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SPECIAL: यहां बारहों महीने रहता है रावण परिवार, दशहरे के दिन लगता है लंकेश का दरबार...हर साल होता है रावण दहन

झालावाड़ में झालरापाटन में चंद्रभागा नदी के किनारे मेला मैदान में बारहों महीने रावण का परिवार रहता है. यहां पर रावण के पूरे परिवार की स्थाई प्रतिमाएं बनाई गईं हैं. इसमें रावण परिवार की मंदोदरी, कुंभकर्ण, शूर्पणखा, मेघनाद सहित पहरेदार और हाथी मौजूद रहते हैं.

झालावाड़ का रावण का परिवार, Ravana family of Jhalawar
दशहरे के दिन लगता है रावण दरबार
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Published : Oct 25, 2020, 8:15 PM IST

झालावाड़. ऐतिहासिक और धार्मिक नगरी झालरापाटन में चंद्रभागा नदी के किनारे मेला मैदान में वर्ष भर रावण का परिवार रहता है. यहां पर रावण के पूरे परिवार की स्थाई प्रतिमाएं बनाई गई है. जिसमें रावण के परिवार के मंदोदरी, कुंभकर्ण, शूर्पणखा, मेघनाद सहित पहरेदार और हाथी मौजूद रहते हैं. खास बात यह है कि दशहरे के दिन यहां पर रावण का दरबार लगता है. जिसमें अंगद-रावण संवाद के बाद रावण दरबार के आगे ही रावण का दहन किया जाता है.

दशहरे के दिन लगता है रावण दरबार

हर साल दशहरे के मौके पर रावण दरबार की साफ-सफाई और रंग रोगन का कार्य किया जाता है. आसपास के लोगों के लिए रावण दरबार आकर्षण का बड़ा केंद्र होता है. लोग यहां पर दशहरे के मौके पर बड़ी संख्या में पहुंचते हैं और रावण दरबार में आकर सेल्फी भी खींचवाते हुए नजर आते हैं.

झालावाड़ का रावण का परिवार, Ravana family of Jhalawar
हर साल होता है रावण दहन

पढ़ेंः SPECIAL: दशहरे पर यहां रावण के वंशज मनाते हैं शोक, हर रोज मंडोर स्थित मंदिर में होती है लंकेश की पूजा

बता दें कि 1840 में झालावाड़ के प्रथम महाराजा मदन सिंह ने रावण दरबार का निर्माण करवाया था. तब से झालरापाटन में भव्य रुप में दशहरे का आयोजन होता आ रहा है. तब पत्थर के पुतले को ही तीर मार कर रावण का वध किया जाता था. इस दौरान रावण के पेट में लाल थैली रखकर उसमें तीर चलाया जाता था.

झालरापाटन के निवासियों ने बताया कि दशहरे के दिन राजस्थान में एकमात्र झालरापाटन में रावण का दरबार लगता है. साथ ही अंगद रावण का संवाद भी होता है. जिसे देखने के लिए आसपास से बड़ी संख्या में लोग आते हैं. उन्होंने बताया कि झालरापाटन में बरसों से इसी तरह से दशहरे का कार्यक्रम मनाया जाता रहा है, लेकिन इस साल कोरोना के कारण रावण दहन का कार्यक्रम आयोजित नहीं करवाया जा सकेगा.

झालावाड़ का रावण का परिवार, Ravana family of Jhalawar
रावण परिवार

पढ़ेंः अंत की अनोखी परंपरा : पहलवानों ने पैरों से रौंदकर 'रावण' का अहंकार किया खत्म, जानें पूरी कहानी

इसको लेकर उन्होंने प्रशासन से भी अपील की है कि यहां की परंपरा ना टूटे इसके लिए सांकेतिक या औपचारिक रूप से रावण दहन का कार्यक्रम करवाया जाए. रावण दरबार में रंग रोगन का कार्य कर रहे मजदूरों ने बताया कि वो करीब 40 सालों से यहां पर रावण दरबार को सजाते आए हैं. दशहरे से कुछ दिन पहले से ही वो रावण दरबार की साज-सज्जा और रंग रोगन के काम में जुट जाते हैं.

झालावाड़. ऐतिहासिक और धार्मिक नगरी झालरापाटन में चंद्रभागा नदी के किनारे मेला मैदान में वर्ष भर रावण का परिवार रहता है. यहां पर रावण के पूरे परिवार की स्थाई प्रतिमाएं बनाई गई है. जिसमें रावण के परिवार के मंदोदरी, कुंभकर्ण, शूर्पणखा, मेघनाद सहित पहरेदार और हाथी मौजूद रहते हैं. खास बात यह है कि दशहरे के दिन यहां पर रावण का दरबार लगता है. जिसमें अंगद-रावण संवाद के बाद रावण दरबार के आगे ही रावण का दहन किया जाता है.

दशहरे के दिन लगता है रावण दरबार

हर साल दशहरे के मौके पर रावण दरबार की साफ-सफाई और रंग रोगन का कार्य किया जाता है. आसपास के लोगों के लिए रावण दरबार आकर्षण का बड़ा केंद्र होता है. लोग यहां पर दशहरे के मौके पर बड़ी संख्या में पहुंचते हैं और रावण दरबार में आकर सेल्फी भी खींचवाते हुए नजर आते हैं.

झालावाड़ का रावण का परिवार, Ravana family of Jhalawar
हर साल होता है रावण दहन

पढ़ेंः SPECIAL: दशहरे पर यहां रावण के वंशज मनाते हैं शोक, हर रोज मंडोर स्थित मंदिर में होती है लंकेश की पूजा

बता दें कि 1840 में झालावाड़ के प्रथम महाराजा मदन सिंह ने रावण दरबार का निर्माण करवाया था. तब से झालरापाटन में भव्य रुप में दशहरे का आयोजन होता आ रहा है. तब पत्थर के पुतले को ही तीर मार कर रावण का वध किया जाता था. इस दौरान रावण के पेट में लाल थैली रखकर उसमें तीर चलाया जाता था.

झालरापाटन के निवासियों ने बताया कि दशहरे के दिन राजस्थान में एकमात्र झालरापाटन में रावण का दरबार लगता है. साथ ही अंगद रावण का संवाद भी होता है. जिसे देखने के लिए आसपास से बड़ी संख्या में लोग आते हैं. उन्होंने बताया कि झालरापाटन में बरसों से इसी तरह से दशहरे का कार्यक्रम मनाया जाता रहा है, लेकिन इस साल कोरोना के कारण रावण दहन का कार्यक्रम आयोजित नहीं करवाया जा सकेगा.

झालावाड़ का रावण का परिवार, Ravana family of Jhalawar
रावण परिवार

पढ़ेंः अंत की अनोखी परंपरा : पहलवानों ने पैरों से रौंदकर 'रावण' का अहंकार किया खत्म, जानें पूरी कहानी

इसको लेकर उन्होंने प्रशासन से भी अपील की है कि यहां की परंपरा ना टूटे इसके लिए सांकेतिक या औपचारिक रूप से रावण दहन का कार्यक्रम करवाया जाए. रावण दरबार में रंग रोगन का कार्य कर रहे मजदूरों ने बताया कि वो करीब 40 सालों से यहां पर रावण दरबार को सजाते आए हैं. दशहरे से कुछ दिन पहले से ही वो रावण दरबार की साज-सज्जा और रंग रोगन के काम में जुट जाते हैं.

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