झालावाड़. जिले के झालरापाटन पंचायत समिति की सालरिया ग्राम पंचायत जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर है. सालरिया ग्राम पंचायत जिले में इसलिए बेहद खास मानी जाती है क्योंकि इसे दिग्गज नेता और झालरापाटन विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी रहे मानवेंद्र सिंह ने गोद ले रखा है. मानवेंद्र सिंह ने सालरिया ग्राम पंचायत को विधानसभा चुनाव 2018 के दौरान गोद लिया था.
यह ग्राम पंचायत झालावाड़ के सबसे बड़े कोरोना हॉटस्पॉट झालरापाटन की सबसे नजदीकी ग्राम पंचायत है. इस लिए ईटीवी भारत ने यहां पहुंच कर कोरोना से बचाव, सावधानियां और लोगों के प्रयासों का जायजा लिया. झालरापाटन में कोरोना संक्रमण के 300 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं और संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. वहीं, 5 हजार की आबादी वाली इस ग्राम पंचायत में ग्रामीण योद्धाओं की सजगता और जागरूकता के चलते कोरोना वायरस प्रवेश नहीं कर पाया.
सरपंच केवल चंद गुर्जर ने बताया कि लॉकडाउन की घोषणा होने के बाद से अब तक पूरी ग्राम पंचायत में दो बार सोडियम हाइपोक्लोराइट का छिड़काव करवा जा चुके है. इसके अलावा ग्राम पंचायत की ओर से ग्रामीणों को मास्क वितरित किए गए हैं. साथ ही लोगों को घर से बाहर नहीं निकलने की अपील भी की गई है.
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सरपंच ने बताया कि उनकी ग्राम पंचायत के लोग मुख्य रूप से कोरोना का हॉटस्पॉट बन चुके झालरापाटन पर निर्भर हैं. ऐसे में लोगों को झालरापाटन जाने से रोका गया. जिससे कोई भी व्यक्ति कोरोना संक्रमण की चपेट में ना आए. सरपंच ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उनकी ग्राम पंचायत में राशन को लेकर समस्या रही, क्योंकि रसद विभाग की ओर से कम मात्रा मे गेहूं भिजवाए गए.
ग्राम पंचायत में वितरण के लिए करीब 30 से 40 क्विंटल गेहूं कम आए हैं. जिसकी वजह से ग्रामीणों को राशन के लिए परेशान होना पड़ा. लेकिन फिर भी लोगों ने संयम दिखाया. सरपंच ने ये भी बताया कि मानवेंद्र सिंह के गोद लेने का कोई फायदा उनकी पंचायत को नहीं मिला. लेकिन कोरोना काल में उन्होंने दो बार ग्राम पंचायत का हाल जाना और हालातों को लेकर चर्चा भी की.
ग्राम वासियों का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान उन्होंने खुद से ही मुंह पर गमछा बांधना शुरू कर दिया था और गांव के बाहर निकलना बंद कर दिया था. वहीं, जब भी गांव वालों को घर से निकलना होता तो वह मुंह पर कपड़ा बांधकर निकलते हैं और लोगों से उचित दूरी बनाकर रखते थे.
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सालरिया गांव के युवाओं ने बताया कि उन्होंने लॉकडाउन के दौरान गांव में आने वाले मुख्य रास्तों को बंद कर दिया था. रास्तों के बीच पत्थर और झाड़ियां रख दी थी. जिससे न तो लोग गांव के अंदर आ पाए और ना ही गांव के लोग बाहर गए. जिससे कोरोना का संक्रमण गांव में नहीं पहुंच पाया.
गांव के दूध वालों ने बताया कि वे रोज झालरापाटन में दूध बेचने जाया करते थे. लेकिन जैसे ही लॉकडाउन की घोषणा हुई और झालरापाटन में कोरोना पॉजिटिव केस सामने आए. तब से उन्होंने वहां जाना पूरी तरह से बंद कर दिया. इससे उनके व्यापार पर असर पड़ा लेकिन कोरोना से बचाव भी हुआ.
ग्रामीणों ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान सब चीजें उनको समय पर मिली लेकिन कुछ लोगों को राशन की व्यवस्था नहीं हो पाई. राशन कार्ड होते हुए भी लोग गेंहू से वंचित रहे. हालांकि कुछ लोगों के लिए 15 जून के बाद प्रति व्यक्ति 10 किलो गेहूं के हिसाब से व्यवस्था की गई है.