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मंडावा में भाजपा सांसद को मिली 'कमल' खिलाने की चुनौती, यहां कांग्रेस का रहा है पलड़ा भारी, इस बार ये हैं समीकरण

Rajasthan Assembly Election 2023: झुंझुनूं की मंडावा विधानसभा सीट पर इस बार बीजेपी सांसद नरेंद्र खीचड़ को विधायक के चुनाव में उतारा है. वहीं कांग्रेस ने अपनी दमदार प्रत्याशी रीटा चौधरी को फिर से मौका दिया है. इस रिपोर्ट में पढ़िए यहां के हार-जीत के समीकरण...

Narendra Kichad vs Rita Chaudhary in Mandawa
नरेंद्र खिचड़ और रीटा चौधरी में सीधा मुकाबला
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 8, 2023, 7:20 PM IST

झुंझुनूं. कांग्रेस की परंपरागत सीट रही मंडावा विधानसभा में इस बार भाजपा व कांग्रेस में सीधी टक्कर देखने को मिल रही है. लेकिन यह भाजपा के लिए बहुत मुश्किल सीट है. यही कारण है कि पार्टी को अपने सांसद नरेंद्र खीचड़ को मैदान में लाना पड़ा. दरअसल जनसंघ से लेकर भाजपा तक मंडावा विधानसभा में 2018 तक पार्टी कभी जीत के नजदीक नहीं पहुंच पाई. लेकिन उस चुनाव में नरेंद्र खीचड़ ने भाजपा का पहली बार खाता खोला. हालांकि यह सीट भाजपा के पास ज्यादा दिन नहीं रही और तत्कालीन विधायक के लोकसभा चुनाव जीतने से उपचुनाव हुए. कांग्रेस की रीटा चौधरी ने भाजपा को 33 हजार से ज्यादा मतों से शिकस्त देकर गत चुनाव की हार का बदला लिया.

बीकाम की टक्कर एमबीए से: यहां पर कांग्रेस से चुनाव लड़ रहीं रीटा चौधरी विदेश से एमबीए कर चुकी हैं. पिता रामनारायण चौधरी कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष और मंत्री रहे हैं. वे पहली बार 2008 में विधायक बनी, लेकिन 2013 में कांग्रेस में उन्हें कांग्रेस से टिकट नहीं मिली. उन्होंने बागी होकर कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ रहे तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष डॉ चन्द्रभान की जमानत जब्त करवाई. वहीं यहां पर भाजपा से चुनाव लड़ रहे 64 वर्षीय नरेंद्र खीचड़ बीकाम हैं. उन्होंने लम्बे समय तक इंडियन पब्लिक स्कूल के नाम से स्कूलें चलाई हैं. खीचड़ पहली बार 2013 में निर्दलीय विधायक बने और 2018 में पार्टी से विजयी रहे. इसके बाद 2019 में लोकसभा में सांसद बने. अब उन्हें वापस चुनाव में उतारा गया है.

पढ़ें: सरदारपुरा में 'जादूगर' के सामने भाजपा का राजपूताना दांव, क्या गहलोत को पटखनी दे पाएंगे 'डीन'

कांग्रेस की रीटा चौधरी:

मजबूत पक्ष-

  1. अल्पसंख्यकों का मजबूत वोट वैंक
  2. कांग्रेस सरकार में खूब जमकर विकास करवाना
  3. कांग्रेस का पुराना परंपरागत वोट बैंक

कमजोर पक्ष:

  1. भाजपा के सामने कम अनुभवी
  2. तबादलों को लेकर विरोध
  3. विरोधियों को साधने में महारत नहीं

पढ़ें: गहलोत सरकार की योजनाओं का कोई चैलेंज नहीं, कार्यकर्त्ता भाजपा की बड़ी ताकत : अनिता भदेल

भाजपा के नरेन्द्र खीचड़:

मजबूत पक्ष-

  1. चुनाव लड़ने का पुराना अनुभव
  2. किसी को परेशान ना करने की छवि
  3. पुत्रवधु का जिला प्रमुख होना व उनका जनता से जुड़ाव

कमजोर पक्ष-

  1. सांसद बनने के बाद क्षेत्र से जुड़ाव कम
  2. हमेशा विरोध में रहने से जनता के काम नहीं करवा पाना
  3. भाजपा के अन्य टिकट मांग रहे नेताओं का विरोध

यह विधानसभा का जातीय समीकरण: मंडावा विधानसभा में कुल वोटर 244526 हैं. इनमें सबसे ज्यादा करीब 75000 जाट मतदाता और 40000 के आसपास मुस्लिम मतदाता हैं. इसके अलावा करीब 25000 अनुसूचित जाति के मतदाता हैं. इसके बाद राजपूत, ब्राह्मण, नाई, कुम्हार, सैनी, जांगिड़, बनिया आदि लगभग सभी के बराबर संख्या में मतदाता हैं.

झुंझुनूं. कांग्रेस की परंपरागत सीट रही मंडावा विधानसभा में इस बार भाजपा व कांग्रेस में सीधी टक्कर देखने को मिल रही है. लेकिन यह भाजपा के लिए बहुत मुश्किल सीट है. यही कारण है कि पार्टी को अपने सांसद नरेंद्र खीचड़ को मैदान में लाना पड़ा. दरअसल जनसंघ से लेकर भाजपा तक मंडावा विधानसभा में 2018 तक पार्टी कभी जीत के नजदीक नहीं पहुंच पाई. लेकिन उस चुनाव में नरेंद्र खीचड़ ने भाजपा का पहली बार खाता खोला. हालांकि यह सीट भाजपा के पास ज्यादा दिन नहीं रही और तत्कालीन विधायक के लोकसभा चुनाव जीतने से उपचुनाव हुए. कांग्रेस की रीटा चौधरी ने भाजपा को 33 हजार से ज्यादा मतों से शिकस्त देकर गत चुनाव की हार का बदला लिया.

बीकाम की टक्कर एमबीए से: यहां पर कांग्रेस से चुनाव लड़ रहीं रीटा चौधरी विदेश से एमबीए कर चुकी हैं. पिता रामनारायण चौधरी कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष और मंत्री रहे हैं. वे पहली बार 2008 में विधायक बनी, लेकिन 2013 में कांग्रेस में उन्हें कांग्रेस से टिकट नहीं मिली. उन्होंने बागी होकर कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ रहे तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष डॉ चन्द्रभान की जमानत जब्त करवाई. वहीं यहां पर भाजपा से चुनाव लड़ रहे 64 वर्षीय नरेंद्र खीचड़ बीकाम हैं. उन्होंने लम्बे समय तक इंडियन पब्लिक स्कूल के नाम से स्कूलें चलाई हैं. खीचड़ पहली बार 2013 में निर्दलीय विधायक बने और 2018 में पार्टी से विजयी रहे. इसके बाद 2019 में लोकसभा में सांसद बने. अब उन्हें वापस चुनाव में उतारा गया है.

पढ़ें: सरदारपुरा में 'जादूगर' के सामने भाजपा का राजपूताना दांव, क्या गहलोत को पटखनी दे पाएंगे 'डीन'

कांग्रेस की रीटा चौधरी:

मजबूत पक्ष-

  1. अल्पसंख्यकों का मजबूत वोट वैंक
  2. कांग्रेस सरकार में खूब जमकर विकास करवाना
  3. कांग्रेस का पुराना परंपरागत वोट बैंक

कमजोर पक्ष:

  1. भाजपा के सामने कम अनुभवी
  2. तबादलों को लेकर विरोध
  3. विरोधियों को साधने में महारत नहीं

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भाजपा के नरेन्द्र खीचड़:

मजबूत पक्ष-

  1. चुनाव लड़ने का पुराना अनुभव
  2. किसी को परेशान ना करने की छवि
  3. पुत्रवधु का जिला प्रमुख होना व उनका जनता से जुड़ाव

कमजोर पक्ष-

  1. सांसद बनने के बाद क्षेत्र से जुड़ाव कम
  2. हमेशा विरोध में रहने से जनता के काम नहीं करवा पाना
  3. भाजपा के अन्य टिकट मांग रहे नेताओं का विरोध

यह विधानसभा का जातीय समीकरण: मंडावा विधानसभा में कुल वोटर 244526 हैं. इनमें सबसे ज्यादा करीब 75000 जाट मतदाता और 40000 के आसपास मुस्लिम मतदाता हैं. इसके अलावा करीब 25000 अनुसूचित जाति के मतदाता हैं. इसके बाद राजपूत, ब्राह्मण, नाई, कुम्हार, सैनी, जांगिड़, बनिया आदि लगभग सभी के बराबर संख्या में मतदाता हैं.

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