जयपुर. सिख समाज के संस्थापक गुरु नानक देव का प्रकाश पर्व पूरे देश में मनाया जा रहा है. राजधानी के भी तमाम गुरुद्वारे सजे हुए हैं. जयपुर के पहले गुरुद्वारे में भी श्रद्धालु मत्था टेकने पहुंचे. गुरुद्वारे की स्थापना करने वाले सिख परिवार के वंशज डॉ. इंद्र सिंह कुदरत ने बताया कि 16वीं शताब्दी में जयपुर के तत्कालीन मिर्जा राजा मानसिंह ने काबुल-गांधार का युद्ध जीतकर आते समय उनके पूर्वजों को लाहौर से आमेर लाए थे और फिर सवाई जयसिंह ने जयपुर को बसाया, तब जयपुर के जड़ियों के रास्ते में उनके पूर्वजों को बसाया गया.
शुरुआत में यहां 5 सिख परिवार थे. तब सिख धर्म की सेवा पूजा को कायम रखने के लिए (Sikh Family Who Built Jaipur First Gurdwara) गुरुद्वारे की स्थापना की. चौड़ा रास्ता में गोवर्धन नाथ जी गली (धामाणी मार्केट) में पहली सिख पीठ की स्थापना की गई.
सवाई जयसिंह ने दी थी गुरुद्वारे के लिए जमीन : जयपुर के राजा-महाराजा सर्व धर्म में विश्वास रखने वाले थे और राज परिवार तो सिख गुरुओं के विशेष अनुयायी रहे हैं. सवाई जयसिंह ने जब जयपुर बसाया तब सिख परिवारों को आमेर से जयपुर में लाकर बसाया गया. सिख धर्म की सेवा-पूजा के लिए स्थान की भी अपील की गई. उस वक्त के नियमों के तहत गुरुद्वारे की जमीन दी गई और तत्कालीन पंजीकरण कार्यालय से इसका पट्टा भी दिया गया. बाद में जब और सिख परिवार जयपुर में आए तो इसी गुरुद्वारे के आसपास के क्षेत्रों में उन्हें बसाया गया.
प्राचीन है यहां की स्थापत्य कला : यहां गुरु स्वरूप के सुखासन के आसपास के आर्किटेक्ट को देंखे तो राजा महाराजाओं के समय के देवालयों में गुंबजनुमा-कलशनुमा और नक्काशी के साथ में जो आकृतियां बनाई जाती थी, वो आज भी यहां काबिज है. इस गुरुद्वारे में राजस्थान का सबसे प्राचीन चित्र भी मौजूद है, जिसे गूगल कलर (नेचर पेंटिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले रंग) और कुंदन मीनाकारी से तैयार कर 10 गुरुओं का चित्र बनाया गया था. वहीं, गुरुद्वारे की स्थापना के साथ ही यहां रखे गए शस्त्र भी आज ही मौजूद हैं. गुरु मर्यादा में ये नियम है कि गुरु ग्रंथ साहिब की सवारी का जहां प्रकाश होगा, उसके साथ गुरुओं के शस्त्र भी वहां धारण कराए जाते हैं.
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अमृत जैसा था कुएं का पानी : एक जमाने में यहां कोठी (कुआं) भी हुआ करती थी. उस जमाने में इस कोठी से कावड़ भरकर (Jaipur First Gurdwara) राजद्वारे में जाते थे और गुरुद्वारे में भी जो सेवा-पूजा, लंगर-प्रसाद का कार्य होना था. उसमें भी उस कोठी के पानी का इस्तेमाल किया जाता था.
पीढ़ियों से आ रहे श्रद्धालु : यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु भी पीढ़ियों से यहां आ रहे हैं. गुरु नानक जयंती पर मत्था टेकने पहुंची ईशु तलवार ने बताया कि यहां बचपन से आ रही हैं. यहां समय-समय पर प्रकाश पर्व भी मनाए जाते हैं. उनके पिताजी, उनके दादाजी और उससे पहले के पूर्वज भी यहां आया करते थे. इसी तरह यहां बीते 30 साल से सेवा दे रही जीत कौर ने बताया कि वो जब शादी कर यहां आई थीं, तब उनके पति यहां सेवा करते थे.
उससे पहले उनके ससुर भी यहां सेवा करते थे और अब वह कर रही हैं. वहीं, गुरुद्वारे कमेटी के प्रधान सुरेंद्र सिंह ने बताया कि समय के साथ (Sikh Family in Jaipur) यहां कुछ नया निर्माण भी किया गया है. लंगर हॉल बनाया गया है. यही नहीं, गुरु स्वरूप पालकी की भी साफ-सफाई सज्जा की गई है और शहर में रहने वाले सिख समाज के लोग यहां पूजा करने पहुंचते हैं. हर रविवार को लंगर और हर सुबह प्रसाद का दानपान भी किया जाता है.