झालावाड़. कोरोना वायरस (corona virus) के चलते लगाए गए लॉकडाउन को खत्म हुए डेढ़ महीना बीत चुका है, लेकिन कुछ काम धंधे ऐसे हैं जो अभी तक भी पटरी पर नहीं लौट पाए हैं और ना ही आगामी दिनों में हालातों में सुधार की कोई गुंजाइश दिख रही है. ऐसे में व्यवसाय वर्ग के लोग भगवान के भरोसे हो गए हैं. ऐसी ही हालत 'भगवान' बनाने वाले मूर्तिकारों की भी हो गई है.
कोरोना काल ने त्योहारों का रंग भी फीका कर दिया है. गणेशोत्सव आते ही मूर्तिकारों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती थी. जो हाथ लंबोदर की सुंदर-सुंदर मूर्तियां बनाते थे. जिससे इनके परिवार का पेट भर जाया करता था उनका इस महामारी ने ये हाल कर दिया है कि आकर्षक प्रतिमाएं बनाने वाले वही हाथ मदद के लिए फैलाने पड़ रहे हैं.
कर्ज लेकर खरीदा था कच्चा माल...
मूर्तिकारों का कहना है कि साल भर की कमाई इस एक महीने पर निर्भर करती है. ऐसे में उनके सामने भूखे मरने की नौबत आ गई है. कई ने तो कर्ज लेकर प्रतिमा बनाने का कच्चा माल खरीदा था. लेकिन जब कमाई ही नहीं होगी तो कर्ज कहां से चुका पाएंगे.
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कोरोना के बढ़ते संक्रमण के चलते सरकार ने तो धार्मिक आयोजनों पर पाबंदी लगा दी है, लेकिन यह पाबंदी मूर्तिकारों के लिए आर्थिक प्रतिबंध जैसी साबित हो रही है. भगवान बनाने वाली मूर्तिकारों की आजीविका पर कोरोना ने लॉकडाउन लगा दिया है. ना तो लॉकडाउन के समय में कोई मूर्ति बिक पाई और ना ही आगे कोई उम्मीद दिख रही है. ऐसे में उदयपुर और अन्य क्षेत्रों से आकर झालावाड़ में मूर्तियां बनाने वाले दर्जनों मूर्तिकारों अपने जीवन कैसे चालएंगे.
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मूर्तिकारों बताते हैं कि 22 अगस्त को गणेश चतुर्थी का त्योहार आने वाला है जो उनके व्यवसाय के लिए सबसे खास दिन होता है. इस त्योहार के कई दिनों पहले से ही बड़ी मूर्तियों के ऑर्डर आने शुरू हो जाते हैं और लोग मूर्तियां खरीदना भी शुरू कर देते हैं. लेकिन इस बार उनके पास बड़ी मूर्तियां बनाने के लिए एक भी ऑर्डर नहीं आया है. हालत यह है कि पिछले वर्ष की बनाई हुई मूर्तियां भी नहीं बिक पाई हैं. ऐसे में अब वह घरों में रखी जाने वाली छोटी मूर्तियां बनाने में जुट गए हैं.
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नहीं मिल रहे बड़े मूर्तियों के ऑर्डर...
मूर्तिकारों ने बताया कि बड़ी मूर्तियों में वो 8 से 10 फीट तक की मूर्तियां बनाते हैं जो 10 से 15 हजार रुपए तक बिकती हैं. एक सीजन में वो 200 से 300 बड़ी मूर्तियां बना लेते हैं, जिनसे 2 से 3 लाख रुपए तक का मुनाफा कमा लेते हैं और इसी पैसे से सालभर घर का खर्च चलता है. लेकिन इस बार बड़ी मूर्तियां बनाने के ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं. ऐसे में छोटी मूर्तियां ही बनानी पड़ रही हैं, जिनसे मुनाफा होना तो दूर खर्च चलाना भी मुश्किल हो रहा है.
सरकार ने स्पष्ट नहीं की स्थिति...
उन्होंने बताया कि सरकार ने बड़े आयोजनों पर पाबंदी लगा रखी है. ऐसे में गणेश चतुर्थी और नवरात्रों का आयोजन भी खतरे में है. जिसके चलते लोग मूर्तियां खरीदने में उत्साह नहीं दिखा रहे हैं. ऐसे में उनके कई साथी जो हर बार झालावाड़ में मूर्तियां बनाने आते थे, वह इस बार आए ही नहीं हैं.
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एक मूर्तिकार ने बताया कि वह दूसरे राज्य से आए हुए हैं और झालावाड़ में 10 हजार रुपये प्रति महीना की जमीन किराए में लेकर अपना धंधा चला रहे हैं. लेकिन इस बार तो उनके घर के खाने का खर्च भी नहीं निकल पा रहा है. ऐसे में वे दुकान का किराया कैसे चुका पाएंगे.
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मूर्तिकारों का कहना है कि वो गरीबी के कारण दूसरे शहरों में आकर काम करते हैं, लेकिन अबकी बार उनकी यह गरीबी लॉकडाउन की वजह से दूसरे शहरों में आकर काम करने के बावजूद भी खत्म नहीं हो रही है. ऐसे में सरकार से उनकी मांग है कि उनके लिए कम से कम खाने पीने की व्यवस्था तो करनी चाहिए.
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जिले भर में ही विसर्जित होती हैं इतनी मूर्तियां...
आपको बता दें कि झालावाड़ के झालरापाटन रोड पर उदयपुर और अन्य क्षेत्रों से आए हुए मूर्तिकार मूर्तियां बनाते हैं. यहीं से देशभर में मूर्तियों की बिक्री होती है. गणेश चतुर्थी के अवसर पर जिले भर में ही करीबन 700 मूर्तियों का विसर्जन होता है, लेकिन इस बार आयोजनों पर पाबंदी के कारण मूर्तिकारों की आजीविका पर बड़ा संकट खड़ा हो गया.