जयपुर. राजधानी जयपुर में 'द रॉयल मारवाड़ी जयपुर हॉर्स शो' का आयोजन किया जाएगा. 3 से 5 मार्च तक आयोजित होने वाले हॉर्स शो में 150 मारवाड़ी घोड़े शामिल होंगे. द इंडिजिनस हॉर्स सोसायटी ऑफ इंडिया (आईएचएसआई) की ओर से राजस्थान पोलो क्लब जयपुर में 'द रॉयल मारवाड़ी जयपुर हॉर्स शो' का आयोजन किया जा रहा है. शो का आयोजन घोड़ों की नस्ल का दस्तावेजीकरण, प्रचार, संरक्षण और घोड़े मालिकों को शिक्षित करने के उद्देश्य से किया जा रहा है.
आईएचएसआई वाईस प्रेसिडेंट रघुवेंद्र सिंह डुंडलोद के मुताबिक तीन दिवसीय हॉर्स शो के दौरान मार्च पास्ट, बैंड डिस्प्ले, घुड़सवारी का प्रदर्शन, डांसिंग हॉर्स डिस्प्ले, विभिन्न श्रेणियों में मारवाड़ी ब्रीड के घोड़ों का डिस्प्ले, फेनफेयर समेत कई प्रकार की गतिविधियां आयोजित होंगी. शो में करीब 125 से 150 मारवाड़ी घोड़े हिस्सा लेंगे. रघुवेंद्र सिंह डुंडलोद ने बताया कि विभिन्न श्रेणियों में घोड़ों से जुड़ी गतिविधियां आयोजित होंगी. जिसमें पहले 4 मार्च को मारवाड़ी ब्रीड के 1 से 2 वर्ष और 2 से 4 वर्ष की आयु के 'फिली' और 'कोल्ट' शामिल होंगे. वहीं 5 मार्च को 4 वर्ष और उससे अधिक आयु के 'मेअर्स' और 'स्टेलियंस' को शो में शामिल किया जाएगा. इसी कड़ी में 'बेस्ट एनिमल ऑफ द शो' भी चुने जाएंगे, जिसमें पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर आने वाले घोड़ों की परेड कराई जाएगी. पहले स्थान पर आने वाले घोड़ों के बीच 'बेस्ट इन शो' के लिए प्रतिस्पर्धा होगी.
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'जजेस क्लिनिक' और सेमिनार्स का भी आयोजन: रघुवेंद्र सिंह डुंडलोद ने बताया कि आईएचएसआई 1 और 2 मार्च 2023 को जयपुर में दूसरा 'जजेस क्लिनिक' और सेमिनार्स का भी आयोजन कर रहा है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हॉर्स शो के दौरान जजेस शो को जज करने के नियमों का सख्ती से पालन करें और पॉइंट सिस्टम को स्पष्ट रूप से समझें. क्लिनिक का संचालन यूके की एक अंतरराष्ट्रीय जज जारा पावले करेंगी और इच्छुक जजेस को लिखित और प्रेक्टिकल परीक्षा से गुजरना होगा. जज के रूप में क्वॉलीफाय करने के लिए न्यूनतम प्रतिशत की एक सीमा होगी.
इंडिजिनस हॉर्स सोसाइटी ऑफ इंडिया के प्रयासों से मारवाड़ी घोड़ों ने न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी अपना स्थान पुनः प्राप्त कर लिया है. मारवाड़ी घोड़ों ने यूएसए में 'वर्ल्ड ईक्वेस्ट्रीयन गेम्स' में, यूके में क्वींस की डायमंड जुबली समारोह में और ओमान में ओमान के स्वर्गीय सुल्तान के शासन के 40 वर्षों का जश्न मनाने के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. आज यह नस्ल यूएसए, जर्मनी, फ्रांस, स्पेन, मालदीव, ओमान, लक्ज़मबर्ग और श्रीलंका में मौजूद है.
भारत की इक्वाइन संस्कृति महाभारत और रामायण जितनी पुरानी है, जहां 'अश्व' (घोड़ा) विवाह से लेकर धार्मिक समारोह से लेकर युद्ध तक भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग रहा है. यह अहसास दुखद था कि आजादी के बाद भी घोड़ो की नस्ल के दस्तावेज, इसकी संरचना, वंशावली गायब थी. इसी को ध्यान में रखते हुए घोड़ों का दस्तावेजीकरण, प्रचार, संरक्षण और घोड़े मालिकों को शिक्षित करने के विचार से इंडिजिनियस हॉर्स सोसाइटी ऑफ इंडिया का निर्माण हुआ.
रघुवेंद्र सिंह डुंडलोद ने बताया कि इंडिजिनस हॉर्स सोसाइटी ऑफ इंडिया 1997 से स्वदेशी घोड़ों के प्रचार, संरक्षण और मान्यता के लिए काम कर रही है. स्वदेशी घोड़ों के किसी भी आधिकारिक और प्रामाणिक दस्तावेज के अभाव में, सोसायटी ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय दस्तावेजों को खोजा और एकत्र किया जो नस्लों के पंजीकरण और घोड़ों के वंश को बनाए रखने के लिए चलन में थे. इसके साथ ही उन्होंने पंजीकरण फॉर्म बनाए और स्वदेशी घोड़ों के पंजीकरण का काम शुरू किया. मारवाड़ी घोड़ों की बढ़ती लोकप्रियता के देखते हुए सरकार की ओर से और निजी तौर पर भी पुष्कर, बालोतरा, नागौर आदि सहित पूरे देशभर में विभिन्न हॉर्स शोज आयोजित हुए.