जयपुर. राजस्थान में पंडित भंवर लाल शर्मा के निधन के चलते 5 दिसंबर को सरदार शहर विधानसभा में चुनाव होने हैं (Sardarshahar By Election). भाजपा ने अशोक कुमार पींचा को प्रत्याशी घोषित कर दिया है. अब बारी कांग्रेस की है. नाम का एलान नहीं हुआ है लेकिन सूत्रों की मानें तो अनिल शर्मा का टिकट पक्का है. वजह Sympathy वेव बताया जा रहा है. अब तक का इतिहास बताता है कि कांग्रेस सहानुभूति वेव का फायदा उठाने से चूकती नहीं है और इसके जरिए ही उपचुनाव में जीत दर्ज करने का प्रयास करती है.
तय है कि कांग्रेस पंडित भंवर लाल शर्मा के नाम की सहानुभूति का ही इस्तेमाल करेगी और दिवंगत नेता के बेटे अनिल शर्मा का टिकट ही फाइनल करेगी. कांग्रेस के वर्तमान कार्यकाल से पहले राजस्थान की जनता ने परिवारवाद को नकार दिया था. लेकिन 2018 से अब तक का समय देखें तो Notion बदला सा लगता है. अशोक गहलोत के वर्तमान कार्यकाल में कांग्रेस हो या भाजपा जिसने परिवारवाद का कार्ड खेला उसने जीत दर्ज की है.
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कांग्रेस पार्टी की ओर से अभी सरदार शहर विधानसभा उपचुनाव के लिए टिकट की घोषणा नहीं की गई है. लेकिन जिस तरह से महाराष्ट्र से लौटते ही राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने जो संकेत दिए वो अनिल शर्मा की उम्मीदवारी पर मुहर लगाते हैं. उन्होंने कहा - राजस्थान की कांग्रेस सरकार का 4 साल का गुड गवर्नेंस और पंडित भंवर लाल शर्मा का बेहतरीन काम कांग्रेस को जीत दिलाएगा. इन्हीं कामों के चलते कांग्रेस सरदारशहर में मजबूत है और सत्ता और संगठन में पूरी तरीके से चल रहे समन्वय ने हमारी जीत 100% तय कर दी है.
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डोटासरा ने कहा कि वैसे भी भाजपा अब यह मान चुकी है कि उपचुनाव में चाहे वह सत्ताधारी दल हो या फिर विपक्ष जीत कांग्रेस पार्टी को ही मिलती है, ऐसे में सरदारशहर विधानसभा में कांग्रेस पार्टी को ही जीत मिलेगी. डोटासरा का ये बयान ही दर्शाता है कि वो भंवर लाल शर्मा के कामों को भी वोट का आधार मान रहे हैं. साफ है कि पंडित भंवर लाल शर्मा के बेटे अनिल शर्मा के टिकट की घोषणा महज औपचारिकता बची हुई है.
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1998 के उपचुनावों पर निगाह डालें तो पाएंगे कि जो दल सत्ता में होता था उपचुनाव में 100% जीत उसी के प्रत्याशी को मिलती थी. 1998 के बाद परंपरा में बदलाव आया और विपक्षी दल भी कुछ सीटों पर चुनाव जीतने लगे.
वसुंधरा राजे के पिछले कार्यकाल में 8 में से 6 चुनाव विपक्ष में होते हुए भी कांग्रेस पार्टी ने जीते और पुरानी परंपरा को पूरी तरीके से कांग्रेस पार्टी ने विपक्षी दल होते हुए भी तोड़ दिया. गहलोत के कार्यकाल में पुरानी परम्परा फिर टूटी. कांग्रेस पार्टी को इस बार सत्ताधारी दल होने पर भी जनता ने पसंद किया और अब तक हुए 7 उपचुनाव में से 5 उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी को जीत दिलाई.