भोपालगढ (जोधपुर). महामारी की मार झेल रहा बाजार अब मंदी से उबरने लगा है. कपड़ा बाजार में इन दिनों कुछ ज्यादा ही हलचल है. सावन के साथ राजस्थानी लहरिया ने उल्लास की लहरें ला दी है. इससे सावन की हरियाली के बीच दुकानदारों के चेहरे भी दमक रहे हैं.
महिलाओं में लहरिया वस्त्रों का वैसे ही क्रेज रहता है, लेकिन सावन के दौरान यह सिर चढऩे लगता है. विभिन्न त्योहारों में सुहागिनें लहरिया पोशाक में ही नजर आती है. कार्यक्रमों में विभिन्न रंगों के लहरिया पोशाक में सजी-धजी महिलाएं अलग ही नजर आती है. लहरिया राजस्थानी जीवन की छाप छोड़ जाता है.
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खुश नजर आ रहे व्यवसायी
लहरिया की मांग बढऩे से दुकानदार खुश नजर आ रहे हैं. अच्छी खरीदारी की उम्मीद में व्यवसायियों ने लहरिया की एक से एक डिजाइन और कलर का स्टॉक कर रखा है. दुकानों के बाहर प्रदर्शन के लिए लगाई जाने वाली पोशाक में भी इन दिनों लहरिया खास जगह बनाए हुए है. हर वर्ग और उम्र की महिलाओं में भी लहरिया का क्रेज बना हुआ है.
सावन में लहरिया पहनने का मुख्य उद्देश्य बारिश और पानी के मौसम को उत्सव के रूप में मनाना है. लहरिया को एक तरह से सौभाग्य का प्रतीक माना गया है. कुछ प्रिंट और रंग तो बेहद पसंद किए जाते हैं. शिव-गौरी की पूजा में इसका बहुत महत्व है, यही कारण है कि सावन में की जाने वाले शिव-गौरी की पूजा में सुहागिनें खासतौर से लहरिया पहनती है. लहर सी बनी होने से लहरिया परम्परागत रूप से गांवों में ओढ़णी और शहरी कल्चर में महिलाएं साड़ी पहनना पसंद करती है. इसे देखते हुए ओढ़णी के साथ साडियां भी लहरिया प्रिंट में आ रही है. इस प्रिंट में पानी की लहरों सी बनावट साफ नजर आती है. ऊपर-नीचे उठती हुई आड़ी-तिरछी लकीरों की छाप एक नया भाव व्यक्त करती हैं. लहरों सी बनी होने के कारण इस प्रिंट को लहरिया नाम मिला हुआ है.
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नवविवाहिताओं को ससुराल का उपहार
राजस्थानी संस्कृति में लहरिया पहनना सौभाग्य का प्रतीक माना गया है. लिहाजा सावन माह में नवविवाहिताओं को लहरिया और हरे कांच की चूडिय़ां उपहार में भेजी जाती है. शादी के बाद पहला सावन आने पर ससुराल पक्ष की ओर से नवविवाहिता को यह भेंट मिलती है, जो उसके वैवाहिक जीवन के लिए बेहद खास अवसर माना गया है. हरे रंग को जीवन में खुशियों का प्रतीक माना गया है इसलिए इस शुभ अवसर पर हरे रंग की चूडिय़ों का उपहार मिलता है.