पाली. प्रदूषण की समस्या का नाम ले तो देश के 102 शहरों में से पाली का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है. लगातार इस प्रदूषण ने पाली को कई दंश दिए हैं. इनमें से बंजर जमीन भी एक है. पाली में संचालित हो रही 600 से ज्यादा कपड़ा इकाइयों से लगातार बहने वाले रंगीन पानी से बांडी नदी के किनारे रोहट तक बसे सभी खेत बंजर हो चुके हैं. इन खेतों में फसलें हो ना अब संभव नहीं रही है और जहां भी फसलें हो रही है वह किसान के लिए नाकाफी है.
1 हजार हेक्टेयर से ज्यादा जमीन बंजर
ऐसे में एक बार फिर से इन बंजर जमीनों को जीवन देने के लिए कृषि वैज्ञानिक अपने जतन करते नजर आ रहे हैं और जिस प्रकार से धीरे-धीरे रंगीन और दूषित पानी रिसने से यह जमीन बंजर हुई है. उसी धीरे-धीरे प्रयास से कृषि वैज्ञानिक इन बंजर जमीनों में लहराती फसलें लगाने की कोशिश कर रहे हैं. कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो पिछले 10 सालों में पाली के कपड़ा इकाइयों से निकला रंगीन पानी बांडी नदी के माध्यम से रोहट होते हुए जोधपुर से आगे निकला है. लगातार से पानी से इस नदी के किनारे बसे सभी खेतों की 1 हजार हेक्टेयर से ज्यादा जमीन दूषित हो चुकी है और इनके कुंओं में भी रंगीन पानी भर चुका है. जमीन के गुणवत्ता की बात करें तो अब रोहट क्षेत्र की ज्यादातर सभी जमीने क्षारीय हो चुकी है. जिनमें कई रसायनों का प्रभाव साफ तौर पर नजर आ रहा है.
फिर से उपजाऊ हो सकती है दूषित बंजर जमीन
इस क्षारीयता को कम करने के लिए किसानों को कृषि वैज्ञानिकों द्वारा जागरूक किया जा रहा है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जिस प्रकार से 10 सालों में रोहट क्षेत्र की जमीने धीरे-धीरे बंजर हुई है. उसी प्रकार धीरे-धीरे ही क्षेत्र की जमीनों को फिर से उपजाऊ किया जा सकता है. इसके लिए किसानों को रसायन जैसी चीजों को छोड़ फिर से पुरानी खेती की परंपराओं पर आना होगा. कृषि वैज्ञानिकों ने बंजर हुई इन जमीनों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सबसे प्रमुख उपाय गोमूत्र और गोबर को ही बताया है, साथ ही कई ऐसे तरीके भी बताए हैं जिनसे धीरे धीरे कर पाली से लेकर रोहट तक की हजारों हेक्टेयर बंजर जमीन को फिर से बेशकीमती जमीन बनाकर वहां लो का उत्पादन किया जा सकता है.
पढ़ें: स्पेशल स्टोरी: जयपुर के कोटपूतली में फैक्ट्रियां छीन रहीं जिंदगी...
पिछले 10 सालों बांडी नदी में बहाया जा रहा प्रदूषित पानी
आपको बता दें कि पाली में संचालित हो रही 600 से ज्यादा कपड़ा इकाइयों से पिछले 10 सालों में लगातार प्रदूषित पानी बांडी नदी में बहाया गया. इससे रोहट तक के सभी खेत बंजर हो गए. किसानों की इस बंजर जमीन का मुद्दा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के पास पहुंचा तो उसके बाद में इन किसानों के हित में आवाज उठी और उसके बाद इन बंजर जमीनों का मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर कई बार उठाया गया.
संकट के बीच नजर आ रहा कपड़ा उद्योग
किसानों द्वारा एनजीटी में दी गई रिपोर्ट में बताया गया कि नेहड़ा बांध से बांधी नदी के बीच में लगभग 2000 हेक्टेयर जमीन प्रदूषण के कारण पूरी तरह से बंजर हो चुकी है. वहीं इस नदी क्षेत्र में आने वाले 600 से ज्यादा हुए पूरी तरह से रंगीन हो चुके हैं. इस रिपोर्ट के आधार पर एनजीटी ने पाली प्रशासन को कार्रवाई करने के आदेश भी दिए थे और उसके बाद जब प्रदूषण नियंत्रण मंडल की ओर से रिपोर्ट बनाई गई, तो उस रिपोर्ट में भी यही बात सामने आई. बंजर होती जमीन के कारण किसानों के विरोध को देखते हुए एनजीटी भी सख्त मूड में नजर आई और पिछले 4 सालों में पाली से 40,000 से ज्यादा परिवारों को रोजगार देने वाला कपड़ा उद्योग भी संकट के बीच नजर आने लगा.
पढ़ें: संकट में जीवनः पाली में भी बढ़ रहा प्रदूषण, गर्भ में पल रहा बच्चा भी नहीं सुरक्षित
पाली में जल्द ही जेडएलडी प्लांट की भी स्थापना
सरकार व प्रशासन की ओर से किसानों की बंजर जमीनों को बचाने के लिए हर प्रयास किया जा रहा है, लेकिन आज तक कोई भी प्रयास सफल नहीं हो पाया है. किसानों की समस्या को देखते हुए अब पाली में जल्द ही जेडएलडी प्लांट की भी स्थापना की जा रही है. कयास लगाए जा रहे हैं कि इस प्लांट के लगने के बाद कपड़ा इकाइयों से निकलने वाला प्रदूषित पानी बांडी नदी में नहीं आएगा और इन किसानों की जमीनों में सुधार आएगा और वर्षों बाद इनके खेतों में फिर से फसलों की बुवाई हो सकेगी.