जोधपुर. राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी जोधपुर की पहचान इसका भीतरी शहर है, जहां ऐतिहासिक घंटाघर,ब्लू सिटी की गलियां और मेहरानगढ़ के साथ-साथ अपणायत है. यह सब जोधपुर शहर विधानसभा में आते हैं, जिसे जोधपुर विधानसभा भी कहा जाता है. भीतरी शहर सैंकडों छोटी-छोटी तंग गलियों में फैला है. इन गलियों का लंबा सफर हर कोई लंबे समय तक नहीं कर सकता है. बाहर आना ही पड़ता है. बहुत कम लोग होते हैं जो पूरा कर पाते हैं.
कमोबेश इस विधानसभा क्षेत्र की राजनीति भी कुछ ऐसी ही है. बीते चार चुनावों की बात करें तो कांग्रेस को सिर्फ 2018 में ही सफलता मिली है. पिछले चुनाव में कांग्रेस की मनीषा पंवार जीती थीं. 2003, 2008 और 2013 में भाजपा ने जीत दर्ज की थी. 2018 से पहले 1998 में कांग्रेस जीती थी. यही कारण है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए 15 साल बाद मिली जीत को बरकरार रखना चुनौति होगा तो भाजपा के लिए वापस कब्जा जमाने की चुनौति होगी.
जोधपुर शहर विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण, महाजन-बनिया, अल्पसंख्यक और ओबीसी के मतदाता हैं. इस सीट से 1957 में पूर्व महाराजा हनवंत सिंह विजयी हुए थे. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बरकतुल्लाह खान तीन बार विधानसभा पहुंचे थे. तीसरी बार वे 1967 में जीते थे. उसके बाद से अब तक कांग्रेस सिर्फ तीन बार ही जीत सकी है. भाजपा से पहले जनसंघ, जनता पार्टी के पास सीट रही है. यह दर्शााता है कि यहां कांग्रेस के लिए हमेशा संघर्ष की स्थिति रही है. हर तीन चुनाव बाद ही कांग्रेस जीती है.
पिछली बार बदली रणनीति, इस बार भाजपा की बारी : कांग्रेस 1998 से 2013 तक इस सीट पर महाजन वर्ग से ही उम्मीदवार बनाती रही, जबकि भाजपा ब्राह्मण को. 2008 के परिसीमन के साथ भाजपा ने रणनीति बदली और ब्राह्मण की जगह महाजन वर्ग को उतारा. ब्राह्मण को सूरसागर भेज दिया. इसका फायदा मिला और 2008 व 2013 में जीत दर्ज हुई, क्योंकि भाजपा को महाजन के साथ-साथ ब्राह्मण और ओबीसी मतदाताओं के वोट मिले. 2018 में अशोक गहलोत ने रणनीति बदली और सबको चौंकाते हुए ओबीसी वर्ग से रावणा राजपूत समाज की मनीषा पंवार को मैदान में उतारा, जिन्होंने अतुल भंसाली को हरा दिया. यही कारण है कि इस सीट से भाजपा में ओबीसी दावेदार हो गए हैं. ऐसे में देखने वाली बात यह होगी कि इस बार भाजपा किस पर दांव चलती है.
विधायक बोलीं- विकास करवाया, भाजपा का आरोप- समुदाय विशेष को दिया लाभ : मौजूदा विधायक मनीषा पंवार का कहना है कि यह सीट लंबे समय तक भाजपा के पास रही, लेकिन विकास नहीं हुआ. जबकि हमने भीतरी शहर पर ध्यान दिया. स्वास्थ्य सुविधाएं विकसित की, नए सडकें बनाई, पर्यटन को बढ़ावा दिया. यह बात भी सही है कि जोधपुर को लेकर हुई बड़ी घोषणाओं के काम इसी क्षेत्र में हुए हैं. 2018 में भाजपा के प्रत्याशी रहे अतुल भंसाली का कहना है कि सरकार खुद दो-ढाई साल आपस में लड़ती रही. भीतरी शहर में जो भी काम हो रहे हैं, समुदाय विशेष के लिए हो रहे हैं. हर योजना में प्रदेश सरकार उनको लाभान्वित कर रही है. गहलोत सरकार के आधे-अधूरे काम के चलते शहर की सड़कें टूटी पड़ी हैं. भ्रष्टाचार का बोलबाला है.
मौजूदा विधायक ने क्या कहा ? : मौजूदा बीजेपी से विधायक अनिता भदेल ने अपने कार्यकाल में हुए विकास कार्यों का चर्चा करते हुए बताया कि सीआर
यह है जातिगत समीकरण : जोधपुर शहर विधानसभा क्षेत्र में 198172 मतदाता हैं. इनमें 100449 पुरुष, 97716 महिलाएं और 8 ट्रांसजेंडर हैं. जातिगत समीकरण की बात की जाए तो अनुमानित तौर पर यहां 38 हजार महाजन-बनिया, 32 हजार अल्पसंख्यक, 21 हजार रावणा राजपूत, 18 हजार ब्राह्मण, 15 हजार कुम्हार, 8 से 10 हजार घांची, 8 हजार जाट, सोनी 5 हजार, सैन 3 हजार, माली 6 हजार, दर्जी 3 हजार, गुर्जर 5 हजार और करीब 18 से 20 हजार अनुसूचित जाति के मतदाता हैं. इसके अलावा अन्य जातियां भी हैं.
2003 से 2018 तक के जानें सियासी हाल :
2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जुगल काबरा को दूसरी बार मैदान में उतारा था. भाजपा ने सूर्यकांता व्यास को मैदान में उतारा था. दोनों की दूसरी भिडंत थी. 1998 में काबरा सूर्यकांता व्यास को 10 हजार से अधिक मतों से हराकर विधायक बने थे. 2003 में दोनों के बीच कड़ी टक्कर हुई थी. सूर्यकांता व्यास को 29160 मत मिले, जबकि काबरा को 26084. सूर्यकांता व्यास 3070 मतों से चुनाव जीत गईं. इस चुनाव में निर्दलीय डॉ. गुलाम रब्बानी ने 8958 वोट लिए, जिसके चलते कांग्रेस को हारना पड़ा था. कुल 66132 मतदाताओं ने मत डाले थे. भाजपा को 44 फीसदी और कांग्रेस को 40 फीसदी मत मिले. कुल 8 उम्मीदवार मैदान में थे.
2008 में नए परिसीमन से चुनाव हुए. सूर्यकांता व्यास सूरसागर विधानसभा चली गईं, जबकि भाजपा ने इस बार कैलाश भंसाली को मैदान में उतारा. कांग्रेस ने तीसरी बार जुगल काबरा पर भरोसा जताया. इस चुनाव में कुल 18 उम्मीदवार मैदान में थे. कुल 1 लाख 80 हजार 956 मतदाताओं में से कुल 54.47 फीसदी यानी 98303 मतदाताओं ने मतदान किया. भाजपा के भंसाली को 49.97 फीसदी यानी 49122 मत मिले जबकि कांग्रेस के काबरा को 41.22 फीसदी यानी 40523 मत मिले. भाजपा ने 8599 मतों से जीत दर्ज की, जबकि शेष 16 उम्मीवारों ने 8658 मत प्राप्त किए थे. भाजपा लगातार दूसरी बार सीट जीतने में सफल रही.
2013 में हुए चुनाव में भाजपा ने दूसरी बार वयोवृद्ध कैलाश भंसाली को मैदान में उतारा तो कांग्रेस ने अशोक गहलोत की पसंद महाजन वर्ग के ही सुपारस भंडारी को टिकट दिया. कुल 1 लाख 80 हजार 742 मतदाताओं में से 65.10 फीसदी यानी 1 लाख 17 हजार 670 लोगों ने मतदान का प्रयोग किया. भंसाली को 52.62 फीसदी वोट मिले, जबकि भंडारी को 40 फीसदी और 14510 वोटों से भंडारी चुनाव हार गए. कैलाश भंसाली को 60 हजार 928 मत प्राप्त हुए, जबकि सुपारस भंडारी को 46 हजार 418. इस चुनाव में भाजपा से दावेदारी करने वाले आनंद भाटी ठाकर निर्दलीय उतरे. उन्होंने 5618 वोट लिए, फिर भी भंसाली चुनाव जीत गए. कुल 13 उम्मीवार मैदान में थे.
2018 के चुनाव में भाजपा ने दो बार विधायक रहे कैलाश भंसाली के भतीजे अतुल भंसाली को उम्मीदवार बनाया. कांग्रेस ने भी इस सीट को लेकर अपनी रणनीति बदली. कांग्रेस ने ओबीसी पर दांव खेला और रावणा राजपूत समाज की मनीषा पंवार को मैदान में उतारा. मुकाबला भी बेहद रोचक रहा. कुल 1 लाख 98 हजार 11 मतदाताओं में से 1 लाख 27 हजार 709 यानी 64.50 फीसदी लोगों ने मतदान किया. इसमें कुल 16 उम्मीवार मैदान में थे. मनीषा पंवार ने 64172 यानी 49.97 फीसदी मत प्राप्त कर अतुल भंसाली को 5849 वोटों से हराया. भंसाली को कुल 58 हजार 323 यानी 45.41 फीसदी वोट मिले. अन्य 14 उम्मीदवारों को 5 हजार से अधिक वोट मिले थे.