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Special : स्टूडेंट्स में कॉमर्स का रुझान हो रहा कम, कॉलेजों में 59 फीसदी सीटें खाली, एक्सपर्ट से समझिए कैसे इस ट्रेंड को बदलें

हाड़ौती संभाग में स्टूडेंट्स का रुझान कॉमर्स विषय को लेकर घटता जा रहा है. संभाग के 6 कॉलेज में 50 फीसदी से ज्यादा सीटें खाली पड़ी हैं. एक्सपर्ट से समझिए कॉमर्स विषय के लिए क्यों खत्म हो रहा स्टूडेंट्स का रुझान और कैसे इस विषय में नयापन लाने की है जरूरत...

Trend of commerce decreasing
कॉमर्स का रुझान कम
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Aug 30, 2023, 7:48 PM IST

Updated : Aug 30, 2023, 8:59 PM IST

स्टूडेंट्स में कॉमर्स का रुझान हो रहा कम

कोटा. स्कूल से लेकर कॉलेज तक कॉमर्स विषय को लेकर विद्यार्थियों का रुझान कम होता जा रहा है. स्थिति ऐसी है कि विद्यार्थी कॉमर्स के कोर्सेज में प्रवेश नहीं ले रहे हैं, इसके चलते कॉलेजों में सीट्स खाली जा रही है. वहीं, कला और विज्ञान विषय में ऐसा नहीं है. यहां पर आज भी कई विद्यार्थी प्रवेश से वंचित रह जा रहे हैं. हाड़ौती संभाग में ही कॉमर्स विषय के 6 कॉलेज हैं. इनमें 41 फीसदी सीट्स ही भर पाई हैं, जबकि 59 फीसदी सीट्स आज भी रिक्त हैं.

बीते 3 सालों में राजस्थान बोर्ड की सीट्स की बात की जाए तो पहले कॉमर्स के 65 से 70 हजार विद्यार्थी परीक्षा देते थे, लेकिन ये आंकड़ा अब 30 से 35 हजार के बीच ही रह गया है. कॉमर्स के फील्ड में लगातार गिरावट देखी जा रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि देश पांचवीं अर्थव्यवस्था बन गया है, लेकिन कोर्स अपडेट नहीं होने और इस फील्ड में स्किल्ड पर्सन तैयार नहीं होने के चलते ही यह रुझान कम हुआ है. आने वाले दिनों में देश जब अर्थव्यवस्था में आगे पहुंचेगा, तब इस तरह के स्किल्ड नौजवानों की जरूरत देश को होगी.

पढ़ें. Kota Medical College : सीएम गहलोत कोटा मेडिकल कॉलेज को HLA लैब व मॉड्यूलर लेबर रूम सहित करोड़ों की देंगे सौगात

1624 सीट्स रह गई खाली : कॉलेज एजुकेशन विभाग के असिस्टेंट डायरेक्टर डॉ. रघुराज सिंह परिहार का कहना है कि कोटा संभाग में कॉमर्स की कुल 2740 सीटें हैं. इनमें 1116 विद्यार्थियों ने ही प्रवेश लिया है, जबकि 1624 सीटें खाली हैं. बड़े महाविद्यालय में आज स्थिति यह है कि काफी संख्या में सीट खाली हैं, विद्यार्थी प्रवेश नहीं ले रहे हैं. सबसे बड़ा राजकीय वाणिज्य महाविद्यालय कोटा में 1400 सीट हैं, लेकिन 653 ही विद्यार्थी प्रवेशित हुए हैं. दूसरी तरफ गर्ल्स कॉमर्स कॉलेज में 800 सीट हैं, लेकिन 233 छात्राएं ही इसमें पढ़ाई करने के लिए आगे आई हैं. रामगंजमंडी के कॉलेज में 84 फीसदी सीट खाली हैं. यहां कुल 100 सीटों में केवल 16 विद्यार्थियों ने ही प्रवेश लिया है.

Trend of commerce decreasing
कॉमर्स का रुझान हो रहा कम, देखें आंकड़ा

निचली कक्षाओं में नहीं है कॉमर्स की पढ़ाई : गवर्नमेंट कॉमर्स कॉलेज के प्रिंसिपल पद से सेवानिवृत हुए डॉ. कपिल देव शर्मा का कहना है कि कॉमर्स का स्कूल एजुकेशन से ही रुझान कम हो गया है, क्योंकि स्कूल में कॉमर्स के रिलेटेड सब्जेक्ट नहीं हैं. जब बच्चा 10वीं पास करके निकलता है तो उसके लिए सभी नए विषय होते हैं. कॉर्पोरेट युग में कॉमर्स की जरूरत काफी तेजी से बढ़ रही है. भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में पांचवे स्थान पर है. ऐसे में हमें छोटे लेवल पर ही बच्चों को कॉमर्स से जुड़ी बहुत सारी चीजें सिखानी चाहिए. बिजनेस, इंडस्ट्री और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग के बारे में बताना चाहिए. न्यू एजुकेशन पॉलिसी में इस बात पर फोकस किया जा रहा है कि 11वीं की जगह छठीं से ही कॉमर्स पढ़ाई जाए. तभी बच्चे का रुझान कॉमर्स की तरफ होगा. यह सभी पूरी तरह से मिसिंग है.

अन ऑर्गेनाइज्ड, तब भी सक्सेसफुल क्यों : डॉ. कपिल देव शर्मा का कहना है कि कॉमर्स से जुड़े हुए प्रोफेशन, जैसे चार्टर्ड एकाउंटेंसी, कॉस्ट अकाउंटेंसी, कंपनी सेक्रेटरी हैं. इसे आर्ट, साइंस और बाकी सब्जेक्ट के बच्चे भी पढ़ सकते हैं, लेकिन कॉमर्स के बच्चों के लिए इस फील्ड में एडवांटेज है. इन चारों इंस्टीट्यूट में रेगुलर क्लासरूम, फैकल्टी और इंफ्रास्ट्रक्चर सपोर्ट नहीं है. यह अन ऑर्गेनाइज्ड तरीके से चल रहे हैं, जबकि जॉब और एंप्लॉयमेंट मार्केट में इनके पास आउट की वैल्यू काफी ज्यादा हैं.

यह हैं पिछड़ने के कारण : डॉ. शर्मा का कहना है कि हमारे कॉलेज में हाई क्वालीफाई फैकल्टी, लाइब्रेरी और सभी सुविधाएं हैं. इसके बावजूद हमारे ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट स्टूडेंट्स पिछड़ते जा रहे हैं. इसका एक कारण है फैकल्टी की कमी. इसके अलावा जो फैकल्टी हैं, उनमें कुछ क्वालिटी एजुकेशन नहीं दे पाते. कैंपस में पॉलिटिक्स का इंवॉल्वमेंट होना भी एक कारण है, जिसके चलते स्टूडेंट यूनियन इलेक्शन के बाद बच्चे कॉलेज में आना नहीं चाहते हैं. जब क्लासेस में पढ़ाई नहीं होगी तो बच्चों को जॉब नहीं मिलेगा और इसीलिए रुझान खत्म होता है.

पढ़ें. RTU के इंजीनियरिंग कॉलेज में 60 फीसदी सीटें खाली...कई कॉलेज बंद होने के कागार पर...इन्हें बताया कारण

एक्सपर्ट्स ने यह बताए ये कारण :

1. इंडस्ट्री एक्सपर्ट करें नया सिलेबस तैयार : डॉ. कपिल देव शर्मा के अनुसार कॉमर्स का सिलेबस अपडेटेड नहीं है. उसमें इंडस्ट्री का ओरिएंटेशन बिल्कुल भी नहीं है. ऐसे में जरूरत है कि सिलेबस नया बनाया जाए. ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन लेवल पर इंडस्ट्री के लोग, बिजनेस प्रोफेशनल, बैंकिंग या इंश्योरेंस सेक्टर के लोग सिलेबस फॉर्मेशन करें. उनका भी योगदान होगा तो ऐसे बच्चे तैयार होंगे जिनमें एम्प्लॉयबिलिटी होगी.

2. एक्सपर्ट जाकर पढ़ाएं बच्चों को : कॉमर्स को आर्ट्स के सब्जेक्ट से कम्पेयर नहीं कर सकते हैं. इसमें 50 फीसदी कोर फैकल्टी होनी चाहिए, जबकि 50 फीसदी फैकल्टी बाहर से आनी चाहिए. इनमें सीनियर मैनेजर, कॉरपोरेट सेक्टर, बिजनेस के लोग, इंडस्ट्रियलिस्ट या एंटरप्रेन्योर होने चाहिए.

3. स्किल ओरिएंटेशन कोर्स : बच्चों को केवल बुक नॉलेज नहीं होनी चाहिए. उसको यह पता होना चाहिए कि किस तरह से ऑनलाइन ट्रांजैक्शन किया जा सकता है. किस तरह से जीएसटी और इनकम टैक्स रिटर्न भरते हैं. किस तरह से अकाउंटिंग के सॉफ्टवेयर काम करते हैं. ऑर्गेनाइज्ड ई-ट्रेडिंग या ई-रिटेलिंग पर कैसे काम होता है. ई- डिजिटल मार्केटिंग पर कैसे काम किया जाता है, इन सबका पता होना चाहिए.

4. अच्छे कॉलेज से अंतर क्यों : दिल्ली के श्री राम कॉलेज और कोटा के कॉमर्स कॉलेज के स्टूडेंट में अंतर है, क्योंकि वहां पर प्रोफेशनली लोडेड कोर्स हैं, यहां पर ऐसा नहीं है. वहां पर एक्सपर्ट फैकल्टी बच्चों को इंडस्ट्री के अनुसार तैयार कर रहे हैं. यहां ऐसा नहीं हो रहा, इसीलिए इतना बड़ा गैप नजर आता है. इस पर सरकारों को भी सोचना चाहिए.

पढ़ें. Special : आधे राजस्थान का नहीं सेना भर्ती में रुझान, इन जिलों में 1000 युवा भी नहीं करते आवेदन

5. एप्लीकेशन व स्किल ओरिएंटेड पढ़ाई : कॉमर्स एजुकेशन बहुत अधिक पॉपुलर हो सकता है. अगर यहां पर 50 फीसदी एप्लीकेशन और स्किल ओरिएंटेड बनाया जा सकता है. इसमें वोकेशनल एक्सपेक्ट को लिया जाए. केवल 50 फीसदी ही क्लासरूम टीचिंग हो, कोर फैकल्टी और अलग-अलग फील्ड के प्रैक्टिशनर्स कॉलेज में आएं और वह बच्चों के साथ अपनी सक्सेस स्टोरी शेयर करें.

6. कॉमर्स के बच्चे जॉब सीकर नहीं प्रोवाइडर बनें: हम चाहते हैं कि कॉमर्स पढ़ा हुआ बच्चा जॉब सर्च करने की जगह जॉब प्रोवाइडर बने. इसके लिए जरूरी है कि उसकी सॉफ्ट, सोशल, कम्युनिकेशन और लीडरशिप स्किल अच्छी हो. वह एक अच्छा एंटरप्रेन्योर बन सकता है.

7. इंडस्ट्री के मुताबिक नहीं हैं एक्सपर्ट: देश पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. यहां तेजी से कंपनियां एस्टेब्लिश हो रही हैं और बिजनेस एक्सपेंड हो रहा है. नए-नए बिजनेस वेंचर आ रहे हैं, इसलिए कॉमर्स ग्रेजुएट की बहुत बड़ी मात्रा में जरूर होगी. फिलहाल हमारी तैयारी इंडस्ट्री के अनुसार नहीं है. यहां पर बहुत बड़ा अंतर है.

8. फील्ड एक्सपीरियंस करना जरूरी : थ्योरेटिकल नॉलेज के साथ-साथ उन्हें फील्ड का अनुभव भी करना काफी जरूरी है. इन बच्चों को अलग-अलग तरीकों से केस स्टडी, स्टोरी टेलिंग और बिजनेस गेम्स सिखा दिए जाएं, उनको कॉमर्स के एप्लीकेशन ओरिएंटेड पढ़ाई करवाई जाएगी, तब ही बच्चा इस फील्ड में आगे बढ़ेगा.

9. छोटी जगह पर संभव नहीं : वर्तमान में कॉलेज में स्टाफ की भी शॉर्टेज है. ऐसे में फैकल्टी कम होने के चलते पढ़ाई भी ठीक से नहीं हो पाती है, इसीलिए छोटे कॉलेज में विद्यार्थी की रुचि कम होती है. साथ ही कस्बे या छोटे जिलों में जहां पर इंडस्ट्री ओरिएंटेड पढ़ाई नहीं हो सकती है, वहां कॉमर्स सब्जेक्ट से पास आउट विद्यार्थियों को पूरा रोजगार नहीं मिल पाता है.

स्टूडेंट्स में कॉमर्स का रुझान हो रहा कम

कोटा. स्कूल से लेकर कॉलेज तक कॉमर्स विषय को लेकर विद्यार्थियों का रुझान कम होता जा रहा है. स्थिति ऐसी है कि विद्यार्थी कॉमर्स के कोर्सेज में प्रवेश नहीं ले रहे हैं, इसके चलते कॉलेजों में सीट्स खाली जा रही है. वहीं, कला और विज्ञान विषय में ऐसा नहीं है. यहां पर आज भी कई विद्यार्थी प्रवेश से वंचित रह जा रहे हैं. हाड़ौती संभाग में ही कॉमर्स विषय के 6 कॉलेज हैं. इनमें 41 फीसदी सीट्स ही भर पाई हैं, जबकि 59 फीसदी सीट्स आज भी रिक्त हैं.

बीते 3 सालों में राजस्थान बोर्ड की सीट्स की बात की जाए तो पहले कॉमर्स के 65 से 70 हजार विद्यार्थी परीक्षा देते थे, लेकिन ये आंकड़ा अब 30 से 35 हजार के बीच ही रह गया है. कॉमर्स के फील्ड में लगातार गिरावट देखी जा रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि देश पांचवीं अर्थव्यवस्था बन गया है, लेकिन कोर्स अपडेट नहीं होने और इस फील्ड में स्किल्ड पर्सन तैयार नहीं होने के चलते ही यह रुझान कम हुआ है. आने वाले दिनों में देश जब अर्थव्यवस्था में आगे पहुंचेगा, तब इस तरह के स्किल्ड नौजवानों की जरूरत देश को होगी.

पढ़ें. Kota Medical College : सीएम गहलोत कोटा मेडिकल कॉलेज को HLA लैब व मॉड्यूलर लेबर रूम सहित करोड़ों की देंगे सौगात

1624 सीट्स रह गई खाली : कॉलेज एजुकेशन विभाग के असिस्टेंट डायरेक्टर डॉ. रघुराज सिंह परिहार का कहना है कि कोटा संभाग में कॉमर्स की कुल 2740 सीटें हैं. इनमें 1116 विद्यार्थियों ने ही प्रवेश लिया है, जबकि 1624 सीटें खाली हैं. बड़े महाविद्यालय में आज स्थिति यह है कि काफी संख्या में सीट खाली हैं, विद्यार्थी प्रवेश नहीं ले रहे हैं. सबसे बड़ा राजकीय वाणिज्य महाविद्यालय कोटा में 1400 सीट हैं, लेकिन 653 ही विद्यार्थी प्रवेशित हुए हैं. दूसरी तरफ गर्ल्स कॉमर्स कॉलेज में 800 सीट हैं, लेकिन 233 छात्राएं ही इसमें पढ़ाई करने के लिए आगे आई हैं. रामगंजमंडी के कॉलेज में 84 फीसदी सीट खाली हैं. यहां कुल 100 सीटों में केवल 16 विद्यार्थियों ने ही प्रवेश लिया है.

Trend of commerce decreasing
कॉमर्स का रुझान हो रहा कम, देखें आंकड़ा

निचली कक्षाओं में नहीं है कॉमर्स की पढ़ाई : गवर्नमेंट कॉमर्स कॉलेज के प्रिंसिपल पद से सेवानिवृत हुए डॉ. कपिल देव शर्मा का कहना है कि कॉमर्स का स्कूल एजुकेशन से ही रुझान कम हो गया है, क्योंकि स्कूल में कॉमर्स के रिलेटेड सब्जेक्ट नहीं हैं. जब बच्चा 10वीं पास करके निकलता है तो उसके लिए सभी नए विषय होते हैं. कॉर्पोरेट युग में कॉमर्स की जरूरत काफी तेजी से बढ़ रही है. भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में पांचवे स्थान पर है. ऐसे में हमें छोटे लेवल पर ही बच्चों को कॉमर्स से जुड़ी बहुत सारी चीजें सिखानी चाहिए. बिजनेस, इंडस्ट्री और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग के बारे में बताना चाहिए. न्यू एजुकेशन पॉलिसी में इस बात पर फोकस किया जा रहा है कि 11वीं की जगह छठीं से ही कॉमर्स पढ़ाई जाए. तभी बच्चे का रुझान कॉमर्स की तरफ होगा. यह सभी पूरी तरह से मिसिंग है.

अन ऑर्गेनाइज्ड, तब भी सक्सेसफुल क्यों : डॉ. कपिल देव शर्मा का कहना है कि कॉमर्स से जुड़े हुए प्रोफेशन, जैसे चार्टर्ड एकाउंटेंसी, कॉस्ट अकाउंटेंसी, कंपनी सेक्रेटरी हैं. इसे आर्ट, साइंस और बाकी सब्जेक्ट के बच्चे भी पढ़ सकते हैं, लेकिन कॉमर्स के बच्चों के लिए इस फील्ड में एडवांटेज है. इन चारों इंस्टीट्यूट में रेगुलर क्लासरूम, फैकल्टी और इंफ्रास्ट्रक्चर सपोर्ट नहीं है. यह अन ऑर्गेनाइज्ड तरीके से चल रहे हैं, जबकि जॉब और एंप्लॉयमेंट मार्केट में इनके पास आउट की वैल्यू काफी ज्यादा हैं.

यह हैं पिछड़ने के कारण : डॉ. शर्मा का कहना है कि हमारे कॉलेज में हाई क्वालीफाई फैकल्टी, लाइब्रेरी और सभी सुविधाएं हैं. इसके बावजूद हमारे ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट स्टूडेंट्स पिछड़ते जा रहे हैं. इसका एक कारण है फैकल्टी की कमी. इसके अलावा जो फैकल्टी हैं, उनमें कुछ क्वालिटी एजुकेशन नहीं दे पाते. कैंपस में पॉलिटिक्स का इंवॉल्वमेंट होना भी एक कारण है, जिसके चलते स्टूडेंट यूनियन इलेक्शन के बाद बच्चे कॉलेज में आना नहीं चाहते हैं. जब क्लासेस में पढ़ाई नहीं होगी तो बच्चों को जॉब नहीं मिलेगा और इसीलिए रुझान खत्म होता है.

पढ़ें. RTU के इंजीनियरिंग कॉलेज में 60 फीसदी सीटें खाली...कई कॉलेज बंद होने के कागार पर...इन्हें बताया कारण

एक्सपर्ट्स ने यह बताए ये कारण :

1. इंडस्ट्री एक्सपर्ट करें नया सिलेबस तैयार : डॉ. कपिल देव शर्मा के अनुसार कॉमर्स का सिलेबस अपडेटेड नहीं है. उसमें इंडस्ट्री का ओरिएंटेशन बिल्कुल भी नहीं है. ऐसे में जरूरत है कि सिलेबस नया बनाया जाए. ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन लेवल पर इंडस्ट्री के लोग, बिजनेस प्रोफेशनल, बैंकिंग या इंश्योरेंस सेक्टर के लोग सिलेबस फॉर्मेशन करें. उनका भी योगदान होगा तो ऐसे बच्चे तैयार होंगे जिनमें एम्प्लॉयबिलिटी होगी.

2. एक्सपर्ट जाकर पढ़ाएं बच्चों को : कॉमर्स को आर्ट्स के सब्जेक्ट से कम्पेयर नहीं कर सकते हैं. इसमें 50 फीसदी कोर फैकल्टी होनी चाहिए, जबकि 50 फीसदी फैकल्टी बाहर से आनी चाहिए. इनमें सीनियर मैनेजर, कॉरपोरेट सेक्टर, बिजनेस के लोग, इंडस्ट्रियलिस्ट या एंटरप्रेन्योर होने चाहिए.

3. स्किल ओरिएंटेशन कोर्स : बच्चों को केवल बुक नॉलेज नहीं होनी चाहिए. उसको यह पता होना चाहिए कि किस तरह से ऑनलाइन ट्रांजैक्शन किया जा सकता है. किस तरह से जीएसटी और इनकम टैक्स रिटर्न भरते हैं. किस तरह से अकाउंटिंग के सॉफ्टवेयर काम करते हैं. ऑर्गेनाइज्ड ई-ट्रेडिंग या ई-रिटेलिंग पर कैसे काम होता है. ई- डिजिटल मार्केटिंग पर कैसे काम किया जाता है, इन सबका पता होना चाहिए.

4. अच्छे कॉलेज से अंतर क्यों : दिल्ली के श्री राम कॉलेज और कोटा के कॉमर्स कॉलेज के स्टूडेंट में अंतर है, क्योंकि वहां पर प्रोफेशनली लोडेड कोर्स हैं, यहां पर ऐसा नहीं है. वहां पर एक्सपर्ट फैकल्टी बच्चों को इंडस्ट्री के अनुसार तैयार कर रहे हैं. यहां ऐसा नहीं हो रहा, इसीलिए इतना बड़ा गैप नजर आता है. इस पर सरकारों को भी सोचना चाहिए.

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5. एप्लीकेशन व स्किल ओरिएंटेड पढ़ाई : कॉमर्स एजुकेशन बहुत अधिक पॉपुलर हो सकता है. अगर यहां पर 50 फीसदी एप्लीकेशन और स्किल ओरिएंटेड बनाया जा सकता है. इसमें वोकेशनल एक्सपेक्ट को लिया जाए. केवल 50 फीसदी ही क्लासरूम टीचिंग हो, कोर फैकल्टी और अलग-अलग फील्ड के प्रैक्टिशनर्स कॉलेज में आएं और वह बच्चों के साथ अपनी सक्सेस स्टोरी शेयर करें.

6. कॉमर्स के बच्चे जॉब सीकर नहीं प्रोवाइडर बनें: हम चाहते हैं कि कॉमर्स पढ़ा हुआ बच्चा जॉब सर्च करने की जगह जॉब प्रोवाइडर बने. इसके लिए जरूरी है कि उसकी सॉफ्ट, सोशल, कम्युनिकेशन और लीडरशिप स्किल अच्छी हो. वह एक अच्छा एंटरप्रेन्योर बन सकता है.

7. इंडस्ट्री के मुताबिक नहीं हैं एक्सपर्ट: देश पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. यहां तेजी से कंपनियां एस्टेब्लिश हो रही हैं और बिजनेस एक्सपेंड हो रहा है. नए-नए बिजनेस वेंचर आ रहे हैं, इसलिए कॉमर्स ग्रेजुएट की बहुत बड़ी मात्रा में जरूर होगी. फिलहाल हमारी तैयारी इंडस्ट्री के अनुसार नहीं है. यहां पर बहुत बड़ा अंतर है.

8. फील्ड एक्सपीरियंस करना जरूरी : थ्योरेटिकल नॉलेज के साथ-साथ उन्हें फील्ड का अनुभव भी करना काफी जरूरी है. इन बच्चों को अलग-अलग तरीकों से केस स्टडी, स्टोरी टेलिंग और बिजनेस गेम्स सिखा दिए जाएं, उनको कॉमर्स के एप्लीकेशन ओरिएंटेड पढ़ाई करवाई जाएगी, तब ही बच्चा इस फील्ड में आगे बढ़ेगा.

9. छोटी जगह पर संभव नहीं : वर्तमान में कॉलेज में स्टाफ की भी शॉर्टेज है. ऐसे में फैकल्टी कम होने के चलते पढ़ाई भी ठीक से नहीं हो पाती है, इसीलिए छोटे कॉलेज में विद्यार्थी की रुचि कम होती है. साथ ही कस्बे या छोटे जिलों में जहां पर इंडस्ट्री ओरिएंटेड पढ़ाई नहीं हो सकती है, वहां कॉमर्स सब्जेक्ट से पास आउट विद्यार्थियों को पूरा रोजगार नहीं मिल पाता है.

Last Updated : Aug 30, 2023, 8:59 PM IST
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