जैसलमेर. विश्वभर में 'ग्रेट इंडियन बस्टर्ड' के नाम से विख्यात गोडावण के घर अब नन्हें मेहमान आए. गोडावण संरक्षित करने के लिए दो साल पहले शुरू किया गए प्रोजेक्ट का असर अब दिखने लगा है. गोडावण के अस्तित्व को बचाने में जुटे वन्यजीव विशेषज्ञों के लिए एक बार फिर जैसलमेर के डेजर्ट नेशनल पार्क के सुदासरी क्षेत्र से खुशखबरी आई है.
वहीं लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके ग्रेड इंडियन बस्टर्ड (गोडावण) को लेकर अच्छी खबर सामने आई है. जैसलमेर में स्थापित हैचरी में सहेज कर रखे गए गोडावण के अंडो में से 8 चूजे बाहर निकल आए हैं. गोडावण के सभी चूजे एकदम स्वस्थ हैं. सोन चिरैया के नाम से भी प्रसिद्ध गोडावण अब देश में महज 100 ही बचे हैं. ऐसे में नए जन्में चूजों ने उम्मीद जगी है कि राजस्थान का राज्य पक्षी अब लुप्त नहीं होगा.
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सेंटर में कई विशेषज्ञों को किया नियुक्त
राजस्थान के वन विभाग ने कुछ माह पूर्व गोडावण को बचाने के लिए एक योजना तैयार की थी. इसके तहत डेजर्ट नेशनल पार्क से सटे जैसलमेर के सम में एक सेंटर स्थापित किया गया. इस सेंटर में गोडावण के अंडों को सहेजने की योजना थी. इस योजना का कई वन्य जीव विशेषज्ञों ने समर्थन किया तो कई लोगों ने विरोध. लेकिन राज्य सरकार अपनी योजना पर कायम रही. वहीं कई विशेषज्ञों को इस सेंटर में विशेष रूप से नियुक्त किया गया.
लाइफ डिर्पाटमेंट ने किए प्रयास
भारतीय वन्य जीव प्राणी संस्थान की ओर से आबूधाबी स्थित एक प्रसिद्ध आर्गनाईजेशन द इंटरनेानल फंड फर हुबारा कन्जरवेशन के साथ मिलकर राजस्थान वाईल्ड लाइफ डिर्पाटमेंट ने कई संयुक्त प्रयास किए. वहीं जैसलमेर के डेजर्ट सम क्षेत्र में डेजर्ट नेशनल पार्क में स्थापित विव के पहले गोडावण हेचरी सेंटर में गोडावण के 8 अंडों में से गोडावण के चिक निकल आये हैं. जो गोडावण के बचाने के प्रयास में एक बहुत बड़ी सफलता समझी जा सकती हैं.
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2018 में त्रिपक्षीय संयुक्त समझौता
गौरतलब है कि राज्य पक्षी गोडावण के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए गोडावण संरक्षण प्रजनन एवं अनुसन्धान कार्यक्रम के तहत वन एवं पर्यावरण जलवायु परिवर्तन मन्त्रालय भारत सरकार, भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून एवं राजस्थान सरकार के मध्य साल 2018 में त्रिपक्षीय संयुक्त समझौता एमओयू किया गया है.
संकटग्रस्त प्रजाति की श्रेणी में दर्ज
संकटग्रस्त प्रजाति की श्रेणी में दर्ज इस पक्षी की संख्या में बढ़ोतरी हेतु कन्जरर्वेान ब्रिडींग प्रोग्राम संचालित किया जा रहा है. डी.एफ.ओ ने चन्द्रवाल ने बताया कि गोडावण के विचरण क्षेत्र व पैटर्न को समझने के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के वैज्ञानिकों की मदद से इस साल दो गोडावण पक्षियों को जी.पी.एस. टैग लगाए गए हैं. इनसे महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हो रही है. जो कि इस पक्षी का व्यवहार बेहतर तरीके से समझने में सहायता कर रही है.
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प्रजनन के लिए तैयार
वहीं इन सभी चूजों को सम के सेंटर में ही रख कर बड़ा किया जाएगा. तीन साल के होने पर गोडावण बयस्क होता है और प्रजनन के लिए तैयार होता है. तीन साल तक इन्हें यहां रख कर इनसे अंडे लिए जाएंगे. वहीं अगले साल इसी तर्ज पर गोडावण के अंडे एकत्र कर इनको इसी तर्ज पर सहेजा जाएगा. इनकी संख्या पच्चीस से अधिक होने पर इन्हें डेजर्ट नेशनल पार्क में छोड़ दिया जाएगा. इस परियोजना के लिए राजस्थान के वन विभाग के साथ ही देहरादून स्थित वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, केन्द्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय के अलावा इस मामले में विशेषज्ञता रखने वाले अबू धाबी के एक संस्थान का सहयोग लिया जा रहा है.
गोडावण को बचाने के लिए तैयार की योजना
वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट अफ इंडिया राजस्थान के वन विभाग के साथ मिलकर ने कुछ माह पूर्व गोडावण को बचाने के लिए एक योजना तैयार की थी. इसके तहत डेजर्ट नेशनल पार्क से सटे जैसलमेर के सम में एक टेम्परी हैचरी सेंटर स्थापित किया गया. इस सेंटर में गोडावण के अंडों को सहेजने की योजना के अन्तर्गत 8 अंड्डो को एकत्रित कर यहां भेजवाया गया था. इसमें सभी 8 में गोडावण के चिक निकल आए. स्थाई हैचरी सेंटर का निर्माण कार्य इन दिनों जिले के रामदेवरा क्षेत्र में चल रहा है. चंद्रवाल ने बताया कि इन अंडों को अबूधाबी से मंगाए गए विशेष तरह के एक्यूबेटर में रख कर सहेजा गया है.
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पच्चीस से अधिक होने पर इन्हें डेजर्ट नेशनल पार्क में छोड़
इन अंडों को करीब पच्चीस दिन सहेज कर रखना पड़ता है. इन सभी चूजों को विदेश से मंगाया गया विशेष आहार दिया जा रहा है. इसके अलावा क्षेत्र में उपलब्ध इनका प्रतीक आहार भी दिया जा रहा हैं. जानकारी के अनुसार इन सभी चूजों को सम के सेंटर में ही रख कर बड़ा किया जाएगा. तीन साल का होने पर गोडावण वयस्क होता है और प्रजनन के लिए तैयार होता है. तीन साल तक इन्हें यहां रख कर इनसे अंडे लिए जाएंगे. वहीं अगले साल इसी तर्ज पर गोडावण के अंडे एकत्र कर इनको इसी तर्ज पर सहेजा जाएगा. इनकी संख्या पच्चीस से अधिक होने पर इन्हें डेजर्ट नेशनल पार्क में छोड़ दिया जाएगा.
ऐसा होता है गोडावण
गोडावण को बोलचाल में सोन चिड़िया, हुकना और गुरायिन जैसे नाम से भी बुलाया जाता है. एक मीटर से अधिक ऊंचा यह पक्षी उड़ने वाले सभी में सबसे अधिक वजनी माना जाता है. यह भारत और पाकिस्तान के शुष्क क्षेत्रों में पाया जाता है. पहले यह देश के कई राज्यों में पाया जाता था. लेकिन अब आंध्र प्रदेश में सिर्फ सात और गुजरात में इसकी संख्या महज दो रह गई हैं. जबकि राजस्थान में इसकी संख्या 150 से भी कम रह गई है. इसकी घटती संख्या के कारण इसे गंभीर रूप से संकटग्रस्त पक्षी की श्रेणी में रखा गया है. इसका प्रमुख खाना टिड्डी है. इसके अलावा यह सांप, छिपकली और बिच्छू आदि को भी खाता है.