कुचामन सिटी. कांस के बारे में शहरी स्तर पर कम ही लोग जानते होंगे. एक ऐसा फूल जिसके आधार पर ग्रामीण क्षेत्र में आज भी बारिश की स्थिति का आकलन किया जाता है. इस फूल के खिलने पर माना जाता है कि अब बारिश का सीजन खत्म होने वाला है. ग्रामीण क्षेत्र में परंपरागत रूप से मौसम का अनुमान लगाने के लिए अलग-अलग प्रकार के तरीके अपनाए जाते हैं. इन्हीं तरीकों के जरिए वर्षों से ग्रामीण सर्दी, गर्मी और बारिश के मौसम का अनुमान लगाते रहे हैं. इन्हीं में से एक तरीका कांस के फूल को देखकर मौसम का अनुमान लगाने का भी है. कुचामन सिटी में इन दिनों बड़ी संख्या में कांस के फूल खिले हुए दिखाई दे रहे हैं, इन फूलों को देखकर अब माना जा रहा है कि बारिश का सीजन खत्म होने वाला है. इसके चलते किसान मायूस भी हो गए हैं.
ग्रामीण दशकों से ऐसे ही लगा रहे अनुमानः कांस एक प्रकार की घास होती है, जिसमें रूई की तरह सफेद फूल होते हैं. जब यह फूल खिलने लगते हैं तो इसका मतलब होता है कि अब बारिश खत्म होने वाली है. किसान पुसाराम पिपलोदा ने बताया कि हमारे परिवार के बुजुर्ग बताते थे की कांस का पौधा जब लग जाता है तो यह समझना चाहिए कि अब बारिश नहीं होने के संकेत मिल रहे हैं और फसल खराब या जलने की नौबत आने वाली है. उन्होंने बताया कि यही बातें हम काफी सालों से सुनते आ रहे हैं. आज के समय में मोबाइल व टीवी के जरिए बारिश के अनुमान की जानकारी मिलती है, लेकिन हमारे बुजुर्गों की ओर से जो बातें बताई गई, हम उसी को मानकर आकलन लगाते हैं.
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किसानों ने छोड़ी उम्मीदः कांस के के खिले फूलों को देखने के बाद अब किसानों ने बारिश की उम्मीद छोड़ दी है. इस साल कम बारिश से परेशान परेशान कुचामन क्षेत्र के किसानों का मानना है कि कांस के खिले फूल उन्हें बारिश की विदाई का संदेश दे रहे हैं. गोपालपुरा निवासी प्रगतिशील किसान परसाराम बुगालिया ने बताया कि खेतो की मेड़ और सड़कों के किनारे लंबी घास में रूई जैसे कांस के फूल अब दिखने लगे हैं. यह फूल बताते हैं कि अब बारिश नहीं होगी. इसी फूल को देखकर पुराने लोग बारिश नहीं होने की भविष्यवाणी करते थे और आज के दौर के किसान भी अपने बुजुर्गो की ऐसी बातों पर अमल करते हैं. उन्होंने कहा कि इस साल बारिश कम होने से फसलें बर्बाद हो गई हैं. किसान बारिश की आस लेकर आसमान की ओर ताक रहे थे, लेकिन कांस के फूल खिलने के बाद अब बारिश की उम्मीद छोड़ दी है. फसल में हुए नुकसान को लेकर अब वो सरकार की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं.
बोली लोखरी फूला कांस, अब नहीं बरसा की आसः अपनी कहावतों से मौसम की सटीक टिप्पणी करने वाले कवि घाघ ने लिखा है कि 'बोली लोखरी फूला कांस अब नहीं बरसा की आस' यानी बंजर पड़े खेतों में जब कांस के फूल खिलने लगे तो बारिश की संभावना खत्म हो जाती है. अगर यह कहावत सही मानी जाए तो बरसात होने की संभावना लगभग समाप्त हो चुकी है.
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रामायण काल से जुड़ा है कांस का फूलः आमतौर पर कांस के फूल खाली जमीन पर खुद ही उग जाते हैं. यह कहीं भी एक साथ इतने अधिक मात्रा में नहीं पाए जाते हैं. 20 25 पौधों की झुंड में निश्चित दूरी पर इन्हें देखा जा सकता है. कुचामन क्षेत्र के अलग अलग एरिया में इस तरह कांस के फूलों को देखा जा सकता है. सदियों पहले गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में भी कांस के फूल का जिक्र किया था. यही कारण है गांव के बुजुर्ग मानते हैं कि जो भविष्यवाणी इस फूल को देखकर होती थी वह आज भी सटीक है. बुजुर्ग बताते हैं कि रामचरित मानस में लिखा है 'फूले कांस सकल महि छाई, जिमि वर्षा रितु प्रगट बुढ़ाई, इसका मतलब यही है कि कांस में फूल आ गए तो बरसात खत्म हो गई.
गन्ने की प्रजाति है कांसः कांस एक तरह की गन्ने की प्रजाति है. इसका वैज्ञानिक नाम वाइल्डशुगरकेन है. यह एक ऐसा पौधा है जिसे जानवर भी नहीं खाते. यह स्वतः ही खाली जमीन पर उग आते हैं. पुराने जमाने में कांस के फूलों से गद्दा बनाने का काम किया जाता था.