लूणी (जोधपुर). भारत में मिठाइयों का क्रेज कितना है ये बताने की जरूरत नहीं है. किसी भी छोटे-बड़े मौकों को मिठाइयों के साथ सेलिब्रेट किया जाता है. फलों का राजा अगर आम है. तो मिठाइयों का राजा रसगुल्ला है, इससे सभी सहमत होंगे. लेकिन कोरोना वायरस के कारण लगे लॉकडाउन ने पूरी दुनिया को घुटनों के बल ला दिया है. लॉकडाउन में सभी उद्योग धंधे चौपट हो गए हैं. वहीं मिठाई का कारोबार भी लॉकडाउन में अपनी मिठास नहीं बचा सका.
जोधपुर के लूणी के रसगुल्लों को लोग बड़े चाव से खाते हैं. लूणी के रसगुल्लों की देश में दूर-दूर तक मिठास फैली हुई है. लेकिन लॉकडाउन ने रसगुल्लों का व्यापार पूरी तरह से चौपट हो गया है. हलवाई लागत भी नहीं कमा पा रहे हैं. व्यापारी लॉकडाउन में खपत कम होने से घाटे में जा रहे हैं.
क्या कहना है लूणी के रसगुल्ला व्यापारियों का
ईटीवी भारत की टीम ने लॉकडाउन में रसगुल्ला व्यापारियों से बातचीत की. व्यापारियों ने बताया कि रसगुल्ले के व्यापार से जुडे़े लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है. बाजार सूने पड़े हैं. खपत पहले से 90 प्रतिशत गिर गई है. इसका कारण पूछने पर लूणी के रसगुल्ला व्यापारी अमित ने बताया कि आम दिनों में 40 से 50 किलो रसगुल्लों की खपत हो जाती थी. लेकिन कोरोना के बाद लगे लॉकडाउन में खरीद घटकर 5 से 7 किलो पर समिट गई है.
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वहीं दूसरे व्यापारी मुकेश परिहार ने बताया कि बाजारों से लोगों की भीड़ गायब है. जिसके चलते रसगुल्लों की बिक्री कम हो गई है. लॉकडाउन से पहले रसगुल्लों को दूसरे राज्यों में ट्रेन के माध्यम से निर्यात किया जाता था. लेकिन अब ट्रेनों का आवागमन भी लगभग बंद है. ऐसे में व्यापार पूरी तरह से चौपट हो गया है. नदीम खान ने बताया कि लॉकडाउन में घर चलाना मुश्किल हो गया है. पहले हजारों रुपए का कारोबार होता था लेकिन आज ये हालात हो गए हैं कि दिन में 500 रुपए की भी कमाई नहीं हो रही है. दुकान का खर्चा वहन करना मुश्किल होता जा रहा है.
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बड़ी संख्या में हलवाई और मजदूर बेरोजगार
लूणी कस्बे में बड़ी संख्या में रसगुल्ले बनाने वाले कारखाने हैं. जिनमें बड़ी संख्या में हलवाई और श्रमिक जुडे़ हुए थे. लेकिन व्यापार चौपट होने के चलते व्यापारियों ने उनको नौकरी से निकाल दिया है. अब केवल इक्का-दुक्का हलवाई और मजदूर ही इस काम में लगे हुए हैं.
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दाम कम किए फिर भी नहीं बड़ी बिक्री
व्यापारियों ने रसगुल्लों की कीमत में भारी कटौती की है. लेकिन फिर भी बिक्री जस की तस बनी हुई है. कोरोना से पहले 1 किलो रसगुल्लों का मार्केट में भाव 150 रुपए था. जो लॉकडाउन के बाद 80 से 90 रुपए प्रतिकिलो हो गया है. भाव में कमी करने के बाद भी रसगुल्लों के व्यापार में कोई रौनक नहीं आई. व्यापारियों का कहना है कि जब तक हालात सामान्य नहीं हो जाते, तब तक रसगुल्लों के व्यापार का फिर से गुलजार होने की संभावना नहीं है.
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लूणी जंक्शन से दक्षिण भारत के विभिन्न हिस्सों में सीधी रेल सेवा होने के चलते यहां पर बड़ी संख्या में यात्रियों का आना-जाना लगा रहता था. उस हिसाब से रसगुल्लों की जमकर खपत होती थी. 65 साल पुराने मिठास के कारोबार को कोरोना की नजर लग गई है. यह देखना दिलचस्प होगा कि कब लोग घरों से बाहर निकलेंगे और रसगुल्लों के स्वाद से अपनी और व्यापार की मिठास वापस लाते हैं.