करौली. करौली-धौलपुर लोकसभा सीट पर हर बार की तरह इस बार भी चुनावी मुकाबले में सीधी टक्कर देखने को मिल रही है. ऐसे में जहां भाजपा ने तीसरी बार डॉ. मनोज राजोरिया पर विश्वास जताते हुए पार्टी का उम्मीदवार बनाया है. वहीं कांग्रेस ने धौलपुर जिले के सरमथुरा निवासी युवा चेहरे संजय कुमार जाटव को चुनावी दंगल में उतारा है. बसपा ने करौली के सपोटरा तहसील निवासी और पूर्व प्रधान रामकुमार बैरवा को टिकट दिया है.
अगर पूर्व की बात की जाए तो करौली-धौलपुर लोकसभा क्षेत्र में बसपा की कोई हवा नजर नहीं आ रही है. वहीं पिछले लोकसभा चुनाव में भी बसपा लगभग 25 हजार वोटों पर ही सिमट कर रह गई थी. सही मायने में तो अभी तक करौली-धौलपुर लोकसभा सीट से भाजपा-कांग्रेस की सीधी टक्कर मानी जा रही है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते भाजपा के उम्मीदवार डॉ. मनोज राजोरिया ने जीत हासिल की थी. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा की राजोरिया इस बार भी जीत पर अपना कब्जा जमा पाएंगे या नहीं, यह तो करौली-धौलपुर क्षेत्र की जनता ही तय करेगी.
हालांकि करौली-धौलपुर के प्रमुख मुद्दे चंबल का पानी और रेल लाइन का काम अधूरा काम जस का तस बना हुआ है. चाहे मोदी सरकार इन मुद्दों को प्रक्रियाधीन रखी हो, लेकिन अभी भी यह मुद्दे अभी भी जनता की जुबान पर बरकरार हैं.
ऐसे में अगर बात की जाए विधानसभा चुनाव 2018 की तो इस चुनाव में करौली जिले की चार सीटों में से तीन पर कांग्रेस और एक सीट पर बसपा ने जीत दर्ज की है. वहीं धौलपुर जिले की चार सीटों में से तीन पर कांग्रेस और भाजपा ने एक सीट पर कब्जा किया है. करौली में भाजपा का विधानसभा चुनाव में सूपड़ा साफ हो गया था. वहीं धौलपुर में एक सीट पर जीत दर्ज हुई, जिसमें भाजपा की इज्जत बच पाई.
ये हैं भाजपा की कमजोरियां
भाजपा उम्मीदवार डॉ. मनोज राजोरिया ने क्षेत्र की जनता से जो प्रमुख वादे किए थे, उन वादों पर खरा नहीं उतर पाए. करौली में रेल परियोजना, चंबल का पानी जनता के प्रमुख मुद्दे थे. पांच साल के कार्यकाल में जनता से न के बराबर संपर्क रहा है. वहीं दूसरी ओर करौली-धौलपुर विधानसभा की आठ सीटों में से मात्र एक ही सीट पर जीत दर्ज कर पाना भाजपा की कमजोरी को दर्शाता है.
ये हैं कांग्रेस की कमजोरियां
विधानसभा चुनाव में किए गए वादों के मुताबिक किसानों की कर्जमाफी, बेरोजगारों को भत्ता देने के वादों पर पूरी तरीके से धरातल पर खरा नहीं उतरना, कांग्रेस द्वारा किए हुए वादों पर निवर्तमान सांसदों द्वारा क्षेत्र के विकास कार्य नहीं कराना और कांग्रेस सीट के प्रमुख दावेदार माने जा रहे लक्खीराम बैरवा को टिकट नहीं मिलना मुद्दे हैं. बताते चलें कि टिकट के दावेदार माने जा रहे लक्खीराम बैरवा को टिकट न मिलने से बैरवा समाज ने क्षेत्र में कई जगहों पर पार्टी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी किया. इस वजह से भी बैरवा समाज में सीधी नाराजगी देखी गई.
भाजपा की मजबूती
2019 का लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर लड़ना, पाकिस्तान में एयर स्ट्राइक, सर्जिकल स्ट्राइक से जनता का दिल जीतना, भाजपा द्वारा चलाई गई उज्जवला योजना, गांव-गांव बिजली पहुंचाना, आयुष्मान भारत, किसान सम्मान निधि योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण आदि मुद्दों को लेकर चुनाव जीतने की दम भरने की कोशिश की जा रही है.
कांग्रेस की मजबूती
विधानसभा चुनावों में संसदीय क्षेत्र की छह सीटों पर कांग्रेस का कब्जा, संसदीय क्षेत्र में जातिगत समीकरणों को देखते हुए जाटव को प्रत्याशी बनाना, अगर केंद्र में सरकार बनाती है तो किसानों के लिए मिनिमम इनकम योजना, राजस्थान में किसान कर्जमाफी, संसदीय क्षेत्र के सपोटरा विधानसभा क्षेत्र से मंत्री रमेश मीणा का वर्चस्व होना आदि. कांग्रेस इन मुद्दों को लेकर चुनाव जीतने की कोशिश कर रही है.
बहरहाल जो भी हो 6 मई को दोनों पार्टियों में से एक प्रत्याशी को जनता अपना मत देकर सांसद चुनेगी, लेकिन उससे पहले भी राजस्थान के कद्दावर नेताओं ने भी अपना दमखम लगाना शुरू कर दिया है. जहां प्रत्याशियों के नामांकन के दौरान भाजपा की तरफ से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने जनता का मन मोहा तो दूसरी ओर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, डिप्टी सीएम सचिन पायलट सहित कांग्रेस के कद्दावर नेताओं ने भी जनता का मन मोहने का काम किया है.