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जोधपुरः चिंकारा को अपने बच्चे की तरह पालती हैं विश्नोई समाज की औरतें, जरूरत पर पिलाती हैं अपना दूध

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Published : Apr 18, 2020, 12:19 PM IST

विश्नोई जाति वन्यजीव और पेड़ पौधों को बचाने की एक विशेष जाति के रूप में पहचान रखती हैं. भोपालगढ़ में क्षेत्र के कई गांवों में विश्नोई जाति की महिलाएं वन्य जीव की माता बनकर सेवा करती हैं. संकट में आने पर चिंकारा को ये माताएं अपना दूध पिलाने से पीछे नहीं हटती. इसी पर पेश है, ईटीवी की एक खास रिपोर्ट...

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चिंकारा को अपने बच्चे की तरह पालती हैं विश्नोई समाज की औरतें

भोपालगढ़ (जोधपुर). मां को सम्मान देने के लिए मदर्स डे का आयोजन होता है। लेकिन, भोपालगढ़ में ये माताएं अपने आप में अनूठी है. भोपालगढ़ के हिंगोली, अरटिया खुर्द, झालामलिया, नांदिया प्रभावती इलाके में बिश्नोई समाज की महिलाओं में चिंकारा जैसे वन्यजीवों के लिए ममता के कई उदाहरण देखने को मिल जाएंगे. स्थिति ये है कि, संकट में आने पर चिंकारा को ये माताएं अपना दूध पिलाने से पीछे नहीं हटती.

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चिंकारा को अपने बच्चे की तरह पालती हैं विश्नोई समाज की औरतें

चिंकारा को राजस्थान के राज्य पशु का दर्जा प्राप्त है. इसे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में भी संरक्षित घोषित किया गया है. लेकिन, इस प्राणी के संरक्षण के लिए बिश्नोई समाज करीब साढ़े पांच सौ साल से काम कर रहा है. दरअसल करीब साढ़े पांच सौ साल पहले गुरु जंभेश्वरजी ने जीवन के 29 नियम बताए थे, और उनमें एक नियम चिंकारा सहित अन्य प्राणियों को अपने परिवार के सदस्यों की तरह प्रेम करना भी शामिल है. ये समुदाय आज भी इसी परम्परा पर कायम है.

पढ़ेंः COVID-19 विशेषः कोरोना के जद में कैसे फंसता गया राजस्थान...देश में बन गया चौथा संक्रमित राज्य

गांव या ओरण में कोई घायल चिंकारा—हिरण मिल जाए तो, इस समुदाय के लोग उसे अपने घर लाकर उसकी देखभाल परिवार के सदस्य की तरह करते है. भोपालगढ़ में ऐसे कई उदाहरण सामने आए है जब महिलाओं ने नवजात चिंकारा को अपना दूध तक पिलाकर जीवनदान दिया. इसमें अनोखी बात ये है कि, महिलाओं से मां का स्नेह पाकर ये जानवर भी उनसे हिल मिल जाते हैं और दूध पीने के दौरान किसी तरह की हानि नहीं पहुंचाते हैं.

हिरण का एक बच्चा पाल रही निवर्तमान पंचायत समिति सदस्य सुनीता बिश्नोई ने कहा कि, ये छोटा सा हिरण मेरी जिंदगी है, मैं इसे अपने बच्चे की तरह प्यार देती हूं. ‘मैं इसे अपना दूध पिलाती हूं और खाना खिलाती हूं. मैं इस बात का भी ध्यान रखती हूं कि, घर में इसे सही तरह से प्यार मिल रहा है या नहीं. अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मांगी कहती हैं कि ‘जब तक हम इनके साथ हैं ये आनाथ नहीं हैं, इनके पास मां है जो इनकी हर चीजों का ख्याल रखती हैं.

भोपालगढ़ (जोधपुर). मां को सम्मान देने के लिए मदर्स डे का आयोजन होता है। लेकिन, भोपालगढ़ में ये माताएं अपने आप में अनूठी है. भोपालगढ़ के हिंगोली, अरटिया खुर्द, झालामलिया, नांदिया प्रभावती इलाके में बिश्नोई समाज की महिलाओं में चिंकारा जैसे वन्यजीवों के लिए ममता के कई उदाहरण देखने को मिल जाएंगे. स्थिति ये है कि, संकट में आने पर चिंकारा को ये माताएं अपना दूध पिलाने से पीछे नहीं हटती.

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चिंकारा को अपने बच्चे की तरह पालती हैं विश्नोई समाज की औरतें

चिंकारा को राजस्थान के राज्य पशु का दर्जा प्राप्त है. इसे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में भी संरक्षित घोषित किया गया है. लेकिन, इस प्राणी के संरक्षण के लिए बिश्नोई समाज करीब साढ़े पांच सौ साल से काम कर रहा है. दरअसल करीब साढ़े पांच सौ साल पहले गुरु जंभेश्वरजी ने जीवन के 29 नियम बताए थे, और उनमें एक नियम चिंकारा सहित अन्य प्राणियों को अपने परिवार के सदस्यों की तरह प्रेम करना भी शामिल है. ये समुदाय आज भी इसी परम्परा पर कायम है.

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गांव या ओरण में कोई घायल चिंकारा—हिरण मिल जाए तो, इस समुदाय के लोग उसे अपने घर लाकर उसकी देखभाल परिवार के सदस्य की तरह करते है. भोपालगढ़ में ऐसे कई उदाहरण सामने आए है जब महिलाओं ने नवजात चिंकारा को अपना दूध तक पिलाकर जीवनदान दिया. इसमें अनोखी बात ये है कि, महिलाओं से मां का स्नेह पाकर ये जानवर भी उनसे हिल मिल जाते हैं और दूध पीने के दौरान किसी तरह की हानि नहीं पहुंचाते हैं.

हिरण का एक बच्चा पाल रही निवर्तमान पंचायत समिति सदस्य सुनीता बिश्नोई ने कहा कि, ये छोटा सा हिरण मेरी जिंदगी है, मैं इसे अपने बच्चे की तरह प्यार देती हूं. ‘मैं इसे अपना दूध पिलाती हूं और खाना खिलाती हूं. मैं इस बात का भी ध्यान रखती हूं कि, घर में इसे सही तरह से प्यार मिल रहा है या नहीं. अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मांगी कहती हैं कि ‘जब तक हम इनके साथ हैं ये आनाथ नहीं हैं, इनके पास मां है जो इनकी हर चीजों का ख्याल रखती हैं.

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