श्रीनाथजी मंदिर लाया जाता है. यहां ग्वाल बाल उन्हें खूब रीझाते हैं. इस गौ क्रीड़ा को देखने हजारों की संख्या में लोग आते है. जिसके बाद उन्हें श्रीनाथजी मंदिर में ले जाया जाता है. जहां प्रभु को गोवर्धन पूजा के चौक में विराजित किया जाता है. उनके सामने गायों के खुर से गोवर्धन को कुचला जाता है. इसके पहले मंदिर के महाराज गोवर्धन की पूजा अर्चना करते हैं.
यहां लाने से पहले गायों को खूब सजाया संवारा जाता है. करीब 10 दिन पहले गौशाला में तैयारियां की जाती है. गायों को नहला-धुला कर उनपर मेहंदी लगाकर विभिन्न आकृतियां उकेरी जाती है. उनके सींग को रंग कर उन पर मोरपंख लगाए जाते हैं, गले और पैरों में घुंगरू बांधे जाते हैं.
यहां देखने को मिलती है एक अनूठी परंपरा
गोवर्धन पूजा के बाद गायों को पुनः गौशाला भेज दिया जाता है. यहां एक अनूठी परंपरा देखने को मिलती है. जब महाराज गाय के कान में अगले वर्ष जल्दी आने की बात कहते हैं, हर वर्ष यही क्रम अपनाया जाता है. इसके बाद अन्नकूट का उत्सव मनाया जाता है. इसमें प्रभु श्रीनाथजी के समक्ष एक बड़े कड़ाव में आदमकद तक चावल भरकर रखे जाते हैं. इसके साथ ही अन्य कई भोग सामग्रियां भी रखी जाती हैं. प्रभु श्रीनाथजी के अन्नकूट के दर्शन 9:30 बजे से प्रारंभ होकर 11:00 बजे तक चलते हैं.
चावल और भोग को लूट लेते हैं आदिवासी समुदाय
इसके बाद आदिवासी समुदाय द्वारा प्रभु श्रीनाथजी के मंदिर में जाकर श्रीनाथजी के समक्ष रखें इन चावल व अन्य साग-भाजी, भोग आदि को लूट लिया जाता है. लूट कर लाए चावल को यह आदिवासी बड़ी श्रद्धा से अपने घर ले जाते हैं और सगे संबंधियों में इसे वितरित करते हैं.
यह है आदिवासी समुदाय की मान्यता
आदिवासी समुदाय की मान्यता है कि प्रभु श्रीनाथजी के यह चावल साल भर घर में रखने से उनके घर धन-धान्य बना रहता है. वहीं किसी भी बीमारी में इन चावलों का उपयोग आदिवासी समुदाय के ये लोग औषधि के रूप में करते हैं. हर वर्ष इसी भांति अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है. करीब 350 सालों से चली आ रही है यह परंपरा इस वर्ष भी हर्षोल्लास से मनाई जाएगी.