जयपुर. देशभर में समलैंगिकता को लेकर बहस चल रही है. एक पक्ष के समर्थन में है तो देश का एक बड़ा तबका इसके विरोध में भी खड़ा है. वहीं, सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को मान्यता के लिए जारी सुनवाई चल रही है. इन सबके बीच राजस्थान का संत समाज सड़कों पर उतर आया है और देश मे समलैंगिकता कानून का विरोध तेज कर दिया है. संतों से जुड़े प्रतिनिधिमंडल ने शुक्रवार को राज्यपाल कलराज मिश्र से मुलाकात कर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के नाम ज्ञापन दिया और देश में समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दिए जाने की मांग की. राज्यपाल से मुलाकात के बाद प्रतिनिधिमंडल में शामिल संतों ने साफ तौर पर कह दिया कि समलैंगिकता भारतीय संस्कृति के खिलाफ है. देश में समलैंगिक विवाह और लिव इन रिलेशन जैसा पापाचार नहीं होने देंगे. फिर चाहे इसके लिए उन्हें देशभर में आंदोलन ही तेज क्यों ना करना पड़े.
राज्यपाल को दिया ज्ञापन : अखिल भारतीय संत समिति राजस्थान प्रमुख स्वामी बालमुकुंद आचार्य ने कहा कि समलैंगिक विवाह और लिव इन रिलेशन पश्चिम से आया है और यह भारत वर्ष की संस्कृति और सनातन संस्कृति के लिए उचित नहीं है, जिसका हम पुरजोर तरीके से विरोध करेंगे. उन्होंने कहा कि समलैंगिकता और लिव इन रिलेशनशिप देश की भारतीय संस्कृति के खिलाफ है यह पापाचार है. यह कानून की शक्ल न ले, इसके लिए हमने विभिन्न समाज के प्रतिनिधियों के साथ राज्यपाल को ज्ञापन दिया है और आवश्यकता पड़ी तो जयपुर से लेकर दिल्ली तक संत समाज उग्र आंदोलन भी करेगा. उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में समाज की प्रमुख धुरी है, जिसे इस तरह के कानून सकल देकर खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है. समाज में समलैंगिक सम्बंधों की बात करना भी पाप है, तो फिर कानून क्यों ? हम इस कानून को नहीं बनने देंगे.
समलैंगिक में संतान पैदा नहीं हो सकती : रामानंद विरक्त संत मंडल के प्रमुख हरिशंकर वेदांती ने कहा कि समलैंगिक में संतान पैदा नहीं हो सकती. परिवार समाज नष्ट हो जाएंगे. यह दुराचार पापाचार नहीं होने देंगे. जो कानून की मांग कर रहे हैं, उन्हें दंडित किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारतवर्ष राम और कृष्ण का देश है, जिसमें समलैंगिक विवाह को कोई स्थान नहीं है. संतान पुरुष और स्त्री से होती है, लेकिन समलैंगिक कानून को यदि मान्यता मिलेगी तो सभी प्राणियों में श्रेष्ठ मानव जाति के लिए यह उचित नहीं होगा. वेदांती ने कहा कि इस तरह का काम तो पशु पक्षी भी नहीं करते हैं, मानव जीवन तो उनसे कहीं उंचा है. क्या मनुष्य पशु पक्षियों से भी नीचे गिरेगा, परिवार की संस्कृति की प्रेरणा हमारे शास्त्र हैं और इनके आधार पर ही सनातन संस्कृति चल रही है.