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चाकसू में 'बछ बारस' पर महिलाओं ने रखा व्रत, किया गौ पूजन

जयपुर के चाकसू में रविवार को महिलाओं ने बछ बारस का पर्व श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया. इस दौरान महिलाओं ने गाय और बछड़े की पूजा-अर्चना की. बता दें कि गोवत्स द्वादशी के दिन गाय और बछड़े की पूजा करने का खास महत्व है.

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Published : Aug 16, 2020, 12:27 PM IST

Women fasted on bach baras, बछ बारस पर महिलाओं ने रखा व्रत
बछ बारस पर महिलाओं ने रखा व्रत

चाकसू (जयपुर). कस्बा समेत ग्रामीण अंचल में रविवार को महिलाओं ने अपने पुत्र की दीर्घायु और परिवार खुशहाली की कामना को लेकर बछ बारस का पर्व श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया. क्षेत्र में इस अवसर पर जगह-जगह महिलाओं ने गाय और बछड़े की पूजा-अर्चना की.

इस दौरान महिलाओं ने बछ बारस की प्रचलित कथाओं का श्रवण किया. साथ हीं महिलाओं ने बछ बारस का व्रत रखा. सोमवार को महिलाओं द्वारा गाय का दूध, दही और इससे निर्मित पदार्थों, गेहूं और चावल का सेवन नहीं, बल्कि मक्का, बाजरे की रोटी और मोठ खाकर व्रत खोला जाएगा. इधर, गौशालाओं में दिनभर महिलाओं का तांता लगा रहा.

बता दें कि गोवत्स द्वादशी के दिन गाय और बछड़े की पूजा करने का खास महत्व है. द्वादशी के दिन अगर घर में गाय और बछड़ा ना मिले तो आसपास किसी गाय की पूजा की जानी चाहिए. ऐसा माना जाता है कि सभी देवी-देवताओं और अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए गौ सेवा से बढ़कर कोई पूजा नहीं है.

गोवत्स द्वादशी की महत्ता के कारण ही महिलाएं अपने संतान की सलामती और परिवार की खुशहाली के लिए यह पर्व मनाती है. इस त्योहार पर लोग अपने घरों में बाजरे की रोटी और अंकुरित अनाज की सब्जी बनाकर खाते हैं और खुशियां मनाते हैं.

पढ़ेंः धौलपुरः इनामी बदमाश श्याम तिवारी गिरफ्तार, लंबे समय से था फरार

ऐसी मान्यता है कि निसंतान दंपतियों के लिए यह पर्व विशेष फलदायी होता है. गोवत्स द्वादशी के दिन सदैव सात्त्विक गुणों वाले कर्म करने चाहिए. वहीं, गाय की पूजा करने से विष्णु भगवान प्रसन्न होकर पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद देते हैं.

चाकसू (जयपुर). कस्बा समेत ग्रामीण अंचल में रविवार को महिलाओं ने अपने पुत्र की दीर्घायु और परिवार खुशहाली की कामना को लेकर बछ बारस का पर्व श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया. क्षेत्र में इस अवसर पर जगह-जगह महिलाओं ने गाय और बछड़े की पूजा-अर्चना की.

इस दौरान महिलाओं ने बछ बारस की प्रचलित कथाओं का श्रवण किया. साथ हीं महिलाओं ने बछ बारस का व्रत रखा. सोमवार को महिलाओं द्वारा गाय का दूध, दही और इससे निर्मित पदार्थों, गेहूं और चावल का सेवन नहीं, बल्कि मक्का, बाजरे की रोटी और मोठ खाकर व्रत खोला जाएगा. इधर, गौशालाओं में दिनभर महिलाओं का तांता लगा रहा.

बता दें कि गोवत्स द्वादशी के दिन गाय और बछड़े की पूजा करने का खास महत्व है. द्वादशी के दिन अगर घर में गाय और बछड़ा ना मिले तो आसपास किसी गाय की पूजा की जानी चाहिए. ऐसा माना जाता है कि सभी देवी-देवताओं और अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए गौ सेवा से बढ़कर कोई पूजा नहीं है.

गोवत्स द्वादशी की महत्ता के कारण ही महिलाएं अपने संतान की सलामती और परिवार की खुशहाली के लिए यह पर्व मनाती है. इस त्योहार पर लोग अपने घरों में बाजरे की रोटी और अंकुरित अनाज की सब्जी बनाकर खाते हैं और खुशियां मनाते हैं.

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ऐसी मान्यता है कि निसंतान दंपतियों के लिए यह पर्व विशेष फलदायी होता है. गोवत्स द्वादशी के दिन सदैव सात्त्विक गुणों वाले कर्म करने चाहिए. वहीं, गाय की पूजा करने से विष्णु भगवान प्रसन्न होकर पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद देते हैं.

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